केंद्रीय मंत्रीपरिषद (Central Council of Ministers)
संसदीय कार्यपालिका (Parliamentary Executive) के अंतर्गत राष्ट्रपति राज्य का औपचारिक प्रधान होता है , इसकी वास्तविक शक्तियां केंद्रीय मंत्रीपरिषद में निहित होती है। राष्ट्रपति बहुमत दल के नेता को प्रधानमंत्री चुनता है और प्रधानमंत्री की सलाह पर अन्य मंत्रियो की नियुक्ति करता है। ऐसे व्यक्ति को भी मंत्री बनाया जा सकता है जो संसद का सदस्य नहीं है, किंतु ऐसे व्यक्ति को मंत्री बनने के 6 माह के भीतर संसद के दोनों सदनों में किसी एक संसद का सदस्य चुना जाना आवश्यक है। मंत्रियों की तीन श्रेणियाँ हैं–
- कैबिनेट मंत्री (Cabinet Minister) – यह सत्ताधारी पार्टी या गठबंधन की पार्टियों के वरिष्ठ नेता होते है। यह केंद्र सरकार में महत्वपूर्ण विभागों के प्रभारी होते है , शासन संबंधी महत्वपूर्ण निर्णय लेते है , जिस कारण कैबिनेट मंत्री , केंद्रीय मंत्रीपरिषद का शीर्ष समूह होता है।
- राज्य मंत्री (State Minister) – यह स्वतंत्र प्रभार वाले मंत्री होते है और विशेष रूप से आमंत्रित किए जाने पर ही कैबिनेट की बैठकों में भाग लेते है।
- राज्य मंत्री / उपमंत्री – यह कैबिनेट मंत्री व राज्य मंत्री (स्वंतंत्र प्रभार वाले) से जुड़े होते है और , आमतौर पर उसी मंत्रालय में एक विशेष जिम्मेदारी सौंपी जाती हैं।
भारत के संविधान में अनु० – 74 व 75 के अंतर्गत केंद्रीय मंत्रीपरिषद के गठन और उसके कार्यो का वर्णन किया गया है –
अनु० – 74 (राष्ट्रपति को सहायता , परामर्श और सलाह देने हेतु मंत्रीपरिषद का गठन)
राष्ट्रपति को सहायता व सलाह देने हेतु एक मंत्रीपरिषद होगी जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होगा। राष्ट्रपति किसी विषय पर मंत्रीपरिषद को पुन: विचार के लिए कह सकता है किंतु पुन: राष्ट्रपति मंत्री परिषद् की सलाह मानने को बाध्य है।
मंत्रीपरिषद् द्वारा राष्ट्रपति को दी गई सलाह की न्यायालय द्वारा जाँच नहीं की जा सकती है।
अनु० – 75 ( मंत्रियो के संबंध में नियम )
- प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा और उसकी सलाह पर अन्य मंत्रियो की नियुक्ति करता है।
- प्रधानमंत्री सहित मंत्रीपरिषद के कुल सदस्यों की संख्या लोकसभा के कुल सदस्यों का 15% से अधिक नहीं होगी।
- दल-बदल के आधार पर अयोग्य घोषित सदस्य मंत्री पद के लिए भी अयोग्य होगा।
- मंत्रीपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी।
- ऐसे व्यक्ति को भी मंत्री बनाया जा सकता है जो संसद का सदस्य नहीं है, किंतु ऐसे व्यक्ति को मंत्री बनने के 6 माह के भीतर संसद के दोनों सदनों में किसी एक संसद का सदस्य चुना जाना आवश्यक है।
- मंत्रियो के वेतन व भत्ते संसद द्वारा निर्धारित होंगे।
अनु० – 77 (भारत सरकार द्वारा कार्यवाही का संचालन)
भारत सरकार के सभी कार्य राष्ट्रपति के नाम से किए जायेंगे।
अनु० – 78
प्रधानमंत्री के कर्तव्य
अनु० – 88
सदन में मंत्रियो के अधिकार
Note :
- 42 वें व 44 वें संविधान संसोधन अधिनियम क्रमश: 1976 और 1978 द्वारा मंत्रीपरिषद् की सलाह को राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी बना दिया गया है।
- भारतीय संविधान में अविश्वास प्रस्ताव का कही भी उल्लेख नहीं है ।
मंत्रीपरिषद् के कार्य व शक्तियां (Functions and powers of the Council of Ministers)
विधायी कार्य (Legislative work)
संसद पुरे देश या देश के किसी भाग के लिए विधि बनती है, विधि बनाने वाली सर्वोच्च संस्था होने के बाद संसद प्राय: कानूनों को केवल स्वीकृति देने का कार्य करती है। विधेयको को बनाने का वास्तविक कार्य किसी मंत्री के निर्देशन में नौकरशाही करती है।
कार्यपालिका पर नियंत्रण (Control of the executive)
संसद का सबसे महत्वपूर्ण कार्य कार्यपालिका को उसके अधिकार क्षेत्र में सीमित रखने तथा जनता के प्रति उसका उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना है। कार्यपालिका का प्रधान तो राष्ट्रपति होता है किंतु वास्तविक संचालन मंत्रिमंडल के हाथो में होता है। कार्यपालिका पर नियंत्रण के निम्न तरीके है —
- बहस और चर्चा
- कानूनों की स्वीकृति या अस्वीकृति
- वित्तीय नियंत्रण
- अविश्वास प्रस्ताव
वित्तीय कार्य (Financial work)
देश की आर्थिक नीतियों का निर्धारण मंत्रीपरिषद द्वारा किया जाता है , उसके द्वारा प्रत्येक वर्ष संसद के सामने बजट (Budget) पेश किया जाता है। बजट का निर्माण , करों का आरोपण तथा सरकार के सभी भागों के लिए अनुदान तैयार करना भी मंत्रीपरिषद् का कार्य है।
प्रतिनिधित्व (Representation)
संसद और मंत्रीपरिषद् देश के विभिन्न क्षेत्रीय, सामाजिक , आर्थिक और धार्मिक समूहों के अलग – अलग विचारो का प्रतिनिधित्व करती है।
संवैधानिक कार्य (Constitutional work)
संसद के पास संविधान में संसोधन करने की शक्ति है, संसद के दोनों सदनों की संवैधानिक शक्तियां एक समान है, प्रत्येक संविधान संसोधन को संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत (2/3) से पारित होना अनिवार्य है।
निर्वाचन संबंधी कार्य (Electoral work)
संसद के द्वारा भारत के राष्ट्रपति (President) व उपराष्ट्रपति (Vice-President) का निर्वाचन किया जाता है और राष्ट्रपति को क्षमादान देतु सलाह मंत्रीपरिषद द्वारा ही की जाति है।
मंत्रीपरिषद का कार्यकाल व योग्यता
- मंत्रीपरिषद् का कार्यकाल लोकसभा के विश्वास पर निर्भर करता है , क्योंकि अनु० – 75 के अंतर्गत सामूहिक उत्तरदायित्व का प्रावधान है , अत: मंत्रीपरिषद् लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है और लोकसभा में विश्वास खोने पर उसे त्यागपत्र देना पड़ता है।
- मंत्रीपरिषद् के किसी भी मंत्री का कार्यकाल प्रधानमंत्री (Prime Minister) के विश्वास पर निर्भर करता है क्योंकि मंत्रियो की नियुक्ति प्रधानमंत्री की सलाह से राष्ट्रपति करता है और प्रधानमंत्री की सलाह से ही उन्हें अपदस्थ कर सकता है।
- प्रत्येक मंत्री अपने मंत्रालयों व विभागों के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होता है।
- मंत्रीपरिषद के प्रत्येक सदस्य को लोकसभा या राज्यसभा का सदस्य होना अनिवार्य है।
मंत्रियो द्वारा ली जाने वाली शपथ
- भारतीय संविधान में सच्ची श्रद्धा व निष्ठा रखूँगा।
- अखंडता व संप्रभुता को अक्षण्णु रखूँगा।
- विधि के अनुसार कार्य करूँगा।
- गोपनीयता की शपथ।