प्रश्न: संसदीय समितियाँ क्या हैं? वे विधायिका और कार्यपालिका की दक्षता और जवाबदेही कैसे सुनिश्चित करते हैं?
समाचार में क्यों?
- राज्य सभा सचिवालय, विभागीय-संबंधित स्थायी समितियों (DRSC) के कार्यकाल के नियमों को बदलने पर विचार कर रहा है, जो इसे वर्तमान एक वर्ष से दो वर्ष कर देगा।
इसके पीछे कारण:
- समितियों के कार्यकाल की एक महत्वपूर्ण बात कोविद -19 महामारी के कारण खो गई थी। कई पैनल उन विषयों पर पूरी रिपोर्ट नहीं दे पाए हैं जिन पर वे काम कर रहे थे।
- पैनल के पास उनके द्वारा चुने गए विषयों पर काम करने के लिए पर्याप्त समय होना चाहिए।
क्या होती हैं संसदीय समितियाँ?
- संसदीय लोकतंत्र में संसद के मुख्यतः दो कार्य होते हैं, पहला कानून बनाना और दूसरा सरकार की कार्यात्मक शाखा का निरीक्षण करना। संसद के इन्ही कार्यों को प्रभावी ढंग से संपन्न करने के लिये संसदीय समितियों को एक माध्यम के तौर पर प्रयोग किया जाता है। सैद्धांतिक तौर पर धारणा यह है कि संसदीय स्थायी समितियों में अलग-अलग दलों के सांसदों के छोटे-छोटे समूह होते हैं जिन्हें उनकी व्यक्तिगत रुचि और विशेषता के आधार पर बाँटा जाता है ताकि वे किसी विशिष्ट विषय पर विचार-विमर्श कर सकें।
क्यों होती है संसदीय समितियों की आवश्यकता?
- संसद में कार्य की बेहद अधिकता को देखते हुए वहाँ प्रस्तुत सभी विधेयकों पर विस्तृत चर्चा करना संभव नहीं हो पाता, अतः संसदीय समितियों का एक मंच के रूप में प्रयोग किया जाता है, जहाँ प्रस्तावित कानूनों पर चर्चा की जाती है। समितियों की चर्चाएँ ‘बंद दरवाज़ों के भीतर’ होती हैं और उसके सदस्य अपने दल के सिद्धांतों से भी बंधे नहीं होते, जिसके कारण वे किसी विषय विशेष पर खुलकर अपने विचार रख सकते हैं।
- आधुनिक युग के विस्तार के साथ नीति-निर्माण की प्रक्रिया भी काफी जटिल हो गई है और सभी नीति-निर्माताओं के लिये इन जटिलताओं की बराबरी करना तथा समस्त मानवीय क्षेत्रों तक अपने ज्ञान को विस्तारित करना संभव नहीं है। इसीलिये सांसदों को उनकी विशेषज्ञता और रुचि के अनुसार अलग-अलग समितियों में रखा जाता है ताकि उस विशिष्ट क्षेत्र में एक विस्तृत और बेहतर नीति का निर्माण संभव हो सके।
संसदीय समितियों के प्रकार
आमतौर पर संसदीय समितियाँ दो प्रकार की होती हैं:
- स्थायी समितियाँ
- अस्थायी समितियाँ या तदर्थ समितियाँ
- स्थायी समिति
- स्थायी समितियाँ अनवरत प्रकृति की होती हैं अर्थात् इनका कार्य सामान्यतः निरंतर चलता रहता है। इस प्रकार की समितियों का पुनर्गठन वार्षिक आधार पर किया जाता है। इनमें शामिल कुछ प्रमुख समितियाँ इस प्रकार हैं :
- लोक लेखा समिति
- प्राक्कलन समिति
- सार्वजनिक उपक्रम समिति
- एस.सी. व एस.टी. समुदाय के कल्याण संबंधी समिति
- कार्यमंत्रणा समिति
- विशेषाधिकार समिति
- विभागीय समिति
- अस्थायी समितियाँ या तदर्थ समितियाँ
- अस्थायी समितियों का गठन किसी एक विशेष उद्देश्य के लिये किया जाता है, उदाहरण के लिये, यदि किसी एक विशिष्ट विधेयक पर चर्चा करने के लिये कोई समिति गठित की जाती है तो उसे अस्थायी समिति कहा जाएगा। उद्देश्य की पूर्ति हो जाने के पश्चात् संबंधित अस्थायी समिति को भी समाप्त कर दिया जाता है। इस प्रकार की समितियों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:
- जाँच समितियाँ:इनका निर्माण किसी तत्कालीन घटना की जाँच करने के लिये किया जाता है।
- सलाहकार समितियाँ: इनका निर्माण किसी विशेष विधेयक पर चर्चा करने के लिये किया जाता है।
उपरोक्त के अतिरिक्त 24 विभागीय समितियाँ भी होती हैं जिनका कार्य विभाग से संबंधित विषयों पर कार्य करना होता है। प्रत्येक विभागीय समिति में अधिकतम 31 सदस्य होते हैं, जिसमें से 21 सदस्यों का मनोनयन स्पीकर द्वारा एवं 10 सदस्यों का मनोनयन राज्यसभा के सभापति द्वारा किया जा सकता है। कुल 24 समितियों में से 16 लोकसभा के अंतर्गत व 8 समितियाँ राज्यसभा के अंतर्गत कार्य करती हैं। इन समितियों का मुख्य कार्य अनुदान संबंधी मांगों की जाँच करना एवं उन मांगों के संबंध में अपनी रिपोर्ट सौंपना होता है।
संसदीय समितियाँ का महत्व:
- सदन के तल पर चर्चा और बहस वाले विधेयकों और मुद्दों पर बहस के अलावा, संसदीय स्थायी समितियों में मुद्दों पर और अधिक विस्तृत और गहन चर्चाएँ होती हैं।
- यहाँ, सभी प्रमुख दलों से संबंधित सांसदों ने अपने राजनीतिक मतभेदों पर ध्यान दिए बिना अपने विचार सामने रखे जाते है
- उनकी रिपोर्ट राज्यसभा और लोकसभा दोनों में शामिल हैं। सदनों की रिपोर्ट पर कोई विशेष बहस नहीं होती है, लेकिन इसे अक्सर विधेयकों और प्रमुख मुद्दों पर चर्चा के दौरान संदर्भित किया जाता है।
- समिति की बैठकें एक मंच भी प्रदान करती हैं जहां सदस्य डोमेन विशेषज्ञों के साथ-साथ संबंधित मंत्रालयों के वरिष्ठ-अधिकांश अधिकारियों के साथ जुड़ सकते हैं।
निष्कर्ष:
- वर्षों से संसद की बैठकों में लगातार गिरावट आ रही है। 1950 के दशक में 100-150 सभाओं से, 2019-20 में प्रति वर्ष 60-70 सभाओं की संख्या घट गई।
- ऐसे परिदृश्य में, संसदीय कार्य का एक बड़ा हिस्सा DRSC द्वारा किया जाता है। एक लंबा कार्यकाल कार्यों को पूरा करने और उन्हें सौंपे गए विचार-विमर्श में मदद करेगा।