5 फरवरी 2019 : द हिन्दू एडिटोरियल (Arora IAS)(The Hindu Editorials Notes in Hindi Medium)

नोट – आज 15 वें वित्त आयोग पर एक लेख है। निम्नलिखित मुख्य आकर्षण हैं:

15 वें वित्त आयोग:

वित्त आयोग की आवश्यकता क्यों 

  • भारत की संघीय प्रणाली केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति और कार्यों के विभाजन की अनुमति देती है और इसी आधार पर कराधान की शक्तियों को भी केंद्र और राज्यों के बीच विभाजित किया जाता है।
  • राज्य विधायिका को अधिकार है कि वह स्थानीय निकायों को अपनी कराधान शक्तियों में से कुछ अधिकार दे सकते हैं।
  • केंद्र कर राजस्व का अधिकांश हिस्सा एकत्र करता है और कुछ निश्चित करों के संग्रह के माध्यम से बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था में योगदान देता है।
  • स्थानीय मुद्दों और ज़रूरतों को निकटता से जानने के कारण राज्यों की यह ज़िम्मेदारी है कि राज्य अपने क्षेत्रों में लोकहित का ध्यान रखें।
  • हालाँकि इन सभी कारणों से कभी-कभी राज्य का खर्च उनको प्राप्त होने वाले राजस्व से कहीं अधिक हो जाता है।
  • इसके अलावा, विशाल क्षेत्रीय असमानताओं के कारण कुछ राज्य दूसरों की तुलना में पर्याप्त संसाधनों का लाभ उठाने में असमर्थ हैं। इन असंतुलनों को दूर करने के लिये, वित्त आयोग राज्यों के साथ साझा किये जाने वाले केंद्रीय निधियों की सीमा की सिफारिश करता है
  • भारत के राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अनुच्छेद 280 के तहत पंद्रहवें वित्त आयोग की नियुक्ति को 27 नवंबर, 2017 को अधिसूचित किया गया था।
  • 2020-21 से 2024-25 की अवधि के लिए पांच साल के लिए 30 अक्टूबर, 2019 तक रिपोर्ट प्रस्तुत करना आवश्यक था।
  • हालांकि, विभिन्न राजनीतिक और राजकोषीय विकास के कारण, आयोग का कार्यकाल अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए बढ़ाया गया था।
  • अब यह दो रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा, एक 2020-21 के लिए और दूसरा 1 अप्रैल 2021 से शुरू होने वाले पांच वर्षों की अवधि को कवर करेगा।

 

वित्त आयोग और इसके कार्य:

विस्तार के कारण:

  • जम्मू और कश्मीर को राज्य का दर्जा समाप्त करने के लिए आयोग को केंद्रशासित प्रदेश को छोड़कर एक अनुमान लगाने की आवश्यकता थी।
  • विकास में गिरावट और कम मुद्रास्फीति ने मामूली जीडीपी वृद्धि को धीमा कर दिया है जो मुख्य कर आधार प्रॉक्सी है; मध्यम अवधि के लिए इस पर आधारित कर राजस्व और व्यय का अनुमान लगाने से गंभीर जोखिम उत्पन्न हो सकते हैं।

रिपोर्ट में सुझाए गए सुझाव:

  • आयोग ने कर निर्धारण और राजस्व-अंतर अनुदान के लिए पिछले आयोगों द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण और कार्यप्रणाली को जारी रखा है।
  • करों का ऊर्ध्वाधर विभाजन – राज्यों का हिस्सा 41% है
  • हालांकि, क्षैतिज शेयरों के लिए, “वित्तीय आवश्यकताओं, इक्विटी और दक्षता” पर विचार करने के लिए सूत्र को बदल दिया गया है।
  • कारक माना जाता है – आय की दूरी, जनसंख्या और क्षेत्र और वन कवर, दो अतिरिक्त कारक – जनसांख्यिकीय प्रदर्शन और कर प्रयास भी उपयोग किए गए थे।

 

वित्त आयोग
संवैधानिक प्रावधान  ·       वित्त आयोग के संबंध में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 280 और 281 में उल्लेख किया गया है।

·       वित्त आयोग एक अर्द्धन्यायिक एवं सलाहकारी निकाय है।

संरचना/गठन  ·       अनुच्छेद 280(1) के तहत उपबंध है कि वित्त आयोग राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त्त किये जाने वाले एक अध्यक्ष और चार अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगा।

·       अनुच्छेद 280(2) के तहत संसद को शक्ति प्राप्त है कि वह वित्त आयोग की  निर्धारित करे।

·       संसद द्वारा वित्त आयोग के सदस्यों की अर्हताएँ निर्धारित करने हेतु वित्त आयोग (प्रकीर्ण उपबंध) अधिनियम,1951 पारित किया गया है इसके अंतर्गत निम्नलिखित अर्हताएँ हैं:

♦ अध्यक्ष एक ऐसा व्यक्ति हो जो लोक मामलों का ज्ञाता हो।
♦ अन्य चार सदस्यों में उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनने की अर्हता हो या उन्हें प्रशासन व वित्तीय मामलों का विशेष ज्ञान हो या अर्थशास्त्र का विशिष्ट ज्ञान हो।

कार्य  ·       भारत के राष्ट्रपति को यह सिफारिश करना कि संघ एवं राज्यों के बीच करों की शुद्ध प्राप्तियों को कैसे वितरित किया जाए एवं राज्यों के बीच ऐसे आगमों का आवंटन।

·       अनुच्छेद 275 के तहत संचित निधि में से राज्यों को अनुदान/सहायता दिये जाना चाहिये।

·       राज्य वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर पंचायतों एवं नगरपालिकाओं के संसाधनों की आपूर्ति हेतु राज्य की संचित निधि में संवर्द्धन के लिये आवश्यक क़दमों की सिफारिश करना।

·       राष्ट्रपति द्वारा प्रदत्त अन्य कोई विशिष्ट निर्देश, जो देश के सुदृढ़ वित्त के हित में हों। 

शक्तियाँ ·       आयोग अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपता है, जिसे राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखवाता है।

·       प्रस्तुत सिफारिशों के साथ स्पष्टीकारक ज्ञापन भी रखवाना होता है ताकि प्रत्येक सिफारिश के संबंध में हुई कार्यवाही की जानकारी हो सके।

·       वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशें सलाहकारी प्रवृति की होती हैं इसे मानना या न मानना सरकार पर निर्भर करता है।

 

  • वित्त आयोग एक संवैधानिक निकाय है। केंद्र-राज्य के परस्पर वित्तीय संबंधों पर सुझाव देने के उद्देश्य से भारत के राष्ट्रपति द्वारा इसका गठन किया जाता है। 15वां वित्त आयोग (चेयर: एन. के. सिंह) दो रिपोर्ट सौंपेगा। आयोग की पहली रिपोर्ट 1 फरवरी, 2020 को संसद के पटल पर रखी गई। इस रिपोर्ट में 2020-21 के लिए सुझाव दिए गए हैं। 2021-26 की अवधि के लिए दूसरी रिपोर्ट में सुझाव दिए जाएंगे और इस अंतिम रिपोर्ट को 30 अक्टूबर, 2020 को सौंपा जाएगा। 

पहली रिपोर्ट (2020-21) के मुख्य सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं: 

  • राज्यों को टैक्स का हस्तांतरण: केंद्र के टैक्स में राज्यों के हिस्से को 2015-20 की अवधि के मुकाबले 2020-21 में कम करने का सुझाव दिया गया है। पहले यह हिस्सा 42% था, और अब 41% है। नव निर्मित केंद्र शासित प्रदेशों- जम्मू एवं कश्मीर तथा लद्दाख को केंद्र सरकार द्वारा धनराशि देने के लिए 1% की गिरावट की गई है। केंद्रीय करों के डिवाइजिबल पूल से प्रत्येक राज्य का हिस्सा अनुलग्नक की तालिका 3 में दिया गया है।    

हस्तांतरण के मानदंड

तालिका 1 में स्पष्ट किया गया है कि केंद्रीय करों में प्रत्येक राज्य की हिस्सेदारी तय करने के मानदंड क्या हैं और प्रत्येक मानदंड को कितना वेटेज दिया गया है। हम कुछ संकेतकों को नीचे स्पष्ट कर रहे हैं। 

तालिका 1: हस्तांतरण के मानदंड (2020-21)

मानदंड 14वां आयोग

201520

15वां आयोग

202021

आय अंतर 50.0 45.0
जनसंख्या (1971) 17.5
जनसंख्या (2011) 10.0 15.0
क्षेत्र 15.0 15.0
वन क्षेत्र 7.5
वन और पारिस्थितिकी  10.0
जनसांख्यिकी प्रदर्शन 12.5
टैक्स के प्रयास 2.5
कुल 100 100

 

आय अंतर (इनकम डिस्टेंस): 

  • राज्य की आय और उस राज्य की उच्चतम आय के बीच के अंतर को आय अंतर (इनकम डिस्टेंस) कहा जाता है। 2015-16 और 2017-18 के बीच की तीन वर्षीय अवधि के दौरान औसत प्रति व्यक्ति जीएसडीपी के आधार पर राज्य की आय की गणना की जाती है। जिन राज्यों की प्रति व्यक्ति आय कम होती है, उन्हें विभिन्न राज्यों के बीच बराबरी कायम करने के लिए अधिक बड़ा हिस्सा दिया जाएगा।  
     
  • जनसांख्यिकी प्रदर्शन: आयोग के संदर्भ की शर्तों (टीओआर) में यह अपेक्षित है कि सुझाव देते समय 2011 की जनगणना के आंकड़ों का इस्तेमाल किया जाए। इस प्रकार आयोग ने अपने सुझावों में केवल 2011 के जनगणना के आंकड़ों का इस्तेमाल किया।
     
  • जनसांख्यिकी प्रदर्शन के मानदंड को इसलिए शुरू किया किया गया था ताकि राज्यों को जनसंख्या नियंत्रण के प्रयासों के लिए पुरस्कृत किया जा सके। प्रत्येक राज्य के कुल प्रजनन अनुपात के व्युत्क्रम (रेसिप्रोकेल) का इस्तेमाल करते हुए इसकी गणना की जाएगी और इसका आधार 1971 की जनगणना के आंकड़े होंगे। निम्न प्रजनन अनुपात वाले राज्यों को इस मानदंड पर अधिक स्कोर मिलेगा। एक निर्दिष्ट वर्ष में कुल प्रजनन अनुपात को उन बच्चों की कुल संख्या के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो किसी महिला द्वारा अपने प्रजनन काल के दौरान प्रचलित आयु विशिष्ट प्रजनन दर के अनुरूप जन्म दिया जाता है। 
     
  • वन और पारिस्थितिकी: किसी राज्य की कुल वन सघनता का सभी राज्यों की कुल सघनता में हिस्सा निर्धारित करके इस मानदंड को निर्धारित किया गया है। 
     
  • कर प्रयास: अधिक कर जमा करने वाले राज्यों को पुरस्कृत करने के लिए इस मानदंड का प्रयोग किया गया है। इसकी गणना 2014-15 और 2016-17 के बीच तीन वर्ष के दौरान प्रति व्यक्ति औसत कर राजस्व और प्रति व्यक्ति औसत राज्य जीडीपी के अनुपात के रूप में की गई है।

सहायतानुदान

2020-21 में राज्यों को निम्नलिखित अनुदान दिए जाएंगे: (i) राजस्व घाटा अनुदान, (ii) स्थानीय निकायों को अनुदान, और (iii) आपदा प्रबंधन अनुदान। आयोग ने क्षेत्र विशिष्ट और प्रदर्शन आधारित अनुदानों के लिए फ्रेमवर्क का भी प्रस्ताव रखा है। राज्य विशिष्ट अनुदान अंतिम रिपोर्ट में प्रदान किए जाएंगे।

  • राजस्व घाटा अनुदान: हस्तांतरण के बाद अनुमान है कि 2020-21 में 14 राज्यों का कुल राजस्व घाटा लगभग 74,340 करोड़ रुपए रह जाएगा। आयोग ने इन राज्यों के लिए राजस्व घाटा अनुदान का सुझाव दिया है (अनुलग्नक में तालिका 4 देखें)।
     
  • विशेष अनुदान: तीन राज्यों में 2019-20 की तुलना में 2020-21 में हस्तांतरण और राजस्व घाटा अनुदान में गिरावट का अनुमान है। ये राज्य हैं, कर्नाटक, मिजोरम और तेलंगाना। आयोग ने इन राज्यों के लिए कुल 6,764 करोड़ रुपए के विशेष पैकेज का सुझाव दिया है।

क्षेत्र विशेष के लिए अनुदान

  • 2020-21 में आयोग ने पोषण के लिए 7,375 करोड़ रुपए का सुझाव दिया है। अंतिम रिपोर्ट में निम्नलिखित क्षेत्रों के लिए क्षेत्र विशिष्ट प्रावधान किए जाएंगे: (i) पोषण, (ii) स्वास्थ्य, (iii) पूर्व प्राथमिक शिक्षा, (iv) ज्यूडीशियरी, (v) ग्रामीण कनेक्टिविटी, (vi) रेलवे, (vii) पुलिस प्रशिक्षण, और (viii) आवास।
     
  • प्रदर्शन आधारित अनुदान: प्रदर्शन आधारित अनुदानों के दिशानिर्देशों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) कृषि सुधारों को लागू करना, (ii) महत्वाकांक्षी जिलों और ब्लॉक्स का विकास, (iii) बिजली क्षेत्र के सुधार, (iv) निर्यात सहित व्यापार को बढ़ाना, (v) शिक्षा के लिए इनसेंटिव्स, और (vi) घरेलू और अंतरराष्ट्रीय पर्यटन का संवर्धन। अनुदान राशि अंतिम रिपोर्ट में प्रदान की जाएगी।
     
  • स्थानीय निकायों को अनुदान: 2020-21 में स्थानीय निकायों के लिए 90,000 करोड़ रुपए तय किए गए हैं जिनमें से 60,750 करोड़ रुपए ग्रामीण स्थानीय निकायों (67.5%) और 29,250 करोड़ रुपए शहरी स्थानीय निकायों (32.5%) के लिए निर्धारित किए गए हैं। यह अनुदान डिवाइजिबल पूल का 4.31% है। यह 2019-20 में स्थानीय निकायों को दिए गए अनुदान से ज्यादा है। तब इस मद में अनुदान राशि डिवाइजिबल पूल का 3.54% थी (87,352 करोड़ रुपए)। अनुदान जनसंख्या और क्षेत्र के आधार पर राज्यों के बीच 90:10 के अनुपात में विभाजित होंगे। ये अनुदान पंचायत के तीनों स्तरों गांव, ब्लॉक और जिला स्तर पर उपलब्ध होंगे। 
     
  • आपदा जोखिम प्रबंधन: स्थानीय स्तर पर राहत कार्यों को बेहतर बनाने के लिए आयोग ने राष्ट्रीय और राज्य आपदा प्रबंधन कोष (एनडीएमएफ और एसडीएमएफ) के गठन का सुझाव दिया है। आयोग ने एसडीएमएफ (नए) और एसडीआरएफ (मौजूदा) को वित्त पोषित करने के केंद्र और राज्यों की लागत शेयरिंग पैटर्न की वर्तमान व्यवस्था को जारी रखने की बात कही है। केंद्र और सभी राज्यों के बीच यह अनुपात (i) सभी राज्यों के लिए 75:25 और (ii) पूर्वोत्तर एवं हिमालयी राज्यों के लिए 90:10 है।

2020-21 के लिए राज्य आपदा जोखिम प्रबंधन कोषों को 28,983 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं जिसमें केंद्र का हिस्सा 22,184 करोड़ रुपए है। राष्ट्रीय आपदा जोखिम प्रबंधन कोष को 12,390 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं। 

तालिका 2: आपदा जोखिम प्रबंधन के लिए अनुदान (करोड़ रुपए में) 

फंडिंग विंडोज़  राष्ट्रीय कॉरपस राज्य का कॉरपस
मिटिगेशन (शमन) (20%) 2,478 5,797
प्रतिक्रिया (80%) 9,912 23,186
(i) प्रतिक्रिया और राहत (40%) 4,956 11,593
(ii) रिकवरी और पुनर्निर्माण (30%) 3,717 8,695
(iii) क्षमता निर्माण (10%) 1,239 2,998
कुल 12,390 28,983

 

राजकोषीय रोडमैप के लिए सुझाव

राजकोषीय घाटा और ऋण के स्तर

  • आयोग ने कहा कि अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता के कारण विश्वसनीय राजकोषीय और ऋण ट्राजेक्टरी रोडमैप समस्यात्मक है। उसने सुझाव दिया कि केंद्र और राज्य सरकारों को ऋण समेकन पर ध्यान देना चाहिए और राजकोषीय घाटे एवं ऋण स्तर का उनके संबंधित राजकोषीय उत्तरदायित्व तथा बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) एक्ट्स के अनुसार पालन करना चाहिए।
     
  • अतिरिक्त बजटीय उधारियां: आयोग ने कहा कि अतिरिक्त बजटीय उधारियों के जरिए पूंजीगत व्यय को वित्तपोषित करने से एफआरबीएम एक्ट के अनुपालन में बाधा आती है। उसने सुझाव दिया कि केंद्र और राज्य सरकारों को अतिरिक्त बजटीय उधारियों का पूरा खुलासा करना चाहिए। बकाया बजटीय देनदारियों को समय सीमा में स्पष्ट रूप से पहचाना और समाप्त किया जाना चाहिए।
     
  • सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन के लिए वैधानिक फ्रेमवर्क: आयोग ने कानूनी मसौदा बनाने हेतु एक एक्सपर्ट ग्रुप गठित करने का सुझाव दिया ताकि अच्छी सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली हेतु वैधानिक फ्रेमवर्क प्रदान किया जा सके। यह कहा गया कि एक व्यापक कानूनी राजकोषीय फ्रेमवर्क की जरूरत है जो सरकार के सभी स्तरों पर बजट, एकाउंटिंग और ऑडिट स्टैंडर्ड्स का पालन करेगा।
     
  • कर क्षमता: 2018-19 में राज्य सरकारों और केंद्र सरकार का कर राजस्व कुल मिलाकर जीडीपी का लगभग 17.5% था। आयोग ने कहा कि कर राजस्व देश की अनुमानित कर क्षमता से काफी कम था। इसके अतिरिक्त 90 के दशक की शुरुआत से भारत की कर क्षमता में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। इसके विपरीत दूसरे उभरते हुए बाजारों में कर राजस्व बढ़ा है। आयोग ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) कर आधार को बढ़ाया जाए, (ii) कर दरों को सुव्यवस्थित किया जाए, और (iii) सरकार के सभी स्तरों पर कर प्रशासन की क्षमता और विशेषज्ञता को बढ़ाया जाए। 
     
  • जीएसटी को लागू करना: आयोग ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू करने से जुड़ी कुछ चुनौतियों का उल्लेख किया। ये निम्नलिखित शामिल हैं: (i) मूल पूर्वानुमान की तुलना में कलेक्शन में बड़ी कमी, (ii) कलेक्शन में अत्यधिक अस्थिरता, (iii) बड़े एकीकृत जीएसटी ऋण का संचय, (iv) इनवॉयस और इनपुट टैक्स मिलान में गड़बड़, और (v) रीफंड में देरी। आयोग ने कहा कि राजस्व में कमी को दूर करने के लिए मुआवजे हेतु राज्यों का केंद्र सरकार पर निरंतर निर्भर रहना चिंता का विषय है (2018-19 में 29 में से 21 राज्य)। उसने सुझाव दिया है कि कम उपभोग वाले राज्यों के लिए जीएसटी के ढांचागत प्रभाव पर विचार किए जाने की जरूरत है। 

अन्य सुझाव

  • सुरक्षा संबंधी व्यय का वित्त पोषणआयोग के टीओआर में यह कहा गया है कि रक्षा एवं आंतरिक सुरक्षा के लिए क्या एक अलग वित्त पोषण प्रणाली बनाई जानी चाहिए, और अगर ऐसा हो तो वह किस तरह काम करेगी। इस संबंध में आयोग रक्षा, गृह मामलों और वित्त मंत्रालयों के प्रतिनिधियों वाला एक एक्सपर्ट ग्रुप बनाने का इरादा रखता है। आयोग ने कहा कि रक्षा मंत्रालय ने इसके लिए निम्नलिखित उपाय सुझाए हैं: (i) एक नॉन-लैप्सेबल फंड बनाना, (ii) सेस की वसूली, (iii) अतिरिक्त जमीन और दूसरे एसेट्स का मुद्रीकरण, (iv) टैक्स-फ्री रक्षा बॉन्ड, और (v) सार्वजनिक क्षेत्र के रक्षा उपक्रमों के विनिवेश की प्राप्तियों का उपयोग। एक्सपर्ट ग्रुप इन प्रस्तावों या वैकल्पिक वित्त पोषण प्रणालियों की जांच करेगा। 

 

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