गाँधी जी: एक परिचय
जन्म : – 02 अक्टूबर, 1869, पोरबंदर, काठियावाड़ एजेंसी
पूरा नाम : – मोहनदास करमचंद गांधी
पिता का नाम : – करमचंद गाँधी
माता का नाम : – पुतलीबाई गाँधी
पत्नी का नाम : – कस्तूरबा
मृत्यु : – 30 जनवरी 1948, दिल्ली
प्रारंभिक जीवन
गाँधी जी का जन्म गुजरात के एक तटीय शहर पोरबंदर में 2 अक्टूबर सन् 1869 को हुआ था। उनके पिता करमचन्द गान्धी ब्रिटिश राज के समय काठियावाड़ की एक छोटी सी रियासत के दीवान थे। मोहनदास की माता पुतलीबाई थीं वह अत्यधिक धार्मिक प्रवित्ति की थीं जिसका प्रभाव युवा मोहनदास पड़ा और इन्ही मूल्यों ने आगे चलकर उनके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
सन 1883 में साढे 13 साल की उम्र में ही उनका विवाह 14 साल की कस्तूरबा से करा दिया गया। जब मोहनदास 15 वर्ष के थे तब इनकी पहली सन्तान ने जन्म लिया लेकिन कुछ दिनों में ही उसकी मृत्यु हो गई। उनके पिता करमचन्द गाँधी भी इसी साल (1885) में चल बसे। बाद में मोहनदास और कस्तूरबा के चार सन्तान हुईं – हरीलाल गान्धी (1888), मणिलाल गान्धी (1892), रामदास गान्धी (1897) और देवदास गांधी (1900)।
शिक्षा
उनकी मिडिल स्कूल की शिक्षा पोरबंदर में और हाई स्कूल की शिक्षा राजकोट में हुई। सन 1887 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा अहमदाबाद से उत्तीर्ण की। इसके बाद मोहनदास ने भावनगर के शामलदास कॉलेज में दाखिला लिया पर ख़राब स्वास्थ्य और गृह वियोग के कारण वह कॉलेज छोड़कर पोरबंदर वापस चले गए। वर्ष 1888 में मोहनदास यूनिवर्सिटी कॉलेज लन्दन में कानून की पढाई करने और बैरिस्टर बनने के लिये इंग्लैंड चले गये। जून 1891 में गाँधी भारत लौट गए और उन्हें अपनी मां के मौत के बारे में पता चला। उन्होंने बॉम्बे में वकालत की शुरुआत की पर उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली। इसके बाद वो राजकोट चले गए जहाँ उन्होंने जरूरतमन्दों के लिये मुकदमे की अर्जियाँ लिखने का कार्य शुरू कर दिया परन्तु कुछ समय बाद उन्हें यह काम भी छोड़ना पड़ा। आख़िरकार सन् 1893 में एक भारतीय फर्म से दक्षिण अफ्रीका में एक वर्ष के करार पर वकालत का कार्य स्वीकार कर लिया।
गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका में (1893 – 1914)
गाँधी 24 साल की उम्र में दक्षिण अफ्रीका पहुंचे। उन्होंने अपने जीवन के 21 साल दक्षिण अफ्रीका में बिताये जहाँ उनके राजनैतिक विचार और नेतृत्व कौशल का विकास हुआ। दक्षिण अफ्रीका में उनको गंभीर नस्ली भेदभाव का सामना करना पड़ा। दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर हो रहे अन्याय को देखते हुए उनके मन में ब्रिटिश साम्राज्य के अन्तर्गत भारतियों के सम्मान तथा स्वयं अपनी पहचान से सम्बंधित प्रश्न उठने लगे। उन्होंने भारतियों की नागरिकता सम्बंधित मुद्दे को भी दक्षिण अफ़्रीकी सरकार के सामने उठाया और सन 1906 के ज़ुलु युद्ध में भारतीयों को भर्ती करने के लिए ब्रिटिश अधिकारियों को सक्रिय रूप से प्रेरित किया। गाँधी के अनुसार अपनी नागरिकता के दावों को कानूनी जामा पहनाने के लिए भारतीयों को ब्रिटिश युद्ध प्रयासों में सहयोग देना चाहिए।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष (1916 – 1945)
वर्ष 1914 में गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौट आये। इस समय तक गांधी एक राष्ट्रवादी नेता और संयोजक के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे। वह उदारवादी कांग्रेस नेता गोपाल कृष्ण गोखले के कहने पर भारत आये थे और शुरूआती दौर में गाँधी के विचार बहुत हद तक गोखले के विचारों से प्रभावित थे। प्रारंभ में गाँधी ने देश के विभिन्न भागों का दौरा किया और राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक मुद्दों को समझने की कोशिश की। भारत में आने के बाद गाँधी जी ने कुछ आन्दोलन भी किये जो इस प्रकार है –
चम्पारण सत्याग्रह (1917)
15 अप्रैल, 1917 को राजकुमार शुक्ल के साथ मोहनदास करमचंद गांधी चंपारण, मोतिहारी पहुचे थे। बाबू गोरख प्रसाद के घर पर उन्हें ठहराया गया। बिहार के उत्तर-पश्चिम में स्थित चंपारण वह इलाका है जहां सत्याग्रह की नींव पड़ी सन 1917 में बिहार के चम्पारण में हुए आंदोलनों ने गाँधी को भारत में पहली राजनैतिक सफलता दिलाई। चंपारण में ब्रिटिश ज़मींदार किसानों को खाद्य फसलों की बजाए नील की खेती करने के लिए मजबूर करते थे और सस्ते मूल्य पर फसल खरीदते थे जिससे किसानों की स्थिति बदतर होती जा रही थी। इस कारण वे अत्यधिक गरीबी से घिर गए। एक विनाशकारी अकाल के बाद अंग्रेजी सरकार ने दमनकारी कर लगा दिए जिनका बोझ दिन प्रतिदिन बढता ही गया। कुल मिलाकर स्थिति बहुत निराशाजनक थी। गांधी जी ने जमींदारों के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन और हड़तालों का नेतृत्व किया जिसके बाद गरीब और किसानों की मांगों को माना गया।
खेड़ा सत्याग्रह (1918)
खेड़ा सत्याग्रह गुजरात के खेड़ा जिले में किसानों का अंग्रेज सरकार की कर-वसूली के विरुद्ध एक सत्याग्रह (आन्दोलन) था। सन 1918 में गुजरात स्थित खेड़ा बाढ़ और सूखे की चपेट में आ गया था जिसके कारण किसान और गरीबों की स्थिति बद्तर हो गयी और लोग कर माफ़ी की मांग करने लगे। खेड़ा में गाँधी जी के मार्गदर्शन में सरदार पटेल ने अंग्रेजों के साथ इस समस्या पर विचार विमर्श के लिए किसानों का नेतृत्व किया। इसके बाद अंग्रेजों ने राजस्व संग्रहण से मुक्ति देकर सभी कैदियों को रिहा कर दिया। इस प्रकार चंपारण और खेड़ा के बाद गांधी की ख्याति देश भर में फैल गई और वह स्वतंत्रता आन्दोलन के एक महत्वपूर्ण नेता बनकर उभरे।
खिलाफत आन्दोलन (1919 – 1924)
खिलाफत आंदोलन (1919-1924) भारत में मुख्यत: मुसलमानों द्वारा चलाया गया राजनीतिक-धार्मिक आंदोलन था। इस आंदोलन का उद्देश्य तुर्की में खलीफा के पद की पुन:स्थापना कराने के लिये अंग्रेजों पर दबाव बनाना था।
असहयोग आन्दोलन (1921)
गाँधी जी का मानना था की भारत में अंग्रेजी हुकुमत भारतियों के सहयोग से ही संभव हो पाई थी और अगर हम सब मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ हर बात पर असहयोग करें तो आजादी संभव है। गाँधी जी की बढती लोकप्रियता ने उन्हें कांग्रेस का सबसे बड़ा नेता बना दिया था और अब वह इस स्थिति में थे कि अंग्रेजों के विरुद्ध असहयोग, अहिंसा तथा शांतिपूर्ण प्रतिकार जैसे अस्त्रों का प्रयोग कर सकें। इसी बीच जलियावांला नरसंहार ने देश को भारी आघात पहुंचाया जिससे जनता में क्रोध और हिंसा की ज्वाला भड़क उठी थी। गांधी जी ने स्वदेशी नीति का आह्वान किया जिसमें विदेशी वस्तुओं विशेषकर अंग्रेजी वस्तुओं का बहिष्कार करना था। उनका कहना था कि सभी भारतीय अंग्रेजों द्वारा बनाए वस्त्रों की अपेक्षा हमारे अपने लोगों द्वारा हाथ से बनाई गई खादी पहनें। उन्होंने पुरूषों और महिलाओं को प्रतिदिन सूत कातने के लिए कहा। इसके अलावा महात्मा गाँधी ने ब्रिटेन की शैक्षिक संस्थाओं और अदालतों का बहिष्कार, सरकारी नौकरियों को छोड़ने तथा अंग्रेजी सरकार से मिले तमगों और सम्मान को वापस लौटाने का भी अनुरोध किया। असहयोग आन्दोलन को अपार सफलता मिल रही थी जिससे समाज के सभी वर्गों में जोश और भागीदारी बढ गई लेकिन फरवरी 1922 में इसका अंत चौरी-चौरा कांड के साथ हो गया। इस हिंसक घटना के बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया। उन्हें गिरफ्तार कर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया जिसमें उन्हें छह साल कैद की सजा सुनाई गयी। ख़राब स्वास्थ्य के चलते उन्हें फरवरी 1924 में सरकार ने रिहा कर दिया।
बारदोली सत्याग्रह (1928)
सन् 1928 में जब साइमन कमिशन भारत में आया, तब उसका राष्ट्रव्यापी बहिष्कार किया गया था। इस बहिष्कार के कारण भारत के लोगों में आजादी के प्रति अदम्य उत्साह था। जब कमिशन भारत में ही था, तब बारदोली का सत्याग्रह भी प्रारंभ हो गया था। बारदोली गुजरात जिले में स्थित है। बारदोली में सत्याग्रह करने का प्रमुख कारण ये था कि, वहाँ के किसान जो वार्षिक लगान दे रहे थे, उसमें अचानक 30% की वृद्धी कर दी गई थी और बढा हुआ लगान 30 जून 1927 से लागु होना था। इस बढे हुए लगान के प्रति किसानों में आक्रोश होना स्वाभाविक था। मुम्बई राज्य की विधानसभा ने भी इस वृद्धी लगान का विरोध किया था। किसानों का एक मंडल उच्च अधिकारियों से मिलने गया परंतु उसका कोई असर नही हुआ। अनेक जन सभाओं द्वारा भी इस लगान का विरोध किया गया किन्तु मुम्बई सरकार टस से मस न हुई। तब विवश होकर इस लगान के विरोध में सत्याग्रह आन्दोलन करने का निर्णय लिया गया। किसानों की एक विशाल सभा बारदोली में आयोजित की गई, जिसमें सर्वसम्मति से ये निर्णय लिया गया कि बढा हुआ लगान किसी भी कीमत पर नही दिया जायेगा। जो सरकारी कर्मचारी लगान लेने आयेंगे उनके साथ असहयोग किया जायेगा क्योंकि उस दौरान सरकारी कर्मचारियों के लिए खाने एवं आने-जाने की व्यवस्था किसानों द्वारा की जाती थी। इस आन्दोलन की जिम्मेदारी श्री वल्लभ भाई पटेल को सौंपी गई। जिसे उन्होने गाँधी जी की सलाह पर स्वीकार किया। बारदोली में जब सरकारी कर्मचारियों को लगान नही मिला तो वे किसानो के जानवरों को उठाकर ले जाने लगे। किसानो की चल अचल सम्पत्ति भी कुर्क की जाने लगी। इस अत्याचार के विरोध में विठ्ठल भाई पटेल जो की वल्लभ भाई पटेल के बङे भाई थे, उन्होने सरकार को चेतावनी दी कि, यदि ये अत्याचार बंद नही हुआ तो वे केन्द्रिय असेम्बली के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे देंगे।
स्वराज और नमक सत्याग्रह (1930)
31 दिसम्बर 1929 को लाहौर में भारत का झंडा फहराया गया और कांग्रेस ने 26 जनवरी 1930 का दिन भारतीय स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया। इसके पश्चात गांधी जी ने सरकार द्वारा नमक पर कर लगाए जाने के विरोध में नमक सत्याग्रह चलाया जिसके अंतर्गत उन्होंने 12 मार्च से 6 अप्रेल तक अहमदाबाद से दांडी, गुजरात, तक लगभग 388 किलोमीटर की यात्रा की। इस यात्रा का उद्देश्य स्वयं नमक उत्पन्न करना था। इस यात्रा में हजारों की संख्या में भारतीयों ने भाग लिया और अंग्रेजी सरकार को विचलित करने में सफल रहे। इस दौरान सरकार ने लगभग 60 हज़ार से अधिक लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजा। इसके बाद लार्ड इरविन के प्रतिनिधित्व वाली सरकार ने गांधी जी के साथ विचार-विमर्श करने का निर्णय लिया जिसके फलस्वरूप गांधी-इरविन संधि पर मार्च 1931 में हस्ताक्षर हुए। गांधी-इरविन संधि के तहत ब्रिटिश सरकार ने सभी राजनैतिक कैदियों को रिहा करने के लिए सहमति दे दी। इस समझौते के परिणामस्वरूप गांधी कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया परन्तु यह सम्मेलन कांग्रेस और दूसरे राष्ट्रवादियों के लिए घोर निराशाजनक रहा। इसके बाद गांधी फिर से गिरफ्तार कर लिए गए और सरकार ने राष्ट्रवादी आन्दोलन को कुचलने की कोशिश की।
1934 में गांधी ने कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया। उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों के स्थान पर अब ‘रचनात्मक कार्यक्रमों’ के माध्यम से ‘सबसे निचले स्तर से’ राष्ट्र के निर्माण पर अपना ध्यान लगाया। उन्होंने ग्रामीण भारत को शिक्षित करने, छुआछूत के ख़िलाफ़ आन्दोलन जारी रखने, कताई, बुनाई और अन्य कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने और लोगों की आवश्यकताओं के अनुकूल शिक्षा प्रणाली बनाने का काम शुरू किया।
हरिजन आंदोलन (1932)
दलित नेता बी आर अम्बेडकर की कोशिशों के परिणामस्वरूप अंग्रेज सरकार ने अछूतों के लिए एक नए संविधान के अंतर्गत पृथक निर्वाचन मंजूर कर दिया था। येरवडा जेल में बंद गांधीजी ने इसके विरोध में सितंबर 1932 में छ: दिन का उपवास किया और सरकार को एक समान व्यवस्था (पूना पैक्ट) अपनाने पर मजबूर किया। अछूतों के जीवन को सुधारने के लिए गांधी जी द्वारा चलाए गए अभियान की यह शुरूआत थी। 8 मई 1933 को गांधी जी ने आत्म-शुद्धि के लिए 21 दिन का उपवास किया और हरिजन आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए एक-वर्षीय अभियान की शुरुआत की। अमबेडकर जैसे दलित नेता इस आन्दोलन से प्रसन्न नहीं थे और गांधी जी द्वारा दलितों के लिए हरिजन शब्द का उपयोग करने की निंदा की।
भारत छोड़ो आन्दोलन (1942)
द्वितीय विश्व युद्ध के आरंभ में गांधी जी अंग्रेजों को ‘अहिंसात्मक नैतिक सहयोग’ देने के पक्षधर थे परन्तु कांग्रेस के बहुत से नेता इस बात से नाखुश थे कि जनता के प्रतिनिधियों के परामर्श लिए बिना ही सरकार ने देश को युद्ध में झोंक दिया था। गांधी ने घोषणा की कि एक तरफ भारत को आजादी देने से इंकार किया जा रहा था और दूसरी तरफ लोकतांत्रिक शक्तियों की जीत के लिए भारत को युद्ध में शामिल किया जा रहा था। जैसे-जैसे युद्ध बढता गया गांधी जी और कांग्रेस ने “भारत छोड़ो” आन्दोलन की मांग को तीव्र कर दिया। ‘भारत छोड़ो’ स्वतंत्रता आन्दोलन के संघर्ष का सर्वाधिक शक्तिशाली आंदोलन बन गया जिसमें व्यापक हिंसा और गिरफ्तारी हुई। इस संघर्ष में हजारों की संख्या में स्वतंत्रता सेनानी या तो मारे गए या घायल हो गए और हजारों गिरफ्तार भी कर लिए गए। गांधी जी ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वह ब्रिटिश युद्ध प्रयासों को समर्थन तब तक नहीं देंगे जब तक भारत को तत्काल आजादी न दे दी जाए। उन्होंने यह भी कह दिया था कि व्यक्तिगत हिंसा के बावजूद यह आन्दोलन बन्द नहीं होगा। उनका मानना था की देश में व्याप्त सरकारी अराजकता असली अराजकता से भी खतरनाक है। गाँधी जी ने सभी कांग्रेसियों और भारतीयों को अहिंसा के साथ करो या मरो (डू ऑर डाय) के साथ अनुशासन बनाए रखने को कहा।
जैसा कि सबको अनुमान था अंग्रेजी सरकार ने गांधी जी और कांग्रेस कार्यकारणी समिति के सभी सदस्यों को मुबंई में 9 अगस्त 1942 को गिरफ्तार कर लिया और गांधी जी को पुणे के आंगा खां महल ले जाया गया जहाँ उन्हें दो साल तक बंदी बनाकर रखा गया। इसी दौरान उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी का देहांत बाद 22 फरवरी 1944 को हो गया और कुछ समय बाद गांधी जी भी मलेरिया से पीड़ित हो गए। अंग्रेज़ उन्हें इस हालत में जेल में नहीं छोड़ सकते थे इसलिए जरूरी उपचार के लिए 6 मई 1944 को उन्हें रिहा कर दिया गया। आशिंक सफलता के बावजूद भारत छोड़ो आंदोलन ने भारत को संगठित कर दिया और द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक ब्रिटिश सरकार ने स्पष्ट संकेत दे दिया था की जल्द ही सत्ता भारतीयों के हाँथ सौंप दी जाएगी। गांधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन समाप्त कर दिया और सरकार ने लगभग 1 लाख राजनैतिक कैदियों को रिहा कर दिया।
गाँधी जी की हत्या
30 जनवरी 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की दिल्ली के ‘बिरला हाउस’ में शाम 5:17 पर हत्या कर दी गयी। गाँधी जी एक प्रार्थना सभा को संबोधित करने जा रहे थे जब उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे ने उबके सीने में 3 गोलियां दाग दी। ऐसे माना जाता है की ‘हे राम’ उनके मुख से निकले अंतिम शब्द थे। नाथूराम गोडसे और उसके सहयोगी पर मुकदमा चलाया गया और 1949 में उन्हें मौत की सजा सुनाई गयी।
गांधीजी से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
- गाँधी जी का विवाह कितने वर्ष के आयु में हुआ था – 13 वर्ष
- गाँधी जी के विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के आंदोलन का लक्ष्य था – कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन
- तिरंगे को राष्ट्र ध्वज के रूप में कब स्वीकार किया गया है – लाहौर कांग्रेस
- नमक सत्याग्रह किस सन में प्रारंभ हुआ था – 1930 में
- गाँधी की ने ‘दांडी यात्रा’ कहां से शुरू की थी – अहमदाबाद
- महात्मा गाँधी द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन किस वर्ष में शुरू किया गया था – 1930
- गांधी जी की दांडी यात्रा उदहारण है – सविनय अवज्ञा का
- गाँधी जी की महत्वपूर्ण शिक्षाएं कौन सी हैं – सत्य और अहिंसा
- महात्मा गाँधी के नमक सत्याग्रह का अंतिम लक्ष्य क्या था – भारत के लिए पूर्ण स्वराज
- किस आंदोलन की विफलता के बाद ‘स्वराज्य पार्टी’ बनाई गई थी – असहयोग आंदोलन
- असहयोग आंदोलन का आरंभ किया गया – 1920 ई. में
- ‘स्वराज्य पार्टी’ किन ने मिलकर बनाई थी – मोतीलाल नेहरू और सी. आर. दास
- गाँधी जी के साथ ‘नमक सत्याग्रह’ का नेतृत्व किसने किया था – सरोजिनी नायडू
- ‘नमक कानून’ के उल्लंघन में गाँधी जी ने किस आंदोलन की शुरुआत की थी – सविनय अवज्ञा आंदोलन
- गाँधी जी का प्रिय गीत ‘वैष्णव जन तो …” के रचयिता हैं – नरसी मेहता
- किसने कहा है “स्वाद का वास्तविक स्थान जिह्वा नहीं, बल्कि मन है।” – महात्मा गाँधी
- किसने कहा था “सत्य परम तत्व है और वह ईश्वर है” – महात्मा गाँधी
- गाँधी जी को माना जाता है – दार्शनिक अराजकतावादी
- महात्मा गाँधी को “अर्धनग्न फकीर” किस ने कहा था – विंस्टन चर्चिल
- महात्मा गाँधी के साथ 1931 में समानता की शर्तों पर ब्रिटिश सरकार की बातचीत पर सबसे जोरदार विरोध किसने किया था – विंस्टन चर्चिल ने
- “करेंगे या मरेंगे” या “करो या मरो” गाँधी जी ने यह वाक्य किस जन-आंदोलन में कहे थे – भारत छोड़ो आंदोलन
- “भारत छोड़ो आंदोलन” का नारा किसने दिया था – महात्मा गाँधी
- “भारत छोड़ो आंदोलन” की शुरुआत हुई थी – वर्ष 1942 ई. में
- गाँधी जी ने किस धार्मिक ग्रंथ को अपनी माता कहा था – भगवद्गीता
- गाँधी जी ने किस समाचार पत्र का संपादन गाँधी जी ने किया था – “नवजीवन”, “हरिजन” और “यंग इंडिया”
- वर्ष 1933 में गाँधी जी द्वारा संपादित समाचार पत्र का क्या नाम था – यंग इंडिया
- महात्मा गाँधी द्वारा शुरू की गयी साप्ताहिक पत्रिका कौन सी थी – यंग इंडिया
- गाँधी जी को सर्वप्रथम “राष्ट्रपिता” बोलकर किसने सम्बोधित किया था – सुभाषचन्द्र बोस
- दक्षिण अफ्रीका में महत्मा गाँधी जी द्वारा प्रकाशित की गयी पत्रिका का नाम था – इंडियन ओपीनियन
- गाँधी जी के नाम के साथ “महात्मा” नाम जोड़ा गया था – चम्पारन सत्याग्रह के दौरान
- “अन्तयोदय” का विचार किसने दिया था – महात्मा गाँधी
- वर्ष 1919 में गाँधी जी ने किसके विरोध में ‘सत्याग्रह सभा’ का आयोजन किया था – रौलेट एक्ट
- महात्मा गाँधी ने पहली बार सत्याग्रह का प्रयोग कहाँ किया था – दक्षिण अफ्रीका
- गाँधी जी ने सत्याग्रह आंदोलन किस वर्ष शुरू किया था – 1919
- किस आंदोलन के साथ महात्मा गाँधी ने भारतीय राजनीति में पदार्पण किया था – चम्पारण
- चम्पारण संघर्ष के दौरान महात्मा गाँधी के साथ कौन-कौन शामिल थे – राजेन्द्र प्रसाद और अनुग्रह नारायण सिंह
- गाँधी जी ने 1930 में ‘दांडी मार्च’ का आयोजन किस कारण से किया था – नमक के ऊपर कर लगाये जाने के कारण
- गुजरात में ‘साबरमती आश्रम’ की स्थापना गाँधी जी ने किस वर्ष की थी – 1917 में
- गाँधी जी ने किस विदेशी पत्रकार को दांडी मार्च के दौरान अपने साबरमती आश्रम में ठहराया था – बेव मिलर
- नमक सत्याग्रह एवं दांडी यात्रा पर सरकार की तत्कालीन प्रतिक्रिया क्या थी – इन्हें गंभीरता से नहीं लिया
- किस कारण से महात्मा गाँधी ने 20 सितम्बर, 1932 को ‘यरवदा जेल’ में आमरण अनशन प्रारम्भ किया था – रैम्जे मैक्डोनाल्ड के साम्प्रदायिक अवार्ड के विरुद्ध
- महात्मा गाँधी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह के लिए प्रथम सत्याग्रही के रूप में किसे चुना था – विनोबा भावे
- भारत छोड़ो आंदोलन कब प्रारम्भ हुआ था – 1942 ई. में.
- मोहनदास करमचंद गाँधी की माता का नाम है – पुतलीबाई
- गाँधी जी ने किस आंदोलन को ‘चौरी-चौरा कांड’ के बाद वापस ले लिया था – असहयोग आंदोलन
- गाँधी जी ने किस सिद्धांत के माध्यम से आर्थिक असमानताओं को दूर करने का प्रयास किया था – न्यासधारिता सिद्धांत
- एक समय गाँधी जी के सहयोगी रहे, बाद में उनसे अलग होकर एक आमूल परिवर्तवादी आंदोलन “आत्म-सम्मान आंदोलन” चलाने वाले व्यक्ति कौन थे – ई. वी. रामास्वामी नायकर
- गाँधी-इरविन समझौता किससे सम्बन्धित है – सविनय अवज्ञा आंदोलन
- महात्मा गाँधी किसकी कृतियों और रचनाओं से अत्यधिक प्रभावित थे – लियो टॉलस्टॉय
- गाँधी जी से दक्षिण अफ्रीका में मिलने कौन गया था – गोपाल कृष्ण गोखले
- महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन वर्ष 1930 में किस स्थान से प्रारम्भ किया था – साबरमती आश्रम
- गाँधी जी खादी को किसका प्रतीक मानते थे – आर्थिक स्वतंत्रता का
- महात्मा गाँधी के अनुसार संसार में सबसे शक्तिशाली बल कौन सा है – वीर की अहिंसा
- 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू करने का मुख्य कारण था – क्रिप्स मिशन की विफलता
- भारत छोड़ो आंदोलन 1942 में किस महीने में शुरू किया गया था – अगस्त
- कांग्रेस ने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का प्रस्ताव किस वर्ष पारित किया था – 1942 में
- भारत छोड़ो आंदोलन किस वर्ष शुरू किया गया था – 1942 ई. में
- ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान ‘समांतर सरकार’ का गठन कहां किया गया था – बलिया
- भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित करने पर गाँधी जी को कौन सी जेल में कैद किया गया था – आगा खाँ पैलेस में
- किस सत्याग्रह में गाँधी जी ने प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं लिया था – राजकोट सत्याग्रह
- भारत छोड़ो आंदोलन के उत्पन्न दंगे किस क्षेत्र में सर्वाधिक व्यापक रहे – बिहार और संयुक्त प्रांत में
- बिहार के किस नेता ने गाँधी जी के साथ किसान आंदोलन का नेतृत्व किया था – डॉ राजेंद्र प्रसाद
- महात्मा गाँधी ने सर्वप्रथम किस किसान आंदोलन में भाग लिया था – चंपारण
- स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महात्मा गाँधी के करीबी अंग्रेज मित्र थे – रेवरेण्ड चार्ली एन्ड्रूज
- महात्मा गाँधी का मानना था कि द्वितीय विश्वयुद्ध में भागीदरी से उनके किस सिद्धांत का उल्लंघन होगा – अहिंसा
- भारत छोड़ो आंदोलन के समय इंग्लैंड का प्रधानमंत्री था – विंस्टन चर्चिल
- महात्मा गाँधी ने खिलाफत आंदोलन का समर्थन क्यों किया – गाँधी जी ने अंग्रेजों के खिलाफ अपने आंदोलन में भारतीय मुसलमानों का सहयोग प्राप्त करना चाहते थे।
- चम्पारण नील आंदोलन के राष्ट्रीय नेता कौन थे – महात्मा गाँधी
- सरोजिनी नायडू को ‘नाइटिंगल ऑफ़ इंडिया’ का ख़िताब किसने दिया था – महात्मा गाँधी
- गाँधी जी अपना राजनैतिक गुरु किसे मानते थे – गोपाल कृष्ण गोखले
- गाँधी जी का प्रथम सत्याग्रह कहाँ हुआ था – चम्पारण
- गांधीजी ने फिनिक्स सेटलमेट कहाँ शुरू किया था – दक्षिण अफ्रीका के डरबन में
- गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे – 9 जनवरी 1915
- किस कारन गांधीजी ने कैसरी-ए-हिन्द पदवी छोड़ी – जलियांवाला बाग़ नरसंहार (1919)
- किस एकमात्र कांग्रेस के अधिवेशन की अध्यक्षता गाँधी जी ने की थी – बेलगाम अधिवेशन (1924)
- गाँधी जी ने साप्ताहिक हरिजन कब शुरु किया – 1933
- टैगोर को गुरूदेव का नाम किसने दिया – महात्मा गाँधी
- गाँधी जी ने ‘पोस्ट डेटेड चेक’ किसे कहाँ – क्रिप्स मिशन (1942)
- गाँधी जी के आत्मकथा का असली नाम क्या हैं – सत्य न प्रयोगों
- गाँधी जी की आत्मकथा प्रथम बार कब प्रकाशित हुई थी – 1927 (नवजीवन में )
- गाँधी जी ने अपनी आत्मकथा किस भाषा में लिखी – गुजरती