विजयनगर साम्राज्य

विजयनगर साम्राज्य (लगभग 1350 ई. से 1565 ई.) की स्थापना राजा हरिहर ने की थी। ‘विजयनगर’ का अर्थ होता है ‘जीत का शहर’। मध्ययुग के इस शक्तिशाली हिन्दू साम्राज्य की स्थापना के बाद से ही इस पर लगातार आक्रमण हुए लेकिन इस साम्राज्य के राजाओं ने इन आक्रमणों का कड़ा जवाब दिया। यह साम्राज्य कभी दूसरों के अधीन नहीं रहा। इसकी राजधानी को कई बार मिट्टी में मिला दिया गया लेकिन यह फिर खड़ा कर दिया गया। हम्पी के मंदिरों और महलों के खंडहरों को देखकर जाना जा सकता है कि यह कितना भव्य रहा होगा। इसे यूनेस्को ने विश्‍व धरोहर में शामिल किया है

स्थापना

इतिहासकारों के अनुसार विजयनगर साम्राज्य की स्थापना 5 भाइयों वाले परिवार के 2 सदस्यों हरिहर और बुक्का ने की थी। वे वारंगल के ककातीयों के सामंत थे और बाद में आधुनिक कर्नाटक में काम्पिली राज्य में मंत्री बने थे। जब एक मुसलमान विद्रोही को शरण देने पर मुहम्मद तुगलक ने काम्पिली को रौंद डाला, तो इन दोनों भाइयों को भी बंदी बना लिया गया था। इन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया और तुगलक ने इन्हें वहीं विद्रोहियों को दबाने के लिए विमुक्त कर दिया। तब मदुराई के एक मुसलमान गवर्नर ने स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया था और मैसूर के होइसल और वारगंल के शासक भी स्वतंत्र होने की कोशिश कर रहे थे। कुछ समय बाद ही हरिहर और बुक्का ने अपने नए स्वामी और धर्म को छोड़ दिया। उनके गुरु विद्यारण के प्रयत्न से उनकी शुद्धि हुई और उन्होंने विजयनगर में अपनी राजधानी स्थापित की।

विजयनगर के राजवंश

विजयनगर साम्राज्य पर जिन राजवंशों ने शासन किया, वे निम्नलिखित हैं-

इस वंश में जो राजा हुए, उनके नाम व उनकी शासन अवधी निम्नलिखित हैं-

  1. हरिहर प्रथम – (1336 – 1356 ई.)
  2. बुक्का प्रथम – (1356 – 1377 ई.)
  3. हरिहर द्वितीय – (1377 -1404 ई.)
  4. विरुपाक्ष प्रथम – (1404 ई.)
  5. बुक्का द्वितीय – (1404 – 1406 ई.)
  6. देवराय प्रथम – (1406 – 1410 ई.)
  7. विजयराय – (1410 -1419 ई.)
  8. देवराय द्वितीय – (1419 – 1444 ई.)
  9. मल्लिकार्जुन – (1447 – 1465 ई.)
  10. विरुपाक्ष द्वितीय- (1465 – 1485 ई. 

हरिहर प्रथम  (1336 से 1353 र्इ.  तक) – हरिहर प्रथम ने अपने भार्इ बुककाराय के सहयोग से विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की। उसने धीरे-धीरे साम्राज्य का विस्तार किया 1353 र्इ. में हरिहर की मृत्यु हो गर्इ।

बुक्का राय (1353 से 1379 र्इ. तक) – बुक्काराय ने गद्दी पर बैठते ही राजा की उपाधि धारण की। उसका पूरा समय बहमनी साम्राज्य के साथ संघर्ष में बीता। 1379 र्इ. को उसकी मृत्यु हुर्इ। वह सहिष्णु तथा उदार शासक था।

हरिहर द्वितीय (1379 से 1404 र्इ. तक) – बुक्काराय की मृत्यु के उपरान्त उसका पुत्र हरिहर द्वितीय सिंहासन पर बैठा तथा साथ ही महाराजाधिराज की पदवी धारण की। इसने कर्इ क्षेत्रों को जीतकर साम्राज्य का विस्तार किया। 1404 र्इ. में हरिहर द्वितीय कालकवलित हो गया।

विरुपाक्ष प्रथम (1404 ई.), बुक्काराय द्वितीय (1404-06 र्इ.), देवराय प्रथम (1406-10 र्इ.), विजय राय (1410-19 र्इ.), देवराय द्वितीय (1419-44 र्इ), मल्लिकार्जुन (1444-65 र्इ.) तथा विरूपाक्ष द्वितीय (1465-85 र्इ.) इस वंश के अन्य शासक थे। देवराज द्वितीय के समय इटली के यात्री निकोलोकोण्टी 1421 र्इ. को विजयनगर आया था।

अरब यात्री अब्दुल रज्जाक भी उसी के शासनकाल 1443 र्इ. में आया था, जिसके विवरणों से विजय नगर राज्य के इतिहास के बारे में पता चलता है। अब्दुल रज्जाक के तत्कालीन राजनीतिक स्थितियों का वर्णन करते हुये लिखा है – ‘‘यदि जो कुछ कहा जाता है वह सत्य है जो वर्तमान राजवंश के राज्य में तीन सौ बन्दरगाह हैं, जिनमें प्रत्येक कालिकट के बराबर है, राज्य तीन मास 8 यात्रा की दूरी तक फैला है, देश की अधिकांश जनता खेती करती है। जमीन उपजाऊ है, प्राय: सैनिको की संख्या 11 लाख होती है।’’ उनका बहमनी सुल्तानों के साथ लम्बा संघर्ष हुआ। विरूपाक्ष की अयोग्यता का लाभ उठाकर नरसिंह सालुव ने नये राजवंश की स्थापना की।

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