जलवायु परिवर्तन से 10 फीसदी तक गिर सकती है भारतीय अर्थव्यवस्था

 

  • कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के अध्ययन में कहा गया है कि जहां वैश्विक अर्थव्यवस्था में 7 फीसदी की गिरावट आ सकती हैं, वहीं भारत की अर्थव्यवस्था 10 फीसदी तक कम हो सकती है। वहीं क्लाइमेट चेंज को झुठलाने वाले अमेरिका को भी अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 10.5 फीसदी तक के घाटे को सहने के लिए तैयार रहना होगा ।
  • कनाडा, जो दावा करता है कि तापमान में हो रही वृद्धि से उसे आर्थिक लाभ होगा, वो भी इस सदी के अंत तक अपनी आय का 13 प्रतिशत से अधिक खो देगा। वहीं शोध से पता चलता है कि यदि दोनों उत्तरी अमेरिकी राष्ट्र पेरिस समझौते के अनुसार चलते हैं तो उनका यह घाटा केवल 2 प्रतिशत तक सीमित हो सकता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि जापान, भारत और न्यूजीलैंड जैसे देश अपनी आय का 10 फीसदी तक खो सकते हैं। वहीं स्विट्जरलैंड में सदी के अंत तक अर्थव्यवस्था में 12 फीसदी की कमी होने के आसार हैं, वहीं रूस का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 9 फीसदी तथा ब्रिटेन का 4 प्रतिशत नीचे आ जाएगा।
  • कुछ विद्वानों का मत है कि उत्तर की विकसित अर्थव्यवस्थाओं पर जलवायु परिवर्तन का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और उन्हें तापमान के बढ़ने से लाभ ही होगा । पर नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च द्वारा प्रकाशित अध्ययन से पता चलता है कि – औसतन अमीर और उत्तर के ठंडे देश भी अपनी उतनी ही आमदनी खो देंगे, जितनी कि दक्षिण के गरीब और गरम देश । लेकिन ऐसे हालत तब ही बनेंगे, जब ग्रीन हाउस गैसों का वैश्विक उत्सर्जन अपनी सामान्य स्थिति में ही बढ़ता रहता है, और यदि उसपर को लगाम नहीं लगाई जाएगी । वैज्ञानिकों का मत है की सदी के अंत तक औसत वैश्विक तापमान में चार डिग्री सेल्सियस से अधिक का इजाफा होने की सम्भावना है।
  • संयुक्त राष्ट्र आपदा न्यूनीकरण कार्यालय (यूएनआईएसडीआर) द्वारा जारी एक अध्ययन में कहा गया है कि भारत ने प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के चलते 1998 से 2017 की 20 साल की अवधि के दौरान लगभग 8,000 करोड़ डॉलर का आर्थिक नुकसान उठाया है।
  • दुनिया भर में प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले आर्थिक नुकसान में भी भारत को दुनिया के शीर्ष पांच देशों में स्थान दिया गया है।

 

Source- September Month Down to Earth

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