2/10/2019 गांधीवादी विचारधारा

  • बूंदें समुद्र बनाती हैं, इसका कारण यह है कि बूंदों के बीच पूर्ण सामंजस्य और सहयोग है। ”
  • मोहनदास करमचंद गांधी जी एक प्रख्यात स्वतंत्रता कार्यकर्ता और एक प्रभावशाली राजनीतिक नेता थे जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद भारत के संघर्ष में एक प्रमुख भूमिका निभाई थी। गांधी को अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे कि महात्मा (एक महान आत्मा), बापूजी के (गुजराती में पिता के लिए प्रिय) और राष्ट्रपिता।
  • हर साल, उनके जन्मदिन को गांधी जयंती के रूप में मनाया जाता है, जो भारत में एक राष्ट्रीय अवकाश है, और अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।
  • गांधी जी को भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान एक प्रतीक माना जाता है।
  • गांधी जी ने आधुनिक सभ्यता की विकट दुर्दशा के सभी दुखद प्रसंगों को सामने लाए, जो बाहरी प्रगति की विशेषता है। साथ ही भारत का भीतर से पिछड़ापन के कारण भी बताए है
  • यह एक विरोधाभास लग सकता है लेकिन संपन्नता में गरीबी है। और गांधी की तीक्ष्ण अंतर्दृष्टि में गरीबी केवल स्पष्ट रूप से प्रकट हो सकती है।

 

गांधीवादी विचारधारा क्या है?

  • गांधीवादी विचारधारा महात्मा गांधी द्वारा अपनाई और विकसित की गई उन धार्मिक-सामाजिक विचारों का समूह जो उन्होंने पहली बार वर्ष 1893 से 1914 तक दक्षिण अफ्रीका में तथा उसके बाद फिर भारत में अपनाई थी।
  • गांधीवादी दर्शन न केवल राजनीतिक, नैतिक और धार्मिक है, बल्कि पारंपरिक और आधुनिक तथा सरल एवं जटिल भी है। यह कई पश्चिमी प्रभावों का प्रतीक है, जिनको गांधीजी ने उजागर किया था, लेकिन यह प्राचीन भारतीय संस्कृति में निहित है तथा सार्वभौमिक नैतिक और धार्मिक सिद्धांतों का पालन करता है।
  • यह दर्शन कई स्तरों आध्यात्मिक या धार्मिक, नैतिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, व्यक्तिगत और सामूहिक आदि पर मौजूद है। इसके अनुसार-
    • आध्यात्मिक या धार्मिक तत्व और ईश्वर इसके मूल में हैं।
    • मानव स्वभाव को मूल रूप से सद्गुणी है।
    • सभी व्यक्ति उच्च नैतिक विकास और सुधार करने के लिये सक्षम हैं।
  • गांधीवादी विचारधारा आदर्शवाद पर नहीं, बल्कि व्यावहारिक आदर्शवाद पर ज़ोर देती है।
  • गांधीवादी दर्शन एक दोधारी तलवार है जिसका उद्देश्य सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों के अनुसार व्यक्ति और समाज को एक साथ बदलना है।
  • गांधीजी ने इन विचारधाराओं को विभिन्न प्रेरणादायक स्रोतों जैसे- भगवद्गीता, जैन धर्म, बौद्ध धर्म, बाइबिल, गोपाल कृष्ण गोखले, टॉलस्टॉय, जॉन रस्किन आदि से विकसित किया।
    • टॉलस्टॉय की पुस्तक ‘द किंगडम ऑफ गॉड इज यू इन यू’ का महात्मा गांधी पर गहरा प्रभाव था।
    • गांधीजी ने रस्किन की पुस्तक ‘अनटो दिस दिस लास्ट’ से ‘सर्वोदय’ के सिद्धांत को ग्रहण किया और उसे जीवन में उतारा।
  • इन विचारों को बाद में “गांधीवादियों” द्वारा विकसित किया गया ह, विशेष रूप से, भारत में विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण तथा भारत के बाहर मार्टिन लूथर किंग जूनियर और अन्य लोगों द्वारा।

प्रमुख गांधीवादी विचारधारा

सत्य और अहिंसा: गांधीवादी विचारधारा के ये 2 आधारभूत सिद्धांत हैं।

गांधी जी का मानना था कि जहाँ सत्य है, वहाँ ईश्वर है तथा नैतिकता – (नैतिक कानून और कोड) इसका आधार है।

अहिंसा का अर्थ होता है प्रेम और उदारता की पराकाष्ठा। गांधी जी के अनुसार अहिंसक व्यक्ति किसी दूसरे को कभी भी मानसिक व शारीरिक पीड़ा नहीं पहुँचाता है।

सत्याग्रह: इसका अर्थ है सभी प्रकार के अन्याय, उत्पीड़न और शोषण के खिलाफ शुद्धतम आत्मबल का प्रयोग करना।

  • यह व्यक्तिगत पीड़ा सहन कर अधिकारों को सुरक्षित करने और दूसरों को चोट न पहुँचाने की एक विधि है।
  • सत्याग्रह की उत्पत्ति उपनिषद, बुद्ध-महावीर की शिक्षा, टॉलस्टॉय और रस्किन सहित कई अन्य महान दर्शनों में मिल सकती है।

सर्वोदय- सर्वोदय शब्द का अर्थ है ‘यूनिवर्सल उत्थान’ या ‘सभी की प्रगति’। यह शब्द पहली बार गांधी जी ने राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर जॉन रस्किन की पुस्तक “अनटो दिस दिस लास्ट” पर पढ़ा था।

स्वराज- हालाँकि स्वराज शब्द का अर्थ स्व-शासन है, लेकिन गांधी जी ने इसे एक ऐसी अभिन्न क्रांति की संज्ञा दी जो कि जीवन के सभी क्षेत्रों को समाहित करती है।

  • गांधी जी के लिये स्वराज का मतलब व्यक्तियों के स्वराज (स्व-शासन) से था और इसलिये उन्होंने स्पष्ट किया कि उनके लिये स्वराज का मतलब अपने देशवासियों हेतु स्वतंत्रता है और अपने संपूर्ण अर्थों में स्वराज स्वतंत्रता से कहीं अधिक है, यह स्व-शासन है, आत्म-संयम है और इसे मोक्ष के बराबर माना जा सकता है।

ट्रस्टीशिप- ट्रस्टीशिप एक सामाजिक-आर्थिक दर्शन है जिसे गांधी जी द्वारा प्रतिपादित किया गया था।

  • यह अमीर लोगों को एक ऐसा माध्यम प्रदान करता है जिसके द्वारा वे गरीब और असहाय लोगों की मदद कर सकें।
  • यह सिद्धांत गांधी जी के आध्यात्मिक विकास को दर्शाता है, जो कि थियोसोफिकल लिटरेचर और भगवद्गीता के अध्ययन से उनमें विकसित हुआ था।

स्वदेशी: स्वदेशी शब्द संस्कृत से लिया गया है और यह संस्कृत के 2 शब्दों का एक संयोजन है। ‘स्व’ का अर्थ है स्वयं और ‘देश’ का अर्थ है देश। इसलिये स्वदेश का अर्थ है अपना देश। स्वदेशी का अर्थ अपने देश से है, लेकिन ज्यादातर संदर्भों में इसका अर्थ आत्मनिर्भरता के रूप में लिया जा सकता है।

  • स्वदेशी राजनीतिक और आर्थिक दोनों तरह से अपने समुदाय के भीतर ध्यान केंद्रित करता है।
  • यह समुदाय और आत्मनिर्भरता की अन्योन्याश्रितता है।
  • गांधी जी का मानना ​​था कि इससे स्वतंत्रता (स्वराज) को बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि भारत का ब्रिटिश नियंत्रण उनके स्वदेशी उद्योगों के नियंत्रण में निहित था। स्वदेशी भारत की स्वतंत्रता की कुंजी थी और महात्मा गांधी के रचनात्मक कार्यक्रमों में चरखे द्वारा इसका प्रतिनिधित्व किया गया था।

अर्थशास्त्र

  • गांधी ने जापान और दक्षिण कोरिया जैसे निर्यात पैदा करने के बजाए सरल जीवन और आत्मनिर्भरता / आयात प्रतिस्थापन के आर्थिक सिद्धांत को प्रेरित किया।
  • उन्होंने आजादी पर एक और कृषि भारत की कल्पना की जो कि अपने नागरिक की भौतिक जरूरतों को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करेगी गांधी ने 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में अधिकांश भारतीयों की कपड़ों की शैली भी अपनाई थी।
  • खादी, या घर के कपड़े का अपना गोद लेने का उद्देश्य गरीबी, सामाजिक और आर्थिक भेदभाव की बुराइयों को खत्म करने में मदद करना था।
  • कपड़ों की नीति को भारत में ब्रिटिश आर्थिक नीतियों के विरोध में डिजाइन किया गया था।

खादी और चरखा

  • गांधी ने साधारण जीवन के आर्थिक सिद्धांत को प्रेरित किया और लाखों गरीब भारतीय श्रमिक बेरोजगार थे और गरीबी में फंस गए थे, जिसे गांधी ने ब्रिटेन में कपास प्रसंस्करण के औद्योगिकीकरण से जोड़ा था।
  • गांधी ने खादी को लंकाशायर कपास उद्योग के प्रत्यक्ष बहिष्कार के रूप में पदोन्नत किया। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सभी सदस्यों को हर दिन चर्खा (कताई चक्र) पर हाथ-कताई करने के लिए कुछ समय बिताने पर ध्यान केंद्रित किया।

 

आज के संदर्भ में गांधीवादी विचारधारा की प्रासंगिकता

  • सत्य और अहिंसा के आदर्श गांधी के संपूर्ण दर्शन को रेखांकित करते हैं तथा यह आज भी मानव जाति के लिये अत्यंत प्रासंगिक है।
  • महात्मा गांधी की शिक्षाएं आज और अधिक प्रासंगिक हो गई हैं जब कि लोग अत्याधिक लालच, व्यापक स्तर पर हिंसा और भागदौड़ भरी जीवन शैली का समाधान खोजने की कोशिश कर रहे हैं।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग, दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला और म्याँमार में आंग सान सू की जैसे लोगों के नेतृत्व में कई उत्पीड़ित समाज के लोगों को न्याय दिलाने हेतु गांधीवादी विचारधारा को सफलतापूर्वक लागू किया गया है, जो इसकी प्रासंगिकता का प्रत्यक्ष उदाहरण है।
  • दलाई लामा ने कहा, “आज विश्व शांति और विश्वयुद्ध, अध्यात्म और भौतिकवाद, लोकतंत्र व अधिनायकवाद के बीच एक बड़ा युद्ध चल रहा है।” इन बड़े युद्धों से लड़ने के लिये ये ठीक होगा कि समकालीन समय में गांधीवादी दर्शन को अपनाया जाए।

निष्कर्ष

  • गांधीवादी विचारधारा ने ऐसे संस्थानों और कार्यप्रणालियों के निर्माण को आकार दिया जहाँ सभी की आवाज और परिप्रेक्ष्य को स्पष्ट किया जा सकता है।
  • उनके अनुसार, लोकतंत्र ने कमजोरों को उतना ही मौका दिया, जितना ताकतवरों को।
  • उनके स्वैच्छिक सहयोग, सम्मानजनक और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के आधार पर कार्य करने के सुझाव को कई अन्य आधुनिक लोकतंत्रों में अपनाया गया। साथ ही, राजनीतिक सहिष्णुता और धार्मिक विविधता पर उनका ज़ोर समकालीन भारतीय राजनीति में अपनी प्रासंगिकता को बनाए रखता है।
  • सत्य, अहिंसा, सर्वोदय और सत्याग्रह तथा उनके महत्त्व से गांधीवादी दर्शन बनता है और ये गांधीवादी विचारधरा के चार आधार हैं।

 

टीम अरोरा आईएएस(इनपुट)

  •  गाँधी ने भारत के राष्ट्रीय आंदोलन को अहिंसात्मक संघर्ष एक नई शैली, जिसे अब ”सत्याग्रह” कहा जाता है, प्रदान की जिसे सारा विश्व आश्चर्य चकित होकर देखता रहा। गाँधी जी ने सन् 1920 में ”असहयोग” आन्दोलन चलाया, 1930 में ”सविनय अवज्ञा” आंदोलन और 1942 में ”भारत छोड़ों” आन्दोलन। सन् 1920 से 1947 तक भारत का यह संत निरन्तर भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व करता रहा। उनके प्रयास एवं प्रेरणा के फलस्वरूप यह आन्दोलन भारतीय स्वतंत्रता के लिए जन-जन का आंदोलन बन गया। गाँधी ने साबित कर दिया- संकल्प शक्ति के धनी और अपने उद्देश्य की सच्चाई में अपरिमित श्रृद्घा रखने वाले, उत्साही लोगों का एक छोटा सा समूह भी इतिहास की धारा को बदल सकता है। .
  • महात्मा गाँधी प्रमुख राजनितिक, दार्शनिक एवं समाज सुधारक होने के साथ साथ एक महान शिक्षा शास्त्री भी थे। उनके अनुसार शिक्षा द्वारा बालक का विकास इस प्रकार किया जाना चाहिए, वह स्वयं को पहचान सके व स्वयं के माध्यम से सत्य का साक्षात्कार करने में सफल हों। वे शिक्षा को चारित्रिक विकास का आधार मानते थे। उन्होंने शिक्षा में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाने पर बल दिया था। उनके अनुसार शिक्षा का उद्देश्य स्वावलम्बन या आत्म निर्भरता है। नैतिकता, भ्रातृत्व, सह अस्तित्व व चारित्रिक उच्चता उनके धर्म का आधार थी। उनका कथन था कि भारत प्रमुख धर्मों का आश्रय स्थल रहा है और समय के साथ साथ बहुधर्मिय के रूप में उभरा है। हमारा व्यापक दृष्टिकोण व गहरी सहिष्णुता, सामाजिक असामंजस्य, धार्मिक मतभेद और तनाव को मिटा सकती है। .
  • गाँधी ने धार्मिक मतभेदों व धार्मिक कट्टरपन के विरूद्ध संघर्ष किया और स्पष्ट किया कि राज्य को धर्म के विषय में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। उन्होंने धर्म निरपेक्षवाद के सिद्घान्त को सामाजिक न्याय और समानता के साथ जोड़ा। ईश्वर तो सत्य व प्रेम है, ईश्वर एक हैं, सब अलग अलग व्याख्याऐं करते हैं। गाँधी के नेतृत्व के अवयव थे- दूर दृष्टि, साहस व चरित्र, करूणा, समवती भावना, दृढ़ संकल्प, सम्प्रेषण, निपुणता, संगठन कुशलता, रणनीति कौशल, प्रबन्धन कुशलता, उदारता, राष्ट्रीयता, आत्मविश्वास व विश्व के प्रति व्यापक दृष्टिकोण। भारतीय जनता का संगठन एवं पुर्ननवीनीकरण, औपनिवेशिक आधीनता से भारत की अहिंसात्मक मुक्ति, अस्पृश्यता का उन्मूलन, पंचायती राज का पुनुरूत्थान, सामंतवाद का अंत, राजनीति में पारदर्शिता का सूत्र पात उनके नेतृत्व की उपलब्धियॉ रही और उनका प्रभाव उग्रवादी राष्ट्रीयता, आर्थिक अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध, सिद्घान्त एवं कार्यप्रणाली पर्यावरण व प्रबन्धना सिद्घान्तों , जन शक्ति आन्दोलन पर पड़ा। .
  • स्वाधीनता की रात को गाँधी जी स्वतंत्रता का जश्न मनाने के स्थान पर नोआखाली में साम्प्रदायिक हिंसा को शांत करने में लगे थे। देश के विभाजन और उनकी हत्या से देश का घटनाक्रम घूम गया। परन्तु उनकी मृत्यु के पश्चात भी उनका दर्शन भारतीय राजनीति पर छाया रहा है। पंचायती राज इसका महत्वपूर्ण उदाहरण है। राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान वे दलितों के उद्घारक बन कर उभरे। दलितों को जागृत करने के साथ-2 वे उच्च वर्ग को देश में व्याप्त अस्पृश्यता को छोडऩे की प्रेरणा देते रहे। गांधी जी ने सत्ता ओर पद से दूर रह कर सर्वोदय एवं सम्पूर्ण क्राँति के दर्शन का प्रतिपादन किया है। गाँधी जी ने देश को स्वाभिमान एवं स्वावलंबन का पाठ पढ़ाया। .
  • गाँधी 20वीं शताब्दी के पहले नेता थे जिन्होंने सरलतापूर्वक उपनिवेशवाद, वर्गभेद, राजनैतिक और सामाजिक बुराईयों का सफलतापूर्वक सामना किया। लुई फिशर के अनुसार केवल कार्ल माकर््स ऐसे व्यक्ति हैं जो गाँधी के समान लोगों के मस्तिष्क पर प्रभाव डाल सके हैं, पूरे विश्व के सामने गाँधी एक भविष्य के रूप में आज भी विद्यमान हैं। गाँधी के लिए सत्य उतना ही वास्तविक और सर्वशक्तिमान था जितना ईश्वर। मार्टिन लूथर किंग ने स्वीकार किया था, गाँधी की अहिंसा ही सरलता पूर्वक अपने उपनिवेशवाद, वर्ग भेद को मिटा सकती है। हमारे सामने केवल दो ही विकल्प हैं, अहिंसा का या अस्तित्वहीन का। निजीकरण वैश्वीकरण औद्योगिकरण एवं उपभोक्तावादी दर्षन ने उनके स्वदेशी स्वावलम्बन, सर्वोदय, अंत्योदय, वैष्णवजन, सत्य, अहिंसा को विलीन कर दिया है। .
  • गाँधी जी ने कहा था मेरा जीवन ही मेरा संदेश है। आज के राजनीतिज्ञों ने उनकी शिक्षा व आजीवन आदर्शों के प्रतिकूल, जीवन के हर क्षैत्र में, सुचिता, नैतिकता, आत्म संयम को आज के राजनीतिज्ञों ने विदा कर दिया। लोग आजादी मिलने के बाद ही पद और प्रतिष्ठा के लिए लालायित हो गये। गाँधी जी जानते थे कि सत्ता लोलुपता, आकांक्षा व्यक्ति को किस तरह भ्रष्ट कर कितने निम्न स्तर तक ले जा सकती है। मूल विहीन, दिशा विहीन असमानताओं से भरा भारत उनके सपनों का भारत नहीं था। भौतिकतावादी परिवर्तन, गाँधीकालीन भारत को सुरक्षित नहीं रख सका। गॉंधी साधनों की पवित्रता में विश्वास करते थे। भारत माता को बंधन मुक्त कराने के साथ हिंसात्मक प्रति हिंसा से मुक्त कराना चाहते थे, सत्य सेवा और सर्वोदय उनका जीवन दर्शन था, उन्होंने अपनी वसीयत में कहा था शहरों और कस्बों से भिन्न हिन्दुस्तान के लाखों गाँवों की सामाजिक, नैतिक और आर्थिक आजादी हासिल करना उनका ध्येय है। उन्होंने कहा था हमें साम्प्रदायिक संस्थाओं के साथ गंदी होड से बचना है, प्रेम शांति सर्वधर्म समभाव, मानव मूल्य, सुचिता, नैतिकता पर आधारित शासन पद्घति स्थापित करनी है। .
  • महात्मा गाँधी के पौत्र राज मोहन गाँधी ने महात्मा गाँधी के सम्बन्ध में लिखा है कि गाँधी बहुतों के लिए कठोर किन्तु अपने लिए कठोरतम, फिर भी जगमगाते हुए सत्य की और उन्मुख, प्रेम के प्रति दृढ़ प्रतिज्ञ, मानव मात्र के दु:ख निवारण हेतु स्वयं जल कर दूसरों को आलोकित करने वाले, कभी-कभी हठी किन्तु स्वयं साहसिक रूप से आश्वस्त। वे नीतिशास्त्र के महा मानव थे। लेखिका मेरी ई. किंग के अनुसार गाँधी आठ सशक्त संघर्ष के अग्रणिता थे। जातिवाद के विरूद्ध, उपनिवेशवाद के विरूद्ध, वर्ण भेद के विरूद्ध, आर्थिक शोषण के विरूद्ध, महिलाओं के निम्नीकरण के विरूद्ध, धार्मिक और जातिवाद श्रेष्ठता के विरूद्ध, लोकतांत्रिक भागीदारी एवं सामाजिक व राजनैतिक परिवर्तनों के समर्थन के लिए। जब तक शत्रुता, अशांति, जातिय शोषण आन्तरिक संघर्ष और सैन्य आधिपत्य का भय रहेगा लोग गाँधी की और देखेंगे। .
  • गाँधी जी के आशीर्वाद से पं. जवाहर लाल नेहरू, जिन्होंने स्वाधीनता संग्राम में अपने योवन के 14 वर्ष जेल मे बिताये थे, भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने। परन्तु आर्थिक नीतियों के सम्बन्ध में उनकी सोच स्वतंत्रता के साथ समाजवादी पद्घति की रही। उन्होंने भारत में नियोजित विकास प्रारम्भ किया। देश में सार्वजनिक क्षेत्र में आधारभूत उद्योग स्थापित किये, देश में लोकतंत्र की स्थापना में ऐतिहासिक एवं महत्वपूर्ण योगदान किया। राष्ट्र निर्माण की राह पर देश चल पड़ा। .
  • आज यह प्रश्न बड़ा सार्थक है- अब तक की यात्रा कितनी सफल रही। सन् 1950 में संविधान तैयार कर हमने संसदीय जनतंत्र स्थापित किया, कानून के शासन और मूल अधिकारों की घोषणा के साथ सामंती समाज रचना को ध्वस्त किया, सामाजिक न्याय की आवाजबुलन्द हुई। योजनावद्घ विकास के माध्यम से भारत अविकसित देश से विकासशील देश बनते हुए विकसित देश बनने की राह पर हैं। सामुदायिक विकास से पंचायती राज तक की विकेन्द्रित हमारी राजनीतिक की छवि सामने आई। सामाजिक न्याय व आर्थिक विकास के युग का एक नया दौर प्रारम्भ हुआ। देश लोकतंत्रिय व्यवस्था के अंतर्गत चल पड़ा है। गत 66 वर्ष में हमारी राजनैतिक व्यवस्था सुधरी है। हमारा राष्ट्रीय निर्माण का कार्य अनवरतरूप से चल रहा है। यद्घपि वह ऐसी नहीं है जैसा गांधी जी चाहते थे। लोकतांत्रिक संस्थाऐं बनी किन्तु गाँधी जी द्वारा बताये गये मूल्य दमित रहे। .
  • आर्थिक विकास की तेज रफ्तार के साथ विषमता बढ़ी, असमान विकास की तस्वीर भी सामने आई, प्राथमिकता और नीतियों में गम्भीर विरोधाभास दिखाई दिये। गाँधी की सोच के विपरीत आज आर्थिक सुधारवाद, भू-मण्डलीय करण के नाम पर नीतियॉं बनी। पूँजी वालों की पूँजी बढ़ रही है, शहरों को चका चौंध कर रही है। परन्तु अर्थ व्यवस्था में गाँव व खेत खलिहान हाँसिए पर हैं। गाँव पहले भी उपेक्षित थे आज भी उपेक्षित है। बिजली ,पानी, सडक़, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी बुनियादी आवश्यकताऐं आज भी पयाप्त नहीं है। ग्रामीण और शहरी भारत जैसे दो देश दिखाई दे रहे हैं। किसान, मजदूर, महिलाओं की तकलीफें बढ़ी हैं। देश में 50: बच्चे शोषण व दुर्वव्यवहार का शिकार बन रहे हैं । इलाज और पोषण की कमी के कारण बच्चों की मोतें हो रही हैं। अमीरों, मध्यम वर्ग के लोगों के लिए निजी व महंगे अस्प्ताल हैं, ग्रामों में सरकारी सुविधाऐं नाम मात्र के लिए हैं। आर्थिक सामाजिक विषमता बढ़ी है। आज भी देश के करोड़ों बंचितों को बुयादी सेवा उपलब्ध नहीं है। .
  • महात्मा गाँधी ने उद्योग एवं व्यापारिक जगत को सामाजिक दायित्व अंगीकृत करने को पे्ररित किया था। परन्तु उन्होंने इस जिम्मेदारी को नहीं निभाया। हम भूल गये कि कुछ लोगों को अरबपति बनाना ही देश की समृद्घि का संकेतक नहीं हैं। एक तरफ सैंकड़ों अरबपति दूसरी तरफ 20: से अधिक लोग गरीबी की रेखा के नीचे जीवन बिताते दिखाई दे रहे हैं। .

 

 

 

 

 

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *