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03/08/2024 : GS-2,4 : मुख्य परीक्षा || लिंग पहचान और एथलेटिक निष्पक्षता || दैनिक मुख्य परीक्षा समसामयिकी : Daily Hot Topic in Hindi : Daily Mains Current Affairs in Hindi (Arora IAS)
Daily Hot Topic in Hindi
लिंग पहचान और एथलेटिक निष्पक्षता
GS-2,4 : मुख्य परीक्षा : अंतर्राष्ट्रीय संबंध और नैतिकता
संदर्भ:
अल्जीरिया की इमाने खलीफ ने 2024 पेरिस ओलंपिक में इटली की एंजेला कैरिनी को 46 सेकंड में हराकर लिंग पहचान और एथलेटिक निष्पक्षता पर विवाद को उजागर किया।
लिंग पहचान:
किसी व्यक्ति की अपनी लिंग के बारे में गहराई से महसूस की गई भावना, जो जन्म के समय निर्धारित लिंग से मेल खा सकती है या नहीं भी खा सकती है।
पुरुष और महिला के द्विआधारी ढांचे से परे है।
प्राचीन ज्ञान और आधुनिक चुनौतियाँ:
हिंदू परंपरा में 11 लिंगों को मान्यता दी गई है।
संयुक्त राष्ट्र ट्रांसजेंडर और लिंग-विविध व्यक्तियों के अधिकारों की वकालत करता है।
मुख्य शब्द:
जैविक पुरुष: परंपरागत रूप से शारीरिक विशेषताओं (जननांग, गुणसूत्र आदि) के आधार पर जन्म के समय पुरुष निर्दिष्ट किया गया।
मुख्य न्यायाधीश ने जोर दिया कि पुरुष या महिला की अवधारणा केवल जननांगों पर आधारित नहीं है। यह अधिक सूक्ष्म है और एक पूर्ण निर्धारण नहीं है।
ट्रांसजेंडर महिला: वह व्यक्ति जिसकी लिंग पहचान जन्म के समय निर्धारित लिंग से मेल नहीं खाती।
उदाहरण: जन्म के समय पुरुष निर्दिष्ट किया गया लेकिन एक महिला के रूप में पहचान और जीवन यापन करता है।
बड़ी बहस:
महिलाओं के खेल में लिंग पात्रता एक विवादास्पद मुद्दा है।
पुरुषों में औसतन कुछ शारीरिक लाभ होने के कारण खेलों को लिंग के आधार पर अलग किया गया है।
ट्रांस महिलाओं और ‘मर्दाना’ जैविक विशेषताओं वाली महिलाओं की भागीदारी ने बहस को बढ़ावा दिया है।
दृष्टिकोण:
समावेशिता बनाम निष्पक्षता: महिलाओं के खेल में ट्रांसजेंडर एथलीटों को शामिल करने पर बहस।
शारीरिक अंतर: खेल वैज्ञानिक रॉस टकर ने यौवन के दौरान स्थापित शारीरिक अंतरों पर ध्यान दिया (मांसपेशी द्रव्यमान, एरोबिक क्षमता, हड्डी घनत्व)।
सुरक्षा और समावेशिता: ट्रांसजेंडर समावेश, निष्पक्षता और सुरक्षा को संतुलित करना।
मानवाधिकार विचार: डॉ. सीमा पटेल ने शरीर रचना विज्ञान से परे कारकों पर जोर दिया, जिसमें मानवाधिकार, गरिमा और लिंग पहचान का सम्मान शामिल है।
निष्कर्ष:
खेलों में ट्रांसजेंडर समावेश पर चल रही बातचीत।
निष्पक्षता, सुरक्षा और समावेशिता के बीच सही संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण है।