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ऋग्वेद को समझना: पुरातत्व और संस्कृत का सम्मिलित प्रयास
GS-1 : मुख्य परीक्षा : प्राचीन इतिहास
उद्देश्य: हड़प्पा सभ्यता और वैदिक लोगों के बीच संबंध स्थापित करना।
ऋग्वेद विश्लेषण और पुरातात्विक साक्ष्य:
- ऋग्वेद को समझना: पुरातात्विक खोजों से इसे जोड़ने के लिए ऋग्वेद के पाठ को गहराई से समझना महत्वपूर्ण है।
- अग्नि पूजा: राखीगढ़ी (हड़प्पा स्थल) में खुदाई में मिले अनुष्ठानिक चबूतरे और अग्नि-वेदियां, ऋग्वेद में वर्णित अग्नि पूजा से मेल खाते हैं।
वेदों का काल निर्धारण:
- वर्तमान बहस: वैदिक काल को कुछ इतिहासकार 1500-2000 ईसा पूर्व के बीच मानते हैं, जबकि अन्य इसे 2500 ईसा पूर्व (4500 वर्ष पूर्व) का मानते हैं।
- आनुवंशिक साक्ष्य: राखीगढ़ी में मिली एक हड़प्पा महिला के अवशेषों से प्राप्त आनुवंशिक साक्ष्य 2500 ईसा पूर्व की तिथि के साथ मेल खाता है।
सरस्वती नदी:
- ऋग्वेद में उल्लेख: सरस्वती नदी का उल्लेख ऋग्वेद में 70 से अधिक बार मिलता है।
- पुरातात्विक खोजें: अधिकांश हड़प्पा बसावटें सरस्वती नदी के तट पर ही पाई गई हैं।
लोहे के उपयोग का अभाव:
- ऋग्वेद में उल्लेख नहीं: ऋग्वेद में लोहे का उल्लेख नहीं है, इसलिए बाद के लोहे का उपयोग करने वाले बस्तियों (2400 वर्ष पुराने) के साथ गंगा और दक्कन के पास संबंध की संभावना कम है।
दक्षिण एशियाई पूर्वज सिद्धांत:
- एनसीईआरटी का संशोधन: आर्यों के बड़े पैमाने पर यूरोप से मध्य एशिया और फिर दक्षिण एशिया में प्रवास (आर्य प्रवास सिद्धांत) के विपरीत, संशोधित एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तक बताते हैं कि हड़प्पावासी मूल रूप से भारत के रहने वाले थे (10,000 ईसा पूर्व के)।
वैदिक काल (1500-600 ईसा पूर्व):
- वेद: वैदिक काल की विशेषता वेदों की रचना है, जो सबसे प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथ हैं।
- समाज और संस्कृति: यह काल काफी हद तक पशुचारा और कबीलाई पर आधारित था, जिसमें आर्यों का वर्चस्व था।
- धार्मिक अभ्यास: देवताओं जैसे इंद्र, अग्नि, वरुण और सोम के लिए स्तुति-गान रचे जाते थे और अनुष्ठान किए जाते थे।
चारों वेद:
- ऋग्वेद: 1028 सूक्तों का संग्रह (सबसे पुरानी रचनाएँ, प्रारंभिक वैदिक जीवन को दर्शाती हैं)।
- सामवेद: गायन के लिए व्यवस्थित किए गए ऋग्वेद के छंद।
- यजुर्वेद: शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद नामक दो शाखाएँ, जिनमें सार्वजनिक और व्यक्तिगत अनुष्ठान शामिल हैं।
- अथर्ववेद: जादू के मंत्रों और तंत्रों का संग्रह।
वैदिक काल का अंत:
- यह बाद के वैदिक काल की शुरुआत का सूचक था, जिसमें अनुष्ठानों से हटकर दार्शनिक चिंतन (उपनिषद) की ओर रुझान हुआ।