Arora IAS
प्रस्तावना में संशोधन की क्षमता: क्या यह संभव है?
(Ability to amend the preamble: is it possible?)
राजव्यवस्था नोट्स
(Polity Notes in Hindi)
भारतीय संविधान की प्रस्तावना एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है जो भारत के मूल्यों, आदर्शों और लक्ष्यों को स्थापित करती है। यह “न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व” जैसे मूल्यों का उल्लेख करता है, और यह घोषणा करता है कि भारत एक “संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य” होगा।
क्या प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है?
- यह एक जटिल प्रश्न है जिस पर विद्वानों और कानूनी विशेषज्ञों के बीच बहस होती रही है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 में संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया निर्धारित की गई है।
- यह अनुच्छेद संसद को संविधान के किसी भी भाग को संशोधित करने की शक्ति प्रदान करता है, “प्रस्तावना और संविधान की पहली अनुसूची को छोड़कर”।
- इसका मतलब है कि संसद स्पष्ट रूप से प्रस्तावना या पहली अनुसूची में संशोधन नहीं कर सकती।
- हालांकि, कुछ विद्वानों का तर्क है कि संसद अप्रत्यक्ष रूप से प्रस्तावना में संशोधन कर सकती है।
- यह तर्क दिया जाता है कि संसद संविधान के अन्य भागों में संशोधन करके प्रस्तावना में निहित मूल्यों और सिद्धांतों को बदल सकती है।
उदाहरण के लिए:
- यदि संसद “समाजवाद” शब्द को संविधान से हटा देती है, तो इसका मतलब यह होगा कि प्रस्तावना में निहित समाजवाद का मूल्य अब लागू नहीं होगा।
- यदि संसद “धर्मनिरपेक्षता” शब्द को संविधान से हटा देती है, तो इसका मतलब यह होगा कि प्रस्तावना में निहित धर्मनिरपेक्षता का मूल्य अब लागू नहीं होगा।
न्यायालयों की भूमिका
- यह तय करने में कि क्या संसद ने अप्रत्यक्ष रूप से प्रस्तावना में संशोधन किया है, न्यायालयों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
- न्यायालय यह निर्धारित करेंगे कि क्या संसद द्वारा किया गया संशोधन संविधान के “मूल ढांचे” का उल्लंघन करता है।
- यदि न्यायालय यह निर्धारित करते हैं कि संशोधन मूल ढांचे का उल्लंघन करता है, तो वे इसे रद्द कर सकते हैं।
निष्कर्ष
- यह कहना मुश्किल है कि प्रस्तावना को संशोधित करना संभव है या नहीं।
- संविधान स्पष्ट रूप से कहता है कि संसद प्रस्तावना में संशोधन नहीं कर सकती, लेकिन कुछ विद्वानों का तर्क है कि संसद अप्रत्यक्ष रूप से ऐसा कर सकती है।
- अंततः, यह तय करना न्यायालयों पर निर्भर है कि क्या संसद द्वारा किया गया संशोधन प्रस्तावना को संशोधित करता है और क्या यह संविधान के “मूल ढांचे” का उल्लंघन करता है।
- यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह एक जटिल कानूनी मुद्दा है और इस पर कोई आसान जवाब नहीं है।
- विभिन्न विद्वानों और कानूनी विशेषज्ञों की इस मुद्दे पर अलग-अलग राय है।
अतिरिक्त बिंदु:
- कुछ लोगों का मानना है कि प्रस्तावना को संशोधित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि यह भारत के मूल मूल्यों और सिद्धांतों को दर्शाता है।
- अन्य लोगों का मानना है कि प्रस्तावना को समय के साथ बदलती परिस्थितियों को प्रतिबिंबित करने के लिए संशोधित किया जाना चाहिए।
- प्रस्तावना में संशोधन करने की क्षमता पर बहस आने वाले कई वर्षों तक जारी रहने की संभावना है।