7 अक्टूबर 2019 : द हिन्दू एडिटोरियल 2019 IAS/PCS के लिए

 

प्रश्न- आर्थिक विकास को पुनर्जीवित करने के लिए कृषि क्षेत्र का पुनरुद्धार और विकास क्यों आवश्यक है? व्याख्या करें (250 शब्द)

संदर्भ – आर्थिक मंदी।

नोट: 1 अक्टूबर के लेख के साथ इस लेख को पढ़ें।

वर्तमान परिदृश्य:

  • भारत आर्थिक मंदी का सामना कर रहा है। RBI ने 2019-20 के लिए सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि का अनुमान 6.1% तक घटा दिया है, जो पिछले छह वर्षों में सबसे कम है। और, ऑटोमोबाइल और रियल एस्टेट जैसे प्रमुख क्षेत्रों के प्रदर्शन में तेज गिरावट आई है।
  • ऐसे लोगों के दो सेट हैं जो इस मंदी को दो अलग-अलग तरीकों से देखते हैं: एक समूह के अनुसार यह मंदी केवल चक्रीय है (यानी समृद्धि की अवधि इसके बाद फिर से मंदी की अवधि के बाद समृद्धि आती है और यह जारी है) और वापस से ट्रैक पर आ जाती ।
  • जबकि दूसरे समूह को लगता है कि यह आर्थिक सुधारों और यहां तक कि औपनिवेशिक विरासत की घोर विफलता के रूप में है। लेकिन जो भी कारण है कि हमें इससे बाहर आने और एक स्थायी और समावेशी विकास प्राप्त करने के तरीकों की तलाश करनी होगी।
  • इसके लिए समस्या की जड़ को देखने की जरूरत है अन्यथा उपाय अल्पावधि में अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित कर सकते हैं लेकिन समस्या फिर से बढ़ सकती है।
  • इस संदर्भ में लेखक का कहना है कि फोकस केवल ऑटोमोबाइल और रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों को पुनर्जीवित करने के लिए नहीं होना चाहिए, बल्कि कृषि जैसे प्राथमिक क्षेत्रों पर अधिक है क्योंकि यह ग्रामीण क्षेत्रों से है कि मांग उत्पन्न नहीं हो रही है (क्यों और कैसे पहले से ही पहले चर्चा की गई)।

प्राथमिक क्षेत्र (कृषि क्षेत्र) की वर्तमान स्थिति:

  • वास्तविक कृषि और संबद्ध सकल मूल्य वर्धित (GVA) 2011-12 से 2017-18 के दौरान 2.9% की वृद्धि हुई, जबकि राष्ट्रीय कृषि नीति (2000) में, यह 8% की कुल आर्थिक वृद्धि प्राप्त करने के लिए, लगभग 4% होनी चाहिए थी। ।
  • एक अत्यधिक तिरछी और अभूतपूर्व मानसून, अनिश्चित वर्षा, और अत्यधिक प्राकृतिक घटनाएं जहाँ तक खेतों और किसानों तक पहुँच बना रही हैं, वे चिंतित हैं जो बदले में आपूर्ति श्रृंखलाओं, ईंधन मुद्रास्फीति को बाधित करने और खपत पर नकारात्मक प्रभाव डालने की संभावना रखते हैं, जो आगे भी हो सकते हैं। अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार की संभावनाओं को कम करना।
  • इसके अलावा, कृषि क्षेत्र में वर्तमान विकास दर सतत विकास लक्ष्यों से उत्पन्न होने वाली विकासात्मक चुनौतियों से निपटने के लिए पर्याप्त से कम है, मुख्य रूप से शून्य भूख, गरीबी नहीं, भूमि पर जीवन और लिंग समानता।

क्या किये जाने की आवश्यकता है:

  • अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानने और इसके द्वारा सामना किए जाने वाले अंतर्निहित मुद्दों तक गहराई से पहुंचने की आवश्यकता है।
  • यह क्षेत्र 50% से अधिक आबादी के लिए संभावित संबल और नियोक्ता है।
  • जैसा कि 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य है, भूमि, बाजार, मूल्य और पर्याप्त आपूर्ति पक्ष बाधाओं पर क्यूरेटेड सुधार सुनिश्चित करने के लिए तेजी से लेन के विकल्प और तेजी से कार्रवाई होनी चाहिए।
  • कृषि विकास परिषद (ADC) GST परिषद के अनुरूप कृषि सुधारों को अधिक अभिव्यंजक और प्रतिनिधि बनाने की सख्त आवश्यकता है।
  • बेहतर आय वितरण के लिए, क्षेत्रीय फसल नियोजन और कृषि-जलवायु क्षेत्र मॉडल को उच्चतम संभव स्तर पर पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है ताकि 2022 तक कृषि को भारत में स्थायी आर्थिक विकास का इंजन 2.0 बनाया जा सके।
  • साथ ही खेती के अलावा अन्य क्षेत्रों को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है जैसे कि हथकरघा, हस्तशिल्प और अन्य जो आर्थिक मंदी के मामले में कम प्रभावित हैं।
  • इनके अलावा, आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 में कहा गया है कि 2041 तक कामकाजी उम्र की आबादी में वृद्धि जारी रहेगी।
  • इसलिए, नौकरी को निवेश अनुपात में बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता है जो वर्तमान में बहुत कम है।
  • कुछ अनुमान कहते हैं कि भारत में 1 करोड़ का निवेश केवल चार औपचारिक रोजगार पैदा कर सकता है।
  • साथ ही रोजगार के संदर्भ में अंतर-राज्य प्रवासन भी दोनों राज्यों में खपत को प्रभावित करता है। इसलिए बीमा निर्माण को एक नीतिगत सलाह देना एक स्थिर आय और खर्च के लिए जरूरी है।
  • इसके अलावा, बेरोजगारी के आंकड़ों की एक सटीक तस्वीर होने के लिए प्रयास करने चाहिए ताकि नीति तथ्यों के करीब हो।
  • लंबे समय में अल्पकालिक अराजकता को पुनर्जीवित करने के लिए अक्सर कहे जाने वाले कुछ विकृत सुधारों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। अंत में, अतीत में कम तेल की कीमतों द्वारा बनाया गया मीठा स्थान धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था को हिट करने के लिए अपनी मांग को आगे ले जा रहा है, जिससे कुल मांग में कमी आई है।

 

No-2

नागरिकता संशोधन विधेयक

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री द्वारा नागरिकता (संशोधन) विधेयक को एक बार पुन: सदन में पेश करने की बात कही गई है। इससे नागरिकता के मुद्दे पर बहस फिर से तेज़ हो गई है।

पृष्ठभूमि

  • जनवरी 2019 में नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016 लोकसभा द्वारा पारित किया गया था, लेकिन राज्यसभा में इसे पेश नहीं किया गया था।
  • लोकसभा भंग होने के कारण यह विधेयक व्यपगत हो गया था। नई लोकसभा के गठन के बाद सरकार ने इसे पुन: सदन में प्रस्तुत करने का निर्णय लिया है।
  • इस विधेयक में नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन प्रस्तावित है।

क्या है विधेयक के प्रावधान?

  • विधेयक में कहा गया है कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से बिना वैध दस्तावेज़ो के भारत में प्रवेश करने के बावजूद अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों को अवैध नहीं माना जाएगा और इन्हें भारत की नागरिकता दी जाएगी।
  • इन अल्पसंख्यक समुदायों में छह गैर-मुस्लिम धर्मों अर्थात् हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई पंथ के अनुयायियों को शामिल किया गया है।
  • इन धर्मों के अवैध प्रवासियों को उपरोक्त लाभ प्रदान करने से उन्हें विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 के तहत निर्वासन का सामना नहीं करना पड़ेगा।
  • 1955 का अधिनियम कुछ शर्तों (Qualification) को पूरा करने वाले किसी भी व्यक्ति को देशीयकरण द्वारा नागरिकता प्राप्ति के लिये आवेदन करने की अनुमति प्रदान करता है।
  • इसके लिये अन्य बातों के अलावा उन्हें आवेदन की तिथि से 12 महीने पहले तक भारत में निवास और 12 महीने से पहले 14 वर्षों में से 11 वर्ष भारत में बिताने की शर्त पूरी करनी पड़ती है।
  • विधेयक अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई प्रवासियों के लिये 11 वर्ष की शर्त को घटाकर 6 वर्ष करने का प्रावधान करता है।
  • विधेयक नागरिकता अधिनियम या किसी भी अन्य कानूनों के उल्लंघन के मामले में सरकार को भारत के विदेशी नागरिकता (Overseas Citizenship of India-OCI) कार्डधारकों के पंजीकरण को रद्द करने का भी प्रावधान करता है।

विधेयक के पक्ष में तर्क

  • सरकार का कहना है कि इन प्रवासियों ने ‘भेदभाव और धार्मिक उत्पीड़न’ का सामना किया है।
  • प्रस्तावित संशोधन देश की पश्चिमी सीमाओं से गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में आए उत्पीड़ित प्रवासियों को राहत प्रदान करेगा।
  • इन छह अल्पसंख्यक समुदायों सहित भारतीय मूल के कई लोग नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत नागरिकता पाने में असफल तो रहते ही हैं और भारतीय मूल के समर्थन में साक्ष्य देने में भी असमर्थ रहते हैं।
  • इसलिये उन्हें देशीयकरण द्वारा नागरिकता प्राप्त करने के लिये आवेदन करना पड़ता है।
  • देशीयकरण की लंबी प्रक्रिया से इन तीन देशों के छह अल्पसंख्यक समुदायों को अवैध प्रवासी माना जाता है और भारतीय नागरिकों को मिलने वाले लाभों से इन्हें वंचित रहना पड़ता है।

विधेयक के विपक्ष में तर्क

  • आलोचकों का कहना है कि विधेयक संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता है।
  • विधेयक नागरिकता देने के लिये अवैध प्रवासियों के बीच धार्मिक आधार पर विभेद करता है। धर्म के आधार पर भेदभाव संविधान के अनुच्छेद-14 के तहत समानता के मौलिक अधिकार की संवैधानिक गारंटी के विरुद्ध है।
  • अनुच्छेद-14 के तहत सुरक्षा नागरिकों और विदेशियों दोनों पर समान रूप से लागू होती है।
  • प्रस्तावित विधेयक असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को बाधित करेगा, जो किसी भी धर्म के अवैध प्रवासी को एक पूर्व-निर्धारित समय-सीमा के आधार पर परिभाषित करता है।
  • इस नागरिकता विधेयक को 1985 के असम समझौते से पीछे हटने के एक कदम के रूप में भी देखा जा रहा है।
  • समझौते में 24 मार्च, 1971 के बाद बिना वैध दस्तावेज़ो के असम में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को विदशी नागरिक माना गया है। इस मामले में यह धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करता है।
  • अकेले असम में हाल ही में संपन्न NRC अभ्यास ने अंतिम सूची से 3.29 करोड़ आवेदकों में से 19 लाख लोगों को बाहर कर दिया है।
  • OCI कार्डधारक का पंजीकरण रद्द करने का प्रावधान केंद्र सरकार के विवेकाधिकार का दायरा विस्तृत करता है। क्योंकि कानून के उल्लंघन में ह्त्या जैसे गंभीर अपराध के साथ यातायात नियमों का मामूली उल्लंघन भी शामिल है।

उच्चतम न्यायालय की क्या राय है?

  • उच्चतम न्यायालय में दायर एक याचिका में न्यायालय से पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) संशोधन नियम, 2015, विदेशी (संशोधन) आदेश, 2015 और नागरिकता अधिनियम के तहत 26 दिसंबर, 2016 को गृह मंत्रालय द्वारा जारी आदेश के माध्यम से धार्मिक उत्पीड़न के आधार पर बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से पलायन कर रहे हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्मं के अवैध प्रवासियों के देशीयकरण की अनुमति देने वाले संशोधनों को अवैध और अमान्य घोषित करने का आग्रह किया गया था।
  • क्योंकि इन अधीनस्थ कानूनों द्वारा प्रदत्त छूट से बांग्लादेश से असम में अवैध प्रवासियों की अनियंत्रित आमद में कई गुना बढ़ोतरी हो जाएगी।
  • याचिका में कहा गया है कि पूर्वोत्तर राज्यों में अवैध आव्रजन के कारण वृहद् स्तर पर जनसांख्यिकीय परिवर्तन हुए हैं।
  • 5 मार्च, 2019 को उच्चतम न्यायालय ने इस याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था।

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