संसद (Parliament)

भारतीय संविधान के भाग – 5 के अंतर्गत अनु० – 79-122 तक संसद का गठन , संरचना , अवधि , अधिकारियों , प्रक्रिया व विशेषाधिकार का वर्णन किया गया है संसद भारत का सर्वोच्च विधायी सदन है , जिसमें द्विसदनीय व्यवस्था है।  जो निम्न है —

  • लोकसभा (निचला सदन)
  • राज्यसभा (उच्च सदन)

संसद का गठन 

भारतीय संसद के तीन प्रमुख अंग है जो निम्न है —

  • लोकसभा
  • राज्यसभा
  • राष्ट्रपति

राष्ट्रपति प्रत्येक आम चुनाव के बाद लोकसभा का प्रथम सत्र व प्रत्येक वर्ष (लोकसभा व राज्यसभा में) प्रथम सत्र को संबोधित करता है। भारतीय संविधान ब्रिटेन के संविधान की पद्धति पर आधारित है।

संसद की संरचना (Structure of parliament)

राज्यसभा (Rajyasabha)

राज्यसभा में सीटों की अधिकतम संख्या 250 निर्धारित की गई है , इनमे से 238 सदस्य आनुपातिक रूप से निर्वाचित होंगे और 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा कला , साहित्य , खेल आदि क्षेत्रों से निर्वाचित किया जायेंगा।

 

Note:  अनुसूची 4 में राज्यसभा की सीटों के आवंटन का वर्णन किया गया है।

राज्यों का प्रतिनिधित्व 

राज्यसभा के प्रतिनिधियों का निर्वाचन राज्य विधानसभा के सदस्यों द्वारा आनुपातिक निर्वाचन प्रणाली के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होता है। राज्यसभा में प्रत्येक राज्य के लिए सीटों का आवंटन उनकी जनसँख्या के आधार पर होता है।  जैसे —  उत्तर प्रदेश (UP) में 31 व त्रिपुरा (Tripura) में 1 राज्यसभा सीटें है , जबकि अमेरिका (America) में सीनेट (उच्च सदन) में प्रत्येक राज्यों का समान प्रतिनिधित्व है।

संघ या राज्य क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व 

केंद्र शासित प्रदेशों में राज्यसभा के निर्वाचन के लिए प्रतिनिधि का चयन निर्वाचिक मंडल द्वारा आनुपातिक पद्धति के आधार पर होता है। केन्द्रशासित प्रदेशों में केवल दिल्ली (Delhi) व पुडुचेरी (Puducheri) का प्रतिनिधित्व राज्यसभा में है अन्य केंद्र शासित प्रदेशों की जनसँख्या कम होने के कारण उनका राज्य सभा में प्रतिनिधित्व नहीं है।

नामांकित सदस्य (Nominated member)

12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा कला , साहित्य , खेल आदि क्षेत्रों से निर्वाचित किया जाता है।

 

लोकसभा (Loksabha)

लोकसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 552 निर्धारित की गयी है। जिनका निर्वाचन जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है , जिसमे 530 सदस्य राज्यों के प्रतिनिधि और 20 केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधि और दो व्यक्तियों को राष्ट्रपति द्वारा आंग्ल – भारतीय समुदाय से नामांकित किया जाता है।

राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों प्रतिनिधित्व

इनका निर्वाचन जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है। 61 वें संविधान संसोधन अधिनियम द्वारा मत देने की आयु सीमा को 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया था।

नामांकित सदस्य (Nominated member)

यदि  आंग्ल – भारतीय समुदाय का लोकसभा में समान प्रतिनिधित्व न हो तो राष्ट्रपति इस समुदाय के 2 लोगो को मनोनीत कर सकता है , शुरुआत में यह प्रावधान केवल 1960 तक था किंतु 95 वें संविधान संसोधन अधिनियम 2009 द्वारा इसकी अवधि को 2020 तक बढ़ा दिया गया है। इसके समान ही यह अनुसूचित जाति व जनजाति पर भी लागू होता है।

सदनों की अवधि 

राज्यसभा

राज्यसभा की स्थापना 1952 में की गई यह लगातार चलने वाली संस्था है अर्थात इसका विघटन नहीं हो सकता। राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है किंतु इसके सदस्य प्रत्येक दो वर्ष के अन्तराल में पुन: निर्वाचित होते है।

लोकसभा

लोकसभा निरंतर चलने वाली संस्था नहीं है प्रत्येक आम चुनाव के 5 वर्षो बाद इसका विघटन हो जाता है किंतु राष्ट्रपति द्वारा इसे 5 वर्ष से पहले भी विघटित किया जा सकता है। आपात की स्थिति में लोकसभा की अवधि 1 वर्ष तक बढ़ायी जा सकती है किंतु आपात ख़तम होने के बाद किसी भी दशा में इसकी अवधि 6 माह से अधिक नहीं हो सकती।

संसद के सदस्यों की योग्यता  

  • भारत का नागरिक होना चाहिए।
  • लोकसभा के लिए न्यूनतम  25 वर्ष और राज्यसभा के लिए न्यूनतम 30 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो।
  • चुनाव आयोग द्वारा अधिकृत अधिकारी के समक्ष शपथ लेना अनिवार्य है
    • भारत के संविधान के प्रति सच्ची आस्था व निष्ठा रखूँगा।
    • भारत की संप्रभुता व अखंडता की रक्षा करूँगा।
  • जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के अनुसार भारत का पंजीकृत मतदाता होना चाहिए।

पदों की रिक्ततता की स्थिति  

दोहरी सदस्यता (लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम – 1951)

  • यदि कोई व्यक्ति संसद के दोनों सदनों में निर्वाचित हो जाए तो उसे 10 दिनों के अंदर यह सूचना देनी होगी की उसे किस सदन में रहना है , ऐसा न करने पर उसकी राज्य सभा सदस्यता समाप्त हो जाएगी।
  • यदि किसी सदन का सदस्य दूसरे सदन का भी सदस्य निर्वाचित हो जाता है तो उसके पहले सदन की सदस्यता समाप्त हो जाएगी ।
  • यदि कोई व्यक्ति एक ही सदन में दो सीटो पर निर्वाचित हो जाता है तो उसे स्वेच्छा से एक सीट का त्याग करना होगा अन्यथा उसकी दोनों सीट समाप्त हो जाएँगी ।
  • राज्य विधानमंडल या संसद दोनों में निर्वाचित होने पर व्यक्ति को 14 दिनों के भीतर राज्य विधानमंडल की सदस्यता से त्यागपत्र देना होगा अन्यथा उसकी संसद सदस्यता समाप्त हो जाएगी।

अनुपस्थिति की आधार पर  

यदि कोई सदस्य 60 दिनों से अधिक समय की अवधि के लिए संसद की सभी बैठकों में अनुपस्थित रहता है तो उसक पद रिक्त हो जाएगा। 60 दिनों की अवधि की गणना में सदन के स्थगन या सत्रावसान की लगातार 4 दिनों से अधिक की अवधि को शामिल नहीं किया जाता।

अयोग्यता के आधार पर या दल बदल की स्थिति में पदत्याग या मृत्यु की स्थिति में

 

संसद के अध्यक्ष (लोकसभा और राज्यसभा)

लोकसभा (Loksabha)

लोकसभा अध्यक्ष का निर्वाचन 

लोकसभा में प्रत्येक आम चुनाव की प्रथम बैठक के पश्चात्  उपस्थित सदस्यों के मध्य से अध्यक्ष पद का चुनाव किया जाता है। लोकसभा में अध्यक्ष पद के चुनाव की तिथि राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जाति है। लोकसभा अध्यक्ष का कार्यकाल लोकसभा के विघटन तक रहता है किंतु निम्न परिस्थितियों में इससे पूर्व भी उसका कार्यकाल समाप्त किया जा सकता है —-

  • यदि वह संसद का सदस्य न रहे। 
  • अध्यक्ष द्वारा उपाध्यक्ष को अपना त्याग पत्र सौंप देने पर । 
  • 14 दिन की पूर्व संकल्प पारित करने की सुचना व तत्कालीन सदस्यों के बहुमत द्वारा उसे हटाया जा सकता है । 

लोकसभा अध्यक्ष को हटाने का संकल्प विचाराधीन होने पर वह अध्यक्ष पीठासीन नहीं होगा किंतु उसे लोकसभा की कार्यवाही में बैठने व मत (Vote) देने का अधिकार होगा , किंतु मतों की संख्या बराबर होने पर उसे मत देने का अधिकार नहीं होगा। लोकसभा अध्यक्ष की शक्तियों के निम्न स्रोत है —

  • भारत का संविधान
  • लोकसभा की प्रक्रिया
  • कार्य संचलन नियम तथा संसदीय परंपरा

कार्य व शक्तियां 

  • गणपूर्ति (कोरम) के आभाव में लोकसभा अध्यक्ष सदन को स्थगित कर देता है । गणपूर्ति कोरम से आशय सदन के बैठक के लिए आवश्यक सदस्यों की न्यूनतम संख्या (कुल सदस्यों का 1/10 वा भाग ) से है । 
  • सामान्य स्थिति में लोकसभा अध्यक्ष मत (vote) नहीं देता किंतु किसी विधेयक या अन्य पर मत बराबरी की स्थिति में वह मत देता है । 
  • लोकसभा अध्यक्ष संसद के दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन (Joint Session) की अध्यक्षता करता है । 
  • लोकसभा अध्यक्ष यह निश्चय करता है की कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं और उसका निर्णय अंतिम होता है । राज्यसभा या राष्ट्रपति के पास भेजा जाने वाला धन विधेयक लोकसभा अध्यक्ष द्वारा सत्यापित होता है की वह धन विधेयक है या नहीं। 
  • सदन के नेता (प्रधानमंत्री) के आग्रह पर लोकसभा अध्यक्ष गुप्त बैठक बुला सकता है ।  

लोकसभा उपाध्यक्ष 

लोकसभा के उपाध्यक्ष का चुनाव भी अध्यक्ष की तरह लोकसभा के निर्वाचित प्रतिनिधयों द्वारा किया जाता है । अध्यक्ष के द्वारा लोकसभा उपाध्यक्ष के चुनाव की तारीख निर्धारित की जाति है  उपाध्यक्ष को निम्न परिस्थितियों में अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ता है —  

  • सदन का सदस्य न रहने पर । 
  • अध्यक्ष को त्यागपत्र सौंपकर । 
  • बहुमत से पारित संकल्प द्वारा किंतु संकल्प पारित करने से 14 दिन पूर्व सूचना देना अनिवार्य है। 

लोकसभा अध्यक्ष की उपस्थिति के उपाध्यक्ष सामान्य निर्वाचित प्रतिनिधियों की तरह कार्य करता है। 

Note :

  • 10 वीं लोकसभा तक अध्यक्ष (President) व उपाध्यक्ष  (Vice President) सत्ताधारी दल के नेता होते थे , किंतु 11 वीं लोकसभा द्वारा आम सहमति बनी की अध्यक्ष सत्ताधारी दल का व उपाध्यक्ष मुख्य विपक्षी दल का नेता होगा ।  
  • अध्यक्ष या उपाध्यक्ष पद धारण करते समय कोई  अलग शपथ  या प्रतिज्ञा नहीं लेता। 

सामयिक अध्यक्ष  

लोकसभा के विघटन की स्थिति में लोकसभा अध्यक्ष नई लोकसभा की बैठक होने तक अपने पद पर बना रहता है , इसे सामयिक अध्यक्ष भी कहाँ जाता है। 

राज्यसभा (RajyaSabha)

राज्यसभा का सभापति (Chairman of the Rajya Sabha)

भारत का उप-राष्ट्रपति राज्य सभा का पीठासीन अधिकारी होता है , जब उपराष्ट्रपति , राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है तो वह राज्यसभा के सभापति के रूप में कार्य नहीं करता है  राज्यसभा के सभापति व लोकसभा के अध्यक्ष को समान शक्तियां प्राप्त है किंतु लोकसभा अध्यक्ष को सभापति की तुलना में दो विशेष शक्तियां प्राप्त है—–

  •  है या नहीं इसका निर्णय केवल लोकसभा अध्यक्ष करा है और  निर्णय अंतिम होता है
  • लोकसभा अध्यक्ष दोनों सदनों की संयुक्त बैठक (Joint Session) की अध्यक्षता करता है

सभापति की शक्तियां व कार्य (Powers and Functions)

  • सभापति सदन का सदस्य नहीं होता किंतु किसी विधेयक या निर्णय पर मत बराबरी की स्थिति में वह मत दे सकता है
  • जब उप-राष्ट्रपति को सभापति पद से हटाने का संकल्प विचाराधीन है तो वह उपसभापति के रूप में कार्य नहीं करता है किंतु संसद की कार्यवाही में भाग ले सकता है लेकिन मत नहीं दे सकता
  • राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने पर राज्यसभा के सभापति के रूप में कोई पद या भत्ता नहीं मिलता है

राज्यसभा का उप-सभापति (Deputy Chairman of Rajya Sabha)

राज्यसभा के उप-सभापति का चुनाव  निर्वाचित प्रतिनिधयों के मध्य से ही  किया जाता है । उप-सभापति , सभापति के अधीनस्थ नहीं होता वह सीधे राज्यसभा के प्रति उत्तरदायी होता है  उप-सभापति को  निम्न परिस्थितियों में अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ता है —  

  • सदन का सदस्य न रहने पर । 
  • अध्यक्ष को त्यागपत्र सौंपकर । 
  • बहुमत से पारित संकल्प द्वारा किंतु संकल्प पारित करने से 14 दिन पूर्व सूचना देना अनिवार्य है। 

 

संसदीय सत्र (Session of Parliament)

अनु० – 85 के अनुसार राष्ट्रपति दोनों सदनों को ऐसे अन्तराल पर आहूत करेगा की एक सत्र की अंतिम बैठक व अगले सत्र की प्रथम बैठक के मध्य 6 माह से अधिक का अंतराल ना हो।  एक वर्ष में सामान्यत: तीन सत्र होते है —

  • बजट सत्र (Budget Session) —  Feb. to May
  • मानसून सत्र (Monsoon Session) — July to Sept.
  • शीतकालीन सत्र  (Winter Session) — Nov. to Dec.

संसद की बैठक को निम्न तरीको से समाप्त किया जा सकता है —

  • स्थगन
  • अनिश्चितकालीन स्थगन
  • सत्रावसान
  • विघटन (केवल लोकसभा में )

संसद की प्रत्येक बैठक में दो सत्र होते है – प्रात: 11:00 a.m से 1:00 p.m और दोपहर 2:00 p.m से 6:00 p.m तक

स्थगन

जब अध्यक्ष के द्वारा संसद की बैठक के कार्य को कुछ निश्चित समय (कुछ घंटे , कुछ दिन , कुछ सप्ताह) के लिए स्थगित किया जाता है।

अनिश्चितकालीन स्थगन 

जब अध्यक्ष या सभापति द्वारा सदन को बिना सूचना दिए स्थगित कर दिया जाता है है की सदन को पुन: किस दिन आहूत किया जाएगा।

सत्रावसान 

जब लोकसभा अध्यक्ष या सभापति द्वारा सदन के पूर्ण होने पर अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया जाता है किंतु राष्ट्रपति सत्र के दौरान भी संसद का सत्रावसान कर सकता है।

विघटन

राज्यसभा के स्थायी सदन होने के करण इसका विघटन नहीं किया जा सकता , जबकि लोकसभा अस्थायी सदन होने के कारण विघटित हो सकती है।लोकसभा को दो तरीको से विघटित किया जा सकता है —

  • स्वंय विघटन — लोकसभा का 5 वर्ष का कार्यकाल पूर्ण होने पर या वह वह काल पूर्ण होने पर जब राष्ट्रीय आपातकाल के लिए समय बढ़ाया गया हो किंतु किसी भी परिस्थिति में आपातकाल खत्म होने के बाद लोकसभा के कार्यकाल को 6 माह से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता है ।
  • सदन में बहुमत न होने की स्थिति में राष्ट्रपति लोकसभा विघटन का निर्णय ले ले ।

लोकसभा के विघटन होने की स्थिति में इसके संपूर्ण कार्य जैसे – विधेयक , प्रस्ताव संकल्प नोटिस , याचिका आदि समाप्त हो जाते है जो लोकसभा या राज्यसभा में विचाराधीन है , उन्हें नवगठित लोकसभा द्वारा पुन: लाना आवश्यक है। जबकि राज्यसभा के द्वारा पारित विधेयक या प्रस्ताव लोकसभा के भंग होने की स्थिति में समाप्त नहीं होते है ।

Note:

  • ऐसा विधेयक जो दोनों सदनों  की असहमति के कारण पारित न हुआ हो और राष्ट्रपति ने विघटन होने से पूर्व दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाई हो समाप्त नहीं होता है ।
  • राष्ट्रपति द्वारा पुनर्विचार के लिए लौटाया गया विधेयक या राष्ट्रपति के पास विचाराधीन विधेयक समाप्त नहीं होता है।

गणपूर्ति (कोरम)

गणपूर्ति वह न्यूनतम सदस्य संख्या है जिनकी उपस्थिति में सदन का कार्य सम्पादित किया जाता है , इसका अर्थ है की सदन चलाने के लिए कम से कम उस सदन की की कुल सदस्य संख्या का 1/10 सदस्य होना अनिवार्य है।

साइन डाई (Sine Die)

सदन का अध्यक्ष या सभापति सदन की अगली बैठक की तिथि घोषित किए बिना सदन को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर देता है तो इसे Sine Die कहते है ।

सदन में मतदान 

संविधान  में उल्लेखित कुछ विशिष्ट मामलों के लिए विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है । जैसे –   राष्ट्रपति , उच्चतम व उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश , संविधान संसोधन , लोकसभा व राज्यसभा अध्यक्ष आदि । मतदान की प्रक्रिया में प्रस्ताव के पक्ष में मत देने के लिए अये (Aye) और विपक्ष में मत देने के लिए नो (No) प्रयोग होता है।

लेक डक 

यह नई लोकसभा के गठन से पूर्व वर्तमान लोकसभा के वें सदस्य होते है जो नयी लोकसभा हेतु निर्वाचित नहीं हो पते लेक डक  कहलाते है ।

संसद में भाषा 

संविधान ने हिंदी व अंग्रेजी को सदन की कार्यवाही भाषा घोषित किया था , लेकिन पीठासीन अधिकारी किसी भी सदस्य को अपनी मातृभाषा  में बोलने  का अधिकार दे सकता है और उसके सामानांतर अनुवाद की भी व्यवस्था है। यह व्यवस्था की गई थी की संविधान लागू होने के 15 वर्षों के बाद अंग्रेजी स्वंय (1965) ही समाप्त हो जाएगी , किंतु  राजभाषा  अधिनियम 1963हिंदी के साथ अंग्रेजी की निरंतरता की अनुमति देता है।

 

संसदीय कार्यप्रणाली (Parliamentary Functioning)

अनु० – 118  के अंतर्गत संसद का प्रत्येक सदन अपनी प्रकृया और कार्यप्रणाली के लिए नियम बना सकता है , इसके अंतर्गत प्रश्न पूछने की विधि , विधिक प्रस्ताव व चर्चाएँ आदि आते है

प्रश्न काल 

संसद का पहला घंटा 11-12 a.m प्रश्नकाल के लिए होता है। इस दौरान सदस्यों द्वारा प्रश्न पूछे जाते है और सामान्यत: मंत्री  उत्तर देते है , प्रश्न तीन प्रकार  होते है —

तारांकित प्रश्न — इसका उत्तर मौखिक रूप से दिया जाता है और इसके बाद पूरक प्रश्न पूछे जाते है।

अतारांकित प्रश्न — इन प्रश्नों का उत्तर लिखित रूप में दिया जाता है इनके बाद पूरक प्रश्न नहीं पूछे जा सकते है।

अल्प सूचना प्रश्न — ऐसे प्रश्न जिन्हें कम से कम 10 दिन की पूर्व सूचना देकर पुचा जाता है इनका उत्तर भी लिखित रूप में दिया जाता है । सामान्यत: लोकमहत्व के प्रश्न होते है ।

शून्य काल 

संसद के दोनों सदनों में प्रश्नकाल के ठीक बाद का समय आमतौर पर शून्य काल (Zero Hour) के नाम से जाना जाता है। यह नाम 1960 – 1970  दशक के आरंभिक वर्षो में किसी समय समाचार पत्रों द्वारा तब दिया गया बिना पूर्व सूचना के लोकमहत्व के प्रश्न उठाने की प्रथा विकसित हुई । शून्य काल का उल्लेख संसदीय नियमावली में नहीं है ।

गैर सरकारी सदस्यों द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्न 

इस प्रकार के प्रश्न कभी-कभी लोकसभा में पूछे जाते है इन प्रश्नों के बाद अनुपूरक प्रश्न नहीं पूछे जा सकते है ।

आधे घंटे की चर्चा  

किसी ऐसे प्रसंग से उत्पन्न होने वाले मामलों पर जिसका उत्तर सदन में दिया जा चुका हो । 1/2 घंटे की चर्चा के लिए सप्ताह में तीन दिन (सोमवार , बुधवार , शुक्रवार) को बैठक अंतिम आधे घंटे में की जाति है ।

प्रस्ताव

किसी विषय पर सदन की राय जानने वाले मसौदे को प्रस्ताव कहा जाता है , ऐसे  प्रस्ताव निम्न प्रकार के होते है —

विश्वास प्रस्ताव  

यह प्रस्ताव सत्ता पक्ष द्वारा लाया जाता है ऐसा प्रस्ताव सत्तापक्ष राष्ट्रपति के निर्देश पर प्रस्तुत करता है , आम चुनावों के पश्चात प्रत्येक सरकार को राष्ट्रपति द्वारा दी गई अवधि के अंतर्गत लोकसभा में अपना बहुमत सिद्ध करने के लिए विश्वास प्रस्ताव लाना पड़ता है ।

अविश्वास प्रस्ताव  

यह कम से कम सदन के 50 सदस्यों द्वारा उनके हस्ताक्षर से लाया जा सकता है, इसके लाए जाने के कारणों का उल्लेख आवश्यक नहीं परन्तु इसके पारित होने पर सरकार या मंत्रीपरिषद् समाप्त हो जाति है ।

निंदा प्रस्ताव

सदन में विपक्ष द्वारा 50 सदस्यों के हस्ताक्षर से किसी मंत्री या मंत्रिपरिषद की आलोचना के लिए यह प्रस्ताव लाया जाता है , इसके पारित होने पर सरकार पर दबाव बनता है किंतु सरकार त्यागपत्र देने के लिए बाध्य नहीं है ।

ध्यानाकर्षण प्रस्ताव  

यह प्रस्ताव 1954 में भारत में विकसित हुआ इसके तहत समाचार पत्रों , TV पर प्रकाशित खबरों या लोक महत्व के किसी मामलों पर सदन का ध्यान खीचने के लिए यह लाया जाता है इसे लेन से पूर्व 10 : 00 am से पहले सूचना देना अनिवार्य है।

स्थगन प्रस्ताव 

इस प्रस्ताव को पेश करने का मूल उद्देश्य हाल के किसी लोकमहत्व के किसी ऐसे मामलें की ओर है जिसके गंभीर परिणाम हो सकते है और उचित सूचना देने में देर हो सकती है और इस और सदन का ध्यान खीचना है ।

ऐसे प्रस्ताव सदन की कार्य सूची से कार्य को रोककर लाया जाता है । इसे लेन के लिए 50 सदस्यों का समर्थन और अध्यक्ष के हस्ताक्षर आवश्यक है ।

अल्पकालिक चर्चा  

यह गैर – सरकारी सदस्य द्वारा लोकमहत्व (सार्वजनिक महत्व ) के मामलें सदन के ध्यान में लेन का तरीका है । इसके लिए प्रत्येक सप्ताह के तीन दिन 2 घंटे की चर्चा की जाती  है , क्योंकि इस प्रकार की चर्चा में दो घंटे से अधिक का समय नहीं लगता है।

Note :

नियम 184 – इस पर विचार विमर्श के बाद मतदान की व्यवस्था है, अत: सरकार इस नियम के अंतर्गत बहस नहीं करना चाहती है ।

नियम 193 – इस नियम के अंतर्गत केवल विचार विमर्श की व्यवस्था है मतदान की नही ।

नियम 56 – लोकमहत्व के किसी विषय पर इस नियम के अंतर्गत विचार किया जा सकता है । जैसे – स्थगन प्रस्ताव

नियम 41 – सदन में पूछे गए प्रश्नों को स्वीकार करना व निम्न श्रेणियों में विभाजित करना इस नियम के अंतर्गत होता है ।

 

संसद में विधायी प्रक्रिया

संसद में पेश होने वाले विधेयकों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है।

  • सरकारी विधेयक
  • गैर-सरकारी विधेयक

साधारण विधेयक (Ordinary bill)

अनु० – 107 के अनुसार साधारण विधेयकों को किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है , इसके अंतर्गत वितीय विषयों को छोड़कर अन्य सभी विषयों से संबंधित विधेयक साधारण विधेयक कहलाते है।

धन विधेयक (Money Bill)

अनु०-110 के अंतर्गत परिभाषित किया गया है की धन विधेयक लोकसभा में केवल राष्ट्रपति की संस्तुति पर ही प्रस्तुत किया जा सकता है। यह वितीय विषयों से संबंधित होते है। धन विधेयकों को राज्यसभा अधिकतम 14 दिनों तक रोक सकती है।

वित्त विधेयक (Finance bill)

यह भी वित्त से संबंधित विधेयक होते है । जैसे – राजस्व आय या व्यय से संबंधित , वित्त विधेयक तीन प्रकार के होते है —

  • वित्त विधेयक (अनु० – 117 A)
  • वित्त विधेयक (अनु० – 117 C)
  • धन विधेयक (अनु० – 110)

किसी विधेयक पर वह धन विधेयक है या नहीं लोकसभा अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होता है । इसे सदन में केवल मंत्री द्वारा ही पेश किया  सकता है । राज्यसभा व राष्ट्रपति के पास भेजने से पूर्व अध्यक्ष इसका धन विधेयक के रूप में पृष्ठांकन करता है। यदि राज्य सभा धन विधेयक को 14 दिनों तक वापस नहीं  करती  तो वह दोनों सदनों में पारित समझा जाएगा । अत: सभी धन विधेयक वित्त विधेयक होते है किंतु सभी वित्त विधेयक , धन विधेयक नहीं होते है ।

संविधान संसोधन विधेयक ( अनु० 368 )

अनु० – 368 के अंतर्गत संविधान संसोधन की प्रक्रिया तथा इससे संबंधित संसदीय शक्ति का वर्णन किया गया है। संविधान संसोधन हेतु दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत (2/3) की आवश्यकता होती है। राज्य सभा द्वारा इसे अस्वीकार किए जाने पर बैठक नहीं बुलाई जा सकती है ।



संसद में विधेयक प्रस्तुत करने की प्रक्रिया 

किसी भी सदन में विधेयक प्रस्तुत होने पर निम्न प्रक्रियाओं से गुज़रता है —

प्रथम पाठन

इसके अंतर्गत किसी भी विधेयक को संसद में प्रस्तुत किया जा सकता है। किसी भी विधेयक को संसद में प्रस्तावित करने से पूर्व सदन को अग्रिम सुचना देना अनिवार्य है , प्रस्तुतकर्ता द्वारा विधेयक का शीर्षक व इसका उद्देश्य बताता है व इसके सदन में बहुमत से पास होने के बाद भारत के राजपत्र (Gazette of India) में प्रकाशित  किया जाता है।

संसद में विधेयक का प्रस्तुतीकरण एवं उसका राजपत्र में प्रकाशित होना ही प्रथम पाठन कहलाता है ।

द्वितीय चरण – 

इसके अंतर्गत तीन चरण उल्लेखनीय है –

  • सामान्य बहस
  • समिति अवस्था
  • विचार विमर्श की अवस्था

सामान्य बहस की अवस्था 

इस अवस्था के अंतर्गत विधेयक के सिद्धांत व उपबंधो पर चर्चा होती है किंतु विधेयक पर विस्तार से विचार विमर्श नहीं किया जाता है, इसके संबंध में संसद निम्न 4 में से कोई एक कदम उठा सकती है —

  • संसद विधेयक पर तुरंत चर्चा करा सकती है या कोई अन्य तिथि निर्धारित की जा सकती है।
  • इसे सदन की प्रवर समिति को सौंपा जा सकता है ।
  • दोनों सदनों (लोकसभा व राज्यसभा) की संयुक्त समिति को सौंपा जा सकता है
  • जनता के विचार जानने हेतु सार्वजनिक किया जा सकता है।

समिति अवस्था 

इस अवस्था में विधेयक पर विचार अथवा इसके उपबंधो को तैयार किया जाता है किंतु समिति विढेक के मूल विषय में परिवर्तन नहीं कर सकती है तथा विधेयक की समीक्षा के बाद इसे सदन को सौंप दिया जाता है।

विचार विमर्श की अवस्था 

प्रवर समिति द्वारा विधेयक प्राप्त होने के उपरांत सदन द्वारा इसके सभी उपबंधो पर खंडवार चर्चा व मतदान होता है। इसी अवस्था में  इसमें संसोधन कर विधेयक में जोड़ा जा सकता है।

तृतीय चरण

इस चरण में विधेयक को केवल स्वीकार या अस्वीकार किया जाता है तथा इसमें कोई संसोधन नहीं किया जा सकता है। एक सदन से पारित होने के बाद इसे दूसरे सदन में भेज दिया जाता है।

दूसरे सदन में भी प्रथम सदन की तरह इसमें भी प्रथम , द्वितीय व तृतीय चरण होते है । दूसरे सदन से भी पास होने के बाद विधेयक को राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए भेजा जाता है।

राष्ट्रपति की अनुमति 

अनु०- 111 के अनुसार जब संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए भेजा जाता है तो राष्ट्रपति के पास तीन विकल्प होते है।

  • राष्ट्रपति विधेयक को स्वीकृति दे सकता है।
  • विधेयक को ना देने हेतु राष्ट्रपति द्वारा रोका जा सकता है।
  • राष्ट्रपति द्वारा विधेयक को पुनर्विचार हेतु सदन के पास वापस भेजा जा सकता है किंतु बिना संसोधन किए विधेयक को पुन: राष्ट्रपति के पास वापस भेजे जाने पर राष्ट्रपति विधेयक पर स्वीकृति देने हेतु बाध्य है।

NOTE:

धन विधेयक केवल मंत्री द्वारा राष्ट्रपति की अनुमति से केवल लोकसभा में ही पेश किया जा सकता है । इसे पारित करने की प्रक्रिया भी ऊपर दी गई प्रक्रिया के समान है किंतु इसे राज्यसभा द्वारा अधिकतम 14 दिनों तक रोका जा सकता है (अर्थात् धन विधेयक के संबंध में लोकसभा की शक्ति अधिक है )

 

संसद का संयुक्त सत्र (लोकसभा और राज्यसभा )

संविधान के अनु०- 108 के अंतर्गत संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) की संयुक्त बैठक की व्यवस्था की गई है। इसके अंतर्गत किसी विधेयक पर गतिरोध उत्पन्न होने की स्थिति में राष्ट्रपति द्वारा संयुक्त बैठक बुलाई जा सकती है या विधेयक को दूसरे सदन में 6 माह से अधिक समय  गया हो तो निम्न परिस्थितियों में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाई जा सकती है —

  • यदि विधेयक को दूसरे सदन द्वारा अस्वीकृत कर दिया जाए ।
  • यदि सदन विधेयक में किए गए संशोधनों को मानने से असहमत हो।
  • दूसरे सदन द्वारा बिना विधेयक को पास किए 6 माह से अधिक का समय हो जाए।

दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष द्वारा की जाती है तथा उसकी अनुपस्थिति में लोकसभा उपाध्यक्ष द्वारा संयुक्त बैठक की अध्यक्षता की जाति है । लोकसभा उपाध्यक्ष के भी अनुपस्थित होने पर संयुक्त सत्र अध्यक्षता राज्यसभा के उपसभापति द्वारा की जाती है उपसभापति के भी अनुपस्थित  होने पर संयुक्त अ की अध्यक्षता न में उपस्थित सदस्यों के मध्य निर्णय लिया जाता है की बैठक की अध्यक्षता कौन करेगा।

1950 से वर्तमान तक दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को अभी तक तीन बार बुलाया गया है –

  • दहेज़ प्रतिषेध  विधेयक (Dowry Prohibition Bill ) – 1960
  • बैंकिंग सेवा आयोग विधेयक (Banking Service Commission Bill ) – 1977
  • आतंकवाद निवारण विधेयक (POTA-Prevention of Terrorism Act) – 2002

Note:

धन विधेयक (Money Bill) के संबंध में संयुक्त बैठक का प्रावधान नहीं है । क्योंकि धन विधेयक को राज्यसभा द्वारा अधिकतम 14 दिनों तक रोका  सकता है , नहीं तो यह दोनों सदनों से स्वंय ही पारित समझा जाएगा ।

 

संसद में बजट (Budget in parliament)

संविधान के अनु० – 112 के अंतर्गत प्रत्येक वित्त वर्ष के संदर्भ में मंत्री द्वारा भारत सरकार की अनुमानित प्राप्तियों एवं व्यय का विवरण संसद के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है जिसे वार्षिक वित्तीय विवरण या बजट (Budget) कहते है। बजट में सरकार की प्राप्तियों को जिनमें सरकारी विधेयक रखे  जाते है  तीन भागों में देखा जा सकता है —

  • संचित निधि (Consolidated funds)
  • आकस्मिकता निधि (Contingency fund)
  • लोक लेखा निधि  (Public account fund)

संचित निधि 

अनु०- 226 के  अंतर्गत संचित निधि का वर्णन किया गया है , इसमें सरकार को प्राप्त होने वाले सभी राजस्व तथा सरकार द्वारा लिए जाने वाले ऋणों व सरकार द्वारा दिए जाने वाले ऋणों से प्राप्त धनराशि का वर्णन किया जाता है। सरकार का पूरा खर्च संचित संचित निधि से होता है तथा बिना संसद की अनुमति के इस निधि  से धन नहीं सकता है ।

आकस्मिकता निधि

अनु०- 267 के अंतर्गत आकस्मिकता निधि का प्रावधान किया गया है। इस निधि से धन निकलने के लिए राष्ट्रपति  समर्थ बनाया गया है , जब कभी सरकार को संसद की स्वीकृति मिलने से पूर्व ही अप्रत्याशित आवश्यक खर्च करना पड़ता है तो इस प्रकार  व्यय के लिए आकस्मिक   निधि का प्रावधान किया गया है।

लोक लेखा निधि

सरकार की सामान्य प्राप्तियों एवं व्यय के अतिरिक्त सरकारी लेखों में कुछ अन्य लेन-देन जैसे- भविष्य निधियों के संबंध में लेन-देन , अन्य जमा आदि का हिसाब भी रखा जाता है जिसके संबंध सरकार लगभग एक बनकर के रूप में कार्य करती है।

इस प्रकार प्राप्त रकमों एवं उसके वितरण को लोक लेखा निधि में दिखाया जाता है , सामान्यत: यह निधि सरकार की नहीं होती है अत: इससे पैसा निकालने के लिए संसद की अनुमति की आव्यश्यकता नहीं होती है। इसके अंतर्गत सरकारी क्षेत्रों का निजीकरण (Privatization) व ऋण देना भी शामिल है ।

बजट पारित होने की प्रक्रिया 

संसद में बजट पारित होने से पूर्व निम्न प्रक्रियाओं से गुज़रता है —

  • बजट का प्रस्तुतीकरण
  • आम बहस
  • विभागीय समितियों द्वारा जाँच
  • अनुदान की मांग पर मतदान
  • विनियोग विधेयक का पारित होना
  • वित्त विधेयक का पारित होना

भारत में बजट की पद्धति का आरम्भ भारत के प्रथम वायसराय लार्ड केनिंग (1958) के कार्यकाल में हुआ। 1859 में प्रथम बार James Wilson को लार्ड केनिंग की कार्यकारिणी का वित्त सदस्य चुना गया था। James Wilson द्वारा सर्वप्रथम 1860में वायसराय की परिषद्   में    बजट पेश किया गया इसलिए इन्हें भारत  बजट पद्धति का जन्मदाता कहाँ जाता है।

बजट में हुए बदलाव 

वर्ष 2017 में पेश हुए बजट में दो प्रकार से बदलाव किया गया है —

  • एकवर्थ समिति (1924) से चले आ रहे अलग से रेलवे बजट (Railway Budget) के प्रावधान को ख़त्म कर दिया गया है। वर्ष 1924 – 2016 तक रेल बजट और संघीय बजट को अलग-अलग पेश किया जाता रहा है।
  • पहले बजट फ़रवरी के अंतिम कार्य दिवस को पेश किया जाता था किंतु वर्ष 2017 से बजट अब 1 फ़रवरी को पेश किया जाने कगा है।

संसदीय समितियां (Parliamentary committees)

संसद एक वृहद निकाय है जो अपने समक्ष लाए गए विषयों पर प्रभावी रूप से विचार करती है तथा इसके कार्य भी अत्यंत जटिल है , अत: पर्याप्त समय व विशेषज्ञता के आभाव में संसद अपने वैधानिक उपायों व अन्य मामलों की जाँच विभिन्न संसदीय समितियों के सहयोग से करती है। भारतीय संविधान के अंतर्गत दो प्रकार की समितियां है —

  • स्थायी समिति
  • अस्थायी समिति

प्रमुख समितियां व उनके कार्य 

लोक लेखा समिति 

इस समिति का गठन भारत सरकार अधिनियम 1919 के अंतर्गत पहली बार 1921 में हुआ वर्तमान में इस समिति में कुल 22 सदस्य (15 लोकसभा व 7 राज्यसभा ) है । इस समिति का अध्यक्ष विपक्ष का नेता होता है यह परंपरा वर्ष 1967 से चली आ रही है , यह केंद्र सरकार के विभागों व मंत्रालयों के लेखो की जाँच कर उन्हें संसद के प्रति उत्तरदायी बनती है।

लोक लेखा समिति के कार्यो के अंतर्गत नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (CAG) के वार्षिक प्रतिवेदनों की जाँच प्रमुख है जो कि राष्ट्रपति द्वारा संसद में प्रस्तुत किया जाता है । नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा राष्ट्रपति को प्रतिवर्ष तीन प्रतिवेदन सौंपे जाते  हैं —

  • विनियोग लेखा पर लेखा परीक्षक प्रतिवेदन
  • वित्त लेखा पर लेखा परीक्षक प्रतिवेदन
  • सार्वजनिक उद्यमों पर लेखा परीक्षक प्रतिवेदन

नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (CAG) भी समिति की बैठकों में भाग लेता है और सहायता करता है , इस समिति को प्राक्कलन समिति की जुड़वाँ बहन भी कहा जाता है। इस समिति की कुछ सीमाएँ भी है। जैसे – यह नीति संबंधी विषय की जाँच नहीं करती तथा कार्य हो जाने के बाद में कर रिपोर्ट तैयार करती है फिर भी इसने कई घोटाले जैसे – जीप ,बोफोर्स , कोयला आदि घोटालों को उजागर किया है ।

प्राक्कलन समिति 

इस समिति का गठन 1950 में जॉन मथाई (वित्त मंत्री ) की सिफारिशों के आधार पर किया गया। इसमें मूलत: 25 सदस्य थे किंतु 1956 में इनकी सदस्य संख्या बढ़ाकर 30 कर दी गई । यह सबसे बड़ी समिति भी है ।

इस समिति के सभी सदस्य लोकसभा द्वारा प्रतिवर्ष आनुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल संक्रमणीय पद्धति द्वारा लोकसभा के सदस्यों से ही निर्वाचित होते है। इस समिति का अध्यक्ष चुने हुए सदस्यों में से लोकसभा द्वारा नियुक्त किया जाता है किंतु यदि लोकसभा का उपाध्यक्ष इस समिति का सदस्य है तो वह स्वंय की समिति का अध्यक्ष नियुक्त हो जाता है। यह प्रतिवर्ष गठित होने वाले समिति है इसके निम्नलिखित कार्य है —

  • वार्षिक अनुदानों की जाँच करना
  • अतरिक्त अनुदानों पर चर्चा करना
  • खर्च कम करने के लिए एवं प्रशासन में सुधर लेन के लिए वैकल्पिक नीति तैयार करना
  • संसद में अनुदान की मांग रखने की सिफारिश रखना

सार्वजनिक उपक्रम समिति 

इस समिति का गठन 1964 में कृष्ण मेनन समिति की सिफारिशों के आधार पर किया गया शुरुआत में इसमें 15 सदस्य (10 लोकसभा + 5 राज्यसभा ) से थे किंतु 1974 में इनकी सदस्य संख्या बढ़ाकर 22 (15 लोकसभा + 7 राज्यसभा ) कर दी गई।

इस समिति का कार्यकाल 1 वर्ष होता है इस समिति का अध्यक्ष केवल लोकसभा से चुना जाता है व इसके सदस्यों का चुनाव एकल संक्रमणीय पद्धति से होता है । प्रत्येक वर्ष इस समिति के 1/5 सदस्य अवकाश ग्रहण कर लेते है तथा उनके स्थान पर नए सदस्य निर्वाचित होते है । इस समिति का कार्य सरकारी उपक्रमों के लेखो का परिक्षण करना है ।

प्रवर समिति 

यह सभी समितियों में सर्वाधिक प्रमुख समिति है इसका गठन किसी विधेयक पर विचार विमर्श हेतु उसी सदन में किया जाता है (या तो लोकसभा में या राज्यसभा में ) तथा इसमें विधेयक के विषय से संबंधित कुछ विशेषज्ञ सदस्य अनिवार्य रूप से होते है । समिति द्वारा अन्य विशेषज्ञ लोगो को उनके विचार जानने हेतु आमंत्रित किया जाता है।

विशेषाधिकार समिति 

इस समिति को संसद सदस्यों को प्राप्त उन्मुक्तियों के हनन का मामला इस समिति को सौपां जाता है । इस समिति का गठन लोकसभा अध्यक्ष द्वारा लोकसभा के प्रारंभ में अथवा समय-समय पर किया जाता है । इस समिति में लोकसभा में 15 सदस्य  व  राज्यसभा में 10 सदस्य होते है ।

विशेषाधिकार समिति सौपें गए प्रत्येक प्रसंग की जाँच करेगी तथा इन तथ्यों के आधार पर यह निर्णय करेगी की किसी विशेषाधिकार का उल्लंघन हुआ है या नहीं यदि हुआ है तो उसका स्वरुप क्या है और किन परिस्थितियों में हुआ है ।

सलाहकार समिति 

इस समिति की अधिकतम सदस्य संख्या 30 व न्यूनतम सदस्य संख्या 10 होती है । यह समिति केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों से जुड़ी होती है तथा इसमें दोनों सदनों के सदस्य होते है। इस समिति का गठन प्रत्येक आम चुनावों के बाद किया जाता है और लोकसभा भंग होने के साथ यह स्वत: समाप्त हो जाती है ।

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