अंतरिम भारतीय सरकार (1946): एक ऐतिहासिक झलक
परिचय:
भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम, अंतरिम भारतीय सरकार (1946) का गठन 2 सितंबर 1946 को हुआ था। यह सरकार ब्रिटिश शासन के अधीन अंतिम सरकार थी और इसका नेतृत्व जवाहरलाल नेहरू ने किया था।
पृष्ठभूमि:
1946 में, द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद, भारत में स्वतंत्रता आंदोलन तीव्र गति से बढ़ रहा था। ब्रिटिश सरकार, बढ़ते दबाव के सामने, भारतीयों को कुछ हद तक स्वायत्तता देने के लिए तैयार थी।
गठन:
अंतरिम सरकार का गठन शिमला सम्मेलन के बाद हुआ, जिसमें ब्रिटिश सरकार और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बीच समझौता हुआ। इस समझौते के तहत, सरकार में 14 सदस्य शामिल थे, जिनमें से 11 कांग्रेस के थे, 3 मुस्लिम लीग के और 1 भारतीय ईसाई थे।
मुख्य उद्देश्य:
- स्वतंत्र भारत के लिए संविधान का निर्माण: अंतरिम सरकार का मुख्य कार्य एक संविधान सभा का गठन करना था जो स्वतंत्र भारत के लिए संविधान का निर्माण करे।
- शासन में भारतीय भागीदारी: यह सरकार भारतीयों को शासन में अधिक भागीदारी प्रदान करने का एक प्रयास था।
- स्वतंत्रता के लिए मार्ग प्रशस्त करना: यह सरकार भारत को पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए तैयार करने का एक कदम था।
मुख्य उपलब्धियां:
- संविधान सभा का गठन: 9 दिसंबर 1946 को संविधान सभा का गठन किया गया, जिसने भारत के संविधान का निर्माण किया।
- शासन में भारतीयों की भागीदारी: भारतीयों ने सरकार के विभिन्न विभागों में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं।
- स्वतंत्रता के लिए मजबूत आधार: इस सरकार ने भारत को पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए मजबूत आधार तैयार किया।
आलोचनाएं:
- मुस्लिम लीग की भागीदारी: मुस्लिम लीग, जो पाकिस्तान के निर्माण की मांग कर रही थी, सरकार में शामिल थी, जिससे कुछ टकराव पैदा हुए।
- साम्प्रदायिक विभाजन: देश में बढ़ते साम्प्रदायिक विभाजन का सरकार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
- सीमित शक्तियां: सरकार की शक्तियां अभी भी ब्रिटिश सरकार द्वारा सीमित थीं।
निष्कर्ष:
अंतरिम भारतीय सरकार (1946) ने भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसने भारतीयों को शासन में अधिक भागीदारी प्रदान की और स्वतंत्र भारत के लिए संविधान का निर्माण करने का मार्ग प्रशस्त किया। हालांकि, यह सरकार कुछ आलोचनाओं से भी मुक्त नहीं थी।