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प्रस्तावना और न्यायिक समीक्षा: एक गहन विश्लेषण (Introduction and judicial review: An In-depth analysis)

राजव्यवस्था नोट्स

(Polity Notes in Hindi)

परिचय

  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है जो भारत के मूल्यों, आदर्शों और लक्ष्यों को स्थापित करती है। यह “न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व” जैसे मूल्यों का उल्लेख करता है, और यह घोषणा करता है कि भारत एक “संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य” होगा।

न्यायिक समीक्षा

  • न्यायिक समीक्षा भारतीय संविधान की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। यह न्यायालयों को यह शक्ति प्रदान करती है कि वे यह निर्धारित कर सकें कि क्या कोई कानून संविधान के अनुरूप है। यदि कोई कानून संविधान के अनुरूप नहीं पाया जाता है, तो न्यायालय उसे रद्द कर सकते हैं।

प्रस्तावना और न्यायिक समीक्षा के बीच संबंध

  • प्रस्तावना और न्यायिक समीक्षा के बीच घनिष्ठ संबंध है। प्रस्तावना न्यायालयों को संविधान के मूल्यों और उद्देश्यों को समझने में मदद करती है। ये मूल्य और उद्देश्य न्यायिक समीक्षा के लिए मार्गदर्शक सिद्धांतों के रूप में कार्य करते हैं।

प्रस्तावना का उपयोग न्यायिक समीक्षा में कैसे किया जाता है

न्यायालय प्रस्तावना का उपयोग विभिन्न तरीकों से न्यायिक समीक्षा में करते हैं:

  • संविधान के मूल ढांचे को परिभाषित करने के लिए: केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) मामले में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संविधान का एक “मूल ढांचा” है जिसे संसद संशोधित नहीं कर सकती। अदालत ने यह निर्धारित करने के लिए प्रस्तावना का उपयोग किया कि संविधान के “मूल ढांचे” में क्या शामिल है। अदालत ने कहा कि मूल ढांचे में संप्रभुता, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और गणतंत्र जैसे मूल्य शामिल हैं।
  • यह निर्धारित करने के लिए कि क्या कोई कानून संविधान के मूल्यों और सिद्धांतों का उल्लंघन करता है: मीनाक्षी बनाम तमिलनाडु सरकार (2016) मामले में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक कानून को रद्द कर दिया जो जल्दी शादी करने वाली महिलाओं को सरकारी नौकरियों में आरक्षण प्रदान करता था। अदालत ने कहा कि यह कानून प्रस्तावना में निहित समानता के मूल्य का उल्लंघन करता है।
  • यह निर्धारित करने के लिए कि क्या कोई कानून मनमाना या अनुचित है: एस.पी. गुप्ता बनाम भारत संघ (1982) मामले में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक कानून को रद्द कर दिया जो सरकारी कर्मचारियों को हड़ताल करने पर प्रतिबंध लगाता था। अदालत ने कहा कि यह कानून मनमाना और अनुचित था और यह प्रस्तावना में निहित स्वतंत्रता के मूल्य का उल्लंघन करता है।

निष्कर्ष

  • प्रस्तावना भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो न्यायिक समीक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण आधार प्रदान करता है।
  • यह न्यायालयों को संविधान के मूल्यों और उद्देश्यों को समझने में मदद करता है और यह सुनिश्चित करता है कि कानून संविधान के अनुरूप हों।
  • प्रस्तावना के बिना, न्यायिक समीक्षा की शक्ति बहुत कमजोर होगी और मौलिक अधिकारों की रक्षा करना मुश्किल होगा।
  • यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि प्रस्तावना की व्याख्या जटिल है और इस पर विद्वानों के बीच बहस होती रहती है।
  • कुछ विद्वानों का मानना है कि प्रस्तावना में केवल राजनीतिक महत्व है और इसका कोई कानूनी प्रभाव नहीं है।
  • अन्य विद्वानों का मानना है कि प्रस्तावना का न्यायिक समीक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की क्षमता है।

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