मगध साम्राज्य
मगध साम्राज्य : पुराणों के अनुसार छठी शताब्दी ईसा पूर्व में वृहद्रथ ने मगध साम्राज्य की स्थापना की। जिसकी राजधानी गिरिव्रज को बनाया और बार्हद्रथ वंश (वृहद्रथ वंश) की नींव रखी। कालांतर में वृहद्रथ को एक पुत्र हुआ जिसका नाम जरासंध रखा गया, जो एक प्रतापी राजा बना और जिसका उल्लेख महाभारत में मिलता है। अथर्ववेद तथा ऋग्वेद में भी मगध का उल्लेख मिलता है। पुराणों के अनुसार जरासंध की मृत्यु के पश्चात मगध पर शिशुनाग वंश का अधिपत्य हुआ।
परन्तु बौद्ध साहित्य के अनुसार शिशुनाग वंश का कोई अस्तित्व नहीं है और उसकी जगह हर्यक वंश की स्थापना हुई थी, क्यूंकि जब भगवान बुद्ध ने धर्म प्रचार हेतु मगध की यात्रा की थी तब वहां का राजा हर्यक वंशका बिम्बिसार था।
विभिन्न मतों के अनुसार मगध पर शासन करने वाले वंश –
हर्यक वंश (545 ई. पू. से 412 ई. पू. तक) –
- बिंबसार या बिम्बिसार
बिंबसार या बिम्बिसार ने हर्यक वंश की नींव रखी थी। बिंबसार हर्यक वंश का एक प्रतापी राजा था, जो 15 वर्ष की आयु में 543 ई० पू० मगध का सम्राट बना। इसकी राजधानी भी गिरिव्रज ही थी, पर कुछ समय बाद ‘राजगृह’ को राजधानी बनाया गया। - अजातशत्रु
अजातशत्रु बिम्बिसार का पुत्र था जिसने बिम्बिसार की मृत्यु के पश्चात 491 ई० पू० मगध का सिंहासन संभाला। पुराणों के अनुसार ‘दर्शक’ अजातशत्रु का उत्तराधिकारी बना, परन्तु जैन और बौद्ध ग्रन्थ के अनुसार ‘उदायिन’ को उत्तराधिकारी माना जाता है, जिसने ‘पाटलिपुत्र’ नगर की स्थापना की थी। अजातशत्रु को ‘कुणिक’ के नाम से भी जाना जाता है।
कई मत हैं कि अजातशत्रु जैन धर्म का अनुयायी था, परन्तु कुछ समय पश्चात बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया। इसीलिए अजातशत्रु ने बुद्ध के निर्वाण (मृत्यु) के पश्चात उनके अवशेषों पर स्तूप का निर्माण किया, जिसे ‘राजगृह’ (वर्तमान में राजगीर, जिला-नालंदा, बिहार) में बनाया गया। - नागदशक
हर्यक वंश का अंतिम शासक नागदशक था।
शिशुनाग वंश (412 ई. पू. से 344 ई. पू. तक) –
- शिशुनाग
समय के साथ हर्यक वंश के राजाओं की शक्ति इतनी कमजोर हो चुकी थी कि शिशुनाग नामक राजा के सेवक ने सिहांसन पर कब्ज़ा कर लिया और मगध का सम्राट बना। तभी से शिशुनाग वंश का उदय हुआ। शिशुनाग ने भी गिरिव्रज को ही अपनी राजधानी बनाया था। - कालाशोक
शिशुनाग की मृत्यु के पश्चात शिशुनाग के उत्तराधिकारी कालाशोक ने साम्राज्य संभाला। कालाशोक ने ‘पाटलिपुत्र’ को मगध की राजधानी बनाया। कालाशोक के कार्यकाल में ही बौद्ध धर्म की द्वितीय संगीति का आयोजन वैशाली में किया गया था। - नन्दिवर्धन
कालाशोक के दस पुत्र थे, जिन्होंने शिशुनाग वंश के पतन तक मगध पर शासन किया, जिनमें से नन्दिवर्धन शिशुनाग वंश का अंतिम शासक था।
नन्द वंश (344 ई. पू. से 322 ई. पू. तक) –
- महापद्मनंद (उग्रसेन)
महापद्म नंद ने शिशुनाग वंश का तख्तापलट कर मगध पर अधिकार किया और नंदवंश की नींव रखी। पाली ग्रंथों के अनुसार महापद्म को उग्रसेन के नाम से जाना गया है। विशाल सेना होने के कारण महापद्म को उग्रसेन कहा गया। जैन ग्रंथों के अनुसार महापद्म को वेश्या का पुत्र माना गया है, कई मतों के अनुसार माना जाता है कि महापद्म निम्न कुल का था।
यही कारण है कि महापद्म को प्राचीन भारत का पहला शूद्र सम्राट भी माना जाता है।
- नंदराज (धननंद या घनानंद)
नन्दवंश का अंतिम उत्तराधिकारी नंदराज था, जिसे बौद्ध ग्रंथों में धननन्द (घनानंद) के नाम से जाना जाता है। 322-321 ई० पू० में चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरु चाणक्य के साथ मिलकर धननंद की हत्या कर मगध का तख्तापलट किया और मौर्य साम्राज्य की नींव रखी।
इसके बाद प्राचीन भारत के सबसे विशाल साम्रज्य का उद्भव हुआ जिसे मौर्य साम्राज्य या मौर्य वंश के नाम से जाना गया। जो भारत के इतिहास को अंधकार से प्रकाश की तरफ ले गया।