समाचार में क्यों?
भारत में समर्थन पाने के बावजूद, जीएम फसल ने केवल मामूली लाभ ही दिया है
भारत में कपास की खेती:
- कपास भारत के सबसे महत्वपूर्ण तंतुओं और नकदी फसलों में से एक है और देश की औद्योगिक और कृषि अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख भूमिका निभाता है।
- भारत में कपास 6 मिलियन किसानों को प्रत्यक्ष आजीविका प्रदान करता है और लगभग 40 – 50 मिलियन लोग कपास व्यापार और इसके प्रसंस्करण में कार्यरत हैं।
कृषि–पारिस्थितिक क्षेत्र, निम्नानुसार हैं: –
- ) उत्तरी क्षेत्र – पंजाब, हरियाणा और राजस्थान
- ii) मध्य क्षेत्र – गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश
- iii) दक्षिणी क्षेत्र – तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक।
बीटी कपास
- बीटी कपास (Bt-Cotton) को मिट्टी में पाए जाने वाले जीवाणु बैसीलस थूरीनजिएंसिस से जीन निकालकर निर्मित किया गया है।
- इस जीन को ‘Cry 1AC’ नाम दिया गया है।
- यह कीटों के प्रति प्रतिरोधकता पैदा करता है जिससे कीटनाशकों के उपयोग की आवश्यकता नहीं रहती है।
- बीटी की कुछ नस्लें ऐसे प्रोटीन का निर्माण करती हैं जो कुछ विशिष्ट कीटों को समाप्त करने में सहायक है।
किस फसल को बोने की अनुमति है?
बीटी कपास देश में एकमात्र जीएम फसल है जिसकी खेती करने की अनुमति है।
GEAC की भूमिका:
भारत में, आनुवंशिक रूप से संशोधित पौधे की सुरक्षा का आकलन करना पर्यावरण मंत्रालय के तहत जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) की जिम्मेदारी है, और यह तय करता है कि यह खेती के लिए उपयुक्त है या नहीं।
GEAC में विशेषज्ञ और सरकारी प्रतिनिधि शामिल हैं, और किसी भी फसल की खेती के लिए अनुमति देने से पहले यह निर्णय पर्यावरण मंत्री द्वारा अनुमोदित होना चाहिए।
बीटी कपास के अलावा, GEAC ने दो अन्य आनुवांशिक रूप से संशोधित फसलों – बैंगन और सरसों – को मंजूरी दे दी है, लेकिन इन्हें पर्यावरण मंत्री की सहमति प्राप्त नहीं हुई है।
कानून क्या कहता है?
कानूनी रूप से, बिना सुरक्षा के जीएम बीजों की बिक्री, भंडारण, परिवहन और उपयोग पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1989 के नियमों के तहत दंडनीय अपराध है। बीज अधिनियम, 1966 और कपास अधिनियम, 1957 के तहत गैर-अनुमोदित बीजोजों की बिक्री के लिए भी कार्रवाई की जा सकती है। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन पर पांच साल का कारावास और 1 लाख रुपये तक का जुर्माना और अन्य दो अधिनियमों के तहत मामले दर्ज किए जा सकते हैं।
भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों की कानूनी स्थिति:
- भारत में, ‘जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति’ (Genetic Engineering Appraisal Committee -GEAC) पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत स्थापित सांविधिक निकाय है जो जीएम फसलों के वाणिज्यिक उत्पादन के लिये अनुमति प्रदान करता है।
- वर्ष 2002 में, GEAC ने बीटी कॉटन के वाणिज्यिक उत्पादन की अनुमति दी थी। तब से अब तक देश का 95% से अधिक कपास क्षेत्र तब से बीटी कपास के अंतर्गत आ गया है।
- गैर कानूनी रूप से जीएम संस्करण फसलों/बीज़ों का उपयोग करने पर पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत 5 वर्ष की जेल की सज़ा तथा 1 लाख रुपये का जुर्माना आरोपित किया जा सकता है।
किसानों द्वारा जीएम- फसलों फसलों की बुआई करने का कारण:
- किसानों का ऐसा कहना है कि बीटी कपास का प्रयोग करने से कीटनाशकों एवं इसकी निराई पर आने वाली लागत को कम किया जा सकता है।
- जीएम फसलेंसूखा-रोधी और बाढ़-रोधी होने के साथ कीट प्रतिरोधी भी होती हैं।
- शाकनाशी सहिष्णु कपास का प्रयोग करने से इसमें मौज़ूद हर्बिसाइड ग्लाइफोसेट के कारण खरपतवार हटाने पर लगने वाले खर्च में कमी आती है।
- हरियाणा जैसे राज्यों में बीटी बैंगन का क्षेत्र काफी अधिक है जिसका मुख्य कारण इस पर आने वाली लागत तथा कीटनाशकों पर लगने वाले खर्च का कम होना है।
- ये बीज साधारण बीज से अधिक उपज प्रदान करते है।
GM फसलों के लाभ
- यह बीज साधारण बीज से कहीं अधिक उत्पादकता प्रदान करता है।
- इससे कृषि क्षेत्र की कई समस्याएँ दूर हो जाएंगी और फसल उत्पादन का स्तर सुधरेगा।
- जीएम फसलें सूखा-रोधी और बाढ़-रोधी होने के साथ कीट प्रतिरोधी भी होती हैं।
- जीएम फसलों की यह विशेषता होती है कि अधिक उर्वर होने के साथ ही इनमें अधिक कीटनाशकों की ज़रूरत नहीं होती।
जीएम फसलों के नुकसान
भारत में इन फसलों का विरोध करने के कई कारण हैं…
- जीएम फसलों की लागत अधिक होती है, क्योंकि इसके लिये हर बार नया बीज खरीदना पड़ता है।
- बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के एकाधिकार के कारण किसानों को महँगे बीज और कीटनाशक उनसे खरीदने पड़ते हैं।
- इस समय हाइब्रिड बीजों पर ज़ोर दिया जा रहा है और अधिकांश हाइब्रिड बीज(चाहे जीएम हों अथवा नहीं) या तो दोबारा इस्तेमाल लायक नहीं होते और अगर होते भी हैं तो पहली बार के बाद उनका प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं होता।
- इसे स्वास्थ्य, पर्यावरण तथा जैव विविधता के लिये हानिकारक माना जाता है।
- भारत में इस प्रौद्योगिकी का विरोध करने वालों का कहना है कि हमारे देश में कृषि में काफी अधिक जैव विविधता है, जो जीएम प्रौद्योगिकी को अपनाने से खत्म हो जाएगी।
GM फसलों से सम्बंधित विवादों का समाधान –
- आनुवांशिक रूप से संशोधित सूक्ष्म जीवों और उत्पादों के कृषि में उपयोग को स्वीकृति प्रदान करने वाली जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) की शक्तियाँ बढ़ाई जाएँ तथा उसे निर्णय लेने हेतु और अधिक स्वायत्ता दी जाए।
- जीएम फसलों को मंज़ूरी उनके सामाजिक-आर्थिक व स्वास्थ्य पर प्रभाव के मूल्यांकन के बाद ही दी जानी चाहिये।
- GM फसलों को अपनाने वाले कृषकों के हितों की रक्षा हेतु उचित नीतियाँ अपनाई जानी चाहिये।