Arora IAS

जेवीपी समिति (1948) (JVP Committee (1948)

राजव्यवस्था नोट्स

(Polity Notes in Hindi)

भारत के स्वतंत्र होने के बाद, प्रशासनिक और सुरक्षा बलों के पुनर्गठन के साथ-साथ सार्वजनिक वित्त प्रबंधन प्रणाली को दुरुस्त करने की आवश्यकता भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा था। जेवीपी समिति ने इन जटिल विषयों को संबोधित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

पृष्ठभूमि:

  • स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, भारत को एक नई वित्तीय प्रणाली की आवश्यकता थी जो पारदर्शी, जवाबदेह और विकासोन्मुख हो।
  • ब्रिटिश राज के अधीन वित्तीय प्रणाली अपारदर्शी थी और भारत की जरूरतों को पूरा नहीं करती थी।
  • सार्वजनिक व्यय में वृद्धि और नियंत्र की आवश्यकता थी।

जेवीपी समिति की स्थापना:

  • उपरोक्त चुनौतियों का समाधान करने के लिए, भारत सरकार ने 1947 में एक समिति का गठन किया। इस समिति का नाम जेवीपी समिति था।
  • समिति के अध्यक्ष जॉन मथाई (John Mathai) थे और इसमें वी.टी. कृष्णमाचारी (V.T. Krishnamachari) और पी.एन. वर्मा (P.N. Verma) जैसे सदस्य शामिल थे।

समिति का उद्देश्य:

  • स्वतंत्र भारत के लिए एक ध्वनि और मजबूत वित्तीय प्रणाली तैयार करना।
  • सार्वजनिक वित्त प्रबंधन प्रणाली में सुधार करना।
  • सरकारी व्यय पर नियंत्रण स्थापित करना।
  • वित्तीय जवाबदेही सुनिश्चित करना।

राज्य पुनर्गठन पर सिफारिशें:

जेवीपी समिति को मूल रूप से सार्वजनिक वित्त प्रबंधन प्रणाली में सुधार की सिफारिश करने का काम सौंपा गया था। हालांकि, समिति ने अपनी रिपोर्ट में राज्यों के पुनर्गठन पर भी चर्चा की।

  • भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का विरोध: समिति ने विरोध किया कि राज्यों का पुनर्गठन भाषाई आधार पर किया जाए। उनका तर्क था कि इससे राष्ट्रीय एकता कमजोर हो सकती है और प्रशासनिक जटिलताएं पैदा हो सकती हैं।
  • प्रशासनिक दक्षता पर जोर: समिति ने प्रशासनिक दक्षता और वित्तीय व्यवहार्यता के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की सिफारिश की।

जेवीपी समिति की रिपोर्ट का प्रभाव:

  • जेवीपी समिति की सिफारिशों का भारत के वित्तीय ढांचे पर गहरा प्रभाव पड़ा।
  • केंद्रीय बजट प्रणाली: भारत सरकार आज भी हर साल केंद्रीय बजट पेश करती है।
  • लेखा परीक्षा और नियंत्रण प्रणाली: भारत में एक मजबूत लेखा परीक्षा और नियंत्रण प्रणाली स्थापित है जो सार्वजनिक व्यय की जवाबदेही सुनिश्चित करती है।
  • राज्य पुनर्गठन पर बहस: हालांकि, जेवीपी समिति की राज्यों के पुनर्गठन पर सिफारिशें विवादास्पद साबित हुईं। दक्षिण भारत में विशेष रूप से तेलुगु भाषी लोगों के बीच एक अलग तेलुगु राज्य की मांग उठ रही थी।

JVP समिति और धर आयोग के बीच संबंध:

  • जेवीपी समिति की स्थापना से कुछ समय पहले, भारत सरकार ने 1946 में प्रशासनिक सेवाओं के पुनर्गठन के लिए धर आयोग का गठन किया था।
  • दोनों समितियों के कार्य परस्पर जुड़े हुए थे।
  • धर आयोग ने एक मजबूत और कुशल प्रशासनिक ढांचे की सिफारिश की थी, जिसे जेवीपी समिति की वित्तीय प्रबंधन प्रणाली सुधारों द्वारा समर्थन मिलना था।

उदाहरण:

  • जेवीपी समिति की सिफारिशों के परिणामस्वरूप, भारत में आज एक मजबूत और पारदर्शी वित्तीय प्रणाली है।
  • वित्त मंत्री हर साल फरवरी में संसद में केंद्रीय बजट पेश करते हैं। यह बजट आगामी वित्तीय वर्ष के लिए सरकार के राजस्व और व्यय का विवरण प्रस्तुत करता है।
  • हालांकि, जेवीपी समिति की राज्यों के पुनर्गठन पर सिफारिशें विवादास्पद साबित हुईं। उनकी सिफारिशों के बावजूद, दक्षिण भारत में भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की मांग जारी रही। आखिरकार, 1953 में आंध्र प्रदेश के गठन के साथ एक अलग तेलुगु राज्य की मांग पूरी हुई।

आलोचनाएं:

जेवीपी समिति की सिफारिशों की कुछ आलोचनाएं भी हुईं:

  • भाषाई राज्यों के गठन का विरोध: कुछ लोगों का तर्क है कि जेवीपी समिति की भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का विरोध राष्ट्रीय एकता के हित में जरूरी न होकर प्रशासनिक सुविधा को प्राथमिकता देना था।
  • केंद्रीयकरण: कुछ का मानना है कि जेवीपी समिति की सिफारिशों ने केंद्र सरकार को राज्यों के वित्तीय मामलों पर अत्यधिक नियंत्रण दे दिया।

निष्कर्ष:

जेवीपी समिति (1948) ने स्वतंत्र भारत के वित्तीय ढांचे के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी सिफारिशों ने एक मजबूत और जवाबदेह वित्तीय प्रणाली की नींव रखी।

 

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