113 साल के आंकड़ों का विश्लेषण, अधिक बारिश से हो रहा फसलों का नुकसान

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन बुंदेलखंड पर किया है, यहां मूंगफली की खेती काफी प्रभावित हुई है 

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  • इस वर्ष देश के कुछ हिस्सों में सामान्य से तीन हजार प्रतिशत अधिक वर्षा दर्ज की गई, तो दूसरी ओर कई इलाकों में वर्षा का स्तर सामान्य से भी कम देखा गया। बरसात के स्तर में यह अंतर पिछली एक सदी से भी अधिक समय से लगातार बढ़ रहा है, जिसका सीधा असर फसलों के उत्पादन पर पड़ सकता है।
  • सूखे की आशंका से ग्रस्त बुंदेलखंड में 113 वर्षों की औसत वार्षिक वर्षा के आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद भारतीय शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं।
  • शोधकर्ताओं ने झांसी जिले में मूंगफली की फसल पर वर्षा में उतार-चढ़ाव के कारण पड़ने वाले प्रभाव का आकलन किया है।
  • इस अध्ययन से पता चला है कि पूरे मानसून में होने वाली बरसात के बजाय मूंगफली की पैदावार मुख्य रूप से जून-जुलाई में होने वाली वर्षा की मात्रा पर निर्भर करती है।
  • मूंगफली के लिए प्रतिदिन 8 से 32 मिलीमीटर वर्षा महत्वपूर्ण होती है। वहीं, प्रतिदिन 64 मिलीमीटर से ज्यादा वर्षा मूंगफली के लिए हानिकारक हो सकती है। मानसून देर से शुरू होने या फिर भारी बरसात के कारण भी मूंगफली की खेती पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
  • अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि वार्षिक वर्षा के साथ-साथ मानसून के मौसम में होने वाली वर्षा की मात्रा में भी गिरावट देखी गई है। वर्षा के विभिन्न रूपों का विश्लेषण करने पर पाया गया है कि खेती के लिए उपयोगी हल्की एवं मध्यम वर्षा (प्रतिदिन 32 मिलीमीटर से कम) की प्रवृत्ति में भी कमी आई है।
  • शोधकर्ताओं का कहना है कि किसानों को खरीफ फसलों की बुवाई के उपयुक्त समय की जानकारी देने में यह अध्ययन मौसम विज्ञानियों के लिए मददगार हो सकता है।

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