धर आयोग (1948) (Dhar Commission (1948)
राजव्यवस्था नोट्स
(Polity Notes in Hindi)
भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, नवगठित राष्ट्र को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इन चुनौतियों में से एक प्रशासनिक सेवाओं का पुनर्गठन था। ब्रिटिश राज के अधीन कार्यरत भारतीय सिविल सेवा (ICS) का भविष्य अनिश्चित था।
धर आयोग की स्थापना:
इस जटिल परिस्थिति से निपटने के लिए, भारत सरकार ने 1946 में एक आयोग की स्थापना की। इस आयोग का नाम धर आयोग था। आयोग के अध्यक्ष सर सी.पी. धर थे।
आयोग का उद्देश्य:
- स्वतंत्र भारत की आवश्यकताओं के अनुरूप सार्वजनिक सेवाओं के पुनर्गठन की सिफारिशें करना।
- भारतीय सिविल सेवा (ICS) के भविष्य पर विचार करना।
- एक ऐसी सार्वजनिक सेवा प्रणाली तैयार करना जो स्वतंत्र भारत की प्रशासनिक आवश्यकताओं को पूरा करे।
आयोग की सिफारिशें:
धर आयोग ने 1947 में अपनी रिपोर्ट सौंपी। आयोग की कुछ महत्वपूर्ण सिफारिशें थीं:
- अखिल भारतीय सेवाओं का गठन: आयोग ने अखिल भारतीय सेवाओं (AIS) के गठन की सिफारिश की। इन सेवाओं में भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS) और भारतीय विदेश सेवा (IFS) शामिल थीं।
- संघ लोक सेवा आयोग की स्थापना: आयोग ने एक स्वतंत्र संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की स्थापना की सिफारिश की, जो इन अखिल भारतीय सेवाओं के लिए भर्ती परीक्षा आयोजित करे।
- भारतीय सिविल सेवा (ICS) का अंत: आयोग ने भारतीय सिविल सेवा (ICS) को समाप्त करने की सिफारिश की। इसका स्थान अखिल भारतीय सेवाओं ने ले लिया।
- राज्य सिविल सेवाओं का पुनर्गठन: आयोग ने राज्यों को अपनी राज्य सिविल सेवाओं के पुनर्गठन की सिफारिश की।
आयोग की सिफारिशों का महत्व:
धर आयोग की सिफारिशों का स्वतंत्र भारत के प्रशासनिक ढांचे पर गहरा प्रभाव पड़ा:
- मेरिटोक्रेसी को बढ़ावा: अखिल भारतीय सेवाओं के लिए संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षाओं के माध्यम से योग्यता के आधार पर चयन सुनिश्चित हुआ।
- राष्ट्रीय एकीकरण: अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारी पूरे देश में काम करते हैं, जिससे राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा मिलता है।
- प्रशासनिक निरंतरता: धर आयोग की सिफारिशों ने स्वतंत्र भारत के लिए एक मजबूत और कुशल प्रशासनिक ढांचा बनाने में मदद की।
उदाहरण:
- धर आयोग की सिफारिशों के परिणामस्वरूप गठित भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) आज भारत की प्रशासनिक रीढ़ की हड्डी है।
- IAS के अधिकारी जिला कलेक्टर, सचिव और अन्य महत्वपूर्ण पदों पर कार्य करते हैं।
- धर आयोग के मॉडल को बाद में पाकिस्तान और अन्य पूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों द्वारा भी अपनाया गया।
आलोचनाएं:
हालांकि, धर आयोग की सिफारिशों की कुछ आलोचनाएँ भी हुईं:
- केंद्रीयकरण: कुछ लोगों का तर्क है कि अखिल भारतीय सेवाओं के कारण केंद्र सरकार का राज्यों पर अत्यधिक नियंत्रण हो गया है।
- जातीय विविधता का अभाव: आयोग की स्थापना के समय, भारत में जाति व्यवस्था एक प्रमुख मुद्दा था। कुछ का मानना है कि आयोग की सिफारिशों ने प्रशासनिक सेवाओं में जातिगत विविधता को पर्याप्त महत्व नहीं दिया।
निष्कर्ष:
धर आयोग (1948) स्वतंत्र भारत के प्रशासनिक ढांचे के विकास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था।