पंचायती राज में प्रमुख मुद्दे
Q-पंचायती राज में प्रमुख मुद्दे क्या हैं और महत्वपूर्ण सुझाव सुझाएं
- भारत के 15वें राष्ट्रपति
- अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदाय से संबंधित पहली व्यक्ति और देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर कब्जा करने वाली दूसरी महिला
- राष्ट्रपति के रूप में चुने जाने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति और स्वतंत्र भारत में जन्म लेने वाले पहले व्यक्ति
- संथाल जनजाति: भारत में सबसे बड़े एसटी समुदायों में से एक
- दिसंबर 1992, संसद ने 73वां और 74वां संशोधन पारित किया
- संशोधन हजारों दलित और आदिवासी महिलाओं के लिए एक मंच प्रदान करते हैं
- इन संवैधानिक सुधारों के पारित होने के लगभग 30 साल बाद, स्थानीय सरकारें अभी भी संशोधनों के डिजाइन और कार्यान्वयन दोनों में मुद्दों के कारण “स्व-सरकार की इकाइयाँ” शक्तिशाली नहीं बन पाई हैं।
- 20 राज्यों ने महिला आरक्षण को 33% से बढ़ाकर 50% कर दिया है।
- सितंबर 2020 तक, भारत भर की पंचायतों में कुल 31,87,320 निर्वाचित प्रतिनिधियों में से 14,53,973 महिलाएं हैं।
क्या दिक्कतें हैं पंचायती राज के साथ
- धन की कमी:पंचायती राज संस्थाओं में धन की कमी होना, जिसके लिए वह पूरी तरह राज्य सरकारों पर निर्भर थी। इस दिक्कत ने पूरे प्रयास को असफल बना दिया।
- पदाधिकारियों के बीच आपसी वैमनस्यता:पंचायती राज संस्थाओं के सदस्यों के बीच कार्यों को लेकर बड़ी भिन्नता है और एक-दूसरे को दोषारोपण करना आम बात बन गई है। संस्थाओं के वरिष्ठ तथा कनिष्ठ पदाधिकारियों के बीच भी आंतरिक मतभेद बने रहते हैं।
- पंचायती व्यवस्था में अनावश्यक राजनितिक हस्तक्षेप:स्थानीय विधायक और सांसदों, साथ ही, समाज के उच्च वर्ग मसलन जमींदारों और ऊँचे तबके के लोगों के कब्जे में आकर पंचायती राज व्यवस्था ने अपना वज़ूद ही खो दिया।
- साक्षरता और राजनीतिक जागरूकता की कमी:गांवों में निरक्षरों की भरमार और राजनीतिक जागरूकता की कमी के चलते पंचायती राज का असल मक़सद पूरा होता नहीं दिख रहा है।
- पंचायती राज संस्थाओं में तदर्थवाद (Adhocism) कीउपस्थिति है, अर्थात् ग्राम सभा और ग्राम समितियों की बैठक में एजेंडे की स्पष्ट व्यवस्था की कमी होती है और कोई उपयुक्त संरचना मौजूद नहीं है।
- पंचायतों के कार्यकलाप में क्षेत्रीय सांसदों और विधायकों के हस्तक्षेप ने ही उनके कार्य निष्पादन को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है।
- 73वें संविधान संशोधन ने केवल स्थानीय स्वशासी निकायों के गठन को अनिवार्य बनाया जबकि उनकी शक्तियों, कार्यो व वित्तपोषण का उत्तरदायित्व राज्य विधानमंडलों को सौंप दिया दिया, जिसके परिणामस्वरूप पंचायती राज संस्थाओं की विफलता की स्थिति बनी है।
- राजस्व सृजन का एक दूसरा माध्यम अंतर–सरकारी हस्तांतरण है, जहाँ राज्य सरकारें अपने राजस्व का एक निश्चित प्रतिशत पंचायती राज संस्थाओं को सौंपती हैं। संवैधानिक संशोधन ने राज्य और स्थानीय सरकारों के बीच राजस्व की साझेदारी की सिफारिश करने के लिये राज्य वित्त आयोग का उपबंध किया। लेकिन ये केवल सिफारिशें होती हैं और राज्य सरकारें इन्हें मानने के लिये बाध्य नहीं हैं।
पंचायती राज व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए सुझाव
- पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव तय समय पर कराये जाएं।
- पंचायती राज संस्थाओं को और अधिक कार्यपालिका अधिकार दिए जाएं। और साथ ही समय समय पर विश्वसनीय लेखा परीक्षा कराया जाय।
- पंचायत के नियम-काम को आसान और पारदर्शी बनाया जाय ताकि आम आदमी इसे आसानी से समझ सके।
- पंचायती राज संस्थाओं के काम में राजनीतिक दलों का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
- पंचायतों का उनके प्रदर्शन के आधार पर रैंकिंग किया जाय और उसी के अनुसार उन्हें धन आवंटित किया जाय।
- द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की 6ठीं रिपोर्ट (‘स्थानीय शासन- भविष्य की ओर एक प्रेरणादायक यात्रा’- Local Governance- An Inspiring Journey into the Future) में सिफारिश की गई थी कि सरकार के प्रत्येक स्तर के कार्यों का स्पष्ट रूप से सीमांकन होना चाहिये।
- राज्यों को ‘एक्टिविटी मैपिंग’ की अवधारणा को अपनाना चाहिये जहाँ प्रत्येक राज्य अनुसूची XI में सूचीबद्ध विषयों के संबंध में सरकार के विभिन्न स्तरों के लिये उत्तरदायित्वों और भूमिकाओं को स्पष्ट रूप से इंगित करता है।
- जनता के प्रति जवाबदेहिता के आधार पर विषयों को अलग-अलग स्तरों पर विभाजित कर सौंपा जाना चाहिये।
- कर्नाटक और केरल जैसे राज्यों ने इस दिशा में कुछ कदम उठाए हैं लेकिन समग्र प्रगति अत्यधिक असमान रही है।
- हाल ही में राजस्थान और हरियाणा जैसे राज्यों ने पंचायत चुनावों के प्रत्याशियों के लिये कुछ न्यूनतम योग्यता मानक तय किये हैं। इस तरह के योग्यता मानक शासन तंत्र की प्रभावशीलता में सुधार लाने में सहायता कर सकते हैं।
Q- INSTC के बारे में बताएं और इसके महत्व की व्याख्या करें
पृष्ठभूमि
- पिछले हफ्ते, RailFreight.Com ने बताया कि लकड़ी के टुकड़े की चादरों के दो 40-फीट कंटेनर रूस के अस्त्रखान बंदरगाह से कैस्पियन सागर को पार करते हैं, ईरान के अंजली बंदरगाह में प्रवेश करते हैं, अरब सागर की ओर अपनी दक्षिण की यात्रा जारी रखते हैं,
- बंदर अब्बास में पानी में प्रवेश किया और अंततः मुंबई में न्हावा शिव बंदरगाह पहुंचे
- कॉरिडोर àउभरते हुए यूरेशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र को मजबूत करने की उम्मीद है।
- यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की निंदा करने से भारत का इनकार।
- भारत के निर्णय को तब रूस पर उसकी सैन्य निर्भरता, कीमती तेल और गैस की खुली वैकल्पिक आपूर्ति रखने के उसके उद्देश्य और उसके गुटनिरपेक्षता की विरासत के संदर्भ में समझाया गया था।
- रूस और ईरान à पश्चिमी(western countries) सरकारों द्वारा प्रतिबंधों के अधीन हैं।
- INSTC के लिए कानूनी ढांचा 2000 में परिवहन पर यूरो-एशियाई सम्मेलन में भारत, ईरान और रूस द्वारा हस्ताक्षरित एक त्रिपक्षीय समझौते द्वारा प्रदान किया गया है।
- तब से कजाकिस्तान, बेलारूस, ओमान, ताजिकिस्तान, अजरबैजान, आर्मेनिया और सीरिया ने आईएनएसटीसी के सदस्य बनने के लिए विलय के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए हैं।
- एक बार पूरी तरह से चालू हो जाने के बाद, आईएनएसटीसी से स्वेज नहर के माध्यम से पारंपरिक गहरे समुद्र मार्ग की तुलना में माल ढुलाई लागत में 30% और यात्रा के समय में 40% की कमी आने की उम्मीद है।
अंतर्राष्ट्रीय उत्तर–दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC):
- यह सदस्य देशों के बीच परिवहन सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ईरान, रूस और भारत द्वारा सेंट पीटर्सबर्ग में 12 सितंबर, 2000 को स्थापित एक बहु-मॉडल परिवहन परियोजना है।
- INSTC में ग्यारह नए सदस्यों को शामिल करने के लिये इसका विस्तार किया गया – अज़रबैजान गणराज्य, आर्मेनिया गणराज्य, कज़ाखस्तान गणराज्य, किर्गिज़ गणराज्य, ताजिकिस्तान गणराज्य, तुर्की गणराज्य, यूक्रेन गणराज्य, बेलारूस गणराज्य, ओमान, सीरिया और बुल्गारिया (पर्यवेक्षक)।
- यह माल परिवहन के लिये जहाज़, रेल और सड़क मार्ग के 7,200 किलोमीटर लंबे मल्टी-मोड नेटवर्क को लागू करता है, जिसका उद्देश्य भारत और रूस के बीच परिवहन लागत को लगभग 30% कम करना तथा पारगमन समय को 40 दिनों के आधे से अधिक कम करना है।
- यह कॉरिडोर इस्लामिक गणराज्य ईरान के माध्यम से हिंद महासागर और फारस की खाड़ी को कैस्पियन सागर से जोड़ता है तथा रूसी संघ के माध्यम से सेंट पीटर्सबर्ग एवं उत्तरी यूरोप से जुड़ा हुआ है।
प्रभाव
- आईएनएसटीसी का एक बड़ा लाभ भारत को यह मिल सकता है कि वह इसके जरिए कई क्षेत्रों में चीन की बढ़ती उपस्थिति पर लगाम लगा सकता है
- चाबहार में भारत द्वारा विकसित किए जा रहे बंदरगाह से भारत की मध्य एशिया में भी मजबूत उपस्थिति सुनिश्चित होती है। पाकिस्तानी ग्वादर बंदरगाह के पश्चिम में महज 72 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चाबहार भारत को हिन्द महासागर क्षेत्र में चीन की उपस्थिति को प्रतिसंतुलित करने का अवसर प्रदान करता है।
- पूर्वी यूरोपीय देशों का चीन से मोहभंग होना और दूसरा , आईएनएसटीसी के प्रस्ताव डेप्ट ट्रेप डिप्लोमैसी जैसे किसी दुर्गुण से दूर हैं
- भारत अब अफगानिस्तान, मध्य एशिया और उससे आगे तक पहुंचने के लिए पाकिस्तान को बायपास कर सकता है
- INSTC एक उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे को आकार दे सकता है जो चीन के नेतृत्व वाले बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के पूर्व-पश्चिम अक्ष का पूरक हो सकता है।
- INSTC का शुभारंभ मई 2022 में आयोजित क्वाड समिट द्वारा किया गया था, जिसमें क्वाड के नेताओं ने एक स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक के सिद्धांतों पर फिर से जोर दिया।
- INSTC भारत को रूस, ईरान और मध्य एशियाई गणराज्यों के साथ घनिष्ठ सहयोग करने के लिए एक मंच प्रदान करता है।
सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र–2
विषय : स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।
एक पहेली खोलना
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, सामान्य आबादी में मंकीपॉक्स का मामला मृत्यु अनुपात ऐतिहासिक रूप से 0% से 11% तक रहा है और छोटे बच्चों में यह अधिक रहा है।
- हाल के दिनों में, मामला मृत्यु अनुपात लगभग 3% -6% रहा है।
- 2017 में, नाइजीरिया ने एक बड़े प्रकोप का अनुभव किया, जिसमें लगभग 3% मामले की मृत्यु अनुपात था।
- ब्राजील और स्पेन में मंकीपॉक्स से होने वाली मौतों में, रोगियों को एन्सेफलाइटिस और लिम्फोमा जैसे गंभीर संबद्ध सिंड्रोम होने की सूचना मिली थी, हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि वायरस ने उनके रोग के परिणाम में क्या भूमिका निभाई।
- मस्तिष्कशोथया मस्तिष्क ज्वर या इन्सेफ्लाइटिस रोग (Encephalitis) विषाणु के प्रकोप से होता है। इसमें मस्तिष्क में अत्यधिक सूजन आ जाती है।
- लिम्फोमा (Lymphoma) एक प्रकार का कैंसर है जो इम्यून सिस्टम की इंफेक्शन से लड़ने वाली कोशिकाओं में होता है। जिन्हें लिम्फोसाइट्स कहा जाता है। ये कोशिकाएं हमारे लिम्फ नोड्स (Lymph nodes), प्लीहा, थाइमस, अस्थि मज्जा (Bone marrow) और शरीर के अन्य हिस्सों में होती हैं। जब आप लिम्फोमा से ग्रस्त होते हैं, तो लिम्फोसाइट्स तेजी से बदलने लगते हैं और अनियंत्रित रूप से बढ़ने लगते हैं। ऐसी स्थिति में लिम्फोमा का खतरा बढ़ जाता है।
- मंकीपॉक्स मुख्य रूप से यौन संचरण और निकट संपर्क के माध्यम से फैलता है
- यह कोई वायुजनित रोग नहीं है
आगे का रास्ता
- भारत ने फैलने वाली बीमारी की निगरानी के लिए एक टास्क फोर्स की घोषणा की है।
- इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने वायरस के स्ट्रेन को अलग कर दिया है और वैक्सीन बनाने वालों को वैक्सीन विकसित करने के लिए आमंत्रित किया है।
- इसने डायग्नोस्टिक किट विकसित करने के प्रस्ताव भी आमंत्रित किए हैं।
सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र–2
बाधा के रूप में भाषा
- उच्च शिक्षा में भारतीय भाषाओं को बढ़ावा
- श्री अमित शाह के आह्वान के पीछे तर्क यह है कि 95% छात्र, जो अपनी मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करते हैं, उन्हें उच्च अध्ययन की खोज में नहीं छोड़ा जाना चाहिए।
- 2021-22, एआईसीटीई ने छह भारतीय भाषाओं में इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम रखने के लिए 10 राज्यों में 19 इंजीनियरिंग कॉलेजों को मंजूरी दी।
- परिषद ने एक “एआईसीटीई ट्रांसलेशन ऑटोमेशन एआई टूल” भी विकसित किया है जो 11 भारतीय भाषाओं में अंग्रेजी ऑनलाइन पाठ्यक्रमों का अनुवाद करता है।
- SWAYAM,केंद्र सरकार का एक खुला ऑनलाइन पाठ्यक्रम मंच, भारतीय भाषाओं में भी कुछ लोकप्रिय पाठ्यक्रम पेश कर रहा है
सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र–2
विषय : द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह और भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार।
Topic: एक हावी डॉलर के आसपास – रुपये के मार्ग का उपयोग करना
- भारत व्यापार को बढ़ावा देने और रुपये के लिए बेहतर स्थिति हासिल करने के लिए भू-राजनीतिक विकास का लाभ उठा सकता है
- रूस-यूक्रेन युद्ध
- पश्चिम द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंध
- हाल के दिनों में, भारत व्यापार के लिए रुपये का उपयोग करने और अन्य देशों के साथ भुगतान के निपटान में सक्रिय रुचि ले रहा है, जिसमें रूस भी शामिल है, जो अब प्रतिबंधों का सामना कर रहा है।
- भारत द्वारा रूस के साथ भुगतान का निपटान, विशेष रूप से खनिज ईंधन और तेल आयात के साथ-साथ एस-400 ट्रायम्फ वायु रक्षा प्रणाली के लिए है। à रुपये के भुगतान के माध्यम से
- विदेशी मुद्रा प्रबंधन (जमा) विनियम, 2016 के विनियम 7(1) के अनुसार रुपये में भुगतान के विकल्प पहले से ही कानूनी थे।
संभावित लाभ
- इन व्यवस्थाओं में भारत वर्तमान में जिन लाभों की तलाश कर रहा है, उनमें उच्च कीमत वाले डॉलर में लेनदेन से बचना शामिल है, जिसका विनिमय मूल्य ₹80 है, मुद्रास्फीति के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करना, पूंजी उड़ान (फेड द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी और संभावित बढ़ोतरी से प्रभावित) यूरोपीय संघ भी) और सितंबर 2021 से विदेशी मुद्रा भंडार में 70 अरब डॉलर की गिरावट आई है।
- मूल्यह्रास रूबल और छूट पर तेल खरीदना न केवल लागत-बचत है, बल्कि भूमि, समुद्र और हवाई मार्गों का उपयोग करके बहु-मोडल मार्गों के उपयोग के साथ परिवहन समय भी बचाता है।
- इसके अलावा, भारत प्रतिबंधों से प्रभावित रूस में व्यापार विस्तार की उम्मीद कर रहा है (जिसके कारण वहां मंदी और गैर-औद्योगिकीकरण हो रहा है)।
- रूस के साथ भारत का व्यापार घाटा होने के साथ, जो पिछले दो वित्तीय वर्षों में औसतन लगभग 52 बिलियन डॉलर रहा है, भारत के अवसरों में भारत से अतिरिक्त खरीद के लिए रूसी बैंकों में वोस्त्रो रुपया खाते में अधिशेष का रूस द्वारा संभावित उपयोग शामिल है। .
- इस तरह की खरीद में न केवल फार्मास्युटिकल उत्पाद और विद्युत मशीनरी (जो वर्तमान में रूस को भारत के निर्यात की प्रमुख वस्तुएं हैं) शामिल हो सकते हैं, बल्कि उन उत्पादों की एक श्रृंखला भी हो सकती है जिनकी रूस को आवश्यकता हो सकती है,
कुछ बाधाएं
- रुपये और रूबल (R-R), दो अस्थिर मुद्राओं के बीच एक सहमत विनिमय दर से संबंधित मुद्दों के अलावा, निजी पार्टियों (कंपनियों, बैंकों) की व्यापार और बस्तियों के लिए रुपये को स्वीकार करने की इच्छा का भी सवाल है।
- अंत में, प्रतिक्रियाओं के लिए आधिकारिक चिंताएं हैं, विशेष रूप से यू.एस. से, सौदों के लिए, विशेष रूप से एस-400 रक्षा उपकरणों की खरीद के लिए।
- चीनी आक्रमण की पृष्ठभूमि
- इसके अलावा, भारत और रूस के बीच सौदों, विशेष रूप से तेल पर, पश्चिम द्वारा ‘अप्रत्यक्ष बैक डोर सपोर्ट’ के रूप में माना जा सकता है – क्योंकि भारत 30% छूट पर रूसी कच्चे तेल का आयात कर रहा है, गुजरात में रिफाइनरियों में प्रसंस्करण जिसमें रिलायंस शामिल है, और फिर निर्यात करना जो पश्चिम की ओर हैं।
Q- मुफ्तखोरी के फायदे और नुक्सान पर चर्चा करे
‘मुफ्तखोरी‘ के मुद्दे को समझना
- अधिकांश कल्याणकारी योजनाएं मानव विकास परिणामों में सुधार करने में योगदान करती हैं, जिसके परिणामस्वरूप उच्च विकास भी होता है
- प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने युवाओं को ‘रेवड़ी संस्कृति’ के बहकावे में नहीं आने की चेतावनी दी, जहां ‘मुफ्त उपहार’ का वादा करके वोट मांगे जाते हैं।
- प्रधान मंत्री ने कहा कि यह खतरनाक और देश के विकास के लिए हानिकारक है।
एन. वी. रमण
- भारत के मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई की जिसमें याचिकाकर्ता ने ‘तर्कहीन मुफ्त उपहार’ के वादे के खिलाफ तर्क दिया कि ये चुनावी प्रक्रिया को विकृत करते हैं।
- भारत के मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि ‘मुफ्त उपहार’ एक गंभीर मुद्दा हैं और उन्होंने केंद्र सरकार से चुनाव अभियानों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा ‘मुफ्त उपहार’ की घोषणा को नियंत्रित करने की आवश्यकता पर एक स्टैंड लेने के लिए कहा।
- कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि मामले को देखने और समाधान प्रस्तावित करने के लिए वित्त आयोग को शामिल किया जा सकता है।
- मूल तर्क यह है कि ये संसाधनों की बर्बादी हैं और पहले से ही तनावग्रस्त राजकोषीय संसाधनों पर बोझ डालते हैं।
- इस तरह की चर्चाओं में, ‘फ्रीबीज’ में न केवल ‘क्लब गुड्स’ जैसे टेलीविजन और सोने की चेन का मुफ्त वितरण शामिल है, बल्कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत मुफ्त या सब्सिडी वाले राशन जैसी कल्याणकारी योजनाएं भी शामिल हैं।
- मध्याह्न भोजन योजना के तहत पका हुआ भोजन, आंगनबाड़ियों के माध्यम से पूरक पोषण, और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के माध्यम से प्रदान किया गया कार्य।
- महामारी के दौरान मुफ्त खाद्यान्न का वितरण
- सरकार लगभग 80 करोड़ राशन कार्डधारकों को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के माध्यम से मुफ्त खाद्यान्न वितरित करके ‘दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम’ लागू कर रही है।
- कोरोनावायरस महामारी के दौरान भुखमरी से बचाया
- पीडीएस हमारे देश में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जहां न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर सार्वजनिक खरीद किसानों को समर्थन के मुख्य साधनों में से एक है।
- PDSàअन्य कल्याणकारी योजनाएं जिन्हें राज्य के ‘सब्सिडी’ के बोझ में जोड़ने के रूप में बार-बार बदनाम किया जाता है, वे भी मानव विकास और लोगों के पोषण, काम आदि के मूल अधिकारों की सुरक्षा में योगदान करती हैं, अनिवार्य रूप से सम्मान के साथ जीवन का अधिकार भी शामिल है
- MGNREGAàमहामारी के दौरान कई लोगों के लिए जीवन रेखा àऐसे समय में जब रोजगार के अवसर कम हैं, मनरेगा के तहत काम करने से कुछ निश्चित मजदूरी की गारंटी हो सकती है
- mid-day meals -àस्कूलों में मध्याह्न भोजन स्कूलों में नामांकन बढ़ाने और भूख को दूर करने में योगदान करने के लिए सिद्ध हुआ है
- कई अन्य योजनाएं जैसे वृद्धावस्था, एकल महिला और विकलांग पेंशन, शहरी क्षेत्रों में सामुदायिक रसोई, सरकारी स्कूलों में बच्चों के लिए मुफ्त वर्दी और पाठ्यपुस्तकें,
- और मुफ्त स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं हमारे देश में सामाजिक सुरक्षा और बुनियादी अधिकारों तक पहुंच प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- वास्तव में, इन कार्यक्रमों में कई कमियां हैं जो कवरेज में विस्तार, अधिक संसाधनों के आवंटन के साथ-साथ अधिक जवाबदेही और शिकायत निवारण के लिए तंत्र स्थापित करने की मांग करती हैं।
- मध्याह्न भोजन कार्यक्रम में अंडे दिए जाएंगे या नहीं, रोजगार गारंटी योजना के तहत कितने दिन का काम दिया जाएगा, मुफ्त दवाओं तक पहुंच की योजना, या पीडीएस के तहत किस कीमत पर सब्सिडी वाला अनाज दिया जाएगा, इस पर चर्चा की गई है।
- बहुसंख्यक लोगों की जरूरतों को पूरा करने वाले चुनावी लोकतंत्र के सकारात्मक संकेत।
- किसी भी मामले में, कोई ‘फ्रीबी’ को कैसे परिभाषित करता है? ‘कॉर्पोरेट करदाताओं के लिए प्रमुख कर प्रोत्साहन’ के परिणामस्वरूप सालाना लगभग ₹1 लाख करोड़ का राजस्व छूट जाता है।
- विदेशी व्यापार और व्यक्तिगत आय करों सहित सभी कर छूटों और रियायतों को मिलाकर, प्रत्येक वर्ष छोड़े गए राजस्व ₹5 लाख करोड़ से अधिक है।
- कॉरपोरेट टैक्स की दरें कम हो रही हैं और बजट दस्तावेज बताते हैं कि 2019-20 में मुनाफे में वृद्धि के साथ प्रभावी कर दर (कर-लाभ अनुपात) में गिरावट आई है।
- तथ्य यह है कि एक प्रणाली द्वारा गरीबों को दी जाने वाली छोटी राशि जो ज्यादातर विफल रही है उन्हें ‘मुफ्त’ कहा जाता है।
मुफ्तखोरी के पक्ष में तर्क:
- अपेक्षाओं को पूरा करने के लिये आवश्यक: भारत जैसे देश में जहाँ राज्यों में विकास का एक निश्चित स्तर है (या नहीं है), चुनाव आने पर लोगों को नेताओं/राजनीतिक दलों से ऐसी उम्मीदें होने लगती हैं जो मुफ्त के वादों से पूरी होती हैं। इसके अलावा जब आस-पास के अन्य राज्यों के लोगों को मुफ्त सुविधाएँ मिलती हैं तो चुनावी राज्यों में भी लोगों की अपेक्षाएँ बढ़ जाती हैं।
- कम विकसित राज्यों के लिये मददगार: ऐसे राज्य जो कम विकसित हैं एवं जिनकी जनसंख्या अत्यधिक है, वहाँ इस तरह की सुविधाएँ आवश्यकता या मांग आधारित होती है तथा राज्य के उत्थान के लिये ऐसी सब्सिडी की पेशकश ज़रूरी हो जाती है।
मुफ्तखोरी के विरोध में तर्क:
- अनियोजित वादे: मुफ्त सुविधाएँ देना हर राजनीतिक दल द्वारा लगाई जाने वाली प्रतिस्पर्द्धी बोली बन गया है, हालाँकि एक बड़ी समस्या यह है कि किसी भी प्रकार की घोषित मुफ्त सुविधा को बजट प्रस्ताव में शामिल नहीं किया जाता है। ऐसे प्रस्तावों के वित्तपोषण को अक्सर पार्टियों के ज्ञापनों या घोषणापत्रों में शामिल नहीं किया जाता है।
- राज्यों पर आर्थिक बोझ: मुफ्त में सुविधाएँ उपहार देने से अंततः सरकारी खजाने पर असर पड़ता है और भारत के अधिकांश राज्यों की मज़बूत वित्तीय स्थिति नहीं है एवं राजस्व के मामले में बहुत सीमित संसाधन हैं।
- अनावश्यक व्यय: बिना विधायी बहस के ज़ल्दबाजी में मुफ्त की घोषणा करने से वांछित लाभ नहीं मिलता है एवं यह केवल गैर-ज़िम्मेदाराना व्यय को बढ़ावा देता है।
- अगर गरीबों की मदद करनी हो तो बिजली और पानी के बिल माफी जैसी कल्याणकारी योजनाओं को जायज ठहराया जा सकता है।
- हालाँकि पार्टियों द्वारा चुनाव-प्रेरित अव्यवहारिक घोषणाएँ राज्यों के बजट से बाहर होती है।
आगे की राह:
- आर्थिक नीतियों की बेहतर पहुँच: यदि राजनीतिक दल प्रभावी आर्थिक नीतियाँ बनाए, जिसमें भ्रष्टाचार या लीकेज़ की संभावना ना हो एवं लाभार्थियों तक सही तरीके से इनकी पहुँच सुनिश्चित की जाए तो इस प्रकार की मुफ्त घोषणाओं की ज़रूरत नहीं रहेगी।
- विवेकपूर्ण मांग–आधारित मुफ्त सुविधाएँ: भारत एक बड़ा देश है और अभी भी ऐसे लोगों का एक बड़ा समूह है जो गरीबी रेखा से नीचे हैं। देश की विकास योजना में सभी लोगों को शामिल करना भी ज़रूरी है।
- जनता के बीच जागरूकता: लोगों को यह महसूस करना चाहिये कि वे अपने वोट मुफ्त में बेचकर क्या गलती करते हैं। यदि वे इन चीज़ों का विरोध नहीं करते हैं तो वे अच्छे नेताओं की अपेक्षा नहीं कर सकते।
निष्कर्ष
- चुनाव प्रचार के दौरान वादे करते हुए केवल राजनीतिक पहलू पर विचार करना बुद्धिमानी नहीं है, आर्थिक हिस्से को भी ध्यान में रखना ज़रूरी है क्योंकि अंततः बजटीय आवंटन और संसाधन सीमित हैं। मुफ्त की बात करते समय राजनीति के साथ-साथ अर्थव्यवस्था को भी ध्यान में रखना चाहिये।
अफगानिस्तान में तालिबान
- उज़्बेकिस्तान के ताशंकद में अफगानिस्तान के संकट पर आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन के एजेंडे में अफगानिस्तान के समक्ष सुरक्षा, स्थिरता और नाजुक आर्थिक स्थिति समेत कई चुनौतियां सबसे ऊपर रहीं।
- संपन्न हुए इस सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले 30 देशों में भारत भी शामिल था।
- अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री मौलवी अमीर खान मुत्तकी ने सम्मेलन में तालिबान के शासन की नुमाइंदगी की।
- भारत ने पिछले महीने काबुल में अपनी राजनयिक मौजूदगी को फिर से स्थापित किया और अफगानिस्तान की राजधानी में स्थित अपने दूतावास में ‘तकनीकी टीम’ तैनात की।
- भारत ने पिछले साल अगस्त में अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा होने के बाद सुरक्षा कारणों से दूतावास से अपने अधिकारियों को वापस बुला लिया था।
- उदाहरण : अफगानिस्तान की युवा लड़कियों को दिया गया है – कक्षा 6 और 12 के बीच की महिला किशोर छात्रों को अभी भी स्कूल जाने की अनुमति नहीं है।
- इसके बजाय, प्रत्येक सप्ताह एक और तालिबानी फरमान लाता है जिसका उद्देश्य महिलाओं को शिक्षा से, नौकरियों से, और विशेष रूप से दृष्टि से दूर रखना है, यहां तक कि महिला टेलीविजन एंकरों को भी अपना चेहरा ढंकने के लिए मजबूर किया जाता है।
- अन्य नए प्रतिबंध यह सुनिश्चित करते हैं कि महिलाओं को हर समय सार्वजनिक रूप से “एस्कॉर्ट” किया जाना चाहिए, यह सुनिश्चित करना कि अफगान महिलाएं, जो पिछले दो दशकों में हर क्षेत्र में अपने जीवंत योगदान के लिए जानी जाती हैं, को समाज से हटा दिया जा रहा है, बिना किसी धक्का-मुक्की के।
- तालिबान ने जो दूसरा सबक सीखा है, वह यह है कि स्थिरता और हिंसा की कमी से अंतरराष्ट्रीय आत्मसंतुष्टि होती है। अफगानिस्तान में प्रमुख विद्रोही बल के रूप में, तालिबान ने 2001 के बाद की सभी वार्ताओं में “हिंसा वीटो” का इस्तेमाल किया।
- कोई भी देश तालिबान को मान्यता नहीं देता है।
- जबकि तालिबान के सत्ता में आने के बाद चीन, रूस, ईरान और पाकिस्तान ने अपने मिशनों को कभी बंद नहीं किया, जिन लोगों ने बाद में मिशन को फिर से खोल दिया उनमें अधिकांश मध्य एशियाई देश, सऊदी अरब, कतर और संयुक्त अरब अमीरात, तुर्की, इंडोनेशिया और अब सहित खाड़ी के राज्य शामिल हैं। अब भारत भी है
अमेरिका की अन्य समस्याएं हैं
- तालिबान ने जो अगला सबक सीखा है, वह यह है कि अमेरिका और उसके सहयोगियों के पास अभी निपटने के लिए बड़ी समस्याएं हैं, और अफगानिस्तान में दिलचस्पी, 1990 के दशक की तरह, बहुत कम हो गई है।
- यह स्पष्ट है कि जैसा कि अमेरिका रूस और चीन से अपनी “दोहरी चुनौतियों” का सामना करने के लिए तैयार है, यूक्रेन में युद्ध और ताइवान में गतिरोध से और अधिक कठिन हो गया है, अन्य मुद्दों के लिए उसके पास “बैंडविड्थ” बहुत कम है।
- एक उदाहरण म्यांमार का है, जहां सेना ने फरवरी 2021 में चुनी हुई सरकार को उखाड़ फेंका, नोबेल पुरस्कार विजेता आंग सान सू की सहित अधिकांश राजनीतिक नेतृत्व को बंदी बना लिया, और अब दुनिया की मिन्नतों के बावजूद विपक्षी कार्यकर्ताओं को अपनी मर्जी से मौत के घाट उतार रहा है। यह स्पष्ट है कि मानवाधिकार, लोकतंत्र और लोगों की इच्छा के बारे में चिंताएं कम होती जा रही हैं, भले ही वैश्विक नेता लोकतंत्र शिखर सम्मेलनों, धार्मिक स्वतंत्रता सम्मेलनों और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के लिए दिखावा करते हैं।
भारत का रिकॉर्ड
1996 में भारत ने एक त्रि-आयामी नीति तैयार की थी जो बिल्कुल स्पष्ट थी
- भारत का तालिबान के साथ कोई भी बात नहीं होगी
- अहमद शाह मसूद के नेतृत्व वाली उत्तरी गठबंधन सेना का समर्थन करेगा।
- अहमद शाह मसूद के नेतृत्व को और उनके परिवारों के साथ भारत आने की अनुमति देकर, और 12,000 से अधिक अफगान शरणार्थियों को आश्रय दिया, जो तालिबान शासन से भागने में सक्षम थे।
- इस नीति ने 2001-2021 के बाद की तालिबान अवधि के लिए भारत को अच्छी स्थिति में रखा, जब भारत अफगानिस्तान के साथ एक मजबूत संबंध बनाने में सक्षम था, इसका पहला रणनीतिक भागीदार बन गया, संसद सहित महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की पहल की एक श्रृंखला तैयार की, अफगान-भारत मैत्री (सलमा) बांध और जरांज-डेलाराम राजमार्ग, और हजारों अफगान छात्रों, डॉक्टरों और सैन्य कैडेटों को शिक्षित किया।
- तालिबान के अधिग्रहण के दो दिन बाद सुरक्षा पर एक कैबिनेट समिति को संबोधित करते हुए, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने काबुल में भारतीय दूतावास को बंद करने के निर्णय की पुष्टि की, लेकिन कहा कि भारतीय नागरिकों और जरूरतमंद सिख और हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों के साथ,भारत को “हमारे अफगान भाइयों और बहनों को हर संभव सहायता प्रदान करनी चाहिए जो सहायता के लिए भारत की ओर देख रहे हैं”।
- वह वादा, दुर्भाग्य से, बयानबाजी पर उच्च लेकिन वास्तविकता में खोखला था
- भारत ने अन्य सभी के लिए दरवाजे बंद करते हुए केवल पहले से मौजूद दीर्घकालिक वीजा वाले नागरिकों और अल्पसंख्यकों को भारत में प्रवेश करने की अनुमति दी है।
- विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय द्वारा नव निर्मित “ई-आपातकालीन एक्स-विविध” वीजा के तहत कुल 60,000 वीज़ा आवेदन प्राप्त हुए थे, दिसंबर 2021 तक केवल 200 का ही वितरण किया गया था
- तालिबान के साथ संबंधों पर लगातार रुख के बजाय, मोदी सरकार ने अब उच्चतम स्तर पर बातचीत शुरू कर दी है, वरिष्ठ भारतीय अधिकारियों ने सिराजुद्दीन हक्कानी से भी मुलाकात की, जो समूह का नेतृत्व करने वाले व्यक्ति थे, जो भारतीय प्रतिष्ठानों पर कई हमलों के लिए जिम्मेदार थे, जिसमें घातक बमबारी भी शामिल थी
- इससे भी अधिक आश्चर्य की बात यह है कि जब भारत ने पाकिस्तान के साथ बातचीत करने का फैसला किया, तो उसे अफगानिस्तान को गेहूं की सहायता भेजनी थी, चाबहार के माध्यम से अच्छी तरह से स्थापित मार्ग की अनदेखी करना जो उसने अतीत में इस्तेमाल किया था।
- गौरतलब है कि भारत तालिबान शासन के तहत मिशन खोलने वाले देशों की सूची में शामिल हो गया है, लेकिन अभी तक एक राजनयिक को पोस्ट नहीं किया है जो कांसुलर और वीजा संचालन की प्रक्रिया को फिर से शुरू कर सके।
भारत के लिये चुनौतियाँ
- भारतीय सुरक्षा का मुद्दा: अफगानिस्तान में तालिबान शासन की बहाली भारतीय सुरक्षा के लिये कुछ अत्यंत गंभीर आसन्न चुनौतियाँ प्रस्तुत करती है।
- अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद का प्रसार: अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद को तालिबान से प्राप्त पुनः समर्थन और तालिबान की ओर से लड़ रहे जिहादी समूहों को पाकिस्तान द्वारा पुनः भारत की ओर मोड़ दिया जाना भारत के लिये एक गंभीर चुनौती होगी।
- धार्मिक कट्टरवाद: अन्य सभी कट्टरपंथी समूहों की तरह, तालिबान के लिये भी अपनी धार्मिक विचारधारा को राज्य के हितों की अनिवार्यता के साथ संतुलित करना एक कठिन कार्य होगा।
- नई क्षेत्रीय भू–राजनीतिक प्रगति: क्षेत्र में नए भू-राजनीतिक संरेखण (चीन-पाकिस्तान-तालिबान का गठजोड़) का भी निर्माण हो सकता है जो भारत के हितों के विरुद्ध जा सकता है।
- तालिबान के साथ निकट संबंध नहीं: पाकिस्तान, चीन और ईरान के विपरीत भारत का तालिबान के साथ कोई निकट संबंध नहीं रहा है।
- उदाहरण के लिये, रूस की तजाकिस्तान के साथ एक सुरक्षा संधि है औरउसने अफगानिस्तान में उथल-पुथल से मध्य एशिया में अस्थिरता के प्रसार पर नियंत्रण के लिये वहाँ अपने सैनिकों की संख्या बढ़ा दी है।
- भारत के पास ऐसा कोई सुरक्षा उत्तरदायित्व नहीं है और न ही वह मध्य एशिया तक कोई सीधी पहुँच रखता है।
- चूँकि लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद अफगानिस्तान में तालिबान के साथी रहे हैं, यह तालिबान को पाकिस्तान के माध्यम से जम्मू-कश्मीर में भारत पर पुनः हमला करने हेतु प्रोत्साहन दे सकता है।
अफगानिस्तान का भारत के लिये महत्त्व:
- आर्थिक और रणनीतिक हित: अफगानिस्तान तेल और खनिज समृद्ध मध्य एशियाई गणराज्यों का प्रवेश द्वार है। अफगानिस्तान भू-रणनीतिक दृष्टि से भी भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि अफगानिस्तान में जो भी सत्ता में रहता है, वह भारत को मध्य एशिया (अफगानिस्तान के माध्यम से) से जोड़ने वाले भू- मार्गों को नियंत्रित करता है।
- ऐतिहासिक सिल्क रोड के केंद्र में स्थित: अफगानिस्तान लंबे समय से एशियाई देशों के बीच वाणिज्य का केन्द्र था, जो उन्हें यूरोप से जोड़ता था तथा धार्मिक, सांस्कृतिक और वाणिज्यिक संपर्कों को बढ़ाव देता था।
- विकास परियोजनाएंँ: इस देश के लिये बड़ी निर्माण योजनाएँ भारतीय कंपनियों को बहुत सारे अवसर प्रदान करती हैं।
- तीन प्रमुख परियोजनाएंँ: अफगान संसद, जरंज-डेलाराम राजमार्ग और अफगानिस्तान-भारत मैत्री बांध (सलमा बांध) के साथ-साथ सैकड़ों छोटी विकास परियोजनाओं (स्कूलों, अस्पतालों और जल परियोजनाओं) में 3 बिलियन अमेरीकी डॅालर से अधिक की भारत की सहायता ने अफगानिस्तान में भारत की स्थिति को मज़बूत किया है।
- सुरक्षा हित: भारत इस क्षेत्र में सक्रिय पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी समूह (जैसे हक्कानी नेटवर्क) से उत्पन्न राज्य प्रायोजित आतंकवाद का शिकार रहा है। इस प्रकार अफगानिस्तान में भारत की दो प्राथमिकताएंँ हैं:
- पाकिस्तान को अफगानिस्तान में मित्रवत सरकार बनाने से रोकने के लिये।
- अलकायदा जैसे जिहादी समूहों की वापसी से बचने के लिये, जो भारत मेंहमले कर सकता है।
भारत के समक्ष उपलब्ध विकल्प
- व्यापक राजनयिक संलग्नता: भारत को अफगानिस्तान पर केंद्रित एक विशेष दूत नियुक्त करने पर विचार करना चाहिये। यह विशेष दूत सुनिश्चित कर सकता है कि प्रत्येक बैठक में भारतीय आशंकाओं-अपेक्षाओं की अभिव्यक्ति हो और तालिबान के साथ संलग्नता का आधार व्यापक किया जाए।
- तालिबान और पाकिस्तान को अलग–अलग खाँचों में देखना: यद्यपि तालिबान पर पाकिस्तान को एक वास्तविक लाभ की स्थिति प्राप्त है लेकिन यह पूर्ण या परम प्रभाव नहीं भी हो सकता है। निश्चय ही तालिबान पाकिस्तान से एक हद तक स्वायत्तता की इच्छा रखेगा। भारत और तालिबान के बीच मौजूदा समस्याओं के दूर होने तक भारत को अभी कुछ धैर्य बनाए रखना होगा।
- अफगानिस्तान में अवसरों को संतुलित करना: अफगानिस्तान के अंदर शक्ति के आंतरिक संतुलन को आकार देना हमेशा से कठिन रहा है। अफगानिस्तान में चीन-पाक की गहन साझेदारी अनिवार्य रूप से विपरीत प्रवृत्तियों को भी जन्म देगी। लेकिन एक धैर्यवान, ग्रहणशील और सक्रिय भारत के लिये अफगानिस्तान में संतुलन के अवसरों की कोई कमी नहीं होगी।
- भारतीय अवसंरचनात्मक विकास का लाभ उठाना: भारत द्वारा अफगानिस्तान को अवसंरचनात्मक परियोजनाओं के लिये 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता दी गई है जो उसकी आबादी की सेवा करती है और इससे भारत ने जो सद्भावना अर्जित की है, वह स्थायी बनी रहेगी। वर्तमान आवश्यकता यह है कि अफगानिस्तान में विकास कार्यों को अवरुद्ध नहीं किया जाए और सकारात्मक कार्य जारी रखा जाए।
- वैश्विक सहयोग: 1990 के दशक की तुलना में आज आतंकवाद की वैश्विक स्वीकृति बहुत कम है। कोई भी बड़ी शक्ति अफगानिस्तान को आतंकवाद की वैश्विक शरणस्थली के रूप में फिर से उभरते हुए नहीं देखना चाहेगी।
विश्व ने फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) जैसे तंत्रों के माध्यम से आतंकवाद को पाकिस्तान के समर्थन पर नियंत्रण के लिये उल्लेखनीय कदम भी उठाए हैं।
जम्मू–कश्मीर में लोकतंत्र का इंतजार
परिसीमन का क्या अभिप्राय है?
- परिसीमन वह प्रक्रिया है जिसकी मदद सेलोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों की सीमाओं को तय किया जाता है ताकि सभी नागरिकों को संसद और विधानसभा में उचित प्रतिनिधित्व प्रदान किया जा सके। यह एक सामान्य प्रक्रिया है जिसे एक निश्चित अंतराल पर दोहराया जाता है ताकि जनसंख्या में हुए बदलावों को ध्यान में रखते हुए मतदाताओं का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा सके।
आयोग का गठन:
- परिसीमन आयोग का गठन मार्च, 2020 को किया गया था।
- परिसीमन तब आवश्यक हो गया जब जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 ने विधानसभा में सीटों की संख्या बढ़ा दी।
- तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य में 111 सीटें थीं, कश्मीर में 46, जम्मू में 37 और लद्दाख में 4, साथ ही 24 सीटें पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर (PoK) के लिये आरक्षित थीं।
- वर्ष 2019 में जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को निरस्त करने के बाद विधानसभा और संसदीय दोनों सीटों का परिसीमन संविधान द्वारा शासित होता है।
किये गए बदलाव:
- विधानसभा: आयोग ने सात विधानसभा सीटों की वृद्धि की है- जम्मू में छह (अब 43 सीटें) और कश्मीर में एक (अब 47)।
- इसने मौजूदा विधानसभा सीटों की संरचना में भी बड़े पैमाने पर बदलाव किया है।
- लोकसभा: इस क्षेत्र में पांँच संसदीय क्षेत्र हैं। परिसीमन आयोग ने जम्मू और कश्मीर क्षेत्र को एकल केंद्रशासित प्रदेश के रूप में रखा है।
- आयोग ने अनंतनाग और जम्मू सीटों की सीमाएंँ पुनः निर्धारित की हैं।
- जम्मू का पीर पंजाल क्षेत्र जिसमें पुंछ एवं राजौरी ज़िले शामिल हैं और जो पहले जम्मू संसदीय सीट का हिस्सा था, अब कश्मीर के अनंतनाग सीट में जोड़ा गया है।
- साथ ही श्रीनगर संसदीय क्षेत्र के एक शिया बहुल क्षेत्र को बारामूला निर्वाचन क्षेत्र में शामिल कर दिया गया है।
- कश्मीरी पंडित: आयोग ने विधानसभा में कश्मीरी प्रवासियों (कश्मीरी हिंदुओं) के कम-से-कम दो सदस्यों के प्रावधान की सिफारिश की है।
- इसने यह भी सिफारिश की है कि केंद्र को जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) से विस्थापित व्यक्तियों को प्रतिनिधित्व देने पर विचार करना चाहिये, जो कि
- विभाजन के बाद जम्मू चले गए थे।
- अनुसूचित जनजाति: पहली बार अनुसूचित जनजाति के लिये कुल नौ सीटें आरक्षित हैं।
परिसीमन आयोग
- संविधान के अनुच्छेद 82 में प्रावधान किया गया है की संसद प्रत्येक जनगणना के पश्चात कानून के तहत परिसीमन आयोग की नियुक्ति करेगी, जो परिसीमन अधिनियम के आधार पर संसदीय चुनाव क्षेत्रों का निर्धारण करेगी।
- वर्तमान में संसदीय क्षेत्रों का परिसीमन 2001 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर किया गया है और लोक सभा व विधान सभाओ की सीटों का निर्धारण 1971 की जनगणना पर। 2002 में संसद के 84वे संशोधन द्वारा यह व्यवस्था की गई है की अगला परिसीमन वर्ष 2026 के बाद संपन्न होगा। तब तक वर्तमान परिसीमन के आधार पर ही संसदीय क्षेत्र यथावत बने रहेंगे।
- भारत में अब तक चार बार परिसीमन आयोग (1952, 1962, 1972, 2002) बनाए गए हैं। परिसीमन आयोग के निर्णय सरकार के लिए बाध्यकारी होते हैं,जिन्हे न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
- संविधान के अनुच्छेद 81, 82, 170, 330 और 332 में परेसीमानन आयोग से सम्बंधित प्रावधान दिए गए हैं।
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- तीन साल –>अनुच्छेद 370
- 2019 में गिरफ्तार किए गए लोगों में से कई सौ अभी भी बिना मुकदमे के जेल में हैं
- असंतुष्टों और मानवाधिकार रक्षकों की नई गिरफ्तारी नियमित हो गई है
- मीडिया का मुंह बंद किया जा रहा है, और कुछ पत्रकार जो एक मूक सेंसरशिप का साहस करते हैं, वे बार-बार गिरफ्तारी के ‘दुष्चक्र’ से पीड़ित हैं, जिसकी भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने मोहम्मद जुबैर के मामले में आलोचना की थी।
- परिसीमन आयोग की कवायद पूरी होने के बावजूद, विधानसभा चुनावों की घोषणा अभी बाकी है
- जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगा है और फिर चार साल के लिए लेफ्टिनेंट-गवर्नर का शासन है
- कश्मीरी पंडित जो तीन दशकों से अधिक समय से आंतरिक शरणार्थी हैं, वे लौट सकेंगे
- सुरक्षा में स्पष्ट रूप से सुधार नहीं हुआ है
- गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2019 और 2021 के बीच मारे गए नागरिकों की संख्या मोदी के पहले कार्यकाल (2014-19) की तुलना में अधिक थी – दो वर्षों में 87, जबकि पांच वर्षों में 177 थी।
- 2021 और 2022 के बीच नागरिकों की मृत्यु में गिरावट आई, जैसा कि मारे गए सुरक्षा कर्मियों की संख्या में हुआ, आंशिक रूप से क्योंकि भारत और पाकिस्तान फरवरी 2021 में युद्धविराम के लिए सहमत हुए।
- हालाँकि, संख्या फिर से बढ़ने लगी है, और कश्मीरी पंडितों, स्थानीय सरकार के निर्वाचित अधिकारियों (पंचों) और जम्मू-कश्मीर पुलिस को निशाना बनाने के चिंताजनक पैटर्न देखने को मिल रहा है ।
अलगाव और विद्रोह
- हाइब्रिड उग्रवादी à ‘फेसलेस उग्रवादी’ (faceless militants) à 1990 के दशक का पैटर्न देखने को मिल रहा है ।
- दक्षिण एशिया आतंकवाद पोर्टल के अनुसार, 2019 और 2021 के बीच 437 कश्मीरी युवा उग्रवादी में शामिल हुए
- केंद्रीय गृह मंत्रालय का स्थानीय पुलिस पर अविश्वास देखने को मिल रहा है जो खुफिया जानकारी के लिए एक प्रमुख स्रोत होते है ।
आर्थिक गिरावट
- 2019 और 2021 के बीच à आर्थिक गिरावट à सुरक्षा लॉकडाउन और फिर डेढ़ साल का COVID-19 लॉकडाउन
- भारतीय संघ के शीर्ष प्रदर्शन करने वाले राज्यों में से, नीति आयोग के अनुसार, जम्मू और कश्मीर को पिछले साल सबसे निचले पायदान पर रखा गया था।
- इस साल एक रिकॉर्ड पर्यटक प्रवाह कुछ वसूली में मदद कर सकता है, लेकिन फल, निर्माण, कालीन और हस्तशिल्प उद्योगों में नुकसान हुआ और इसे बंद करना पड़ सकता है।
- कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अनुसार, 2008 के प्रधान मंत्री पुनर्निर्माण योजना के तहत घाटी में लौटे लगभग 100 कश्मीरी पंडित भाग गए। बाकी लोगों ने सुरक्षित क्षेत्रों में स्थानांतरित करने की मांग की, इस मांग को प्रशासन ने ठुकरा दिया
- संयोग से, यह एक ऐसा लक्ष्य है जिसके लिए लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकवादी संगठन लंबे समय से काम कर रहे हैं।
- बेशक, मोदी प्रशासन के घोषित लक्ष्यों को लागू करना हमेशा मुश्किल होने वाला था
- डॉ मनमोहन सिंह ने जारी रखा ए.बी. वाजपेयी की नीति को , एक कड़े सुरक्षा ग्रिड को जोड़ते हुए, जिसने नागरिक और सुरक्षा बलों के बीच की संख्या में तेजी से कमी की, और राज्य की अर्थव्यवस्था को सीमा पार व्यापार के लिए खोल दिया, एक ऐसी पहल जिसने जम्मू को घाटी के रूप में ज्यादा लाभान्वित किया।
- स्वतंत्र मीडिया का प्रसार हुआ, भले ही इसकी गुणवत्ता असमान थी।
- विधानसभा चुनाव पहला कदम है जिसे तुरंत उठाया जाना चाहिए।
मुफ्त उपहार
- भारत के मुख्य न्यायाधीश, चुनाव से पहले ‘मुफ्त उपहार’ के वितरण या वादे के खिलाफ जनहित में दायर एक याचिका की सुनवाई करने वाली पीठ का नेतृत्व कर रहे हैं, उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि न्यायालय दिशानिर्देश जारी नहीं करेगा, लेकिन केवल यह सुनिश्चित करेगा कि नीति आयोग, वित्त आयोग, विधि आयोग, आरबीआई और राजनीतिक दलों जैसे हितधारकों से सुझाव लिए जायेंगे ।
- उन्होंने कहा कि ये सभी संस्थान भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) और सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप सकते हैं।
- एक सुझाव है कि संसद इस मुद्दे पर चर्चा कर सकती है, कोई भी पार्टी इस पर बहस नहीं चाहेगी, क्योंकि वे सभी इस तरह की रियायतों का समर्थन करते हैं।
- पीठ ने चुनाव आयोग को ‘मॉडल घोषणापत्र’ तैयार करने का भी विरोध किया क्योंकि यह एक खाली औपचारिकता होगी।
- लोकलुभावन उपायों पर न्यायालय की चिंता सरकार के साथ भी प्रतिध्वनित (resonate) होती है, जैसा कि सॉलिसिटर-जनरल ने प्रस्तुत किया कि ये मतदाता के सूचित निर्णय लेने को विकृत करते हैं; और यह कि अनियंत्रित लोकलुभावनवाद एक आर्थिक आपदा का कारण बन सकता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने एस सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु सरकार (2013) में इन सवालों को संबोधित किया और यह स्थिति ली कि ये संबंधित कानून और नीति हैं।
- इसके अलावा, इसने टेलीविजन सेटों या उपभोक्ता वस्तुओं के वितरण को इस आधार पर बरकरार रखा कि महिलाओं, किसानों और गरीब वर्गों पर लक्षित योजनाएं DPSP को आगे बढ़ाने में थीं; और जब तक विधायिका द्वारा स्वीकृत विनियोगों के आधार पर सार्वजनिक धन खर्च किया जाता है, तब तक उन्हें न तो अवैध घोषित किया जा सकता है, न ही ऐसी वस्तुओं के वादे को ‘भ्रष्ट आचरण’ कहा जा सकता है।
- हालांकि, इसने चुनाव आयोग को घोषणापत्र की सामग्री को विनियमित करने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश दिया था
- भारत के चुनाव आयोग ने बाद में अपने आदर्श आचार संहिता में एक शर्त शामिल की कि पार्टियों को ऐसे वादों से बचना चाहिए जो “चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता को खराब करते हैं या मतदाताओं पर अनुचित प्रभाव डालते हैं”।
- इसमें कहा गया है कि केवल वही वादे किए जाने चाहिए जिन्हें पूरा किया जाना संभव हो और घोषणापत्र में वादा किए गए कल्याणकारी उपाय के लिए तर्क होना चाहिए और इसे लागू करने के लिए वित्त पोषण के साधनों का संकेत देना चाहिए।
- कोई और कदम, जैसे लोकलुभावन रियायतों और चुनाव-पूर्व प्रलोभनों से कल्याणकारी उपायों को अलग करना, या वित्तीय उत्तरदायित्व और राजकोषीय विवेक के दायित्वों को जोड़ना विधायिका से आना चाहिए। यह कि राजनेता हमेशा ‘मुफ्त उपहार’ का समर्थन करते हैं, संसद को दरकिनार करने का कोई कारण नहीं होना चाहिए।
The Hindu एडिटोरियल टॉपिक : ताइवान गतिरोध से भारत के लिए सबक
Q-ताइवान के गतिरोध से भारत क्या सीख सकता है ?
- चीन द्वारा जारी की गई कड़ी चेतावनियों के खिलाफ यूनाइटेड स्टेट्स हाउस की स्पीकर नैन्सी पेलोसी की ताइवान की संक्षिप्त यात्रा,इसमें अमेरिका और चीन के बीच पहले से बिगड़ते संबंधों को बढ़ाने की क्षमता है, जिसका ताइवान पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा।
- चीन के लिए, एक बढ़ती महाशक्ति के बारे में उसके दावे खोखले हो सकते हैं यदि वह अपने दावा किए गए क्षेत्रों, विशेष रूप से ताइवान को एकजुट करने में असमर्थ है
- पेलोसी की ताइपे की यात्रा के साथ शुरू हुआ संकट अभी भी सामने आ रहा है और आज इस बारे में बहुत कम स्पष्टता है कि यह कैसे समाप्त होगा
- भारत में जो लोग ताइवान के आसपास होने वाली घटनाओं को देख रहे हैं, उनके लिए सीखने के लिए मूल्यवान सबक हैं।
- 23 मिलियन लोगों के एक छोटे से द्वीप ने चीन के सामने खड़े होने का फैसला किया है।
- भारत परमाणु हथियारों से लैस और4 मिलियन स्थायी सेना के साथ कहीं अधिक शक्तिशाली राष्ट्र है, जिसके खिलाफ चीन का केवल सीमांत क्षेत्रीय का दावा है। और फिर भी भारत चीन का झांसा देने से हिचकिचा रहा है।
- इस चुनौती को कैसे पूरा किया जाए, इस पर स्पष्टता का अभाव प्रतीत होता है। उस हद तक, ताइवान संकट नई दिल्ली को कम से कम तीन सबक देता है।
स्पष्ट संदेश
- भारत को नीति निर्माताओं के लिए ताइवान गतिरोध से सबसे महत्वपूर्ण सबक स्पष्ट तरीके से लाल रेखा और संप्रभु भाग को स्पष्ट करने का महत्व होगा ।
- नई दिल्ली को चीन से खतरे और इस तरह के खतरे के स्रोतों को स्पष्ट रूप से उजागर करने की जरूरत है।
- जैसा कि हम पहले ही देख चुके हैं, इस तरह की स्पष्टता के अभाव में बीजिंग ने भारतीय सीमाओं का हिस्सा अपने में मिलाने के लिए चतुराई से इस्तेमाल कर रहा ।
- उदाहरण : 2020 में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर गतिरोध
- आज तक, भारत के नेतृत्व ने देश को यह स्पष्ट नहीं किया है कि 2020 में सीमा पर वास्तव में क्या हुआ था और क्या चीन का भारतीय क्षेत्र पर अवैध कब्जा जारी है।
- जब भारत के नेताओं को चीन के खतरे को स्वीकार करने से रोकती है, तो यह बीजिंग को भारत के साथ अपने क्षेत्रीय दावों को आगे बढ़ाने के लिए अस्पष्टता का आवरण प्रदान करती है।
- इससे भी बदतर, भारत द्वारा अस्पष्ट संदेश अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अपने दोस्तों को भी भ्रमित करता है: अपने क्षेत्र के प्रतीत
- भारत स्पष्ट नहीं करता है कि चीन ने अपने क्षेत्र पर अवैध कब्जा कर लिया है
- दूसरे शब्दों में, चीन की तुलना में भारत की ‘लुका-छिपी'(hide and seek) की मौजूदा नीति खराब संदेश देने और अपने ही लोगों के साथ-साथ बड़े अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भ्रमित करने वाली है, और इसलिए यह प्रतिकूल है।
तुष्टिकरण (Appeasement) बुरी रणनीति है
- ताइवान अपने क्षेत्र के आसपास चीनी जवाबी सैन्य अभ्यास के दौरान चल रहे टकराव और आर्थिक नाकाबंदी से बच सकता था।
- इसके बजाय, ताइवान ने हाई-प्रोफाइल बैठकों और पूरे सार्वजनिक दृष्टिकोण से बयानों के साथ यात्रा को आगे बढ़ाने का फैसला किया, जिससे चीन को यह स्पष्ट हो गया कि ताइवान अपने घोषित लक्ष्यों से पीछे हटने को तैयार नहीं है, चाहे परिणाम कुछ भी हों। चीन का तुष्टिकरण, ताइवान जानता है
- चीन क्षेत्रीय व्यवस्था को चुनौती दे रहा है; अपने रणनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए बल का उपयोग भी कर सकता है, और अपने हितों के अनुरूप शक्ति के क्षेत्रीय संतुलन को फिर से आकार देने का इच्छुक भी है।
- भारत में चार गलतियाँ करके चीनी हाथों में खेलने के दोषी हो सकते हैं।
- सबसे पहले, चीनी नेताओं से मिलने/मेजबान करने की भारत की नीति, जबकि चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने एलएसी पर स्थापित क्षेत्रीय मानदंडों का उल्लंघन करना जारी रखा, एक गहरी त्रुटिपूर्ण है।
- 2014 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भारत यात्रा के दौरान डेमचोक और चुमार में गतिरोध हुआ और इस वर्ष की शुरुआत में चीनी विदेश मंत्री वांग यी की फिर से भारत यात्रा को याद करना , जबकि चीनी सैनिकों का भारतीय क्षेत्र पर कब्जा जारी है।
- वास्तव में बीजिंग द्वारा इस तरह की कूटनीति को उकसावे के बावजूद भारत की सहमति के उदाहरण के रूप में देखने का खतरा है।
- दूसरी गलती दोनों सेनाओं के बीच गतिरोध के दौरान भी चीन की संवेदनशीलता को एकतरफा ढंग से पूरा करना है। उदाहरण के लिए, भारत और ताइवान के बीच संसदीय प्रतिनिधिमंडल का दौरा और विधायिका-स्तरीय संवाद 2017 के बाद से नहीं हुआ है, जो उस वर्ष डोकलाम गतिरोध के साथ हुआ था। ताइवान या तिब्बत के आसपास चीनी राजनीतिक संवेदनाओं का सम्मान करने से क्यों परेशान हैं, जब वह भारतीय क्षेत्र पर अवैध कब्जा कर रहा है, और भारत से अधिक क्षेत्र चाहता है?
- तीसरी गलती क्वाड (ऑस्ट्रेलिया, जापान, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका) की नरम-पेडलिंग (soft-peddling) थी जब चीन ने इस पर आपत्ति जताई।
- पिछले दो वर्षों में ही है कि हमने क्वाड के आसपास नए उत्साह को देखा है। पूर्वव्यापी में, क्वाड को लगभग छोड़ कर बीजिंग को खुश करना एक बुरी रणनीति थी।
- शायद भारत ने जो सबसे बड़ी गलती की है, वह 2020 में भारत की गैर-स्वीकृति से भारतीय क्षेत्र में पीएलए की घुसपैठ और उसके बाद से एलएसी के साथ भारतीय क्षेत्र पर कब्जा ।
त्रुटिपूर्ण तर्क
- अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि भारत और चीन के बीच बढ़ते आर्थिक और व्यापारिक संबंध यह सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त कारण हैं कि दोनों पक्षों के बीच तनाव न बढ़े, और दोनों पक्षों को शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व के तरीके खोजने चाहिए
- क्या भारत के लिए एलएसी पर बार-बार होने वाली चीनी घुसपैठ की अनदेखी करना और क्षेत्रीय समझौते करना जारी रखने के लिए आर्थिक संबंध पर्याप्त हैं?
- तनाव के बावजूद और भारत द्वारा अपने संप्रभु दावों के साथ कोई समझौता किए बिना व्यापार जारी रह सकता है।
- चीन ताइवान का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, और चीन का ताइवान के साथ लगभग $80 बिलियन से $130 बिलियन का वार्षिक व्यापार घाटा है।
- इसके अलावा, ताइवान से चीन में 2021 तक3 बिलियन डॉलर का निवेश था, जबकि मुख्य भूमि चीन से ताइवान में 2009 से 2021 तक केवल 2.5 बिलियन डॉलर का निवेश था।
- चीन के ताइवान के साथ व्यापार बंद करने की संभावना नहीं है, आखिरकार, चीन ताइवान में उत्पादित अर्धचालकों पर बड़े पैमाने पर निर्भर है।
- दूसरे शब्दों में, चीन के साथ घनिष्ठ आर्थिक संबंधों ने ताइवान को अपने अधिकारों का दावा करने से नहीं रोका है और न ही चीन की धमकियों से पीछे हट गया है।
- तो, क्या भारत, एक बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था और एक सैन्य शक्ति, चीन के साथ आर्थिक संबंधों के बारे में चिंतित चीनी दबाव के आगे झुकना चाहिए? भारत को चीन के साथ व्यापार करना चाहिए, लेकिन चीन की शर्तों पर नहीं।
भारत चीन विवाद
- सीमा विवाद:भारत और चीन के बीच करीब 4000 किलोमीटर की सीमा लगती है। चीन के साथ इस सीमा विवाद में भारत और भूटान दो ऐसे मुल्क हैं, जो उलझे हुए हैं। भूटान में डोकलाम क्षेत्र को लेकर विवाद है तो वहीं भारत में लद्दाख से सटे अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश को लेकर विवाद जारी है।
- दलाई लामा और तिब्बत:ड्रैगन देश को इस बात से भी चिढ़ है कि भारत तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा को शरण दिए हुए है।
- स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स:‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ भारत को घेरने के लिहाज से चीन द्वारा अपनाई गई एक अघोषित नीति है। इसमें चीन द्वारा भारत के समुद्री पहुंच के आसपास के बंदरगाहों और नौसेना ठिकानों का निर्माण किया जाना शामिल है।
- नदी जल विवाद:ब्रह्मपुत्र नदी के जल के बँटवारे को लेकर भी भारत और चीन के बीच में विवाद है। चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपरी इलाके में कई बांधों का निर्माण किया गया है। हालांकि जल बंटवारे को लेकर भारत और चीन के बीच में कोई औपचारिक संधि नहीं हुई है।
- भारत को एनएसजी का सदस्य बनने से रोकना:परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह का सदस्य बनने में भी चीन भारत की मंसूबों पर पानी फेर रहा है। नई दिल्ली ने जून 2016 में इस मामले को जोरदार तरीके से उठाया था। तत्कालीन विदेश सचिव रहे एस जयशंकर ने एनएसजी के प्रमुख सदस्य देशों के समर्थन के लिए उस समय सियोल की यात्रा भी की थी।
- भारत के खिलाफ आतंकवाद का समर्थन:एशिया में, चीन भारत को अपना सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी मानता है और साथ ही OBOR प्रॉजेक्ट में चीन को पाक की जरूरत है। पाकिस्तान में चीन ने बड़े पैमाने पर निवेश कर रखा है। चीन-पाक आर्थिक गलियारा और वन बेल्ट वन रोड जैसे उसके मेगा प्रॉजेक्ट एक स्तर पर आतंकी संगठनों की दया पर निर्भर हैं। ऐसे में चीन कहीं ना कहीं भारत के खिलाफ आतंकवाद का पोषक बना हुआ है। मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित कराने में चीन की रोड़ेबाजी इसी का एक मिसाल कही जा सकती है। हालंकि बाद में भारत को इस मामले में सफलता मिल गई थी।
- भारत के उत्तर-पूर्व में भी चीन पहले कई आतंकवादी संगठनों की मदद करता रहा है। बीबीसी फीचर्स की एक ख़बर के मुताबिक कुछ अर्से पहले पूर्वोत्तर भारत में नगा विद्रोही गुट एनएससीएन (यू) के अध्यक्ष खोले कोनयाक ने ये दावा किया था। बक़ौल खोले “यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम यानी उल्फा प्रमुख परेश बरुआ पूर्वोत्तर राज्यों में सक्रिय चरमपंथी संगठनों को चीनी हथियार और ट्रेनिंग मुहैया करा रहें है।”
- व्यापार असंतुलन:वैसे तो चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, लेकिन दोनों देशों के बीच एक बड़ा व्यापारिक असंतुलन भी है, और भारत इस व्यापारिक घाटे का बुरी तरह शिकार है। पिछले साल चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 86 अरब डॉलर का था, जबकि साल 2017 में यह घाटा 61.72 अरब डॉलर का था।
- BRI – बेल्ट एंड रोड इनिसिएटिव परियोजना चीन की सालों पुरानी ‘सिल्क रोड’ से जुड़ा हुआ है। इसी कारण इसे ‘न्यू सिल्क रोड’ और One Belt One Road (OBOR) नाम से भी जाना जाता है। BRI परियोजना की शुरुआत चीन ने साल 2013 में की थी। इस परियोजना में एशिया, अफ्रीका और यूरोप के कई देश बड़े देश शामिल हैं। इसका उद्देश्य दक्षिण पूर्व एशिया, मध्य एशिया, गल्फ कंट्रीज़, अफ्रीका और यूरोप के देशों को सड़क और समुद्री रास्ते से जोड़ना है।
भारत और चीन के बीच आपसी सहयोग
- भारत और चीन दोनों ही देश उभरती अर्थव्यवस्थाओं के समूह ब्रिक्स (BRICS) के सदस्य हैं। ब्रिक्स द्वारा औपचारिक रूप से कर्ज देने वाली संस्था ‘न्यू डेवलपमेंट बैंक’ की स्थापना की गई है।
- भारत एशिया इन्फ्राट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक (AIIB) का एक संस्थापक सदस्य है। गौरतलब है कि चीन भी इस बैंक का एक समर्थक देश है।
- भारत और चीन दोनों ही देश शंघाई सहयोग संगठन के तहत एक दूसरे के साथ कई क्षेत्रों में सहयोग कर रहे हैं। चीन ने शंघाई सहयोग संगठन में भारत की पूर्ण सदस्यता का स्वागत भी किया था।
- दोनों ही देश विश्व बैंक, संयुक्त राष्ट्र और आईएमएफ जैसी संस्थाओं के सुधार और उसमें लोकतांत्रिक प्रणाली के समर्थक हैं। संयुक्त राष्ट्र के मामलों और उसके प्रशासनिक ढांचे में विकासशील देशों की भागीदारी में बढ़ोत्तरी बहुत जरूरी है। इस मामले में दोनों देशों का ऐसा मानना है कि इससे संयुक्त राष्ट्र की कार्यप्रणाली में और बेहतरी आएगी।
- डब्ल्यूटीओ वार्ताओं के दौरान भारत और चीन ने कई मामलों पर एक जैसा रुख अपनाया है जिसमें डब्ल्यूटीओ की दोहा वार्ता भी शामिल है।
- भारत और चीन दोनों ही देश जी-20 समूह के सदस्य हैं।
- पर्यावरण को लेकर अमेरिका और उसके मित्र देशों द्वारा भारत और चीन दोनों की आलोचना की जाती है। इसके बावजूद दोनों ही देशों ने पर्यावरणीय शिखर सम्मेलनों में अपनी नीतियों का बेहतर समन्वयन (coordination) किया है।
The Hindu एडिटोरियल टॉपिक : वैयक्तिक डाटा संरक्षण विधेयक, 2019
पृष्ठभूमि
- वर्ष 2017 में व्यक्तिगत या निजी डेटा को सुरक्षित करने के संबंध में सिफारिश देने हेतु न्यायमूर्ति बी. एन. श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में 10 सदस्यीय समिति की स्थापना की गई थी।
- बाद में इस समिति ने व्यक्तिगत या निजी डेटा को सुरक्षित करने के संबंध में एक मसौदा भारत सरकार के समक्ष पेश किया था।
- 2019 को लोकसभा में निजी डाटा सुरक्षा विधेयक, 2019 को पेश किया था। बाद में इस विधेयक को संसद के दोनों सदनों की एक संयुक्त प्रवर समिति के पास भेज दिया गया था।
- पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल व्यक्तिगत डेटा की गोपनीयता की रक्षा करने और विनियमों के लिए भारतीय डेटा संरक्षण प्राधिकरण (DPAI) को स्थापित करने का प्रावधान करता है। संसद में पारित होने से पूर्व इस बिल की जांच संयुक्त सीमिति द्वारा की जा रही है।
- संयुक्त संसदीय समिति ने निजी डाटा सुरक्षा विधेयक, 2109 के सिलसिले में अमेज़न,ट्विटर फेसबुक इत्यादि कंपनियों को पेश होने का समन भेजा था।
वैयक्तिक डाटा संरक्षण विधेयक, 2019
- इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने 11 दिसंबर , 2019 को लोकसभा में निजी डाटा सुरक्षा विधेयक, 2019 को पेश किया था। बाद में इस विधेयक को संसद के दोनों सदनों की एक संयुक्त प्रवर समिति के पास भेज दिया गया था।
- इस विधेयक के निम्नलिखित प्रावधान हैं।
1. यह विधेयक (i) सरकार (ii) भारत में निगमित कंपनियां (iii) विदेशी कम्पनियों द्वारा व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण को नियंत्रित करता है।
2. यह विधेयक डेटा फिडयुशरी (Fiduciary) के प्रावधान को बढ़ावा देता है। डेटा फिडयुशरी एक ईकाई या व्यक्तिहोता है जो व्यक्तिगत डेटा कोसंग्रहित करने के साधन और उद्देश्यों को तय करता है।
3. यह वियेयक केवल व्यक्तियों द्वारा सहमति प्रदान किए जाने पर ही डेटा के प्रसंस्करण की अनुमति देता है। केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में, व्यक्तिगत डेटा को सहमति के बिनाभी संग्रहित किया जा सकता है।
4. यह विधेयक व्यक्तियों के हितों की रक्षा करने, व्यक्तिगत डेटा के दुरूप्रयोग को रोकने, अनुपालन सुनिश्चित करने और डेटा प्रोटेक्शन अथॉरिटी ऑफ इण्डिया (डी पी ए आई) की स्थापना का प्रावधान करता है।
5. यदि व्यक्ति द्वारा सहमति प्रदान की जाती है तो संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा प्रसंस्करण के लिए भारत से बाहर स्थानांतरित किया जा सकता है हालांकि, इस तरह के संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा को भारत में संग्रहित किया जाना चाहिए। - विधेयक डेटा को तीन श्रेणियों में विभाजित करता है तथा प्रकार के आधार पर उनके संग्रहण को अनिवार्य करता है।
- व्यक्तिगत डेटा: वह डेटा जिससे किसी व्यक्ति की पहचान की जा सकती है जैसे नाम, पता आदि।
- संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा: कुछ प्रकार के व्यक्तिगत डेटा जैसे- वित्तीय, स्वास्थ्य, यौन अभिविन्यास, बायोमेट्रिक, आनुवंशिक, ट्रांसजेंडर स्थिति, जाति, धार्मिक विश्वास और अन्य श्रेणी शामिल हैं।
- महत्त्वपूर्ण व्यक्तिगत डेटा: कोई भी वस्तु जिसे सरकार किसी भी समय महत्त्वपूर्ण मान सकती है, जैसे- सैन्य या राष्ट्रीय सुरक्षा डेटा।
- यह डेटा मिर्ररिंग (Data Mirroring) (व्यक्तिगत डेटा के मामले में) की आवश्यकता को हटा देता है। विदेश में डेटा ट्रांसफर के लिये सिर्फ व्यक्तिगत सहमति की ही आवश्यकता होती है।
- डेटा मिर्ररिंग (Data Mirroring) वास्तविक समय या रियल टाइम में डेटा को एक स्थान से स्टोरेज डिवाइस में कॉपी करने का कार्य करता है।
अतिरिक्त जानकारी
लाभ:
- डेटा स्थानीयकरण कानून-प्रवर्तन एजेंसियों को जांँच और प्रवर्तन हेतु डेटा तक पहुंँच प्रदान करने में कारगर साबित हो सकता है तथा सरकार की इंटरनेट दिग्गजों पर कर लगाने की क्षमता को भी बढ़ा सकता है।
- साइबर हमलों (उदाहरण के लिये पेगासस स्पाइवेयर की निगरानी और जाँच की जा सकती है।
- सोशल मीडिया, जिसका उपयोग कभी-कभी गलत और भ्रामक सूचनाओं को प्रसारित करने हेतु किया जाता है, की निगरानी और जाँच की जा सकती है, ताकि समय रहते उभरते राष्ट्रीय खतरों को रोका जा सके।
- एक मज़बूत डेटा संरक्षण कानून भी डेटा संप्रभुता को लागू करने में मदद करेगा।
नुकसान:
- कई लोगों का तर्क है कि डेटा की फिज़िकल लोकेशन विश्व संदर्भ में प्रासंगिक नहीं है क्योंकि ‘एन्क्रिप्शन की’ (Encryption Keys) अभी भी राष्ट्रीय एजेंसियों की पहुंँच से बाहर हो सकती है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा या तर्कशील उद्देश्य स्वतंत्र और व्यक्तिपरक शब्द हैं, जिससे नागरिकों के निजी जीवन में राज्य का हस्तक्षेप हो सकता है।
- फेसबुक और गूगल जैसे प्रौद्योगिकी दिग्गज इसके खिलाफ हैं और उन्होंने डेटा के स्थानीयकरण की संरक्षणवादी नीति की आलोचना की है क्योंकि उन्हें डर है कि इसका अन्य देशों पर भी प्रभाव पड़ेगा। सोशल मीडिया फर्मों, विशेषज्ञों और यहांँ तक कि मंत्रियों ने भी इसका विरोध किया था, उनका तर्क है कि उपयोगकर्त्ताओं और कंपनियों दोनों के लिये प्रभावी एवं फायदेमंद होने के संदर्भ में इसमें बहुत सी खामियांँ हैं।
- इसके अलावा यह भारत के युवा स्टार्टअप, जो कि वैश्विक विकास का प्रयास कर रहे हैं, या भारत में विदेशी डेटा को संसाधित करने वाली बड़ी फर्मों को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।