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कार्यविधिक बनाम निर्देशात्मक संविधान (Procedural vs Prescriptive Constitution)

राजव्यवस्था नोट्स

(Polity Notes in Hindi)

परिचय:

संविधान किसी भी देश का सर्वोच्च कानून होता है। यह राष्ट्र के बुनियादी ढांचे की रूपरेखा तैयार करता है, सरकार के ढांचे को परिभाषित करता है, नागरिकों के मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों को निर्धारित करता है, और न्यायपालिका की स्थापना करता है।

संविधानों को विभिन्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है, जिनमें शामिल हैं:

  • संरचनात्मक बनाम लचीला: संरचनात्मक संविधान को बदलना मुश्किल होता है, जबकि लचीला संविधान को अपेक्षाकृत आसानी से बदला जा सकता है।
  • लिखित बनाम अलिखित: लिखित संविधान एक दस्तावेज में निहित होते हैं, जबकि अलिखित संविधान परंपराओं और सम्मेलनों पर आधारित होते हैं।
  • संघीय बनाम एकात्मक: संघीय संविधान में शक्ति केंद्रीय और राज्य सरकारों के बीच विभाजित होती है, जबकि एकात्मक संविधान में अधिकांश शक्ति केंद्रीय सरकार के पास होती है।
  • कार्यविधिक बनाम निर्देशात्मक: कार्यविधिक संविधान न्यायिक समीक्षा के अधीन होते हैं, जबकि निर्देशात्मक संविधान न्यायिक समीक्षा के अधीन नहीं होते हैं।

इस लेख में, हम कार्यविधिक और निर्देशात्मक संविधानों पर ध्यान केंद्रित करेंगे, जो न्यायिक समीक्षा के संबंध में उनके अंतरों को परिभाषित करते हैं।

कार्यविधिक संविधान:

कार्यविधिक संविधान वे संविधान होते हैं जिनकी व्याख्या और लागू करने का अधिकार न्यायालयों के पास होता है।

  • न्यायिक समीक्षा: न्यायालय यह निर्धारित करने की शक्ति रखते हैं कि क्या कानून संविधान के अनुरूप हैं। यदि कोई कानून संविधान के विपरीत पाया जाता है, तो उसे न्यायालय द्वारा अमान्य घोषित किया जा सकता है।
  • कानूनी व्यवस्था का शासन: कार्यविधिक संविधान कानून के शासन को स्थापित करते हैं, जिसका अर्थ है कि सभी लोग, चाहे वे सरकारी अधिकारी हों या आम नागरिक, कानून के अधीन हैं।
  • संवैधानिकता का सिद्धांत: कार्यविधिक संविधान संवैधानिकता के सिद्धांत का पालन करते हैं, जिसका अर्थ है कि सरकार को केवल उन शक्तियों का प्रयोग करने की अनुमति है जो संविधान द्वारा उसे प्रदान की गई हैं।

कार्यविधिक संविधान के उदाहरण:

  • संयुक्त राज्य अमेरिका
  • ऑस्ट्रेलिया
  • कनाडा
  • भारत
  • दक्षिण अफ्रीका

निर्देशात्मक संविधान:

निर्देशात्मक संविधान वे संविधान होते हैं जिनमें नीतिगत निर्देश होते हैं जिन्हें सरकार को लागू करने की अपेक्षा होती है।

  • न्यायिक समीक्षा: न्यायालयों को यह निर्धारित करने का अधिकार नहीं है कि क्या सरकार ने निर्देशात्मक सिद्धांतों का पालन किया है। यह सरकार पर निर्भर है कि वह निर्देशात्मक सिद्धांतों को कैसे लागू करती है।
  • राजनीतिक इच्छाशक्ति: निर्देशात्मक संविधानों को लागू करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है। यदि सरकार निर्देशात्मक सिद्धांतों को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध नहीं है, तो वे केवल कागज पर ही रह सकते हैं।

निर्देशात्मक संविधान के उदाहरण:

  • आयरलैंड
  • भारत
  • दक्षिण अफ्रीका

कार्यविधिक और निर्देशात्मक संविधानों के लाभ और कमियां:

कार्यविधिक संविधान:

लाभ:

  • कानून के शासन: कार्यविधिक संविधान कानून के शासन को सुनिश्चित करते हैं। यह मनमानी शक्ति को रोकने और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने में मदद करता है।
  • जवाबदेही: कार्यविधिक संविधान सरकार को जवाबदेह बनाते हैं। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसके कानून संविधान के अनुरूप हैं।
  • स्थिरता: कार्यविधिक संविधान राजनीतिक स्थिरता को बढ़ावा दे सकते हैं। न्यायिक समीक्षा यह सुनिश्चित करने में मदद करती है कि कानून मनमाने ढंग से नहीं बदले जाते हैं।

कमियां:

  • न्यायिक सक्रियता: कार्यविधिक संविधान न्यायिक सक्रियता को जन्म दे सकते हैं। कुछ लोगों का तर्क है कि न्यायालय कभी-कभी कानून बनाने की प्रक्रिया में हस्तक्षेप करते हैं।
  • देरी: न्यायिक समीक्षा की प्रक्रिया धीमी हो सकती है। इसमें सरकार के लिए कानून पारित करने में अधिक समय लग सकता है।

निर्देशात्मक संविधान:

लाभ:

  • लचीलापन: निर्देशात्मक संविधान अधिक लचीले होते हैं। सरकार को बदलती परिस्थितियों के अनुकूल नीतियां बनाने की स्वतंत्रता होती है।
  • लक्ष्य निर्धारण: निर्देशात्मक संविधान सरकार के लिए लक्ष्य निर्धारित कर सकते हैं। वे सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए दिशानिर्देश प्रदान कर सकते हैं।
  • जनता की आकांक्षाओं को दर्शाता है: निर्देशात्मक संविधान जनता की आकांक्षाओं को दर्शाते हैं और सरकार को जवाबदेह बनाते हैं कि वह उन आकांक्षाओं को पूरा करने का प्रयास करे।

कमियां:

  • कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं: निर्देशात्मक सिद्धांत आमतौर पर कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होते हैं। सरकार उन्हें लागू करने के लिए बाध्य नहीं है।
  • अस्पष्टता: निर्देशात्मक सिद्धांत अस्पष्ट हो सकते हैं, जिससे सरकार को यह व्याख्या करने में कठिनाई हो सकती है कि उन्हें कैसे लागू किया जाए।
  • राजनीतिक इच्छाशक्ति पर निर्भर: निर्देशात्मक संविधानों को लागू करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है। यदि सरकार प्रतिबद्ध नहीं है, तो निर्देशात्मक सिद्धांत केवल कागज पर ही रह सकते हैं।

कार्यविधिक और निर्देशात्मक संविधानों का भविष्य:

कार्यविधिक और निर्देशात्मक संविधानों का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि वे लोकतंत्र और कानून के शासन के मूल्यों को कितनी अच्छी तरह से संतुलित करते हैं।

  • कार्यविधिक समीक्षा की भूमिका: न्यायिक समीक्षा की भूमिका को लेकर बहस जारी है। कुछ लोग न्यायिक सक्रियता को सीमित करना चाहते हैं, जबकि अन्य नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक मजबूत न्यायपालिका का समर्थन करते हैं।
  • निर्देशात्मक सिद्धांतों का कार्यान्वयन: निर्देशात्मक सिद्धांतों को लागू करने के लिए सरकारों पर अधिक दबाव पड़ सकता है। नागरिक समाज संगठन सरकारों को जवाबदेह ठहराने और यह सुनिश्चित करने के लिए काम कर सकते हैं कि वे निर्देशात्मक सिद्धांतों को लागू करने का प्रयास करें।

निष्कर्ष:

कार्यविधिक और निर्देशात्मक संविधान लोकतंत्र के दो महत्वपूर्ण प्रकार हैं। कार्यविधिक संविधान कानून के शासन को सुनिश्चित करते हैं, जबकि निर्देशात्मक संविधान सरकार के लिए लक्ष्य निर्धारित करते हैं।

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