Arora IAS

संप्रभुता: सत्ता का सर्वोच्च रूप (Sovereignty: Highest Form of Power)

राजव्यवस्था नोट्स

(Polity Notes in Hindi)

परिचय

राजनीतिक सिद्धांत में, संप्रभुता (Sovereignty) सर्वोच्च शक्ति या प्राधिकार को संदर्भित करती है। यह वह सर्वोच्च सत्ता है जो किसी राज्य या राष्ट्र के भीतर कानून बनाने और लागू करने, बल प्रयोग करने और अंतरराष्ट्रीय संबंधों का संचालन करने का अधिकार रखती है। संप्रभुता की अवधारणा राष्ट्र-राज्यों के उदय के साथ ही विकसित हुई है और यह अंतरराष्ट्रीय कानून का एक आधारभूत सिद्धांत है।

संप्रभुता के प्रकार

संप्रभुता की प्रकृति जटिल है और इसके कई प्रकार हैं। कुछ प्रमुख प्रकार इस प्रकार हैं:

  • आंतरिक संप्रभुता (Internal Sovereignty): यह किसी राज्य की अपनी सीमाओं के भीतर सर्वोच्च शक्ति को संदर्भित करता है। इसमें कानून बनाने और लागू करने, कर लगाने, और बल प्रयोग करने का अधिकार शामिल है।
  • बाह्य संप्रभुता (External Sovereignty): यह किसी राज्य की अन्य राज्यों के साथ स्वतंत्र संबंध स्थापित करने और बनाए रखने की क्षमता को संदर्भित करता है। इसमें युद्ध और शांति की घोषणा, संधियों का समापन और अंतरराष्ट्रीय संगठनों में सदस्यता शामिल है।
  • कानूनी संप्रभुता (Legal Sovereignty): यह उस प्राधिकरण को संदर्भित करता है जो कानून बनाने और लागू करने का अधिकार रखता है। यह आमतौर पर संविधान द्वारा स्थापित होता है।
  • वास्तविक संप्रभुता (Actual Sovereignty): यह उस प्राधिकरण को संदर्भित करता है जो वास्तव में शासन करने और निर्णय लेने में सक्षम है। यह हमेशा कानूनी संप्रभुता के साथ मेल नहीं खाता।

संप्रभुता के स्रोत

संप्रभुता के स्रोत के बारे में विभिन्न सिद्धांत हैं। कुछ प्रमुख सिद्धांतों में शामिल हैं:

  • दैवीय अधिकार सिद्धांत (Divine Right Theory): यह सिद्धांत कहता है कि संप्रभुता ईश्वर प्रदत्त होती है और राजा या सम्राट ईश्वर का प्रतिनिधि होता है। यह सिद्धांत अब व्यापक रूप से स्वीकृत नहीं है।
  • सामाजिक अनुबंध सिद्धांत (Social Contract Theory): यह सिद्धांत कहता है कि संप्रभुता लोगों से प्राप्त होती है। लोग अपने प्राकृतिक अधिकारों के कुछ हिस्से को छोड़ कर एक शासक के साथ एक समझौता करते हैं ताकि उनकी सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित किया जा सके। थॉमस हॉब्स और जॉन लॉक जैसे दार्शनिकों ने इस सिद्धांत का समर्थन किया।
  • अनुभववादी सिद्धांत (Empiricist Theory): यह सिद्धांत कहता है कि संप्रभुता वह शक्ति है जो वास्तव में शासन करती है। यह सिद्धांत इस बात पर बल देता है कि संप्रभुता का स्रोत शक्ति और प्रभाव होता है, न कि किसी दैवीय अधिकार या सामाजिक अनुबंध पर।

संप्रभुता के कार्य

संप्रभुता राज्यों को कई महत्वपूर्ण कार्य करने में सक्षम बनाती है, जिनमें शामिल हैं:

  • कानून बनाना और लागू करना: संप्रभुता राज्यों को कानून बनाने और लागू करने का अधिकार देती है, जो नागरिकों के आचरण को नियंत्रित करता है और सामाजिक व्यवस्था बनाए रखता है।
  • कर लगाना और धन का प्रबंधन करना: संप्रभुता राज्यों को कर लगाने और एकत्र किए गए धन का प्रबंधन करने का अधिकार देती है, जिसका उपयोग सार्वजनिक वस्तुओं और सेवाओं को प्रदान करने के लिए किया जाता है।
  • बल प्रयोग करना: संप्रभुता राज्यों को अपनी सीमाओं की रक्षा करने और आंतरिक अशांति को दबाने के लिए बल प्रयोग करने का अधिकार देती है।
  • अंतरराष्ट्रीय संबंधों का संचालन करना: संप्रभुता राज्यों को अन्य राज्यों के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने और बनाए रखने, संधियों का समापन करने और अंतरराष्ट्रीय संगठनों में सदस्यता लेने का अधिकार दे

संप्रभुता की चुनौतियां

संप्रभुता की अवधारणा कई चुनौतियों का सामना कर रही है, जिनमें शामिल हैं:

  • वैश्वीकरण: वैश्वीकरण ने राष्ट्र-राज्यों के बीच परस्पर निर्भरता को बढ़ा दिया है। आर्थिक गतिविधियां, पर्यावरणीय मुद्दे और सुरक्षा खतरे अब राष्ट्रीय सीमाओं को पार कर जाते हैं। इससे यह सवाल उठता है कि क्या राष्ट्र-राज्य अभी भी वैश्विक मुद्दों से निपटने के लिए सर्वोच्च प्राधिकरण के रूप में कार्य करने में सक्षम हैं।

  • अंतर्राष्ट्रीय संगठन: अंतर्राष्ट्रीय संगठनों जैसे संयुक्त राष्ट्र, विश्व व्यापार संगठन और यूरोपीय संघ ने राज्यों के बीच शक्ति का कुछ हस्तांतरण किया है। ये संगठन अंतरराष्ट्रीय नियमों और मानकों को निर्धारित करते हैं, जो राष्ट्रीय संप्रभुता को सीमित कर सकते हैं।

  • गैर-राज्य actors: गैर-राज्य actors जैसे बहुराष्ट्रीय कंपनियां और आतंकवादी संगठन भी राष्ट्रीय संप्रभुता को चुनौती देते हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियां इतनी शक्तिशाली हो सकती हैं कि वे राष्ट्रीय सरकारों को प्रभावित कर सकती हैं। आतंकवादी संगठन राष्ट्रीय सीमाओं की अवहेलना करते हैं और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करते हैं।

  • प्रौद्योगिकी: नई प्रौद्योगिकियां, जैसे कि इंटरनेट, राष्ट्रीय संप्रभुता को कमजोर कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, सूचना का तेजी से प्रवाह राष्ट्रीय सरकारों के लिए सूचना को नियंत्रित करना कठिन बना देता है।

संप्रभुता का भविष्य

संप्रभुता की अवधारणा भविष्य में कैसे विकसित होगी, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है। हालांकि, कुछ संभावनाएं हैं:

  • सहयोगात्मक संप्रभुता (Cooperative Sovereignty): राष्ट्र-राज्य शायद अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए अपनी संप्रभुता के कुछ हिस्सों को त्याग देंगे। अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण हो सकती है।

  • बहु-स्तरीय शासन (Multi-Level Governance): राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तरों पर शक्ति का बंटवारा हो सकता है। यह विभिन्न स्तरों पर विभिन्न अभिनेताओं को निर्णय लेने की शक्ति दे सकता है।

  • संप्रभुता का पुनर्गठन (Reconfiguration of Sovereignty): संप्रभुता की अवधारणा का पुनर्गठन किया जा सकता है ताकि यह वैश्वीकृत दुनिया के लिए अधिक प्रासंगिक हो। यह संप्रभुता के कुछ तत्वों को बनाए रखने के साथ-साथ वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित कर सकता है।

निष्कर्ष

संप्रभुता राज्यों को शासन करने और अंतरराष्ट्रीय संबंधों का संचालन करने का अधिकार प्रदान करती है। हालांकि, वैश्वीकरण, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, गैर-राज्य actors और प्रौद्योगिकी के उदय ने संप्रभुता को चुनौती दी है। भविष्य में, संप्रभुता की अवधारणा शायद बदल जाएगी क्योंकि राष्ट्र-राज्य वैश्विक मुद्दों से निपटने के लिए सहयोग के नए तरीके खोजते हैं।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *