गुप्तोत्तर काल के प्रमुख क्षेत्रीय वंश एवं राज्य थे –

  • बल्लभी का मैत्रक वंश (475-770 ई०)
  • मालवा का औलीकर वंश (528-543 ई०)
  • कन्नौज का मौखरी वंश
  • बंगाल का गौण राज्य
  • मगध का उत्तर गुप्त वंश (480-730 ई.)
  • पुष्यभूति वंश या वर्धन वंशः

बल्लभी का मैत्रक वंश (475-770 ई०)

  • गुप्त सम्राट स्कंदगुप्त की मृत्यु के बाद सौराष्ट्र प्रांत गुप्तों की अधीनता से स्वतंत्र हो गया। परवर्ती गुप्त शासक बुद्ध गुप्त के शासनकाल में प्रमुख मैत्रक सरदार भट्टार्क था| इसने 475 ई. के आसपास सौराष्ट्र में मैत्रक वंश की स्थापना की| इसने वल्लभी को अपनी राजधानी बनाया।
  • द्रोणसिंह मैत्रक वंश का पहला शासक था, जिसने महाराज की उपाधि धारण की। मैत्रकों में ध्रुवसेन प्रथम तथ्य ध्रुवसेन द्वितीय दो शक्तिशाली शासक हुए।
  • मैत्रकों का सबसे शक्तिशाली शासक ध्रुवसेन द्वितीय था| यह हर्ष का दामाद व समकालीन राजा था। यह हर्ष के प्रयाग सम्मेलन में भी शामिल हुआ था। इसी के समय चीनी यात्री ह्वेनसांग ने वल्लभी की यात्रा की थी, जिसने बौद्ध धर्म एवं शैक्षणिक केन्द्र के रूप में वल्लभी की प्रशंसा की थी।
  • मैत्रकों के शासनकाल में वल्लभी की वही महत्ता थी, जो गुप्तों के शासनकाल में नालंदा की थी। मैत्रक शासन बौद्ध मतानुयायी थे।
  • मैत्रकों ने बड़ौदा, सूरत तथा पश्चिमी मालवा तक अपने राज्य का विस्तार किया। इस वंश के अंतिम शासक शिलादित्य सप्तम की हत्या कर 767 ई० के आसवास अरब आक्रमणकारियों ने इस वंश को समाप्त कर दिया।

मालवा का औलीकर वंश (528-543 ई०)

  • गुप्तों की शक्ति को हुणों के समान गहरा आघात पहुँचाने वाला मालवा का औलीकर वंशीय सम्राट यशोधर्मन था। वस्तुतः यह एक शक्तिशाली शासक था। परंतु इसका उत्थान एवं पतन बहुत कम समय में हो गया।
  • मंदसौर प्रशस्ति में यशोधर्मन को जनेन्द्र कहा गया है| इसने समस्त उत्तर भारत में अपना प्रभुत्व स्थापित करने के उपलक्ष्य में 532 विजय स्तंभों की स्थापना करवायी थी।
  • यशोधर्मन ने हुण शासक मिहिरकुल को पराजित किया था| इसने अपनी राजधानी मंदसौर को बनाया। मंदसौर प्रशस्ति में यशोध-र्मन का चित्रण उत्तर भारत के चक्रवर्ती शासक के रूप में किया गया है।

 

कन्नौज का मौखरी वंश

  • मूलतः गया के निवासी मौखरियों ने मगध या पाटलिपुत्र के स्थान पर अपनी राजनीतिक गतिविविधयों का प्रमुख केन्द्र कन्नौज को बनाया।
  • इस प्रकार अब पाटलिपुत्र अपना राजनीतिक महत्व खो चुका था तथा इसकी जगह अब कन्नौज ने ले ली, जहां पर कालांतर में प्रतिहार, पाल और राष्ट्रकूट शासकों के मध्य कन्नौज को लेकर त्रिपक्षीय संघर्ष हुआ।
  • गया के समीप बराबर समूह के लोमश ऋषि की गुहा से मौखरियों के तीन आरंभिक शासकों (यज्ञवर्मा, सार्दुलवर्मा, अनन्तवर्मा) का उल्लेख मिलता है। ये सभी आरंभिक शासक गया के निकटवर्ती क्षेत्र में गुप्तों के अधिनस्थ शासक थे।
  • कन्नौज की प्रधान शाखा का पहला शक्तिशाली शासक ईशानवर्मा था, जिसने अपने नाम से सिक्के चलवाए ईशानवर्मा के व्यक्तित्व व कृतित्व की जानकारी रविशांति विरचित हरहा प्रशस्ति से मिलती है।
  • ईशानवर्मा का पुत्र सर्ववर्मा ने उतर गुप्त शासक को पराजित कर मगध पर अधिकार कर लिया। इस वंश का अंतिम महान शासक अवन्तिवर्मा हुआ,जिसके समय में प्रभाकरवर्धन ने अपनी पुत्री राजश्री का विवाह गृहवर्मा के साथ कर दिया।
  • वर्धन एव मौखरियों के मध्य बढ़ती मैत्री ने गौण शासक शशांक तथा उत्तर गुप्त शाशको को संगठित होने का मौका दिया। प्रभाकरवर्धन की मृत्यु के बाद देवगुप्त के कनौज पर आक्रमण कर गृहवर्मा की हत्या कर दी|
  • राज्यवर्धन ने देवगुप्त को मार डाला परन्तु देवगुप्त के मित्र शशांक ने धोख से राज्यवर्धन को मार डाला। बाद में हर्ष ने वर्धन एवं मौखरी राज्य को एककर कन्नोज पर शासन करना प्रारम्भ किया।

बंगाल का गौण राज्य

  • गुप्तोत्तर काल में भारत के पूर्वी क्षेत्र में बंगाल में गौण राज्य का उदय हुआ। वहाँ का शासक शशांक, हर्ष का समकालीन था, जिसके रोहतासगढ़ के अभिलेख में उसकी उपाधि महासांमत उत्कीर्ण है|
  • शशांक तत्कालीन मौखरी शासक का सांमत था| लेकिन बाद में सामंत से सम्राट की स्थिति में पहुँच गया। उसने गौण एव मगध पर अधिकार करके कर्णसुवर्ण को अपनी राजधानी बनाई|
  • शशांक की प्रतिद्वन्दीता मौखरियों और वर्धन दोनों से थी, जिसके लिये उसने उत्तर गुप्त शासक देवगुप्त से मित्रता स्थापित का। राज्यवर्धन द्वारा देवगुप्त की हत्या शशांक के लिए खुली चनौती थी। अत: उसने धोखे से राज्यवर्धन की हत्या कर दी।
  • हपवर्धन ने शशांक को पराजित कर अपने राज्य में रहने के लिए बाध्य कर दिया। 619-20 ई. में शशांक की मृत्यु के पश्चात् हर्ष ने उसके राज्य का अधिग्रहण कर लिया।
  • नरेन्द्र गुप्त के नाम से विख्यात शशांक शैव धर्मानुयायी था। ह्वेनसांग ने उसे बौद्ध संहारक के रूप में वर्णित किया है। उसने बोध गया के बोधीवृक्ष को कटवाकर गंगा में फिकवा दिया तथा एक मंदिर में बुद्ध की प्रतिमा विस्थापित कर शिव की प्रतिमा स्थापित करवाई।

 

मगध का उत्तर गुप्त वंश (480-730 ई.)

  • साम्राज्यवादी गुप्तों के भग्नावशेष पर उदित उत्तर भारतीय राज्यों में उत्तर गुप्त भी प्रमुख थे। मगध में उत्तर गुप्त वंश का संस्थापक कृष्ण गुप्त था।
  • हर्ष गुप्त ने हुणों को पराजित करने में परवर्ती गुप्त शासक भानुगप्त की सहायता की थी। कुमारगुप्त इस वंश का शक्तिशाली शासक था, जिसने इस वंश को सामंत स्थिति से मुक्त कराया।
  • कुमारगुप्त ने मौखरी शासक ईशानवर्मा को पराजित कर मगध पर अधिकार कर लिया। दामोदर गुप्त के काल में मौखरियों ने पुन: मगध पर अधिकार कर लिया तथा उत्तर गुप्त शासक मालवा के आस-पास सीमित रह गए।
  • हर्ष के बाद गुप्तों की मगध शाखा ने उत्तर भारत के बहुत बड़े क्षेत्र पर अपना आधिपत्य कायम किया। इस वंश को सबसे प्रतापी शासक आदित्य सेन था। इसने अपने राज्य का विस्तार उत्तर प्रदेश, बिहार मध्य और उत्तरी बंगाल तथा बंगाल की खाड़ी तक किया। इसने वैदिक धर्म को प्रश्रय दिया तथा तीन अश्वमेघ यज्ञ किए।
  • हर्षोत्तर काल में आदित्य सेन उत्तरी भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक था। जीवितगुप्त द्वितीय इस वंश का अंतिम शासक था।

 

पुष्यभूति वंश या वर्धन वंशः

  • वर्धन वंश के इतिहास को जानने का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत साहित्यिक रचनाए हैं। इनमें पहला स्थान बाणभट्ट विरचित ग्रंथों हर्षचरित कादम्बरी चण्डीशतक आदि का है।
  • हर्षचरित वर्धन इतिहास का प्रमुख साहित्यिक स्रोत है। ऐतिहासिक विषयों पर सर्वप्रथम गद्य काव्य लिखने का प्रयास हर्षचरित में ही किया गया है।
  • इसी प्रकार कादम्बरी से हर्षकालीन सामाजिक तथाधार्मिक जीवन का वृतांत प्राप्त होता है। हर्ष ने स्वयं तीन नाटकों प्रियदर्शिका रत्नावली तथा नागानन्ट की रचना की जिससे तत्कालान समाज एवं संस्कृति के बारे में जानकारी मिलती है।
  • विदेशी यात्रीयों में ह्वेनसांग का विवरण (सि-यु-की) प्रमुख है, जो हर्ष कालिन राजनीतिक एवं संस्कृतिक जीवन के अध्ययन का प्रमुख स्रोत है।
  • वर्धन वंश के शासक किस जाति के थे, इसको लेकर विद्वानों में मतभेद है। हर्षचरित के अनुसार कुछ विद्वान उन्हें चन्द्र वंशीय क्षत्रिय मानते हैं परंतु ह्वेनसांग ने उन्हें वैश्य माना है।

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