कैबिनेट मिशन योजना (1946)
परिचय:
1946 में, ब्रिटिश सरकार ने भारत को स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए कैबिनेट मिशन योजना प्रस्तुत की। यह योजना, तीन सदस्यों वाले मिशन – स्टेफोर्ड क्रिप्स, ए.वी. अलेक्जेंडर और पैट्रिक लॉरेंस – द्वारा लाई गई थी, और इसका उद्देश्य भारतीयों के बीच सहमति बनाने और स्वतंत्रता के लिए एक रास्ता तैयार करना था।
योजना के मुख्य प्रावधान:
- संघीय प्रणाली: भारत को तीन समूहों – ए (मद्रास, बंबई, मध्य प्रांत, और संयुक्त प्रांत), बी (पंजाब, सिंध, उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत, और बलूचिस्तान), और सी (बंगाल और असम) – में विभाजित किया जाएगा।
- केंद्र सरकार: केंद्र सरकार में तीन विषयों – विदेश मामले, रक्षा, और संचार – पर नियंत्रण होगा।
- प्रांतीय सरकारें: प्रत्येक समूह में अपनी विधानसभा और सरकार होगी, जो शिक्षा, स्वास्थ्य, और कानून व्यवस्था जैसे विषयों पर नियंत्रण रखेगी।
- संविधान सभा: एक संविधान सभा का गठन किया जाएगा जिसमें प्रत्येक समूह से समान प्रतिनिधित्व होगा।
- अल्पसंख्यकों के अधिकार: अल्पसंख्यकों को अपने धर्म, भाषा, और संस्कृति का पालन करने का अधिकार होगा।
महत्व:
- स्वतंत्रता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम: यह योजना भारतीयों को स्वतंत्रता प्रदान करने की दिशा में ब्रिटिश सरकार का पहला ठोस प्रस्ताव था।
- संघीय ढांचे का प्रस्ताव: यह योजना भारत के लिए एक संघीय ढांचे का प्रस्ताव करने वाली पहली थी।
- अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर ध्यान: योजना ने अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रावधान किए।
आलोचनाएं:
- मुस्लिम लीग का विरोध: मुस्लिम लीग ने योजना का विरोध किया क्योंकि इसमें पाकिस्तान के लिए अलग राज्य का प्रावधान नहीं था।
- कांग्रेस का आंशिक स्वीकृति: कांग्रेस ने योजना को आंशिक रूप से स्वीकार किया, लेकिन अल्पसंख्यकों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों के प्रावधान का विरोध किया।
- योजना का जटिल होना: योजना जटिल और अस्पष्ट थी, जिससे इसे लागू करना मुश्किल हो गया।
परिणाम:
कैबिनेट मिशन योजना अंततः असफल रही क्योंकि मुस्लिम लीग और कांग्रेस के बीच समझौता नहीं हो सका। 1947 में भारत के विभाजन का मार्ग प्रशस्त करते हुए, मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान के निर्माण की मांग की।
निष्कर्ष:
कैबिनेट मिशन योजना, भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी। इसने भारतीयों को स्वतंत्रता प्रदान करने की दिशा में एक कदम उठाया और संघीय ढांचे का प्रस्ताव पेश किया। हालांकि, योजना जटिल थी और मुस्लिम लीग और कांग्रेस के बीच समझौता नहीं होने के कारण असफल रही।