अध्याय-10: अठारहवीं शताब्दी में नए राजनीतिक गठन
- 1765 तक ब्रिटिश सत्ता ने पूर्वी भारत के बड़े हिस्से को हड़प लिया।
- 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद नई राजनीतिक शक्तियों का उदय हुआ।
- औरंगजेब ने दक्कन में 1689 से लम्बी लड़ाई लड़ते हुए साम्राज्य के सैन्य और वित्तीय संसाधनों को बहुत अधिक खर्च कर दिया।
- औरंगजेब के शासनकाल में सूबेदार के रूप में नियुक्त अभिजात अक्सर राजस्व और सैन्य प्रशासन( दिवानी एवं फुअज्दारी ) दोनों कार्यालयों पर नियंत्रण रखते थे।
- नोट-1 1739 में ईरान के शासक नादिरशाह ने दिल्ली पर आक्रमण कर सम्पूर्ण नगर लूटा।
- नोट-2 अफगानी शासक अहमदशाह अब्दाली ने 1748-1761 के बीच पाँच बार उत्तरी भारत पर आक्रमण किया और लूटपाट मचाई ( 1713-1754 ) और शाह आलम द्वितीय ( 1754-1759 ) की हत्या और दो अन्य बादशाहों, अहमदशाह ( 1748-1754 ) और शाह आलम द्वितीय को उनके अभिजातों ने अँधा कर दिया।
- अठारहवीं शताब्दी के दौरान मुग़ल साम्राज्य कई स्वतन्त्र क्षेत्रीय राज्यों में बट गया जिन्हे तीन समूहों में बांटा जा सकता है-
- a) अवध, बंगाल और हैदराबाद जैसे वे राज्य जो पहले मुग़ल प्रान्त थे ( पुराने मुग़ल राज्य )
- b) वतन जागीरें
- c) मराठों , सिक्खों तथा जाटों के राज्य।
हैदराबाद –
- संस्थापक निजाम-उल-मुल्क आसफ जाह ( 1724-1748 )
- आसफ जाह मुग़ल बादशाह फर्रुखसियर के दरबार का शक्तिशाली सदस्य था।
- आसफ जाह को अवध की सूबेदारी सौंपी गई थी। और बाद में दक्कन का कार्यभार दिया गया।
- आसफ जाह ने दक्कन के विद्रोहों और दरबार की प्रतिस्पर्धा का फायदा उठाकर हैदराबाद का स्वतत्र शासक बन गया।
- आसफ जाह ने मनसबदार नियुक्त किए और इन्हे जागीरे प्रदान करि।
- हैदराबाद राज्य पश्चिम की ओर मराठों और पठारी क्षेत्र के तेलगू सेनानायको से युद्ध में सदा संलग्न रहता था।
- आसफ जाह ने कोरोमंडल तट के वस्त्रोत्पादक धन संपन्न क्षेत्र को नियंत्रण में लेने का प्रयास किया परन्तु ब्रिटिश शक्ति ने उसे रोक दिया।
अवध- ( संस्थापक-बुरहान उल-मुल्क सआदत खान )
- सआदत खान को 1722 में अवध का सूबेदार नियुक्त किया गया था।
- अवध एक समृद्ध शाली प्रदेश था, जो गंगा नदी के उपजाऊ मैदान में फैला हुआ था और उत्तरी भारत तथा बंगाल के बीच व्यापार का मुख्य मार्ग उसी में से होकर गुजरता था।
- सआदत खान ने अवध में मुगलो का प्रभाव कम करने के लिए मुगलो द्वारा नियुक्त अधिकारीयों की संख्या में कटौती कर दी।
- उसने अनेक राजपूत जमींदारियों और रुहेलखंड के अफगानो की उपजाऊ कृषि भूमियों जो अपने राज्य में मिला लिया।
- सआदत खान ऋण प्राप्त करने के लिए स्थानीय सेठ , साहूकारों और महाजनों पर निर्भर रहता था।
- वह राजस्व का ठेका सबसे ऊँची बोली लगाने वाले इजारेदार को देता था।
बंगाल – संस्थापक मुर्शीद कुली खान
- मुर्शीद कुली खान बंगाल का नायब था ( प्रान्त के सूबेदार के प्रतिनियुक्त )
- a) मुर्शीद कुली खान औपचारिक रूप से सूबेदार कभी नहीं बना।
- बंगाल के राजस्व का बड़े पैमाने पर पुनर्निधारण किया।
- उसके द्वारा जमींदारों से कठोरता से राजस्व नगद वसूल किया जाता था।
- a) बहुत से जमींदारों को राजस्व चुकाने के लिए महाजनों तथा साहूकारों से उधर लेना पड़ता था। जो लोग राजस्व का भुगतान नहीं कर पाते थे उन्हें अपनी जमीने बड़े जमीदारों को बेचनी पड़ती थी।
- नोट- इजारेदारी की प्रथा जो मुगलों द्वारा पूर्णतः नापसंद की गई थी , अठारहवीं शताब्दी में समस्त भारत में फ़ैल गई।
- नोट-2 अलीवर्दी खान के शासन कल ( 1740-1756 ) में राज्य और साहूकारों के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध रहे। उसके शासनकाल में जगत सेठ का साहूकार घराना अत्यंत समृद्धिशाली हो गया।
राजपूतों की वतन जागीरें –
- अम्बर और जोधपुर के राजघराने मुग़ल व्यवस्था में सेवारत रहे थे।
- जोधपुर के राजा अजीत सिंह को गुजरात की सूबेदारों और अम्बर के राजा जयसिंह को मालवा की सूबेदारी मिल गई।
- बादशाह जहांदार शाह ने 1713 में इन राजाओं के इन पदों का नवीनीकरण कर दिया।
- जोधपुर राजघराने ने नागौर को जीत लिया , वही अम्बर ने भी बूंदी के बड़े-बड़े हिस्सों पर अपना कब्ज़ा कर लिया।
- सवाई राजा जय सिंह ने जयपुर में अपनी नई राजधानी स्थापित की और 1722 में उसे आगरा की सूबेदारी मिल गई।
- 1740 के दशक से राजस्थान में मराठों के अभियानों से इन रजवाड़ों का विस्तार रुक गया।
- नोट- 1732 के फारसी वृत्तांत के अनुसार राजा जय सिंह 12 वर्ष के लिए वे आगरा के सूबेदार रहे और पांच से छः वर्ष के लिए मालवा के।
सिक्ख-द
- सत्रहवीं शताब्दी के दौरान सिक्ख एक राजनैतिक समुदाय के रूप में गठित हो गए।
- गुरु गोविन्द ने 1699 में खालसा पंथ की स्थापना से पूर्व और उसके पश्चात् राजपूत व मुग़ल शासकों के खिलाफ कई लड़ाइयाँ लड़ी।
- 1708 में गुरु गोविन्द सिंह की मृत्यु के बाद बंदा बहादुर के नेतृत्व में ‘ खालसा ‘ ने मुग़ल सत्ता के खिलाफ विद्रोह किए।
- a) उसने गुरुनानक और गुरु गोविन्द सिंह के नामो वाले सिक्के गढ़कर अपने शासन को सार्वभौम बताया।
- b) 1715 में बंदा बहादुर को बंदी बना लिया गया और उसे 1716 में मार दिया गया।
- अठारहवीं शताब्दी में सिक्खों ने अपने आप को पहले जत्थों में और बाद में ‘ मिस्लों ‘ में संगठित किया।
- a) इन जत्थो और मिस्लों की संयुक्त सेनाएं दल खालसा कहलाती थी।
- b) दल खालसा, बैसाखी और दीवाली पर अमृतसर में मिलता था।
- c) इन बैठकों में सामूहिक निर्णय लिए जाते थे जिन्हे गुरमत्ता ( गुरु के प्रस्ताव ) कहा जाता था।
- सिक्खों ने राखी व्यवस्था स्थापित की जिसके अंतर्गत किसानों से उनकी उपज का 20 प्रतिशत कर के रूप में लेकर बदले में उन्हें संरक्षण प्रदान किया जाता था।
- खालसा ने मुग़ल सूबेदारों व अहमदशाह अब्दाली का विरोध किया।
- नोट- अहमदशाह अब्दाली ने मुगलो से पंजाब का समृद्ध प्रान्त और सरहिंद की सरकार को अपने कब्जे में कर लिया था।
- खालसा ने 1765 में अपना सिक्का गढ़कर सार्वभौम में शासन की घोषणा की।
- a) सिक्के पर उत्कीर्ण शब्द वही थे जो बंदा बहादुर के समय में खालसा के आदेशों में पाए जाते है।
- महाराजा रणजीत सिंह ने विभिन्न सिक्ख समूहों में फिर से एकता कायम करके लाहौर को अपनी राजधानी बनाया।
मराठा-
- शिवाजी ( 1627-1680 ) ने शक्तिशाली योद्धा परिवारों ( देश मुखों ) की सहायता से एक स्थाई राज्य की स्थापना की।
- कृषक -पशुचारक ( कुनबी ) मराठो की सेना के मुख्य आधार बन गए।
- शिवाजी की मृत्यु ( 1680 ) के पश्चात् , मराठा राज्य में प्रभावी शक्ति , चितपावन ब्राम्हणों के एक परिवार के हाथ में रही।
- a) ये ( चितपावन ब्राम्हण ) शिवाजी के उत्तराधिकारियों के शासनकाल में ‘पेशवा ‘ ( प्रधानमंत्री ) के रूप में अपनी सेवाएं देते रहे।
- पुणे मराठा राज्य की राजधानी बना।
- पेशवा मुगलों की किले पर हमले न करके चुपचाप शहरों और कस्बे पर हमला बोलते थे।
- 1720 के दशक तक इन्होने मुगलो से मालवा और गुजरात छीन लिया।
- 1730 दशक तक मराठा नरेश को समस्त दक्कन प्रायद्वीप में अधिपत्य हो गया साथ ही इस क्षेत्र पर चौथ और सरदेशमुखी कर वसूलने का अधिकार भी मिल गया।
- चौथ-जमीदारों द्वारा वसूले जाने वाले भूराजस्व का 25 प्रतिशत। दक्कन में इसको मराठा वसूलते थे।
- सरदेशमुखी-दक्कन के मुख्य राजस्व संग्रहकर्ता को दिए जाने वाले भू-राजस्व का 9-10 प्रतिशत हिस्सा।
- 1739 में दिल्ली पर धावा वोलने के बाद मराठा प्रभुत्व की सीमाएं तेजी से बढ़ी।
- a) ये उत्तर में राजस्थान और पंजाब ,पूर्व में बंगाल और उड़ीसा तथा दक्षिण में कर्नाटक और तमिल एवं तेलगू प्रदेशों तक फ़ैल गई। ( औपचारिक रूप से मराठा साम्राज्य में सम्मिलित नहीं किया था लेकिन यहाँ से भेट की रकम ली जाने लगी )
- 1761 में पानीपत की तीसरी लड़ाई में अन्य शासकों से कोई सहायता नहीं मिली।
- मराठों ने प्रभावी शासन व्यवस्था के अंतर्गत कृषि को प्रोत्शाहित और व्यापार को पुनर्जीवित किया।
- a) इससे सिंधिया, गायकवाड़ और भोसले जैसे मराठा सरदारों को शक्तिशाली सेनाएं खड़ी करने के लिए संसाधन मिले।
- उज्जैन सिंधिया के संरक्षण में और इंदौर होल्कर के में आश्रय में फलता-फूलता रहा।
- मराठों द्वारा नियंत्रित इलाकों में व्यापार के नए मार्ग खुले।
- a) जैसे-चंदेरी के रेशमी वस्त्रों को मराठों की राजधानी पूणे में नया बाजार मिला।
- b) बुरहानपुर पहले आगरा और सूरत के बीच लेकिन अब दक्षिण में पूणे और नागपुर को तथा पूर्व में लखनऊ एवं इल्लाहाबाद को शामिल कर लिया था।
जाट-
- चूड़ामल में नेतृत्व में दिल्ली के पश्चिमी क्षेत्रो पर नियंत्रण।
- 1680 के दशक तक दिल्ली और आगरा पर प्रभुत्व।
- जाट , समृद्ध कृषक थे उनके प्रभुत्व क्षेत्र में पानीपत तथा बल्लभगढ़ जैसे शहर महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र बन गए।
- सूरजमल के राज्य में भरतपुर शक्तिशाली राज्य के रूप में उभरा।
- a) 1739 में नादिरशाह के दिल्ली पर आक्रमण के समय कई प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने भरतपुर में शरण ली।
- डीग में जाटों ने अम्बर और आगरा की शैलियों का समन्वय करते हुए एक विशाल बाग-महल बनवाया।
अन्यत्र-( फ़्रांसिसी क्रांति
- अमरीकी ( 1776-1781 ) और क्रांतियों ने अभिजात वर्ग के सामाजिक व राजनितिक प्राधिकारों को चुनौती दी।
- उनका मानना था कि समाज में किसी भी समूह के जन्मसिद्ध प्राधिकार नहीं होने चाहिए , बल्कि लोगों की सामाजिक स्थिति योग्यता पर निर्भर करनी चाहिए।
- फ़्रांसिसी और अमीरीकी क्रांतियों ने धीरे-धीरे प्रजाओं को नागरिको में बदल डाला।