अर्थव्यवस्था :- एक ढाँचा जिसके अन्तर्गत लोगों की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है ।
आर्थिकविकास :- एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक अर्थव्यवस्था की वास्तविक ‘ प्रति व्यक्ति आय ‘ दीर्घ अवधि में बढ़ती है ।
विकास :-
विकास के लक्ष्य विभिन्न लोगों के लिये विभिन्न हो सकते हैं। हो सकता है कि कोई बात किसी एक व्यक्ति के लिये विकास हो लेकिन दूसरे के लिये नहीं। उदाहरण के लिये किसी नये हाइवे का निर्माण कई लोगों के लिये विकास हो सकता है। लेकिन जिस किसान की जमीन उस हाइवे निर्माण के लिये छिन गई हो उसके लिये तो वह विकास कतई नहीं हो सकता।
विभिन्न लोगों के लिये विकास की विभिन्न आवश्यकताएँ हो सकती हैं। किसी भी व्यक्ति की जिंदगी की परिस्थिति इस बात को तय करती है उसके लिये किस प्रकार के विकास की आवश्यकता है। इसे समझने के लिये दो लोगों का उदाहरण लेते हैं।
एक व्यक्ति ऐसे गाँव में रहता है जहाँ से किसी भी जगह के लिये बस पकड़ने के लिये पाँच किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। यदि उसके गाँव तक पक्की सड़क बन जाये और उसके गाँव तक छोटी गाड़ियाँ भी चलने लगें तो यह उसके लिये विकास होगा।
एक अन्य व्यक्ति दिल्ली राजधानी क्षेत्र की बाहरी सीमा पर रहता है। उसे अपने दफ्तर जाने के लिये पहले तो पैदल एक किलोमीटर चलकर ऑटोरिक्शा स्टैंड तक जाना होता है। उसके बाद ऑटोरिक्शा पर कम से कम एक घंटे की सवारी के बाद वह मेट्रो स्टेशन पहुँचता है। उसके बाद मेट्रो में एक घंटा सफर करने के बाद वह अपने ऑफिस पहुँच पाता है। यदि मेट्रो रेल की लाइन उसके घर के आस पास पहुँच जाये तो यह उस व्यक्ति के लिये विकास होगा।
ऊपर दिये गये उदाहरण ये बताते हैं कि विकास के अनेक लक्ष्य हो सकते हैं। लेकिन नीति निर्धारकों और सरकार को विकास के ऐसे लक्ष्य बनाने होते हैं जिससे अधिक से अधिक लोगों को फायदा पहुँच सके।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व के देशों को प्रति व्यक्ति आय एवं राष्ट्रीय आय के आधार पर निम्न दो वर्गों में बांटा है-
विकसितदेश
विकसित देश उन्हें कहते हैं, जिन्होंने कृषि, उद्योग, परिवहन एवं व्यापार आदि क्षेत्र में अधिकतम एवं कुशलता में उपयोग कर लिया है। दूसरे शब्दों में जिन देशों में अपनी प्राकृतिक तथा मानवीय संसाधनों का अधिकतम उपयोग कर लिया है तथा अपनी राष्ट्रीय आय में वृद्धि की है, विकसित देश कहलाते हैं। इन देशों में प्राविधिक-तकनीकी एवं वैज्ञानिक ढंग से आर्थिक विकास कर लिया है।
संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, जापान आदि प्रमुख विकसित देश हैं। इन देशों में प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय क्रमश: 41,480; 33,940; 28,390 एवं 37,180 डॉलर है।
मानव विकास के आधार पर वरीयता क्रम में विश्व के 10 सर्वाधिक विकसित देश हैं-
कनाडा,
फ्रांस,
नार्वे,
संयुक्त राज्य अमेरिका,
आइसलैंड,
नीदरलैंड,
जापान,
फिनलैंड,
न्यूजीलैंड,
स्वीडन
विकासशीलदेश
वे राष्ट्र जो सम्पन्न नहीं है, परंतु विकास का उच्च स्तर प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील हैं विकासशील देश कहलाते हैं। यह देश धीरे-धीरे आर्थिक एवं औद्योगिक क्षेत्र में प्रगति कर आर्थिक विकास की ओर निरंतर अग्रसर हैं। प्राय: विकासशील देशों में जनसंख्या का दबाव अधिक है तथा उत्पादन कम होने के कारण इन्हें जीवन निर्वाह करने में भी अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इन देशों में कृषि, औद्योगिक, व्यापारिक एवं तकनीकी विकास कम हुआ है।
इन देशों में प्रति व्यक्ति आय अपेक्षाकृत कम होती है। चीन, भारत, मिस्र, ब्राजील, अर्जेंटीना, पाकिस्तान, म्यांमार, इराक, ईरान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, तंजानिया एवं जायरे आदि प्रमुख विकासशील देश हैं। इनमें प्रति व्यक्ति आय भारत में 530, बांग्लादेश में 400, चीन में 1100, पाकिस्तान में 470 तथा दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में 850 से 1,800 डॉलर के मध्य है।
ज्यादा आय , बराबरी का व्यवहार , स्वतंत्रता , काम की सुरक्षा , सम्मान व आदर , परिवार के लिए सुविधाएँ , वातावरण आदि , राष्ट्रीय विकास की धारणाएँ निम्नलिखित हैं :-
विश्व बैंक की विश्व विकास रिपोर्ट 2006 के अनुसार , ” 2004 में प्रतिव्यक्ति आय जिन देशो में 453000 रूपये प्रति वर्ष या उससे अधिक है वह समृद्ध या विकसित राष्ट्र कहलाते है ।जिनकी आय 37000 रूपये प्रति वर्ष या उससे कम है वह विकासशील / निम्न आय वाले देश कहलाते हैं ।
विकासकेलक्ष्य :
प्रतिव्यक्तिआय :- जब देश की कुल आय को उस देश की जनसंख्या से भाग दिया जाता है तो जो राशि मिलती है उसे हम प्रति व्यक्ति आय कहते हैं। वर्ष 2006 की विश्व विकास रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रति व्यक्ति सालाना आय 28,000 रुपये है।
सकलराष्ट्रीयउत्पाद :- किसी देश में उत्पादित कुल आय को सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं। सकल राष्ट्रीय उत्पाद में हर प्रकार की आर्थिक क्रिया से होने वाली आय की गणना की जाती है।
सकलघरेलूउत्पाद :- किसी देश में उत्पादित कुल आय में से निर्यात से होने वाली आय को घटाने के बाद जो बचता है उसे सकल घरेलू उत्पाद कहते हैं।
शिशुमृत्युदर :- हर 1000 जन्म में एक साल की उम्र से पहले मरने वाले बच्चों की संख्या को शिशु मृत्यु दर कहते हैं। यह आँकड़ा जितना कम होगा वह विकास के दृष्टिकोण से उतना ही बेहतर माना जायेगा। शिशु मृत्यु दर एक महत्वपूर्ण पैमाना है। इससे किसी भी क्षेत्र में उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता और गुणवत्ता का पता चलता है। सन 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में शिशु मृत्यु दर 15 है। इससे यह पता चलता है कि भारत में आज भी स्वास्थ्य सेवाएँ अच्छी नहीं हैं।
पुरुषऔरमहिलाकाअनुपात :- प्रति हजार पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या को लिंग अनुपात कहते हैं। यदि यह आँकड़ा कम होता है तो इससे यह पता चलता है कि उस देश या राज्य में महिलाओं के खिलाफ कितना खराब माहौल है। भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार प्रति हजार पुरुषों की तुलना में केवल 940 महिलाएँ हैं।
जन्मकेसमयसंभावितआयु :- एक औसत वयस्क अधिकतम जितनी उम्र तक जीता है उसे संभावित आयु कहते हैं। सन 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में पुरुषों की संभावित आयु 67 साल है और महिलाओं की संभावित आयु 72 साल है। इससे देश में व्याप्त जीवन स्तर का पता चलता है। यदि किसी देश में मूलभूत सुविधाएँ बेहतर होंगी, अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएँ होंगी और लोगों की आय अच्छी होती तो वहाँ संभावित आयु भी अधिक होगी। दूसरे शब्दों में वहाँ एक औसत वयस्क लंबी जिंदगी जिएगा।
साक्षरतादर :- 7 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों में साक्षर जनसंख्या का अनुपात को साक्षरता दर कहते हैं । निवल उपस्थिति [ अनुपात : 6-10 वर्ष की आयु के स्कूल जाने वाले कुछ बच्चों का उस आयु वर्ग के कुल बच्चों के साथ प्रतिशत उपस्थिति अनुपात कहलाता है ।
राष्ट्रीयआय :- देश के अंदर उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य तथा विदेशों से प्राप्त आय के जोड को राष्ट्रीय आय कहते है ।
बी . एम . आई :- शरीर का द्रव्यमान सूचकांक पोषण वैज्ञानिक , किसी व्यस्क के अल्पपोषित होने की जाँच कर सकते हैं । यदि यह 5 से कम है तो व्यक्ति कुपोषित है अगर 25 से ऊपर है तो वह मोटापे से ग्रस्त हैं ।
आधारभूतसंरचना :- आधारभूत संरचना किसी देश की अर्थव्यवस्था के लिये रीढ़ की हड्डी का काम करती है। सड़कें, रेल, विमान पत्तन, पत्तन और विद्युत उत्पादन किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की जान होते हैं। अच्छी आधारभूत संरचना से आर्थिक गतिविधियाँ बेहतर हो जाती हैं जिससे हर तरफ समृद्धि आती है।
मानवविकाससूचकांक :- मानव विकास सूचकांक एक सांख्यिकीय सूचकांक है जिसमें जीवन प्रत्याशा, शिक्षा, और आय सूचकांकों को शामिल किया जाता है. मानव विकास सूचकांक में किसी देश के जीवन स्तर को मापा जाता है. इसमें देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) तथा उपलब्ध स्वास्थ्य एवं शिक्षा के स्तर आदि को भी देखा जाता है. संयुक्त राष्ट्र द्वारा पहला मानव विकास सूचकांक साल 1990 में जारी किया गया था. प्रत्येक वर्ष इसे संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा प्रकाशित किया जाता है.
· जीवनप्रत्याशाकेमामलेमें : मानव विकास रिपोर्ट 2020 के मुताबिक, साल 2019 में जन्मे भारतीयों की जीवन प्रत्याशा 69.7 साल आंकी गई, जबकि बांग्लादेश में यह 72.7 साल रही. जीवन प्रत्याशा के मामले में पड़ोसी देश पाकिस्तान पीछे रहा. वहां जीवन प्रत्याशा 67.3 साल आंकी गई.
रिपोर्ट के मुताबिक, मानव विकास सूचकांक में नॉर्वे शीर्ष स्थान पर रहा, जबकि आयरलैंड, स्विट्जरलैंड, हांगकांग व आइसलैंड क्रमश: दूसरे, तीसरे, चौथे और पांचवें स्थान पर रहे.
मानव विकास रिपोर्ट के मुताबिक, श्रीलंका और भूटान जैसे छोटे देश भी सूचकांक में भारत से अच्छा हैं. मालूम हो कि श्रीलंका 72वें और भूटान 129वें स्थान पर है. वहीं भारत के पड़ोसी श्रीलंका और चीन क्रमशः 72वें और 85वें स्थान पर हैं.
मानव विकास सूचकांक में भूटान (129), बांग्लादेश (133), नेपाल (142), म्यांमार (147), पाकिस्तान (154) और अफगानिस्तान (169) आदि मध्यम मानव विकास की श्रेणी वाले देशों में शामिल रहे. भारत साल 2018 में इस सूची में 130वीं रैंक पर रहा था.