राज्य विधान परिषद् (State Legislative Council)
संविधान के भाग – 6 में अनु० – 168 से 212 तक विधानमंडल की संगठन , कार्यकाल , शक्तियां व विशेषाधिकार आदि का वर्णन किया गया है ।
अनु०- 168 के अंतर्गत प्रत्येक राज्य के लिए एक विधानमंडल का प्रावधान किया गया है , जिसमे राज्यपाल के अतिरिक्त विधानमंडल के एक या दो सदस्य शामिल होते है। वर्तमान में भारत में 29 राज्य है , जिनमे से 7 राज्यों में द्विसदनीय व्यवस्था (उत्तरप्रदेश , बिहार , आँध्रप्रदेश , तेलंगाना , जम्मू-कश्मीर , कर्नाटक, महाराष्ट्र ) व 22 राज्यों में एक सदनीय व्यवस्था है।
विधान परिषद्
अनु०- 169 के अंतर्गत विधानपरिषद् के गठन व समाप्ति की प्रक्रिया निम्न प्रकार है , विधान परिषद् एक स्थायी सदन है इसका विघटन नहीं होता किंतु राज्य इसे बना या समाप्त कर सकता है।
- किसी भी राज्य में विधान परिषद् के गठन के लिए विधानसभा द्वारा (2/3) विशेष बहुमत प्राप्त करना आवश्यक है ।
- विधानपरिषद् के निर्माण व समाप्ति की अंतिम शक्ति संसद के पास है , ऐसा संविधान संसोधन किए बिना साधारण प्रक्रिया द्वारा किया जा सकता है।
- अनु०- 169 के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया है कि प्रत्येक राज्य अपनी इच्छा अनुसार चाहे तो दूसरा सदन रखे या ना रखे । इस उपबंध का लाभ उठाते हुए आंध्र प्रदेश ने 1957 में विधानपरिषद का गठन किया व 1985 में इसे समाप्त कर दिया , और पुन: 2007 में आंध्रप्रदेश विधान परिषद् अधिनियम 2005 को लागू करने के बाद विधानपरिषद का पुन: गठन किया।
संरचना
विधान परिषद् , राज्य विधानमंडल का उच्च सदन होता है । अनु०- 171 के अंतर्गत विधान परिषद् के सदस्यों की अधिकतम संख्या विधानसभा के कुल सदस्यों की (1/3) एक तिहाई व न्यूनतम संख्या 40 होनी चाहिए। किंतु जम्मू-कश्मीर की सदस्य संख्या 36 है।
विधान परिषद् के सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से निम्न तरीके है —
- विधान परिषद् के (1/3) एक तिहाई सदस्य राज्य के स्थानीय संस्थाओं जैसे – नगरपालिका , नगरनिगम व जिला बोर्ड आदि के द्वारा चुने जाते है।
- एक तिहाई (1/3) सदस्यों का चुनाव विधानसभा के सदस्यों द्वारा किया जाता है।
- 1/12 सदस्यों का निर्वाचन उन छात्रों द्वारा किया जाता है जो कम से कम 3 वर्ष पूर्व स्नातक कर चुके हो।
- 1/12 सदस्य उन अध्यापकों द्वारा निर्वाचित किए जाते है , जो 3 वर्ष से उच्च माध्यमिक विद्यालय या उच्च शिक्षण संस्थानों में अध्यापन कर रहे हो।
- 1/6 सदस्य राज्यपाल द्वारा मनोनीत किए जाएंगे , जो साहित्य , कला , सहकारिता , आंदोलन और समाज सेवा का विशेष ज्ञान व्यवहारिक अनुभव रखते हो ।
कार्यकाल
राज्यसभा की तरह विधानपरिषद भी एक स्थायी सदन है , इसके सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है , किंतु प्रत्येक 2 वर्ष के बाद इसके 1/3 सदस्य अवकाश प्राप्त कर लेते है और उनके स्थान पर नए सदस्य चुने जाते है ।
यदि किसी सदस्य की मृत्यु या त्यागपत्र द्वारा हुई रिक्ति को भरने के लिए जो सदस्य निर्वाचित होगा , वह उस सदस्य की शेष अवधि के लिए ही चुना जाएगा ।
योग्यता
अनु० – 173 के अनुसार —
- भारत का नागरिक होना चाहिए ।
- 30 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो।
- चुनाव आयोग के समक्ष शपथ लेना अनिवार्य है।
- भारत के संविधान के प्रति सच्ची निष्ठा रखूँगा।
- भारत की संप्रभुता व अखंडता को बनाए रखूँगा।
स्थानों की रिक्ति
- दोहरी सदस्यता के कारण
- अयोग्यता के आधार पर
- त्यागपत्र द्वारा
- लगातार 60 दिनों तक अनुपस्थिति के कारण
- राष्ट्रपति , राज्यपाल , या उपराष्ट्रपति के पद पर निर्वाचन की स्थिति में अपनी विधानमंडल की सदस्यता से त्याग पत्र देना होगा ।
विधानपरिषद् के कार्य व शक्ति
केंद्र में जो शक्ति राज्यसभा की है उसी के समकक्ष स्थिति विधानपरिषद की होती है , कोई भी विधेयक दोनों सदनों से पास होने बाद राज्य में कानून का रूप लेता है ।
- सामान्य विधेयक को विधानसभा व विधानपरिषद किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है , किंतु सामान्य विधेयक पर अंतिम शक्ति विधानसभा के पास है।
- विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को प्रथम बार में विधान परिषद् केवल 3 माह तक रोक सकती है । यदि 3 माह बाद विधेयक विधानसभा द्वारा पुन: पारित कर दे तो विधानपरिषद विधेयक को अधिकतम 1 माह तक और रोक सकती है। इस प्रकार विधानसभा किसी विधेयक को अधिकतम 4 माह तक रोक सकती है।
- धन विधेयक को विधानपरिषद अधिकतम 14 दिनों तक रोक सकती है।
- ऐसे संविधान संसोधन जिनमें केन्द्रीय विधायिका के साथ-साथ राज्य के विधानमंडल का समर्थन आवश्यक है , वहां विधानपरिषद भी इस प्रक्रिया में भाग लेती है ।