अध्याय-4 : मुग़ल साम्राज्य

मुग़ल वंश

  • मुग़ल दो महान शासक वंशों के वंशज थे।
  • माता की ओर से वे चीन और मध्य एशिया के मंगोल शासक चंगेज खान ( जिसकी मृत्यु 1227 में हुई ) के उत्तराधिकारी थे।
  • पिता की ओर से वे ईरान,इराक एवं वर्त्तमान तुर्की के शासक तैमूर ( जिसकी मृत्यु 1404 में हुई ) के वंशज थे।
  • नोट – मुग़ल खुद को मुंगल या मंगोल कहलवाना पसंद नहीं करते थे क्योंकि चंगेज खान से जुडी स्मृतियाँ सैकड़ो व्यक्तियों के नरसंहार से सम्बंधित थी।
  • नोट – उन्हें तैमूर के वंशज होने पर गर्व का अनुभव करते थे, क्योंकि इस महान पूर्वज ने 1398 ईसवी में दिल्ली पर कब्ज़ा किया था।

मुग़ल वंशावली -( प्रमुख )

  • तैमूर,
  • मीरां शाह ( बाबर का लकड़दादा ),
  • सुल्तान मुहम्मद मिर्जा ( बाबर का परदादा )
  • अबू सेद -( बाबर के दादा )
  • उमर शेख ( बाबर के पिता )
  • बाबर
  • हुमायूँ
  • अकबर
  • जहाँगीर
  • शाहजहाँ
  • औरंगजेब

मुग़ल सैन्य अभियान

  • प्रथम मुग़ल शासक बाबर ( 1526-1530) ने जब 1494 में फ़रग़ना राज्य का उत्तराधिकार प्राप्त किया तो उसकी उम्र केवल बारह वर्ष थी।
    • मंगोलो की दूसरी शाखा, उजबेगों के आक्रमण के कारण उसे अपनी पैतृक गद्दी छोड़नी पड़ी।
  • 1504 में काबुल पर कब्ज़ा कर लिया। ( बाबर )
  • बाबर ने 1526 में दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को पानीपत में हराया और दिल्ली तथा आगरा को अपने कब्जे में कर लिया।
  • नोट – सोलहवीं शताब्दी के युद्धों में तोप और गोलाबारी का पहली बार इस्तेमाल बाबर ने पानीपत की पहली लड़ाई में किया।

मुग़ल सम्राट-प्रमुख अभियान और घटनाएं

  1. बाबर (1526-1530)-
  • 1526- में पानीपत के मैदान में इब्राहिम लोदी एवं उसके अफगान समर्थक को हराया।
  • 1527- में खानुवा में राणा सांगा , राजपूत, राजाओं और उनके समर्थकों को हराया था।
  • 1528-में चंदेरी में राजपूतों को हराया।
  • अपनी मृत्यु से पहले दिल्ली और आगरा में मुग़ल नियंत्रण स्थापित किया।

 

2.हुमायूँ ( 1530-1540 एवं 1555-1556 )

  • बाबर की वसीयत के अनुसार उसके प्रत्येक पुत्र को एक-एक प्रान्त मिला।
  • भाई मिर्जा कामरान की महत्वाकांक्षाओं के कारण हुमायूँ अपने अफगान प्रतिद्वंदियों के सामने फीका पड़ गया।
  1. शेरखान/शेरशाह सूरी
  • शेरशाह सूरी ने हुमायूँ को दो बार हराया -a) 1539-में चौसा में b) 1540 में कन्नौज में।
  • इन पराजयों की वजह से हुमायूँ को ईरान भागना पड़ा। ईरान में हुंमायूं ने सफ़विद शाह की मदद ली।
  • 1555 में दिल्ली पर पुनः कब्ज़ा किया।
  • 1556 में हुमायूँ की इमारत दुर्घटना में मृत्यु हो गयी

अकबर ( 1556-1605 तक )

13 वर्ष की अल्पायु में अकबर सम्राट बना। इसके शासन को तीन अवधियों में बांटा जा सकता है।

A) 1556-1570 अकबर अपने संरक्षक बैरम खान से स्वतन्त्र हो गया।

a) उसने सूरी अन्य अफगानो, निकटवर्ती राजाओं, मालवा और गोंडवाना तथा अपने सौतेलों भाई मिर्जा हाकिम और उजबेगों के विद्रोहों को दबाने के लिए सैन्य अभियान चलाए।

b) 1568 में सिसौदियों की राजधानी चित्तौड़ को जीता।

c) 1569 में रणथम्भौर पर कब्ज़ा कर लिया।

B.) 1570-1585 के मध्य –

a) इस अवधि में गुजरात के विरुद्ध सौनिक अभियान हुए।

b) गुजरात के पश्चात् उसने पूर्व में बिहार, बंगाल और उड़ीसा में अभियान चलाए , जिन्हे 1579-80 में मिर्जा हाकिम के पक्ष में हुए विद्रोह को और जटिल कर दिया।

C)- 1585-1605 के मध्य –

a) साम्राज्य का विस्तार हुआ, उत्तर-पश्चिम में अभियान चलाएं।

b) सफ़विदों को हराकर कंधार पर कब्ज़ा किया तथा कश्मीर को भी जोड़ लिया।

c) मिर्जा हाकिम में मृत्यु के बाद काबुल को भी अकबर ने अपने राज्य में मिला लिया।

d) दक्कन में अभियानों की शुरुआत और बरार, खानदेश और अहमदनगर के कुछ हिस्सों को भी अपने राज्य में मिला लिया।

e) शासन में अंतिम वर्षों में सलीम के विद्रोहों में कारण सत्ता लड़खड़ाई और आगे चलकर सलीम सम्राट जहांगीर कहलाए।

जहांगीर ( 1605-1627 )

  • अकबर के सैन्य अभियानों को आगे बढ़ाया।
  • मेवाड़ के सिसोदिया शासक अमर सिंह ने मुगलों की सेवा स्वीकार की।
  • सिक्खों, अहोमों और अहमदनगर के खिलाफ अभियान सफल नहीं हुए।
  • शासन के अंतिम वर्षों में राजकुमार खुर्रम ( शाहजहाँ ) ने बिद्रोह किया।
  • नोट- मेहरुन्निसा ने 1611 में जहांगीर से विवाह किया और उसे नूरजहाँ का ख़िताब मिला।

शाहजहाँ ( 1627-1658 )

  • दक्कन में अभियान जारी रहे, अफगान, अभिजात खान जहान लोदी पराजित हुआ।
  • अहमदनगर के विरुद्ध अभियान हुआ सुसमे बुंदेलों की हार हुई और ओरछा पर कब्ज़ा कर लिया।
  • उत्तर-पश्चिम में बल्ख पर कब्ज़ा करने के लिए उजबेगो के विरुद्ध अभियान जो असफल रहा जो फलस्वरूप कंधार सफ़विदों के हाथ में चला गया।
  • 1632 में अहमदनगर को मुग़ल राज्य में मिला लिया और बीजापुर से सुलह के लिए निवेदन किया।
  • 1657-58 में शाहजहाँ के पुत्रों के बीच उत्तराधिकार को लेकर झगड़ा, औरंगजेब की विजय , दाराशिकोह समेत उसके तीन भाइयों का क़त्ल तथा शाहजहाँ को आगरा में कैद कर दिया गया।

औरंगजेब ( 1658-1707 )

  • 1663 में उत्तर-पूर्व में अहोमो की पराजय। 1680 में पुनः विद्रोह।
  • उत्तर-पश्चिम में यूसफजई और सिक्खों के विरुद्ध अभियान में अस्थाई सफलता।
  • मारवाड़ के राठौड़ राजपूतों का विद्रोह, के कारण उनके मसलों में मुगलों का हस्तक्षेप।
  • मराठा सरदार शिवाजी को आगरा में कैद किया परन्तु वो भागने में सफल रहे, इसके बाद स्वयं को स्वतन्त्र शासक घोषित कर मुगलों के खिलाफ अभियान चलाया।
  • राजकुमार अकबर ( द्वतीय ) का विद्रोह जिसमे उसे मराठो और दक्कन की सल्तनत का सहयोग मिला। अंततः वह सफ़विद ईरान भाग गया।
  • 1685 में बीजापुर और 1687 में गोलकुंडा को मुगलो ने अपने राज्य में मिला लिया।
  • 1698 में दक्कन में मराठो के विरुद्ध अभियान ( मराठों द्वारा छापा मार पद्धति का उपयोग )
  • उत्तर भारत में सिक्खो, जाटो , अहोमियों और दक्कन के मराठों के विद्रोहों का सामना।
  • नोट- जहाँगीर की माँ कच्छवा की राजकुमारी थी। वह अम्बर ( वर्त्तमान जयपुर ) के राजपूत शासक की पुत्री थी।
  • नोट-2 – शाहजहाँ की माँ एक राठौड़ राजकुमारी थी। वह मारवाड़ ( जोधपुर ) के राजपूत शासक की पुत्री थी।

उत्तराधिकार की मुग़ल परम्पराएँ

  • मुग़ल- सहदयाद की मुग़ल और तैमूर वंशो की प्रथा को अपनाते थे जिसमे उत्तराधिकार की विभाजन समस्त पुत्रों में कर दिया जाता था।
  • ज्येष्ठाधिकार परंपरा नहीं थी।
  • मुगलो के अन्य शासकों के साथ सम्बन्ध –
  • मुगलो ने अनेक राजवंशों के खिलाफ अभियान चलाया, अनेकों ने भय से या संरक्षण हेतु मुग़ल सत्ता स्वीकार की उन्हें उच्च पद भी दिए गए।
  • सिसोदिया राजपूतों को मुगलों ने हराया परन्तु हराने के पश्चात मुगलों ने सम्माननीय व्यवहार के साथ उन्हें उनकी जागीरे ( वतन ), वतन जागीर के रूप में वापिस कर दी।
  • पराजित करने के बाद मुगलों ने किसी को अपमानित नहीं किया। शिवाजी को औरंगजेब द्वारा अपमानित करना एक अपवाद है।
  • राजपूत कन्याओं से विवाह करके भी राजवंशों से सम्बन्ध स्थापित किये गए।

मनसबदार और जागीरदार

  • मुगलों के सेवा में आने वाले नौकरशाह ‘ मनसबदार ‘ कहलाए।
  • ‘मनसबदार ‘ शब्द का प्रयोग ऐसे व्यक्तियों के लिए होता था , जिन्हे कोई मनसब यानी कोई सरकारी हैसियत अथवा पद मिलता था।
  • यह मुगलों द्वारा चलाई गई श्रेणी व्यवस्था थी, जिसके जरिए , पद, वेतन, एवं सैन्य उत्तरदायित्व निर्धारित किए जाते थे।
  • जात की संख्या जीतनी अधिक होती थी, दरबार में अभिजात की प्रतिष्ठा उतनी ही बढ़ जाती थी और वेतन भी बढ़ जाता था।
  • मनसबदार अपना वेतन राजस्व एकत्रित करने वाली भूमि के रूप में पाते थे, जिन्हे जागीर कहते थे और जो तकरीबन ‘ इकताओ ‘के समान थी। परन्तु मनसबदार,मुक्तियों से भिन्न, अपने जगीरो पर नहीं रहते थे और न ही उनपर प्रशासन करते थे।

जब्त और जमींदार

  • मुगलों की आमदनी का मुख्य स्रोत किसानो की उपज से मिलाने वाला राजस्व था जो किसानों द्वारा कुलीनों यानी मुखिया या सरदारों के माध्यम से दिया जाता था। और मध्यस्थों ( मुखिया या सरदार ) को जमींदार कहा जाता था।
  • अकबर के राजस्व मंत्री टोडरमल ने दस साल ( 1570-1580 ) की कालावधि में कृषि की पैदावार, कीमतों और कृषि भूमि का सर्वेक्षण किया। प्रत्येक फसल पर नगद कर निश्चित कर दिया था। सूबों ( प्रांतों ) को राजस्व मंडल में बाँटा गया और प्रत्येक फसल के लिए राजस्व दर की अलग सूची बनाई गयी। राजस्व प्राप्ति की इसी व्यवस्था को जब्त कहा जाता था।

अकबरनामा और आइने अकबरी

  • अबुल फजल द्वारा लिखी गयी तीन जिल्दो में –
  1. पहली जिल्द- अकबर के पूर्वजों का वर्णन ,
  2. दूसरी जिल्द -अकबर के शासनकाल की घटनाओं का विवरण ,
  3. तीसरी जिल्द- प्रशासन घराने,सेना,राजस्व और साम्राज्य के भूगोल का व्यौरा मिलता है।
  4. आइने अकबरी में फसलों पैदावार,कीमतों,मजदूरी और राजस्व का सांख्यिकीय विवरण है।

अकबर की नीतियाँ

  • अकबर की नीतियों का विस्तृत विवरण अबुल फजल की अकबरनामा, विशेषकर आइने अकबरी में मिलता है।
  • साम्राज्य कई प्रांतों में बंटा हुआ था, जिन्हे ‘ सूबा ‘ कहा जाता था। सुबो के प्रशासक ‘ सूबेदार’ कहलाते थे जो राजनैतिक तथा सैनिक दोनों प्रकार के कार्यों का निर्वहन करते थे।
  • प्रत्येक प्रान्त में एक दीवान ( वित्तीय अदिकारी ) होता था।
  • कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए सूबेदार को बक्सी ( सैनिक वेतनधिकारी ),सदर ( धार्मिक कार्यो का मंत्री ), फौजदार ( सेनानायक ) और कोतवाल ( नगर का पुलिस अधिकारी ) का सहयोग प्राप्त था।
  • अकबर ने अबुल फजल की मदद से सुलह-ए-कुल ( सर्वत्र शांति ) के विचार को अपनाया।
    1. इसका केंद्र बिंदु सचाई, न्याय और शांति पर बल था।
    2. उसने इसी पर आधारित सभी धर्मो का समान आदर करने वाली शासन दृष्टि को अपनाया।

सत्रहवीं सताब्दी में और उसके पश्चात मुग़ल साम्राज्य

  • मुग़ल साम्राज्य आर्थिक और वाणिज्यिक समृद्धि में वृद्धि हुई वही दरिद्रता और सामाजिक असमानताए भी साफ दिखाई पड़ती है।
  • शाहजहाँ के शासनकाल के बीसवें वर्ष के दस्तावेजों से हमें पता चलता है कि ऐसे मनसबदार, जिनको उच्चतम पद प्राप्त था, कुल 8000 में 445 ही थे।
    • कुल मनसबदारो की एक छोटी संख्या 6% को ही साम्राज्य का 61.5% वेतन दिया जाता था।
  • मुग़ल सम्राट और उनके मनसबदार अपने वेतन का बड़ा भाग वस्तुओ पर लगा देते थे इसे शिल्पकारों और किसानो का लाभ होता था। परन्तु राजस्व का भार अधिक होने से प्राथमिक उत्पादकों ( किसान और शिल्पकारों ) के पास बहुत कम बचता था।
  • सत्रहवीं के अंत तक मुग़ल साम्राज्य विभिन्न प्रांतो में बट गया फ़लस्वरूप अनेक स्वतन्त्र प्रांतो का उभरना हुआ।

अन्यत्र-मुगलो के समकालीन शासक

  • ऑटोमन तुर्की के सुल्तान सुलेमान ( 1520-1566 ) मुगलों के समकालीन थे। जिनके साम्राज्य का विस्तार यूरोप तक था। सुलेमान ने हंगरी को राज्य में मिलाया ,ऑस्ट्रिया को घेरा , बगदाद और ईराक को भी हथिया लिया।  सम्राट को ‘अल-क़ानूनी ( विधिनिर्माता ) का ख़िताब दिया गया।
  • अकबर के समकालीन शासक -इंगलैंड की रानी – एलिजाबेथ ( 1558-1603 ), ईरान का सफ़विद शासक शाह अब्बास ( 1588-1629 ), रुसी शासक जार ईवान चतुर्थ बेसिलायेविच ( 1530-1584 )

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