भारत सरकार अधिनियम 1935: विशेषताएं, विश्लेषण और आलोचना
परिचय:
भारत सरकार अधिनियम 1935, ब्रिटिश भारत में शासन सुधारों की एक श्रृंखला में छठा और अंतिम महत्वपूर्ण अधिनियम था। इसने 1919 के भारत सरकार अधिनियम द्वारा स्थापित ढांचे का विस्तार किया और भारतीयों को शासन में अधिक भागीदारी प्रदान करने का प्रयास किया। इसे भारत के संविधान का आधार माना जाता है।
मुख्य विशेषताएं:
- संघीय प्रणाली: भारत को एक संघीय राज्य में परिवर्तित किया गया, जिसमें केंद्र और प्रांतों के बीच शक्तियों का वितरण किया गया।
- प्रांतीय स्वायत्तता: प्रांतों में विधानसभाओं और मंत्रिपरिषदों के साथ पूर्ण स्वायत्त सरकार की स्थापना की गई।
- संघीय विधायिका: एक द्विसदनीय संघीय विधायिका का गठन किया गया, जिसमें विधान सभा और विधान परिषद शामिल थी।
- अल्पसंख्यकों के लिए सुरक्षा: अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए विशेष प्रावधान किए गए थे।
- राज्यपालों की शक्तियां: राज्यपालों को विधानसभाओं को भंग करने और मंत्रिपरिषदों को बर्खास्त करने की शक्तियां दी गईं।
- संघीय न्यायालय: एक संघीय न्यायालय की स्थापना की गई, जो भारत की सर्वोच्च न्यायालय थी।
- विषयों का विभाजन: केंद्र और प्रांतों के बीच शक्तियों का विभाजन तीन सूचियों में किया गया: संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची।
- राज्यपालों की विशेष शक्तियां: राज्यपालों को कुछ विशेष शक्तियां दी गईं, जिनमें आपातकालीन शक्तियां और अल्पसंख्यकों की रक्षा करने की शक्तियां शामिल थीं।
- संघीय कार्यपालिका: केंद्र सरकार में एक राज्यपाल-जनरल और एक मंत्रिपरिषद शामिल थी।
- संशोधन प्रक्रिया: अधिनियम में संशोधन करने के लिए एक जटिल प्रक्रिया स्थापित की गई थी, जिसमें ब्रिटिश संसद की मंजूरी की आवश्यकता थी।
विश्लेषण:
भारत सरकार अधिनियम 1935 को भारत के संविधान का आधार माना जाता है। इसने भारत को एक संघीय राज्य में परिवर्तित किया, प्रांतीय स्वायत्तता प्रदान की और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की। इस अधिनियम ने भारतीय राजनीतिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
भारत सरकार अधिनियम 1935 की आलोचना
- जटिल प्रणाली: अधिनियम जटिल और अस्पष्ट था, जिससे शासन में कठिनाई हुई।
- संघीय नियंत्रण: केंद्र सरकार के पास प्रांतीय सरकारों पर अत्यधिक नियंत्रण था, जिससे वास्तविक स्वायत्तता सीमित हो गई।
- अल्पसंख्यकों के लिए अपर्याप्त सुरक्षा: प्रदान की गई सुरक्षा अपर्याप्त थी, जिससे साम्प्रदायिक विभाजन को बढ़ावा मिला।
- ब्रिटिश नियंत्रण बना रहा: भारतीयों के पास वास्तविक शक्ति नहीं थी।
- द्विशासन कायम: कुछ मामलों में द्विशासन जैसी व्यवस्था बनी रही, जिससे प्रशासन में गतिरोध पैदा हुआ।
- संघीय न्यायालय की सीमित शक्तियां: संघीय न्यायालय की शक्तियां सीमित थीं, और ब्रिटिश संसद के अधीन थीं।
- अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व प्रणाली: पृथक निर्वाचन मंडल प्रणाली को कुछ हद तक जारी रखा गया, जिसने सांप्रदायिक राजनीति को बढ़ावा दिया।
- आम आदमी के मुद्दों की उपेक्षा: अधिनियम ने सामाजिक और आर्थिक सुधारों पर कम ध्यान दिया।
- स्वतंत्रता की राह में बाधा: अधिनियम पूर्ण स्वतंत्रता की मांग को पूरा नहीं करता था।
- संविधान निर्माण में विलंब: इस अधिनियम ने स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माण में देरी की।
निष्कर्ष:
भारत सरकार अधिनियम 1935 ने भारत में ब्रिटिश शासन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ को चिह्नित किया। इसने भारतीयों को शासन में अधिक भागीदारी प्रदान करने का प्रयास किया, लेकिन यह एक अधूरा सुधार था।
यह अधिनियम भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के विकास में एक महत्वपूर्ण कारक था, जिसने भारतीयों में आत्म-शासन और स्वतंत्रता की इच्छा को और मजबूत किया।