सिंधु घाटी सभ्यता -पार्ट-2
सिंधु घाटी सभ्यता की नगर योजना का वर्णन करें : सिंधु घाटी सभ्यता की नगर योजना ही सिंधु सभ्यता की सबसे बड़ी विशेषता थी। जालनुमा सड़कें व गालियाँ, सुनियोजित जल निकास प्रणाली एवं पक्की ईंटों का प्रयोग आदि कई विशेषताएँ सिंधु सभ्यता में देखने को मिलती हैं। सिंधु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस सभ्यता का सर्वप्रथम अवशेष हड़प्पा से ही प्राप्त हुआ था।
सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना का वर्णन करें ?
सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना का वर्णन निम्नवत है
- सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता में नगर की सड़कें एवं मकान सुनियोजित ढंग से बनाये जाते थे। मकान बनाने के लिए पक्की ईंटों का प्रयोग किया जाता था।
- सिंधु घाटी की ईंटें एक निश्चित अनुपात में बनाई जाती थीं। अधिकांशतः ईंटें आयताकार आकर की होती थीं। ईंट की लम्बाई, चौड़ाई और मोटाई का अनुपात 4 : 2 : 1 था।
- नगर को दो भागों में विभाजित किया गया था, एक भाग छोटा लेकिन ऊंचाई पर बना होता था तो नगर का दूसरा भाग कहीं अधिक बड़ा परन्तु नीचे बनाया गया था। ऊँचें भाग को दुर्ग और निचले भाग को निचला शहर का नाम दिया गया है। दुर्ग को कच्ची ईंटों के चबूतरे पर बनाया जाता था इसलिए यह ऊँचे होते थे।
- दुर्ग को दीवार से घेरा गया था जिसका अर्थ है कि इसे निचले शहर से अलग किया गया था।
- दुर्ग में खाद्य भण्डार गृह, महत्वपूर्ण कार्यशालाएँ, धार्मिक इमारतें तथा जन इमारतें थी। निचले भाग में लोग रहा करते थे।
- हड़प्पा शहरों की सबसे अनूठी विशेषता इसकी जल निकास प्रणाली थी।
- सड़कों तथा गलियों को ग्रिड पद्धति (जालनुमा) में बनाया गया था। सड़कें सीधी थीं और एक-दूसरे को समकोण पर काटती थी।
- ऐसा जान पड़ता है कि पहले नालियों के साथ गालियाँ बनाई गयीं और फिर उनके अगल-बगल मकानों का निर्माण किया गया।
- नालियाँ ईंटों तथा पत्थर से ढकी होती थी। जिनके निर्माण में प्रमुखतः ईंटों और मोर्टार का प्रयोग किया जाता था पर कुछ जगह चुने और जिप्सम का प्रयोग भी मिलता है।
- सिंधु घाटी सभ्यता के दरवाजे और खिड़कियाँ सड़क की तरफ न खुलकर पीछे की तरफ खुलते थे। लेकिन लोथल में ऐसा नहीं मिलता है।
- मकान में स्नानागार प्रमुखतः गली अथवा सड़क के नजदीक बनाया जाता था।
- मोहनजोदड़ो में एक विशाल स्नानागार मिला है जोकि 11.88 मीटर (39 फीट) लम्बा, 7.01 मीटर (23 फीट) चौड़ा और 2.43 मीटर (8 फीट) गहरा था। संभवतः इस स्नानागार का प्रयोग आनुष्ठानिक स्नान के लिए होता था।
सिंधु घाटी सभ्यता का आर्थिक जीवन
सिंधु घाटी सभ्यता का आर्थिक जीवन : सिंधु घाटी सभ्यता का आर्थिक जीवन कृषि, पशुपालन, व्यापारतथा उद्योग पर आधारित था। सिंधु सभ्यता के निवासियों का मुख्य पेशा कृषि था। कृषि के साथ ही पशुपालन और व्यापार अर्थव्यवस्था के मुख्य आधार थे।
सिंधु और उसकी सहायक नदियाँ हर वर्ष उर्वरक मिट्टी बहा कर लाया करती थी जिसपर पत्थर और कांस्य से बने उपकरण और औजारों का प्रयोग कर खेती किया करते थे।
सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता का आर्थिक जीवन —
- प्रमुखतः गेहूँ तथा जौ की खेती की जाती थी। सूती वस्त्रों के अवशेषों से ज्ञात होता है कि सैंधव निवासी (सिंधु सभ्यता के निवासी) कपास की खेती भी किया करते थे।
- यहीं के निवासियों ने विश्व में सर्वप्रथम कपास की खेती प्रारम्भ की थी।
- इस सभ्यता के किसान अपनी आवश्यकता से अधिक अनाज का उत्पादन करते थे। इसलिए नगर में अनाज के भण्डारण के लिए अन्नागार बनाये गए थे जहाँ खाद्य पदार्थों को सुरक्षित रखा जाता था।
- कृषि के साथ-साथ पशुपालन भी बहुतायत में किया जाता था। बैल, गाय, भैंस, भेड़, बकरी, सूअर, कुत्ते, खरगोश, हिरन और कूबड़दार वृषभ आदि पशुओं को पाला जाता था। कूबड़दार वृषभ का मुहरों पर अंकन बहुतायत में मिलता है।
- बैल तथा भैसें का उपयोग बैलगाड़ी और भैसागाड़ी में यातायात के लिए किया जाता था। इसीके माध्यम से सिंधु सभ्तया के लोग एक जगह से दूसरी जगह तक यातायात किया करते थे।
- सैंधव निवासी घोड़े से परिचित थे इसके साक्ष्य सुरकोटड़ा, लोथल और रंगपुर से प्राप्त हुए हैं। सुरकोटड़ा से अश्व-अस्थि (घोड़े की हड्डियाँ) तथा लोथल और रंगपुर से अश्व की मृण्मूर्तियां (टेरेकोटा की बनी घोड़े की मुर्तियाँ) प्राप्त हुई हैं।
- कृषि और पशुपालन के अलावा उद्योग एवं व्यापार भी अर्थव्यवस्था के प्रमुख आधार थे जिनमें वस्त्र निर्माणइस काल का प्रमुख उद्योग था।
- सिंधु घाटी सभ्यता की मुहरें एवं वस्तुएं पश्चिम एशिया तथा मिस्र में प्राप्त हुई हैं जिससे यह ज्ञात होता है कि इस सभ्यता के व्यापारिक सम्बन्ध इन देशों से थे। अधिकांश मुहरों का निर्माण सेलखड़ी में हुआ है।
- सुमेर (वर्तमान दक्षिणी ईराक) से प्राप्त लेखों से ज्ञात होता है कि सुमेर के व्यापारी मेलुहा (सिंधु प्रदेश) के व्यापारियों के साथ वस्तु विनिमय कर व्यापार किया करते थे।
- हड़प्पा सभ्यता के लोग व्यापार में मुहरों, धातु के सिक्कों का प्रयोग नहीं करते थे। सारे आदान-प्रदान वस्तु विनिमय द्वारा किया जाता था अर्थात वस्तु (सामान) के बदले वस्तु ली और दी जाती थी।
- वस्तु विनिमय बाटों द्वारा नियंत्रित होता था। यह बाट सामन्यतः चर्ट नामक पत्थर से बनाये जाते थे। यह किसी भी निशान रहित घनाकार आकार के होते थे। धातु से बने तराजू के पलड़े भी मिले हैं।
- लोथल हड़प्पाकालीन बंदरगाह नगर था, यहीं से चावल की खेती के प्रमाण मिले हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता का सामाजिक जीवन
सिंधु सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता का सामाजिक जीवन निम्नवत था —
- सैन्धव वासियों (सिंधु वासियों) का परिवार मातृसत्तात्मक होता था इस बात का अनुमान बहुत संख्या में खुदाई से प्राप्त नारी मूर्तियों से होता है।
- हड्डपा की खुदाई में छोटे और बड़े घर आस-पास मिले हैं जिससे यह प्रमाणित होता है कि गरीब तथा अमीर में कोई भेदभाव नहीं था।
- सिंधु सभ्यता का समाज व्यवसाय के आधार पर कई वर्गों में बँटा हुआ था जैसे – व्यापारी, पुरोहित, शिल्पकार और श्रमिक आदि।
- मिट्टी, सोने, चाँदी और ताँबे आदि से बने बर्तनों का प्रयोग होता था।
- कृषि के लिए धातु एवं पाषाण (पत्थर) से बने औजार एवं उपकरणों का प्रयोग किया जाता था।
- सैन्धव वासी शाकाहारी और माँसाहारी दोनों प्रकार का भोजन ग्रहण किया करते थे। शाकाहारी भोजन के रूप में प्रमुख रूप से गेहूं, चावल, जौ, तिल तथा दालें आदि ग्रहण किया करते थे।
- सिंधु वासी मनोरंजन के लिए शिकार करना, गाना-बजाना, नाचना और जुआ खेलना आदि क्रिया कलाप किया करते थे।
- पासा इस युग का प्रमुख खेल था।
- मछली पकड़ना तथा चिड़ियों का शिकार करना नियमित क्रिया कलाप था। यह क्रिया-कलाप मनोरंजन और भोजन, दोनों के लिए किया जाता था।
- सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में बहुत सारी छोटी-छोटी टेराकोटा (पक्की मिट्टी) की मूर्तियाँ मिली हैं, संभवतः इनका प्रयोग पूज्य प्रतिमाओं के रूप में होता था या फिर खिलौनों के रूप में। पुरुष और स्त्री दोनों की ही लघु मृण्मूर्तियां (छोटे आकर की मिट्टी की बनी मूर्ति) मिली हैं लेकिन स्त्री की मूर्तियों की संख्या ज्यादा है।
- आभूषण में भुजबन्द, कड़ा, कण्ठहार, हँसुली और कर्णफूल आदि का प्रयोग किया जाता था जोकि सोने, चाँदी, ताँबे, सीप तथा हाथी दाँत आदि के बने होते थे।
सिंधु सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता का धार्मिक जीवन
- सैन्धव वासी मातृ देवी के साथ ही देवताओं की उपासना भी किया करते थे।
- धार्मिक अनुष्ठानों के लिए धार्मिक इमारतें बनाई गयीं थी। लेकिन मन्दिर के प्रमाण प्राप्त नहीं होते हैं।
- मातृ देवी और देवताओं को बलि भी दी जाती थी।
- मोहनजोदड़ो से एक मुहर प्राप्त हुई है जिसपर पद्मासन की मुद्रा में एक तीन मुख वाला पुरुष ध्यान की मुद्रा में बैठा हुआ है, जिसके सिर पर तीन सींग, बाईं तरफ एक गैंडा तथा एक भैंस एवं दाईं तरफ एक हाथी तथा एक बाघ है। आसान के नीचे दो हिरण बैठे हुए हैं। इसे पशुपति महादेव का रूप माना गया है।
- पशुपतिनाथ, वृक्ष, लिंग, योनि और पशु आदि की उपासना भी की जाती थी। वृक्ष पूजा काफी प्रचलित थी।
- इस काल के लोग जादू-टोना, भूत-प्रेत और अन्य अंधविश्वासों पर भी विश्वास किया करते थे।
- हड़प्पा से काफी संख्या में टेराकोटा (पक्की मिट्टी) की नारी की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं जिसमें से एक मूर्ति में नारी के गर्भ से एक पौधा निकलता हुआ दिखाया गया है जिससे यह ज्ञात होता है कि धरती को उर्वरता की देवी माना जाता था और संभवतः पूजा भी जाता था।
- इस काल में पशु-पूजा का भी चलन था। मुख्य रूप से एक सींग वाले जानवर की पूजा होती थी जो संभवतः गैंडा हो सकता है कुछ विद्वानों का मत है कि यह संभवतः यूनिकॉर्न हो सकता है। खुदाई में मुहरों पर कुबड़वाले वृषभ (सांड) का अंकन मिला है संभवतः कुबड़वाले वृषभ की भी पूजा की जाती होगी। पवित्र पक्षी के रूप में फाख्ता (कबूतर की तरह का एक पक्षी जो भूरापन लिए लाल रंग का होता है) को पूजा जाता था।
- गुजरात के लोथल तथा राजस्थान के कालीबंगा की उत्खनन (खुदाई) में अग्निकुण्ड (हवन कुण्ड) और अग्निवेदिकाएँ मिली हैं।
- स्वास्तिक चिन्ह संभवतः हड़प्पा सभ्यता की ही देन है।
- सिंधु सभ्यता के उत्खनन में शवाधान (मृत शरीर को दफ़नाने की जगह या कब्र) प्राप्त हुए हैं। मृतकों को कब्रों में दफनाया जाता था, कुछ कब्रों में शवों के साथ मृदभांड अर्थात मिट्टी के बने बर्तन और आभूषण भी मिले हैं, संभवतः सिंधु वासी मानते थे कि मृत्यु के बाद भी इन वस्तुओं का प्रयोग किया जा सकता है।
सिंधु घाटी सभ्यता शिल्प तथा उद्योग धन्धे : सिंधु घाटी सभ्यता शिल्प तथा उद्योग धन्धे में कताई-बुनाई, आभूषण, बर्तन और औजार आदि कई वस्तुओं का निर्माण किया करते थे। यातायात के लिए बैलगाड़ी और भैंसागाड़ी का प्रयोग कर देश-विदेश से व्यापार किया करते थे।
सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता के लोग कृषि और पशुपालन के साथ-साथ शिल्प कला तथा उद्योग धन्धों में भी बढ़ चढ़कर-रूचि लिया करते थे।
सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता के शिल्प कला तथा उद्योग धन्धे —
- खुदाई में कताई-बुनाई के उपकरण तकली, सुई आदि प्राप्त हुए हैं जिससे ज्ञात होता है कि सैंधव वासियों का कपड़ा बुनना एक प्रमुख व्यवसाय था। सूती वस्त्रों के अवशेष भी यहीं से प्राप्त हुए हैं जिससे यह ज्ञात होता है कि विश्व में सर्वप्रथम कपास की खेती यहीं शुरू हुई थी।
- भारत में चाँदी का प्रयोग सर्वप्रथम सिंधु सभ्यता में ही मिलता है।
- सिंधु सभ्यता के निवासी धातु निर्माण, बर्तन निर्माण, आभूषण निर्माण, औजार और उपकरण निर्माण आदि उद्योग किया करते थे। साथ ही परिवहन उद्योग से परिचित थे।
- यहाँ के निवासी बढ़ईगिरी का भी व्यवसाय किया करते थे लकड़ी की वस्तुओं के साक्ष्य मिलने से इस बात की पुष्टि होती है।
- इस सभ्यता में कुम्हार के चाक का प्रचलन भी बहुतायत में होता था क्योंकि इस सभ्यता के प्राप्त मृद्भाण्ड(मिट्टी के बर्तन) चमकीले और चिकने थे।
- चाक पर मिट्टी के बर्तन बनाना, खिलोने, मुद्रा, आभूषण और उपकरण आदि का निर्माण करना कुछ अन्य इस सभ्यता के प्रमुख धन्धे थे।
सिंधु सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारणों की समीक्षा करें
सिंधु सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता के पतन के कारण निम्न हैं —
- सिंधु सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता तक़रीबन 1000 वर्षों तक रही।
- सिंधु सभ्यता के अन्त के कारणों के बारे में इतिहासकारों के अलग-अलग कई मत हैं,
जिनमें से प्रमुख मत निम्न हैं —
→ जलवायु परिवर्तन
→ नदियों का जलमार्ग परिवर्तित हो जाना
→ बाढ़
→ आर्यों का आक्रमण
→ भूकम्प
→ सामाजिक ढाँचे में बिखराव आदि
अधिकतर विद्वानो का मत है की इस सभ्यता का पतन बाढ़ के प्रकोप के कारण ही हुआ, हालाँकि सिंधु सभ्यता का विकास नदी घाटी क्षेत्र में ही हुआ था तो इस क्षेत्र में बाढ़ का आना स्वाभाविक था, इसलिए यह तर्कसंगत लगता है कि इस सभ्यता का अंत बाढ़ आने के कारण हुआ हो।
वही कुछ विद्वानो का मत है की केवल बाढ़ आने से इतनी विशाल सभ्यता का पतन नहीं हो सकता है। इसलिए बाढ़ के अलावा और भी कई कारणों जैसे – आग लग जाना, महामारी, बाहरी आक्रमण आदि अन्य कई कारणों से इस सभ्यता के अंत का समर्थन कई विद्वान करते हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता या हड़प्पा सभ्यता के पतन के संबंध में विभिन्न विद्वान और उनकी राय
विद्वान (विचारक) | विचार (मान्यता) |
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स्टुअर्ट, पिगॉट और गॉर्डन-चाइल्ड | बाहरी आक्रमण (आर्य द्वारा आक्रमण) |
एम.आर साहनी | बाढ़ आना (जलप्लावन) |
मार्शल, एस.आर राव और मैकी | बाढ़ |
जी.एफ हेल्स | घग्गर के बहाव में परिवर्तन के कारण विनाश |
के.वी.आर केनेडी | महामारी |
मार्शल और रायक्स | भू-तात्विक परिवर्तन (Tectonic Disturbances) |
ऑरेल स्ट्रेन और ए.एन घोष | जलवायु में परिवर्तन |
वाल्टर फेयरसर्विस | वनों की कटाई, संसाधनों की कमी और पारिस्थितिकीय असंतुलन |
व्हीलर | व्हीलर ने अपनी किताब ‘प्राचीन भारत’ में उल्लेख किया है कि सिंधु सभ्यता का पतन वास्तव में बड़े पैमाने पर जलवायु परिवर्तन, आर्थिक और राजनीतिक बदलावों के कारण हुआ था। |
जॉर्ज डेल्स | जॉर्ज डेल्स ने ‘द मिथिकल नरसंहार ऐट मोहन जोदड़ो’ में व्हीलर द्वारा दिए गए घुसपैठ के सिद्धांत को नकारते हुए तर्क दिया है कि पाए गए कंकाल हड़प्पा काल से संबंधित नहीं थे और समाधी या दफ़न करने का तरीका हड़प्पा काल से मिलता नहीं है। अतः इस सभ्यता का पतन नरसंहार के कारण नहीं हुआ है। |