बक्सर का युद्ध

23 जून, 1757 ई. में प्लासी के युद्ध में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला का सेनापति मीरजाफर विश्वाशघात कर अंग्रजों से मिल गया, जिस कारण अंग्रेजों ने युद्ध में जीत प्राप्त कर सिराजुद्दौला को मृत्यु दण्ड देकर, मीरजाफर को बंगाल का नवाब नियुक्त किया। मीरजाफर अंग्रेजों की कठपुतली मात्र था जो अंग्रजों के मन-मुताबिक कार्य करता था। पर जब वह अंग्रेजों की मनमानियां और दिन प्रति दिन बढ़ती मांगों को पूरा न कर सका तो उसको हटाकर उसके दामाद मीरकासिम को बंगाल का नवाब बनाया गया।

मीरकासिम भी मीरजाफर की तरह अंग्रजों की कठपुतली ही था, उसने भी अंग्रेजों को कई छूट और अधिकार प्रदान किये थे, लेकिन मीरकासिम के नवाब बनने के कुछ समय पश्चात ही उसके द्वारा दिये गए अधिकारों का अंग्रेजों द्वारा दुरूपयोग करने के कारण मीरकासिम और अंग्रेजों के बीच खटास आ गयी। परिणामस्वरूप 23 अक्टूबर, 1764 ई. को बक्सर का युद्ध हुआ।

23 अक्टूबर, 1764 ई. को बक्सर का युद्ध अंग्रेजो और बंगाल के नवाब मीरकासिमअवध के नवाब शुजाउद्दौला तथा मुग़ल बादशाह शाहआलम द्वितीय की सम्मिलित सेनाओं के मध्य हुआ था। अंग्रेजी सेना का नेतृत्व मेजर हैक्टर मुनरो द्वारा किया गया था। इस युद्ध में अंग्रजों की जीत हुई और पूर्ण बंगाल अंग्रेजों के अधीन हो गया और दोनों पक्षों में इलाहाबाद में संधि हुई, इस संधि के परिणामस्वरूप अंग्रेजों को काफी भारी-भरकम जुर्माना दिया गया और बिहारबंगाल तथा ओडिशा वास्तविक रूप से अंग्रेजों के अधीन आ गया। साथ ही मीरजाफर को फिर से नवाब बना दिया गया।

बक्सर युद्ध के कुछ समय पश्चात नजमुद्दोला बंगाल का नवाब बना जोकि सिर्फ नाम का नवाब था, वह पूर्णतः अंग्रजों के दिशा-निर्देशों पर निर्भर था। यही कारण था कि 1765 ई. से लेकर 1772 ई. तक बंगाल में ‘द्वैध पद्धति प्रशासन‘ चला, जिसमें कर या राजस्व वसूलने का अधिकार अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी के पास था, जबकि सत्ता व शासन का अधिकार नवाब के पास हुआ करता था। इस द्वैध पद्धति प्रशासन के कारण अंग्रेजों ने दोनों हाथों से बंगाल का भरपूर शोषण किया। जिस कारण 1770 ई. में बंगाल में भीषण अकाल पड़ा और बंगाल की लगभग एक-तिहाई जनता काल के गर्त में समा गयी।

 

प्लासी का युद्ध

प्लासी का युद्ध 23 जून, 1757 ई. को अंग्रेजों और बंगाल के तत्कालीन नवाब सिराजुद्दौला के मध्य प्लासीनामक स्थान पर हुआ था। जिसमें अंग्रेजी सेना का नेतृत्व रॉबर्ट क्लाइव तथा नवाब की सेना का नेतृत्व मीर जाफर ने किया था। प्लासी युद्ध के परिणाम स्वरूप भारत में अंग्रेज शक्ति और प्रबल हो गयी, जिसने भारत के स्वरूप को ही बदल दिया और एक ऐसे अंग्रेजी शासन का उदय हुआ, जिसने भारत पर लगभग 200 वर्षों तक राज किया।

17 वीं-18 वीं शताब्दी में भारत में यूरोपीय कंपनियों का आगमन हुआ जिनका भारत में आने का मकसद व्यापार करना था, परन्तु अपनी बढ़ती महत्वकांक्षाओं के कारण उन्होंने भारत के विभिन्न क्षेत्रों पर राज करना शुरू कर दिया। औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात मुग़ल साम्राज्य की नींव कमजोर पड़ गयी। जिसका फायदा उठाकर अलीवर्दी खाँ नामक व्यक्ति ने 1740 ई. में बंगाल को मुग़ल साम्राज्य से मुक्त घोषित कर, अपने आप को वहाँ का नवाब घोषित किया। मुगलों की शक्ति क्षीण होते देख अंग्रेजों ने भी इसका फायदा उठाया और भारत में जगह-जगह किले बंदी कर अपना अधिपत्य स्थापित करने की कोशिश की।

09 अप्रैल, 1756 ई. में अलीवर्दी खाँ की मृत्यु के पश्चात उसकी सबसे छोटी पुत्री का पुत्र सिराजुद्दौला नवाब बना। तब बंगाल का माहौल अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के आपसी द्वंद्व के कारण काफी अशांत था। अंग्रेजों और फ्रांसीसियों ने जगह-जगह किले बंदी करनी भी शुरू कर दी थी। इसके कारण सिराजुद्दौला काफी चिंतित था इसलिए सिराजुद्दौला ने अंग्रेज़ों और फ्रांसीसियों को तुरंत किले बंदी रोकने का आदेश दिया।फ्रांसीसियों ने तो नवाब का आदेश मानते हुए तत्काल प्रभाव से अपने द्वारा की जा रही किले बंदी को रोक दिया परन्तु अंग्रेजों ने नवाब के आदेश की अवहेलना करते हुए अपनी किले बंदी को जारी रखा।

 

यह देख सिराजुद्दौला ने 1756 ई. में अंग्रेजों की कासिम बाजार स्थित कोठी पर आक्रमण करके उस पर कब्ज़ा कर लिया, तत्पश्चात 20 जून, 1756 को कलकत्ता में हुगली नदी के निकट स्थित फोर्ट विलियमकिले पर भी अपना अधिपत्य कर, अंग्रेजों को वहां से भागने पर मजबूर कर दिया और अंग्रेज गवर्नर ड्रेक को फुल्टा द्वीप पर जाकर शरण लेनी पड़ी। फोर्ट विलियम पर कब्ज़ा करने के दौरान 146 अंग्रेज बंदी बनाये गए जिनमें स्त्री और बच्चे भी शामिल थे, उन्हें नवाब सिराजुद्दौला के अधिकारीयों द्वारा एक छोटे अंधेरे कमरे मेंबंद कर दिया गया। जिनमें से अगली सुबह सिर्फ 23 लोग ही जीवित बच सके, बचने वालों में से एक हॉलवेलनामक अंग्रेज व्यक्ति ने इस घटना को अंग्रेज अफसरों तक पहुंचाया। इस घटना के कारण अंग्रेजों और नवाब सिराजुद्दौला के मध्य कड़वाहट और बढ़ गयी। इस घटना को इतिहास में काली कोठरी की घटना या काल कोठरी की घटना के नाम से जाना गया।

इस काली कोठरी की घटना के बारे में जानकर अंग्रेज काफी क्रोधित हुए और रॉबर्ट क्लाइव तथा एडमिरल वाटसन, मद्रास से सेना लेकर बंगाल की तरफ बढे। जिन्होंने फिर से कलकत्ता पर अपना अधिकार कर लिया और सिराजुद्दौला को संधि करने पर मजबूर कर दिया, जिसे ‘अली नगर की संधि‘ के नाम से जाना गया। इस संधि के फलस्वरूप अंग्रेजों को बंगाल में किले बंदी करने की अनुमति प्राप्त हो गयी। इस संधि के बाद अंग्रेज और आक्रामक हो गए और उन्होंने फ्रांसीसियों के अधिकार क्षेत्र चंद्रनगर पर आक्रमण कर उसे अपने कब्जे में ले लिया।

अंग्रेजों की ऐसी गतिविधियों को देख सिराजुद्दौला ने अंगेजों पर पुनः आक्रमण करने की तैयारी शुरू कर दी। वहीँ दूसरी तरफ अंग्रेजों ने नवाब सिराजुद्दौला के सेनापति मीर जाफर को बंगाल का नवाब बनाने का लालच देकर अपनी तरफ कर लिया और मीर जाफर सिराजुद्दौला से विश्वासघात करने को तैयार हो गया।

23 जून, 1757 ई. को प्लासी नामक स्थल पर ईस्ट इंडिया कंपनी और नवाब सिराजुद्दौला की सेना के मध्य युद्ध हुआ, जिसमें अंग्रेजी सेना की कमान रॉबर्ट क्लाइव और नवाब सेना की कमान मीर जाफर ने संभाली। इस युद्ध में मीर जाफर के विश्वाशघात के कारण नवाब सेना की हार हुई और सिराजुद्दौला को बंदी बनाकर मृत्यु दंड स्वरूप गोली मार दी गयी।

प्लासी युद्ध में अंग्रेजों की जीत के फलस्वरूप व अंग्रेजों द्वारा मीरजाफर से किये गए वादे के अनुसार मीरजाफर को बंगाल का अगला नवाब बनाया गया। बंगाल का नवाब बनते ही मीर जाफर ने अंग्रेजो को 24 परगना की जमींदारी सौंप दी और बंगालओडिशा तथा बिहार पर अंग्रेजो की ईस्ट इंडिया कंपनी को मुफ्त व्यापार करने की छूट प्रदान कर दी। मीर जाफर अंग्रेजों के हाथों की कठपुतली मात्र था, अंग्रेज जो चाहते वह उससे करवाते थे। जब मीर जाफर अंग्रेजों की मनमानी और मांगों को पूर्ण न कर सका तो उसको बंगाल के नवाब की गद्दी से हटाकर मीर कासिम को बंगाल का नवाब बनाया गया।

प्लासी युद्ध के कुछ समय पश्चात बक्सर का युद्ध हुआ, जिसके परिणामस्वरूप अंग्रेजों का बंगाल पर पूर्णतः नियंत्रण स्थापित हो गया और अंग्रेज एक व्यापारिक शक्ति से एक राजनितिक शक्ति में बदल गए। इसी युद्ध के परिणाम स्वरूप अंग्रजों की भारत में अपनी सत्ता-स्थापित करने की प्रक्रिया की शुरुआत हुई और साम-दाम-दंड-भेद जैसे बन पड़े अंग्रेजों ने भारत पर अपनी सत्ता स्थापित करने की कोशिश की। अंग्रेजों द्वारा ‘फुट डालो राज करो‘ की निति का प्रयोग भी किया गया, जिसका प्रयोग कर तत्कालीन राजाओं और राजनितिक शक्तियों को आपस में लड़वाकर कमजोर कर दिया गया। जिसके फलस्वरूप भारत पर अंग्रेजों का एकाधिकार स्थापित हुआ। जोकि 15 अगस्त, 1947 को भारत के अंग्रेजो से स्वतंत्र होने के पश्चात समाप्त हुआ।

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