योजना सारांश

मई 2024

विषय-1: परंपरा की एक कथा: भारत की बुनाई

प्रश्न: देश की सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक विरासत के व्यापक संदर्भ में भारत की विविध बुनाई परंपराओं के महत्व की जांच करें।

कपड़ा इतिहास में समृद्ध भूमि

  • सिंधु घाटी सभ्यता (3300-1300 ईसा पूर्व) से जुड़ा एक प्राचीन कला रूप
  • सिर्फ शिल्प से कहीं अधिक – पीढ़ी दर पीढ़ी चली आने वाली सांस्कृतिक परंपरा
  • पूरे भारत में 136 से अधिक अनूठी बुनाई शैली
  • प्रत्येक बुनाई अपनी विशिष्ट डिजाइन, तकनीक और सांस्कृतिक महत्व के साथ
  • कपास, रेशम और ऊन जैसे प्राकृतिक फाइबर

भारत की विविध बुनाई शैलियों की झलक:

गुजरात:

  • मशरू: हल्के वजन वाला सूती कपड़ा, जिसे धोने के बाद नरम होने के लिए जाना जाता है।
  • पटोला: जटिल रंगाई और बुनाई तकनीक से बनी एक शानदार रेशमी साड़ी।
  • कच्छी शॉल: ऊन या ऊन और रेशम के मिश्रण से बने रंगीन और जटिल रूपांकनों वाले शॉल।

राजस्थान:

  • कोटा डोरिया: हल्के वजन वाला और हवादार सूती कपड़ा, जो अपनी जालीदार बनावट के लिए जाना जाता है।
  • जयपुरी रजाई: रंगीन और आकर्षक डिजाइनों वाली गद्देदार रजाई।

जम्मू और कश्मीर:

  • कनी बुनाई: लकड़ी के करघे पर बनी एक जटिल और सुंदर ऊनी शॉल।
  • पश्मीना: बारीक और मुलायम ऊन से बनी शॉल और स्कार्फ, जो अपनी गर्मी और हल्केपन के लिए जाने जाते हैं।

उत्तर प्रदेश:

  • किमख्वाब: सोने और चांदी के धागों से बनी एक शानदार रेशमी ब्रोकेड।
  • बनारसी रेशमी ब्रोकेड: जटिल सुनहरे और चांदी के धागों के काम वाली भारी रेशमी साड़ियाँ।

मणिपुर:

  • वांगखेई फी: रंगीन धागों से बनी एक पारंपरिक मणिपुरी साड़ी।
  • शापी लैनफी: मणिपुर की पुरुषों द्वारा पहनी जाने वाली एक पारंपरिक धोती।

कर्नाटक:

  • इलकल रेशमी बुनाई: चमकीले रंगों, जटिल ज्यामितीय पैटर्न और समृद्ध बनावट की विशेषता
  • मोलकालमुरु रेशमी बुनाई: नाजुक जरदारी कार्य और प्रकृति से प्रेरित जटिल डिजाइनों के लिए जानी जाती है।
  • पट्टेडा अनचू साड़ी बुनाई: साहसिक धारियों और विपरीत बॉर्डर वाली एक पारंपरिक पांच गज की साड़ी।
  • नवलगुंड दरी: मुलायम कपास से बने हथकरघे गलीचे, जिनमें अक्सर फूलों और ज्यामितीय आकृतियों वाले डिजाइन होते हैं।
  • मैसूर रेशमी बुनाई: उच्च-गुणवत्ता वाले शहतूत रेशम से बनी विलासी साड़ियाँ और वस्त्र, जो अपने जटिल सोने के काम और जीवंत रंगों के लिए जानी जाती हैं।
  • उडुपी साड़ी: सूती या रेशम से बनी हल्की और आरामदायक साड़ियाँ, जिनमें अक्सर धारीदार पैटर्न और धार्मिक रूपांकन होते हैं।

लेह लद्दाख:

  • चल्लीऊनी बुनाई: भेड़ की ऊन से बने गर्म और टिकाऊ शॉल और कंबल, जिनमें अक्सर साहसिक रंग और ज्यामितीय पैटर्न होते हैं।

पंजाब:

  • खेस बुनाई: कपास या कपास और ऊन के मिश्रण से बना एक बहुमुखी कपड़ा, जिसका उपयोग कपड़े, पगड़ी और घरेलू सामान बनाने के लिए किया जाता है।

अरुणाचल प्रदेश:

  • सिंहफो बुनाई: साहसिक रंगों, ज्यामितीय पैटर्न और प्राकृतिक रंगों के उपयोग की विशेषता
  • पाइलिबो बुनाई: प्रकृति से प्रेरित जटिल डिजाइनों और रेशम और सूती धागों के उपयोग के लिए जानी जाती है।
  • मिश्मी बुनाई: ऊन और याक के बालों से बने पारंपरिक शॉल और वस्त्र, जिनमें अक्सर लाल और काली धारियाँ होती हैं।
  • तुएनसुंग शॉल: ऊन से बने बड़े, रंगीन शॉल, जिन्हें पुरुष और महिला दोनों पहनते हैं।
  • अपातानी त्सुगदुल और त्सुगगदान: अपातानी महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले अनोखे वस्त्र, जिनमें जटिल मनके का काम और कढ़ाई होती है।

हरियाणा:

  • पंजा बुनाई: कपास या ऊन से बना एक हथकरघा कपड़ा, जिसमें अक्सर रंगीन धारियां और चेक होते हैं।

नागालैंड:

  • चाखेसांग शॉल: चाखेसांग महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला एक पारंपरिक शॉल, जो ऊन से बना होता है और इसमें गमोच और मोतियों से सजावट होती है।
  • त्सुंगकोटेप्सु: ऊन और याक के बालों से बना एक पुरुष का औपचारिक पहनावा, जिसमें जटिल डिजाइन और साहसिक रंग होते हैं।

गोवा:

  • कुंबी बुनाई: कपास से बना एक हथकरघा कपड़ा, जिसमें अक्सर साधारण धारियां और चेक होते हैं।

असम:

  • गडू या मिरीजिम बुनाई: मुगा रेशम से बना एक पारंपरिक कपड़ा, जिसमें अक्सर ज्यामितीय पैटर्न और आकर्षक रंग होते हैं।
  • बोडो बुनाई: प्रकृति से प्रेरित जटिल डिजाइनों और प्राकृतिक रंगों के उपयोग के लिए जानी जाती है।
  • एरी रेशम बुनाई: एरी रेशम के कीड़ों के कोकून से उत्पादित एक अनोखा रेशम, जिसका उपयोग नरम और हल्के वस्त्र बनाने के लिए किया जाता है।
  • मुगा रेशम बुनाई: मुगा रेशम के कीड़ों के कोकून से उत्पादित एक विलासी रेशम, जो अपने सुनहरे रंग और टिकाऊपन के लिए जाना जाता है।

महाराष्ट्र:

  • हिमरु बुनाई: रेशम और कपास से बनी एक डबल इकत बुनाई, जिसमें जटिल ज्यामितीय पैटर्न और जीवंत रंग होते हैं।
  • पैठणी बुनाई: रेशम और सोने के धागों से बनी विलासी साड़ियाँ, जो अपने जटिल डिजाइनों और जीवंत रंगों के लिए जानी जाती हैं।
  • घोंगाडी बुनाई: कपास या रेशम से बना एक बहुमुखी कपड़ा, जिसमें अक्सर धारियां और चेक होते हैं।
  • चिंदी धुरी: रंगीन पैचवर्क डिजाइनों वाले, रद्दी कपड़े के टुकड़ों से हथकरघे पर बुने हुए गलीचे।
  • करवाथ कठी साड़ी बुनाई: कठी समुदाय की महिलाओं द्वारा पहनी जाने वाली एक पारंपरिक साड़ी, जो कपास से बनी होती है और उस पर जटिल कढ़ाई होती है।

 

चार प्रतिष्ठित बुनाई पर एक नजर

बनारसी रेशमी बुनाई:

  • प्रतीक: वैभव, शान, उत्सव (श्रृंगार)
  • डिजाइन: मुगल शैली से प्रेरित रूपांकन, धातु के धागे
  • महत्व: विवाह, त्यौहार, समृद्धि

कांचीपुरम रेशमी बुनाई:

  • प्रतीक: धर्म, कर्तव्य (धर्म)
  • डिजाइन: समृद्ध बनावट, जीवंत रंग, जरी की बॉर्डर
  • तकनीक: पारंपरिक पिट लूम, पीढ़ी दर पीढ़ी ज्ञान

पैठणी बुनाई:

  • प्रतीक: आकांक्षा, आध्यात्मिक उन्नति (लक्ष्य)
  • डिजाइन: जटिल बुनाई, जीवंत रंग, मोर के रूपांकन
  • तकनीक: शुद्ध रेशम, सोने/चांदी के धागे, टेपेस्ट्री बुनाई

गुजरात का पटोला शिल्प:

  • प्रतीक: विश्व एक परिवार (वसुधैव कुटुंबकम)
  • डिजाइन: ज्यामितीय पैटर्न, डबल इकत तकनीक
  • महत्व: सांस्कृतिक विविधता, सांप्रदायिक सद्भाव, मानव एकता

 

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