औरंगजेब (1658-1707 ई.)
औरंगजेब का जन्म 3 नवम्बर, 1618 को उज्जैन के पास स्थित दोहन नामक स्थान पर हुआ था। औरंगजेब को ‘जिन्दा पीर‘ के नाम से भी जाना जाता था। औरंगजेब के पिता का नाम शाहजहां था। शाहजहां के चार पुत्र और तीन पुत्रियां थी, शाहजहां के बिमार होने के कारण उसके सभी उत्तराधिकारियों के बीच मुग़ल साम्राज्य का शासक बनने के लिए संघर्ष प्रारम्भ हो गया था। जिसे ‘उत्तराधिकार का युद्ध‘ नाम से जाना गया, जिसमें सबको हराकर औरंगजेब ने 21 जुलाई, 1658 ई. को मुग़ल साम्राज्य की गद्दी पर अपना कब्ज़ा किया था और अपने पिता शाहजहां को आगरा के किले में शाहबुर्ज में बंदी बना दिया था। औरंगजेब का राज्याभिषेक दो बार हुआ था, पहला राज्याभिषेक 31 जुलाई, 1658 ई. में तथा दूसरा राज्याभिषेक 15 जून, 1659 ई. को हुआ था। यह दोनों ही राज्याभिषेक दिल्ली में हुए थे। मुग़ल साम्राज्य का ताज पहनते ही औरंगजेब ने ‘आलमगीर‘ की उपाधि धारण की थी।
औरंगजेब एक कठोर शासक तथा कट्टर रूढ़िवादी सुन्नी मुसलमान था, इसी कारण वह हिन्दुओं के प्रति असहिष्णु था। औरंगजेब ने 1663 ई. में हिन्दुओं के ‘तीर्थ यात्रा‘ करने पर भी कर लगाया था और हिन्दू व्यापारियों से भी कर वसूली की जाती थी। इसने सती प्रथा पर भी प्रतिबन्ध लगाया। 1668 ई. में हिन्दुओं द्वारा मनाये जाने वाले त्योहारों और धार्मिक अनुष्ठानों पर भी रोक लगवा दी थी। 1669 ई. में औरंगजेब ने काशीके विश्वनाथ मंदिर, गुजरात के सोमनाथ मंदिर और मथुरा के केशवराय मंदिरों को तुड़वा दिया था।
1679 ई. में औरंगजेब ने हिन्दुओं पर ‘जजिया‘[1] कर की फिर से शुरुआत की थी। जिसे औरंगजेब के परदादा अकबर ने अपने शासन काल में बंद करवा दिया था। साथ ही औरंगजेब ने नौरोज[2] त्यौहार न मनाने का भी आदेश जारी किया था। इसके आलावा जुए तथा नशा करने पर, मंदिरों के निर्माण पर, कुरान विरोधी कार्य करने पर तथा सिक्कों पर कलमा लिखवाने पर भी पूर्णतः प्रतिबन्ध लगा दिया गया था।
औरंगजेब की इन कट्टर नीतियों के कारण उसके शासन काल में कई विद्रोह भी हुये जिनमें 1667-72 के मध्य अफगानों का विद्रोह, 1669-1881 तक मथुरा के जाटों का विद्रोह, 1672 में सतनामी विद्रोह, 1686में अंग्रेजों का विद्रोह, 1679-1709 के मध्य राजपूतों का विद्रोह और 1675-1707 के मध्य पंजाब के सिक्खों का विद्रोह प्रमुख थे।
पहला विद्रोह मथुरा के जाटों द्वारा गोकुल की अगुआई में किया गया था, तिलपत युद्ध के दौरान जाटों को पराजय का सामना करना पड़ा, जिसमें मुगलों द्वारा गोकुल को बंदी बना लिया गया और मृत्यु दंड दिया गया। इसके बाद राजाराम और रामचेरा ने जाटों की अगुआई की। औरंगजेब ने अपने पोते बीदर बख्त और आमेरके राजा बिशन सिंह को जाटों का विद्रोह ख़त्म करने के लिये भेजा, इस अभियान में राजाराम की मृत्यु हो गयी। तत्पश्चात राजाराम के भतीजे चूड़ामन ने जाटों का नेतृत्व औरंगजेब की मृत्यु तक किया।
औरंगजेब को सतनामियों के विद्रोह का भी सामना करना पड़ा। सतनामी लोग भगवान को ‘सतनाम‘ कहा करते थे। जिस कारण इन्हें सतनामी कहा जाने लगा। यह लोग मेवात और नारनौल के नजदीकी क्षेत्रों में रहा करते थे। किसी सतनामी किसान को मुगलों के लिये कर वसूलने वाले व्यक्ति द्वारा मरवा देने के कारण सतनामियों का विद्रोह फुट पड़ा था।
सिक्खों के मन में विद्रोह का बीज मुग़ल शासक जहांगीर के समय से ही उत्पन्न होने लगे थे, जब जहांगीर ने सिक्खों के पांचवें गुरु अर्जुन देव को मृत्यु दंड दिया था। इसी क्रम में जहांगीर के पुत्र शाहजहां का युद्ध सिक्खों के छठे गुरु हरगोविंद से हुआ था। और फिर औरंगजेब ने 1675 ई. में सिक्खों के नौवें गुरु तेग बहादुर को बंदी बना लिया और उन्हें इस्लाम धर्म अपनाने के लिये प्रताड़ित किया, पर जब गुरु तेग बहादुर ने इस्लाम स्वीकारने से इंकार कर दिया तब उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया। गुरु तेग बहादुर के पुत्र गुरु गोविन्द सिंह ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए सिक्खों को उग्र शक्ति के स्वरूप में ‘खालसा‘ के नाम से संगठित किया। गुरु गोविन्द सिंह के चार पुत्र थे, जिनमें से दो पुत्रों को 1705 ई. में सरहिन्द के फौजदार द्वारा दीवार में चुनवा दिया गया था। कुछ समय पश्चात एक अफगानी द्वारा 1708 ई. में गुरु गोविन्द सिंह की हत्याकर दी गयी। इसके पश्चात गुरु गोविन्द सिंह के शिष्य और उनके बाद उनके उत्तराधिकारी बंदा बहादुर सिंहने मुग़लों के विरुद्ध सिक्खों की अगुआई की, परन्तु वह भी कुछ समय बाद मारा गया।
औरंगजेब को अपने शासन काल में मराठाओं का भी सामना करना पड़ा, मुग़ल और मराठा लम्बे समय से ही शत्रु थे, समय-समय पर इनके मध्य कई युद्ध हुए। अतः औरंगजेब अपने शत्रु और शक्तिशाली मराठा शासक शिवाजी को मिटाना चाहता था। ऐसा करने के लिए औरंगजेब ने 1665 ई. में अम्बर के राजपूत राजा जयसिंहको शिवाजी का दमन करने के लिए भेजा। जयसिंह ने शिवाजी को पराजित कर जून 1665 ई. में ‘पुरंदर की संधि‘ करने के लिए मजबूर कर दिया। इस संधि के अनुसार शिवाजी को अपने 23 किले मुग़लों को सौंपने पड़े। साथ ही बीजापुर के खिलाफ मुग़लों की सहायता करने का वचन भी देना पड़ा। इस सब के बाद भी औरंगजेब शिवजी को ख़त्म करना चाहता था इसलिए औरंगजेब ने अम्बर के राजपूत राजा जयसिंह के साथ षड्यंत्र कर शिवाजी को अपने दरबार में बुलाकर बंदी बना लिया, लेकिन शिवाजी अपनी चतुराई से वहां से निकल भागने में सफल रहे। 1674 ई. में शिवाजी ने खुद को एक स्वतंत्र राजा घोषित किया। 1680 ई.में शिवाजी की मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र सम्भाजी ने मराठा शासन की कमान संभाली परन्तु 1689 ई.में औरंगजेब द्वारा सम्भाजी को बंदी बनाकर फाँसी दे दी गयी। सम्भाजी के बाद उसके भाई राजाराम ने मराठाओं की बाग़डोर संभाली। उसने भी मुग़लों का जमकर सामना किया, जिसे मराठा इतिहास में ‘स्वतंत्रता संग्राम‘ की संज्ञा दी गयी है।
औरंगजेब ने बीजापुर को हथियाने के लिए 1676 ई. में सूबेदार दिलेर खां के नेतृत्व में आक्रमण किया। लगातार होते आक्रमणों के कारण 1686 ई. में बीजापुर के तत्कालीन शासक सिकंदर आदिल शाह ने आत्मसमर्पण कर दिया और बीजापुर पर मुग़ल साम्रज्य का आधिपत्य हुआ। 1687 ई. में औरंगजेब ने गोलकुंडा पर आक्रमण कर उसे भी मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया।
तक़रीबन 50 वर्ष तक शासन करने के पश्चात 3 मार्च, 1707 को 88 वर्ष की आयु में औरंगजेब की मृत्यु हो गयी थी, औरंगजेब के शव को महाराष्ट्र के एक नगर दौलताबाद[3] में दफनाया गया था।
[1] जजिया कर – इस्लाम को न मानने वाले लोग या कहा जाये कि गैर मुस्लिम लोगों पर यह कर लगाया जाता था।
[2] नौरोज – पारसी तथा ईरानी लोगों द्वारा मनाया जाने वाला त्यौहार।
[3] दौलताबाद – इसका प्राचीन नाम देवगिरि था। जिसे भीलम नामक राजा ने 11वीं शताब्दी के आस-पास बसाया था।