भारतीय संविधान: धर्मनिरपेक्षता 

भारतीय संविधान धर्मनिरपेक्षता (धर्मनिरपेक्षता – Secularism) के सिद्धांत पर आधारित है, जिसका अर्थ है कि भारत किसी भी धर्म का पक्ष नहीं करता है और सभी धर्मों को समान सम्मान देता है। यह सिद्धांत संविधान के अनुच्छेद 25-28 में निहित है, जो धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को स्थापित करते हैं।

धर्मनिरपेक्षता के मुख्य पहलू:

  • धर्म और राज्य का पृथक्करण: धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि सरकार धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करती है और धार्मिक संस्थाएं सरकार के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करती हैं।
  • समानता और समान सम्मान: धर्मनिरपेक्षता सभी धर्मों और व्यक्तियों को समान सम्मान और अधिकार प्रदान करता है, चाहे उनकी धार्मिक मान्यताएं कुछ भी हों।
  • धर्मनिरपेक्षता केवल अहिंसा और सहिष्णुता पर आधारित नैतिकता को बढ़ावा देती है।
  • धर्मनिरपेक्षता व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय को भी बढ़ावा देती है।

 

धर्मनिरपेक्षता के दो मुख्य प्रकार हैं:

  1. नकारात्मक धर्मनिरपेक्षता (Negative Secularism):

यह धर्मनिरपेक्षता का एक मूलभूत रूप है जो राज्य और धर्म के बीच पूर्ण अलगाव पर केंद्रित है। इसका मतलब है कि:

  • राज्य किसी भी धार्मिक गतिविधि में भाग नहीं लेता है: यह धार्मिक अनुष्ठानों, त्योहारों या धार्मिक शिक्षा का वित्तपोषण नहीं करता है।
  • राज्य सभी धर्मों को समान रूप से मानता है: यह किसी भी धर्म को विशेष अधिकार या विशेषाधिकार नहीं देता है।
  • राज्य धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता है: यह धार्मिक संस्थाओं के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करता है या धार्मिक विवादों में हस्तक्षेप नहीं करता है।

उदाहरण:

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25: यह धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है, जिसमें किसी भी धर्म का पालन करने या न मानने की स्वतंत्रता शामिल है।
  • केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामला: इस मामले में,
  • उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया कि संविधान की “मूल संरचना” धर्मनिरपेक्षता सहित कुछ बुनियादी सिद्धांतों को भी शामिल करती है, जिन्हें संसद द्वारा भी संशोधित नहीं किया जा सकता है।
  1. सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता (Positive Secularism):

यह धर्मनिरपेक्षता का एक अधिक सक्रिय रूप है जो सभी धर्मों के समान विकास और सुरक्षा को बढ़ावा देता है। इसका मतलब है कि:

  • राज्य सभी धर्मों का सम्मान करता है: यह सभी धर्मों और धार्मिक समुदायों को समान सम्मान और सुरक्षा प्रदान करता है।
  • राज्य धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा करता है: यह धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करता है और उन्हें भेदभाव से बचाता है।
  • राज्य धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देता है: यह धार्मिक समुदायों के बीच सद्भाव और समझ को बढ़ावा देने के लिए कार्य करता है।

उदाहरण:

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 26: यह धार्मिक संस्थानों को अपनी संपत्ति का प्रबंधन करने और अपने मामलों को चलाने का अधिकार देता है।
  • शाह बानू बनाम मोहम्मद अहमद खान मामला: इस मामले में,
  • उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया कि मुस्लिम महिलाओं को भी तलाक के बाद गुजारा भत्ता का अधिकार है, भले ही यह मुस्लिम पर्सनल लॉ द्वारा अनुमति न हो।

 

तुलनात्मक अध्ययन

अमेरिका में धर्मनिरपेक्षता:

  • अमेरिकी संविधान का पहला संशोधन: धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है, जिसमें धर्म का पालन करने या न करने की स्वतंत्रता, पूजा की स्वतंत्रता और धार्मिक अभ्यास की स्वतंत्रता शामिल है।
  • राज्य और धर्म का अलगाव: अमेरिकी सरकार किसी भी धार्मिक गतिविधि में शामिल नहीं होती है और किसी भी धर्म को राज्य धर्म का दर्जा नहीं देती है।
  • नकारात्मक धर्मनिरपेक्षता पर जोर: अमेरिकी धर्मनिरपेक्षता नकारात्मक धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत पर आधारित है, जिसका अर्थ है कि सरकार धर्म और धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करती है।

उदाहरण:

  • लेमन बनाम कर्टिस मामला: इस मामले में,
  • उच्चतम न्यायालय ने “नींबू परीक्षण” स्थापित किया, जिसका उपयोग यह निर्धारित करने के लिए किया जाता है कि क्या कोई सरकारी कार्रवाई धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करती है।

फ्रांस में धर्मनिरपेक्षता:

  • फ्रांसीसी क्रांति का प्रभाव: फ्रांसीसी धर्मनिरपेक्षता 18वीं शताब्दी की फ्रांसीसी क्रांति से प्रेरित है, जिसने चर्च और राज्य के बीच अलगाव स्थापित किया।
  • Laïcité (लेइसीटे): फ्रांसीसी धर्मनिरपेक्षता के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द “Laïcité” (लेइसीटे) है, जिसका अर्थ है “सार्वजनिक क्षेत्र से धर्म का बहिष्कार”।
  • कठोर धर्मनिरपेक्षता: फ्रांसीसी धर्मनिरपेक्षता काफी कठोर है और धार्मिक प्रतीकों और प्रथाओं पर कई प्रतिबंध लगाती है।

उदाहरण:

  • 1905 का फ्रांसीसी धर्मनिरपेक्षता कानून: इस कानून ने चर्च और राज्य को अलग कर दिया और धार्मिक शिक्षा और धार्मिक संस्थानों पर कई प्रतिबंध लगा दिए।
  • स्कार्फ प्रतिबंध: 2004 में, फ्रांस ने सार्वजनिक स्कूलों में मुस्लिम छात्राओं के लिए हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया।

 

ग्रेट ब्रिटेन में धर्मनिरपेक्षता:

  • स्थापित चर्च: ग्रेट ब्रिटेन में एक स्थापित चर्च है, चर्च ऑफ इंग्लैंड, जिसका राष्ट्रमंडल के प्रमुख के साथ विशेष संबंध है।
  • राज्य और धर्म का अलगाव: हालांकि, ग्रेट ब्रिटेन में राज्य और धर्म का पूर्ण अलगाव नहीं है। चर्च ऑफ इंग्लैंड को कुछ विशेषाधिकार प्राप्त हैं, जैसे कि संसद में सीटें और सार्वजनिक विद्यालयों में धार्मिक शिक्षा प्रदान करने का अधिकार।
  • बहुसंख्यकवादी धर्मनिरपेक्षता: ग्रेट ब्रिटेन की धर्मनिरपेक्षता को अक्सर “बहुसंख्यकवादी धर्मनिरपेक्षता” के रूप में वर्णित किया जाता है, जिसका अर्थ है कि ईसाई धर्म को समाज में एक विशेष स्थान प्राप्त है।

उदाहरण:

  • रानी का पद: ब्रिटिश सम्राट चर्च ऑफ इंग्लैंड का सुप्रीम गवर्नर भी है।
  • धार्मिक शिक्षा: इंग्लैंड और वेल्स के सार्वजनिक स्कूलों में धार्मिक शिक्षा अनिवार्य है, लेकिन छात्रों को धार्मिक शिक्षा से बाहर निकलने का अधिकार है।

कनाडा में धर्मनिरपेक्षता:

  • राज्य और धर्म का अलगाव: कनाडा में राज्य और धर्म का पूर्ण अलगाव है। सरकार किसी भी धार्मिक गतिविधि में शामिल नहीं होती है और किसी भी धर्म को राज्य धर्म का दर्जा नहीं देती है।
  • बहुसांस्कृतिक धर्मनिरपेक्षता: कनाडा की धर्मनिरपेक्षता को अक्सर “बहुसांस्कृतिक धर्मनिरपेक्षता” के रूप में वर्णित किया जाता है, जिसका अर्थ है कि सभी धर्मों का समान सम्मान और स्वीकृति है।
  • चार्टर ऑफ राइट्स एंड फ्रीडम: कनाडा के चार्टर ऑफ राइट्स एंड फ्रीडम में धार्मिक स्वतंत्रता और धर्मनिरपेक्षता की गारंटी है।

उदाहरण:

  • भाषा कानून: कनाडा में दो आधिकारिक भाषाएँ हैं, अंग्रेजी और फ्रेंच, लेकिन कोई आधिकारिक धर्म नहीं है।
  • बहुसांस्कृतिकता: कनाडा एक बहुसांस्कृतिक देश है जिसमें कई अलग-अलग धर्मों के लोग रहते हैं।

जापान में धर्मनिरपेक्षता:

  • राज्य और धर्म का अलगाव: जापान में राज्य और धर्म का पूर्ण अलगाव है। सरकार किसी भी धार्मिक गतिविधि में शामिल नहीं होती है और किसी भी धर्म को राज्य धर्म का दर्जा नहीं देती है।
  • धार्मिक स्वतंत्रता: जापान के संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी है। लोगों को किसी भी धर्म का पालन करने या न करने की स्वतंत्रता है।
  • शिन्टो धर्म का प्रभाव: हालांकि, शिन्टो धर्म जापानी संस्कृति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शिन्टो मंदिरों को सरकारी धन प्राप्त होता है और कुछ शिन्टो अनुष्ठान सार्वजनिक विद्यालयों में किए जाते हैं।

 

भारत में धर्मनिरपेक्षता:

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25-28: धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है, जिसमें किसी भी धर्म का पालन करने या न करने की स्वतंत्रता, पूजा की स्वतंत्रता, धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने की स्वतंत्रता और धार्मिक संस्थाओं की स्थापना और प्रबंधन की स्वतंत्रता शामिल है।
  • राज्य और धर्म का अलगाव: भारतीय सरकार किसी भी धार्मिक गतिविधि में शामिल नहीं होती है और किसी भी धर्म को राज्य धर्म का दर्जा नहीं देती है।
  • सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता पर जोर: भारतीय धर्मनिरपेक्षता सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत पर आधारित है, जिसका अर्थ है कि सरकार सभी धर्मों का समान सम्मान करती है और धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा करती है।

उदाहरण:

  • केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामला: इस मामले में,
  • उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया कि संविधान की “मूल संरचना” धर्मनिरपेक्षता सहित कुछ बुनियादी सिद्धांतों को भी शामिल करती है, जिन्हें संसद द्वारा भी संशोधित नहीं किया जा सकता है।
  • शाह बानू बनाम मोहम्मद अहमद खान मामला: इस मामले में,
  • उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया कि मुस्लिम महिलाओं को भी तलाक के बाद गुजारा भत्ता का अधिकार है, भले ही यह मुस्लिम पर्सनल लॉ द्वारा अनुमति न हो।

 

धर्मनिरपेक्षता के महत्व:

  • राष्ट्रीय एकता और अखंडता: धर्मनिरपेक्षता विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देता है।
  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता: यह व्यक्तियों को अपनी पसंद के धर्म का पालन करने या न मानने की स्वतंत्रता देता है।
  • समानता: यह सभी धर्मों और व्यक्तियों को कानून के समक्ष समानता और समान अवसर प्रदान करता है।
  • न्यायिक समीक्षा: धर्मनिरपेक्षता न्यायपालिका को यह सुनिश्चित करने की शक्ति प्रदान करती है कि कानून धार्मिक रूप से तटस्थ हों और किसी भी धर्म का पक्ष न लें।

उदाहरण:

  • केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामला: इस ऐतिहासिक मामले में,
  • उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया कि संविधान की “मूल संरचना” धर्मनिरपेक्षता सहित कुछ बुनियादी सिद्धांतों को भी शामिल करती है, जिन्हें संसद द्वारा भी संशोधित नहीं किया जा सकता है।
  • शाह बानू बनाम मोहम्मद अहमद खान मामले में:
  • उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया कि मुस्लिम महिलाओं को भी तलाक के बाद गुजारा भत्ता का अधिकार है, भले ही यह मुस्लिम पर्सनल लॉ द्वारा अनुमति न हो।

आलोचनाएं:

  • धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा: कुछ लोगों का तर्क है कि धर्मनिरपेक्षता ने भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों की पर्याप्त सुरक्षा नहीं की है।
  • सांप्रदायिक हिंसा: धार्मिक आधार पर होने वाली हिंसा धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को चुनौती देती है।
  • व्यक्तिगत कानून: कुछ धार्मिक समुदायों के अपने व्यक्तिगत कानून हैं, जो धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के साथ टकराव पैदा कर सकते हैं।

धर्मनिरपेक्षता की चुनौतियां:

  • धर्म और राजनीति का मेल: कभी-कभी, राजनीतिक दल धार्मिक भावनाओं का सहारा लेकर वोट बटोरने की कोशिश करते हैं। इससे धर्मनिरपेक्षता कमजोर हो सकती है।
  • धार्मिक बहुसंख्यकवाद: भारत में हिंदू धर्म बहुसंख्यक धर्म है। कुछ लोगों का तर्क है कि इससे धार्मिक अल्पसंख्यकों को असुरक्षित महसूस हो सकता है।
  • सामाजिक असमानता: धर्म अक्सर सामाजिक असमानता से जुड़ा होता है। जाति व्यवस्था जैसी सामाजिक बुराइयां धर्मनिरपेक्षता के आदर्श को कमजोर करती हैं।

धर्मनिरपेक्षता को मजबूत बनाना:

  • सहिष्णुता और समावेश को बढ़ावा देना: भारतीय समाज की विविधता को स्वीकारना और सम्मान करना महत्वपूर्ण है। शैक्षणिक संस्थानों और मीडिया को धार्मिक सहिष्णुता और समावेश को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए।
  • धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को शिक्षा में शामिल करना: स्कूलों और कॉलेजों में धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। इससे युवा पीढ़ी में धार्मिक सहिष्णुता और समावेश की भावना विकसित करने में मदद मिलेगी।
  • कानून का समान रूप से लागू होना: कानून को सभी धर्मों के लोगों पर समान रूप से लागू किया जाना चाहिए। इससे यह संदेश जाएगा कि धर्म किसी को भी कानून से ऊपर नहीं करता है।

निष्कर्ष:

भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। यह राष्ट्रीय एकता, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समानता को बढ़ावा देता है। हालांकि, धर्मनिरपेक्षता को मजबूत करने और सभी धार्मिक समुदायों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व सुनिश्चित करने के लिए निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि धर्मनिरपेक्षता का मतलब नास्तिकता (धर्मनिरपेक्षता – Atheism) नहीं है। इसका मतलब है कि सरकार किसी भी धर्म का पक्ष नहीं लेती है और सभी धर्मों को समान सम्मान देती है।

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