राज्य के नीति निदेशक तत्त्व (DPSP)
राज्य के नीति निदेशक तत्त्व (DPSP-DIRECTIVE PRINCIPLES OF STATE POLICY) का उल्लेख संविधान के भाग – 4 में अनु० 36 – 51 के मध्य किया गया है। इन्हें वर्ष 1937 में निर्मित आयरलैंड (Ireland) के संविधान से लिया गया है।
राज्य के नीति निदेशक तत्व शासन व्यवस्था के मूलभूत अधिकार है , ये देश के प्रशासकों के लिए आचार संहिता की तरह कार्य करते है। (DPSP) की सूची में तीन आधारभूत बातें उल्लेखित है।
- (DPSP) वें लक्ष्य एवं उद्देश्य है जो एक समाज के रूप में नागरिको द्वारा स्वीकार किए जाते है।
- यह वें अधिकार है जो नागरिकों को मौलिक अधिकारों के अतिरिक्त प्राप्त होने चाहिए ।
- वह नीति जिनका पालन सरकार द्वारा किया जाना चाहिए।
उद्देश्य
- लोक कल्याणकारी राज्य का निर्माण वं आर्थिक व सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना भी राज्य के नीति निदेशक तत्वों का मूल उद्देश्य है।
- यह संविधान में उल्लेखित सामाजिक व राजनीतिक लोकतंत्र स्थापित करने का उद्देश्य रखते है , एवं इसी की पूर्ति के लिए राज्य का मार्गदर्शन करते है।
- यह समाजवाद , गांधीवाद , व्यक्तित्ववाद का सृजन करते है ।
महत्व व उपयोगिता
नीति निदेशक तत्वों का हनन होने की स्थिति में न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। यह सत्य है की इसे न्यायालय द्वारा क्रियान्वित नहीं किया जा सकता फिर भी ये शासन के आधारभूत सिद्धांत है ।
राज्य के नीति निदेशक तत्व की प्रकृति
संविधान निर्माताओं ने निदेशक तत्वों कप गैर-न्यायोचित एवं विधिक रूप से लागू करने की बाध्यता वाला नहीं बनाया , क्योंकि देश के पास पर्याप्त वितीय साधन नहीं मौजूद थे। इसके आलावा देश में व्यापक विविधता एवं पिछड़ापन इसके क्रियान्यवन में बाधक थे , इसलिए संविधान निर्माताओं ने व्यवहारिक दृष्टिकोण अपनाया और इन तत्वों शक्ति निहित नहीं कि , इसलिए इनका हनन होने पर न्यायालय द्वारा इन्हें लागू नहीं कराया जा सकता है।
शक्ति हीन होने के बावजूद भी ये शासन के आधारभूत सिद्धांत है तथा शासन व्यवस्था के तीनों अंगों कार्यपालिका , न्यायपालिका , विधायिका को इनका महत्व स्वीकार करना पड़ता है। राज्य के नीति निदेशक तत्वों को उनकी प्रकृति के आधार पर तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है।
- समाजवादी सिद्धांत
- गाँधीवादी सिद्धांत
- उदार बौद्धिक सिद्धांत
अनु० – 36
राज्य की परिभाषा
अनु० – 37
राज्य के नीति निदेशक तत्वों का हनन होने पर न्यायालय द्वारा इन्हें लागू नहीं किया जा सकता।
समाजवादी सिद्धांत (Socialist theory)
अनु० – 38
राज्य लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक , आर्थिक व राजनीतिक न्याय की व्यवस्था करेगा। जैसे – आय , प्रतिष्ठा , सुविधाओं और अवसरों की समानता उपलब्ध कराना
अनु० – 39
भौतिक संसाधनों का स्वामित्व व नियंत्रण का इस प्रकार विभाजन हो जिससे सामूहिक हित सर्वोतम रूप से साध्य हो। जैसे –
- पुरुष व स्त्री दोनों को समान कार्य के लिए समान वेतन।
- महिला व पुरुष श्रमिकों के स्वास्थ्य व समता का दुरुपयोग ना हो।
अनु० – 39 A
समान न्याय व नि:शुल्क विधिक सहायता उपलब्ध कराना।
अनु० – 41
कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार संरक्षित करता है।
अनु० – 42
काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता का प्राप्त करने का उपबंध।
अनु०- 43
कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी आदि।
अनु० – 43 A
उद्योगों के प्रबन्ध में श्रमिकों का भाग लेना।
अनु० – 47
पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करने तथा लोक स्वास्थ्य का सुधार करने का राज्य का कर्तव्य।
गाँधीवादी सिद्धांत (Gandhian theory)
ये सिद्धांत , गाँधीवादी विचारधारा पर आधारित है , इनका लक्ष्य गाँधी जी के सपनों को साकार करने के लिए उनके कुछ विचारों को नीति निदेशक तत्वों में शामिल किया गया है।
अनु० – 40
ग्राम पंचायतो का गठन जो उन्हें स्वायत्त शासन की इकाइयों के रूंप में कार्य करने करने की शक्ति प्रदान करना।
अनु० – 43
ग्रामीण क्षेत्रों में व्यक्तिगत या सहकारी के आधार पर कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन व कामगारों के लिए निर्वाह मजदूरी आदि।
अनु० – 43 B
उद्योगों के प्रबन्ध में श्रमिकों का भाग लेना।
अनु० – 46
अनुसूचित जाति व जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के आर्थिक , सामाजिक व शिक्षा संबंधी हितो की अभिवृद्धि।
अनु० – 47
स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नशीली दवाओं , मदिरा , ड्रग के औषधीय प्रयोजनों से भिन्न उपभोग पर प्रतिबंध।
अनु० – 48
गाय , बछड़ो तथा अन्य दुधारू पशुओं के नस्ल सुधार हेतु प्रोत्साहन एवं उन के वध पर रोक।
उदार बौद्धिक सिद्धांत (Liberal intellectual theory)
अनु० – 44
भारत के समस्त नागरिकों से समान सिविल संहिता (Uniform Civil Code)
अनु० – 45
6-14 वर्ष के छात्र व छात्राओं लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का उपबन्ध।
अनु० – 48
कृषि और पशुपालन को प्रोत्साहन आधुनिक वैज्ञानिक प्रणाली से करना।
अनु० – 48 A
पर्यावरण संरक्षण , वन और वन्य जीवों की रक्षा।
अनु० – 49
राष्ट्रीय महत्व वाले घोषित किए गए कलात्मक या एतिहासिक अभिरुचि वाले स्मारक स्थान या वस्तु का संरक्षण।
अनु० – 50
लोक सेवाओं में न्यायपालिका व कार्यपालिका का पृथक्करण।
अनु० – 51
अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा की अभिवृद्धि तथा राष्ट्रों के मध्य न्यायपूर्ण व सम्मान पूर्ण संबंधो को बनाए रखना।
Note –
42 वें संविधान संसोधन अधिनियम 1976 के द्वारा संविधान में अनु० – (31A , 43A , 48A) जोड़े गए।