विदेश नीति के लक्ष्य

विदेश नीति के विभिन्न लक्ष्यों को अनेक विद्वानों ने अल्पकालीन मध्यवर्ती तथा दीर्घकालीन की श्रेणियों में विभाजित कर विश्लेषित किया है, किन्तु उनको इस प्रकार विभाजित नहीं किया जा सकता क्योंकि विदेश नीति के लक्ष्यों का दायरा इतना लम्बा-चौडा है कि, इस प्रकार की श्रेणियोंमें उनको रखने पर जड़ता की ही बू आती  है ।  विदेश नीति गतिशील है और उसके लक्ष्य भी । अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के बदलते परिप्रेक्ष्य में विदेश नीति के लक्ष्य भी उस मौजूदा वातावरण में अपने को ढालने का प्रयास करते हैं ।

 

इस स्पष्टीकरण के साथ विदेश नीति के लक्ष्यों का निम्नांकित बिन्दुओं के अन्तर्गत अध्ययन करना उचित होगा:

(1)  राष्ट्रीय सीमाओं की सुरक्षा:

राष्ट्रीय सीमाओं की सुरक्षा के बाद ही राष्ट्र अपने आन्तरिक विकास का लक्ष्य पूरा कर पाते हैं । राष्ट्रीय सीमाओं की सुरक्षा के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए विश्व के सभी राष्ट्र सेना का गठन करते हैं तथा बाह्य आक्रमण के संकट के दौरान सेना अपनी राष्ट्रीय सीमाओं की सुरक्षा के लिए जी-जान लगा देती है । इस प्रकार हरेक राष्ट्र की विदेश नीति का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य राष्ट्रीय सीमाओं की सुरक्षा होती है ।

 

(2)  विश्वशान्ति और सुरक्षा की स्थापना:

विश्व के अनेक राष्ट्र शान्तिप्रिय हैं इस कारण उनकी विदेश नीति का एक प्रमुख लक्ष्य विश्वशान्ति और सुरक्षा स्थापित करना होता है । विश्वशान्ति और सुरक्षा के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जहां वे स्वयं युद्ध का सहारा नहीं लेते वहीं विश्व के किसी भी भाग में युद्ध भड़कने पर उसकी आग को जल्दी शान्त करने के लिए अपना सहयोग देने की तत्पर रहते हैं ।

किन्हीं राष्ट्रों से तनावपूर्ण सम्बन्ध की स्थिति में वे संकट के समाधान में मदद करते हैं । वर्तमान युग में बढ़ती शस्त्रों की होड़ को विभिन्न उपायों द्वारा रोकने का प्रयत्न आदि भी करते हैं ताकि विश्वशान्ति और सुरक्षा के समक्ष कोई खतरा उत्पन्न ही न हो । भारत सहित विश्व के अनेक देशों की विदेश नीति का एक प्रमुख लक्ष्य विश्वशान्ति और सुरक्षा की स्थापना है ।

(3)  चहुंमुखी आन्तरिक विकास:

विश्व के समस्त राष्ट्रों की यह महत्वाकांक्षा होती है कि चहुंमुखी आन्तरिक विकास को प्राप्त करें । इसी कारण इन राष्ट्रों की विदेश नीति का एक प्रमुख लक्ष्य चहुंमुखी आन्तरिक विकास करना बन जाता है । विदेश नीति राष्ट्रहितों की पूर्ति करती है और आन्तरिक विकास उससे घनिष्ट रूप से जुड़ा हुआ है ।

चहुंमुखी आन्तरिक विकास के लिए राष्ट्र आपस में अनेक प्रकार के लेन-देन और समझौतों को सम्पादित करते हैं । इस प्रकार विश्व के सभी राष्ट्रों की विदेश नीति का प्रमुख लक्ष्य चहुंमुखी आन्तरिक विकास करना होता है । भारत ने विदेशी सम्पर्क और सहयोग के जरिये ही अपना औद्योगिक विकास किया है ।

(4)  आर्थिक उद्देश्य:

भारत अपने आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए तीसरी दुनिया के देशों को मशीनरी व साज-सामान बेचता है । तेल निर्यातक देश ओपेक संगठन बनाकर तेल के ज्यादा से ज्यादा दाम वसूल कर अपनी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करते हैं । अनेक बड़ी शक्तियां दूसरे देशों में पूंजी निवेश करके आर्थिक मुनाफा कमाती हैं । इस प्रकार आर्थिक उद्देश्यों को प्राप्त करने में सभी देशों की विदेश नीति सदैव सक्रिय रहती है ।

(5)  वैचारिक उद्देश्य:

हरेक राष्ट्र की अपनी एक विचारधारा होती है जिसके आधार पर वह अपने कार्यों का सम्पादन करता है । मसलन अमरीकी विदेश नीति पूंजीवादी लोकतन्त्र पर आधारित है । अमरीका की विदेश नीति का लक्ष्य यह रहता है कि विश्व राष्ट्रों में लोकतन्त्रात्मक शासन व्यवस्था हो तथा इस शासन-व्यवस्था को अपनाने वाले देश मुक्त अर्थव्यवस्था का मार्ग अपनायें ।

इसके विपरीत सोवियत संघ की विदेश नीति साम्यवादी दर्शन पर आधारित थी जिस कारण उसकी विदेश नीति का वैचारिक लक्ष्य था-विश्व में साम्यवाद का प्रचार । इस प्रकार राष्ट्रों की विदेश नीतियों के वैचारिक लक्ष्य होते हैं ।

(6)  सैनिक दृष्टि से शक्तिशाली बनना:

आज के युग में किसी भी राष्ट्र द्वारा सैनिक दृष्टि से मजबूत होना अनिवार्य-सा हो गया है । अन्यथा शत्रु-राष्ट्र उस पर सैनिक हमला कर अवैध रूप से कब्जा कर सकते हैं । इसी दृष्टि से विश्व की विदेश नीति का एक प्रमुख लक्ष्य सैनिक दृष्टि से शक्तिशाली बनना होता है । इसके लिए वे सैनिक शस्त्रों का निर्माण करते हैं तथा आवश्यक शस्त्रों के अभाव में बड़े राष्ट्रों से शस्त्र खरीदते हैं ।

(7)  राष्ट्रीय स्वाधीनता की रक्षा करना:

हरेक स्वतन्त्र राष्ट्र चाहता है कि, वह अपनी राष्ट्रीय स्वाधीनता को बनाये रखे । द्वितीय विश्वयुद्ध कें बाद एशिया, अफ्रीका, लैटिन, अमरीका के अनेक देशों ने राष्ट्रीय स्वाधीनता पाने के लिए औपनिवेशिक दासता के खिलाफ संघर्ष किया ।

स्वतन्त्र होने पर अधिकांश देशों ने गुटनिरपेक्ष नीति अपनायी ताकि वे बड़े राष्ट्रों के प्रभाव से मुक्त होकर स्वतन्त्रता का मार्ग अपना सकें । इस प्रकार राष्ट्रीय स्वाधीनता का लक्ष्य अनेक छोटे एवं गरीब देशों के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है ।

(8) धार्मिक उद्देश्य:

अनेक राष्ट्रों की विदेश नीतियों के धार्मिक उद्देश्य भी होते हैं । अधिकांश मुस्लिम बहुसंख्यक जनसंख्या वाले राष्ट्रों की आधारशिला धर्म पर ही रखी गयी । धर्म की समरूपता होने के कारण अधिकांश मुस्लिम राष्ट्रों की विदेश नीति का धार्मिक उद्देश्य उनमें ‘एकता’ स्थापित करना होता है ।

संकट के समय वे एक-दूसरे की मदद करते है एक मंच बनाकर वे धार्मिक उद्देश्य प्राप्त करने का भी प्रयास करते हैं । भारत में हिन्दू-मुस्लिम दंगा होने पर पाकिस्तान द्वारा भारत में मुक्ति समुदाय के पक्ष में आवाज उठाना धार्मिक उद्देश्य बन गया है ।

(9)  सांस्कृतिक उद्देश्य:

हरेक राष्ट्र की अपनी सभ्यता और संस्कृति होती है । वह विदेश में अपनी संस्कृति के प्रसार के लिए कार्य करता है । इस सांस्कृतिक उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वह विदेशों में सांस्कृतिक प्रतिनिधिमण्डल भेजता है और साहित्य बांटता है, ताकि सांस्कृतिक प्रभाव के द्वारा अपने राष्ट्रीय हितों की पूर्ति कर सके ।

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