अध्याय-8 : “देशी जनता” को सभ्य बनाना राष्ट्र को शिक्षित करना
अंग्रेजों का भारतीय शिक्षा के प्रति दृष्टिकोण
- सन 1783 में विलियम जोन्स कलकत्ता आए। उन्हें ईस्ट इंडिया कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट में जूनियर जज के पद पर तैनात किया।
- ये कानून विद होने के साथ-साथ भाषा विद भी थे।
- इन्होने ऑक्सफ़ोर्ड में ग्रीक और लैटिन का अध्ययन और इसके अलावा फ्रेंच,अरबी,फारसी व संस्कृत का भी ज्ञान था।
- हैनरी टॉमस कोलब्रुक और नैथेनियल हॉलडेड भारतीय भाषाएँ सीख कर संस्कृत व फारसी रचनाओं का अंग्रेजी में अनुवाद कर रहे थे।
- इनलोगो के साथ मिलकर जॉन्स ने एसियाटिक सोसायटी ऑफ़ बंगाल का गठन किया और एसियाटिक रिसर्च नामक शोधपत्र का प्रकाशन शुरू किया।
- 1781 में अरबी, फारसी, इस्लामिक कानून के अध्ययन को बढ़ावा देने के लिए कलकत्ता में एक मदरसा खोला गया।
- 1791 में बनारस में हिन्दू कॉलेज की स्थापना की गयी।
- उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में बहुत सारे अंग्रेज अफसर शिक्षा के प्राच्यवादी ज्ञान को त्रुटियों से भरा अवैज्ञानिक मानते थे।
- जेम्स मिल ने सुझाव दिया कि शिक्षा के जरिए उपयोगी व व्यावहारिक चीजों का ज्ञान दिया जाए एवं भारतीयों को पश्चिमी वैज्ञानिक सफलताएँ पढ़ाई जाए।
- 1830 के दशक ने थॉमस बैबिंगटन मैकॉले ने कहा ” एक अच्छे यूरोपीय पुस्तकालय का केवल एक खाना ही भारत और अरब के समूचे देशी साहित्य के बराबर है”।
- मैकॉले ने भारतीयों को अंग्रेजी भाषा में शिक्षा देने पर बल दिया।
- मैकॉले के मिनट्स ( विवरण ) के आधार पर 1835 का अंग्रेजों का शिक्षा अधिनियम पारित किया गया।
- साथ ही यह फैसला लिया गया कि अंग्रेजी को उच्च शिक्षा का माध्यम और कलकत्ता मदरसे तथा बनारस संस्कृत कॉलेज जैसी प्राच्यवादी संस्थानों को प्रोत्साहन न दिया जाए।
- इन संस्थानों को “अपने आप क्षरण का शिकार होते जा रहे अंधकार के मंदिरों “की संज्ञा दी गयी।
वुड डिस्पैच /घोषणापत्र ( वुड का नीतिपत्र 1854 में )
- 1854 में ईस्ट इंडिया कंपनी के लन्दन स्थित कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स ने भारतीय गवर्नर जनरल को शिक्षा के विषय में एक नोट भेजा।
- इसे कंपनी के नियंत्रण मंडल के अध्यक्ष चार्ल्स वुड के नाम से जारी किया।
- इस दस्तावेज में यूरोपीय शिक्षा का एक व्यावहारिक लाभ आर्थिक क्षेत्र में बताया गया था।
- वुड के नीतिपत्र में यह तर्क भी दिया गया था कि यूरोपीय शिक्षा से भारतीय नैतिकत चरित्र का उत्थान होगा।
- 1854 के नीतिपत्र के बाद सरकारी शिक्षा विभागों का गठन व विश्वविद्यालय शिक्षा विकसित करने के लिए भी कदम उठाए गए।
- 1857 के सिपाही विद्रोह के समय कलकत्ता , मद्रास व बम्बई विश्वविद्यालयों की स्थापना की जा रही थी।
नोट-
- ईसाई प्रचारकों ने तर्क दिया कि नैतिकता उत्थान ईसाई शिक्षा के द्वारा ही संभव है।
- ईसाई प्रचारकों ने सेरामपुर ( कलकत्ता ) में अपना पहला मिशन खोला -( विलियम कैरे की मदद से )
- सेरामपुर डेनिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के नियंत्रण में आता था।
- वर्ष 1800 में एक छापाखाना लगाया गया और 1818 में एक कॉलेज खोला गया।
स्थानीय पाठशालाओं का क्या हुआ ?
विलियम एडम की रिपोर्ट –
- 1830 के दशक में स्कॉटलैण्ड से आए ईसाई प्रचारक विलियम एडम ने बंगाल और बिहार का दौरा किया।
- एडम ने पाया की बंगाल और बिहार में एक लाख से ज्यादा पाठशालाएँ है। ये बहुत छोटे-छोटे केंद्र थे जिनमे आमतौर पर 20 से ज्यादा विद्यार्थी नहीं होते थे।
- ये पाठशालाएँ सम्पन्न लोगो या स्थानीय समुदाय द्वारा चलाई जाती थी। कई पाठशालाएँ गुरु द्वारा ही प्रारम्भ की गई थी।
- शिक्षा का तरीका काफी लचीला था न इनमे बच्चे की फ़ीस निश्चित थी ,न ही किताबें, न ही ईमारत,न ही बेंच कुर्सियाँ और न ही ब्लैक बोर्ड होते थे।
- इन पाठशालाओं में अलग से कक्षाएँ लेने, बच्चों की हाजरी व सालाना इम्तिहान और समय सारणी की कोई व्यवस्था नहीं थी।
- शिक्षा का माध्यम मौखिक था।
नई शिक्षा दिनचर्या व नए नियम –
- उन्नीसवीं सदी के मध्य तक कंपनी का ध्यान मुख्य रूप से उच्च शिक्षा पर था। परन्तु 1854 के बाद कम्पनी ने देशी शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाने का फैसला लिया।
- सबसे पहले कम्पनी ने बहुत सारे पंडितों को सरकारी नौकरी पर रख लिया। और प्रत्येक पंडित को 4-5 स्कूलों की देखरेख का जिम्मा सौंपा जाता था।
- प्रत्येक गुरु को निर्देश दिया गया कि वे समय-समय पर स्कूल रिपोर्ट भेजे, कक्षाओं को नियमित समय-सारणी के अनुसार पढ़ाएं , अध्यापन पाठ्यपुस्तकों से कराएं और विद्यार्थियों की प्रगति मापने के लिए वार्षिक परीक्षाएँ करायी जाए।
- विद्यार्थियों से कहा गया कि वे नियमित रूप से शुल्क दे , नियमित रूप से कक्षा में आए , तय सीट पर बैठे और अनुशासन के नियमों का पालन करें।
- नए नियमों पर चलने वाली पाठशालाओं को सरकारी अनुदान मिलने लगे।
महात्मा गाँधी के अंग्रेजी शिक्षा के प्रति विचार –
- महात्मा गाँधी का कहना था कि औपनिवेशिक शिक्षा ने भारतीयों के मस्तिष्क में हीनता का बोध पैदा कर दिया है।
- गाँधी की मान्यता थी कि शिक्षा केवल भारतीय भाषा में ही दी जानी चाहिए। अंग्रेजी में दी जा रही शिक्षा भारतीयों को “अपनी ही भूमि पर अजनबी “बना दिया है।
टैगोर का शांतिनिकेतन-
- रविंद्र नाथ टैगोर ने यह संस्था 1901 में शुरू की थी।
- वह अंग्रेजों द्वारा स्थापित की गई शिक्षा व्यवस्था के कड़े और बंधनकारी अनुशासन से मुक्त होने के समर्थक थे।
- टैगोर का मानना था कि सृजनात्मक शिक्षा को केवल प्राकृतिक परिवेश में ही प्रोत्साहित किया जा सकता है।
- गाँधी पश्चिमी सभ्यता और मशीनों व प्रौद्योगिकी के कट्टर आलोचक थे वही टैगोर आधुनिक पश्चिमी सभ्यता और भारतीय परम्परा के श्रेष्ठ तत्वों का सम्मिश्रण चाहते थे।