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फ़जल अली आयोग (1953) Fazal Ali Commission (1953)

राजव्यवस्था नोट्स

(Polity Notes in Hindi)

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के वर्षों में, भारत सरकार को राज्यों के पुनर्गठन की मांगों का सामना करना पड़ा। इन मांगों में से एक प्रमुख मांग भाषाई आधार पर राज्यों के गठन की थी। फ़जल अली आयोग का गठन इसी जटिल मुद्दे को संबोधित करने के लिए किया गया था।

पृष्ठभूमि:

  • 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, देश के राज्यों का विभाजन प्राथमिक रूप से प्रशासनिक सुविधा को ध्यान में रखकर किया गया था।
  • हालाँकि, स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान और बाद में, कई क्षेत्रों में भाषाई आधार पर राज्यों के गठन की मांग उठने लगी।
  • दक्षिण भारत में विशेष रूप से एक अलग तेलुगु राज्य की मांग जोर पकड़ रही थी।

फ़जल अली आयोग की स्थापना:

  • भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की मांग को संबोधित करने के लिए, भारत सरकार ने 1953 में फ़जल अली आयोग का गठन किया।
  • आयोग के अध्यक्ष सी.एच. फ़जल अली थे।

आयोग का उद्देश्य:

  • भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की मांग की जांच करना।
  • इस संबंध में सिफारिशें करना।
  • राष्ट्रीय एकता और प्रशासनिक सुविधा को ध्यान में रखते हुए राज्यों के पुनर्गठन के लिए एक रूपरेखा तैयार करना।

आयोग की कार्यप्रणाली:

  • फ़जल अली आयोग ने पूरे भारत में यात्रा की और विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों के लोगों से मुलाकात की।
  • आयोग ने भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के समर्थकों और विरोधकों दोनों की दलीलों को सुना।

आयोग की सिफारिशें:

  • फ़जल अली आयोग ने 1954 में अपनी रिपोर्ट सौंपी।
  • आयोग ने भाषाई आधार पर राज्यों के पूर्ण पुनर्गठन की सिफारिश नहीं की। उनका मानना था कि इससे राष्ट्रीय एकता कमजोर हो सकती है।
  • हालांकि, आयोग ने आंध्र प्रदेश के गठन की सिफारिश की, जो एक अलग तेलुगु राज्य की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करता था।

आयोग की रिपोर्ट का प्रभाव:

  • फ़जल अली आयोग की रिपोर्ट विवादास्पद साबित हुई।
  • भाषाई आधार पर राज्यों के गठन के समर्थकों ने आयोग की सिफारिशों की आलोचना की।
  • आंध्र प्रदेश के गठन का स्वागत किया गया, लेकिन अन्य क्षेत्रों में भी भाषाई राज्यों की मांग जारी रही।

उदाहरण:

  • फ़जल अली आयोग की रिपोर्ट के बावजूद, भाषाई आधार पर राज्यों के गठन की मांग कम नहीं हुई।
  • 1956 में, राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित किया गया, जिसने भारत के राजनीतिक मानचित्र को फिर से बनाया। इस अधिनियम के तहत कई राज्यों का गठन या विभाजन भाषाई आधार पर किया गया था।

राज्य पुनर्गठन अधिनियम (1956) के कुछ उदाहरण:

  • बॉम्बे राज्य को गुजरात और महाराष्ट्र में विभाजित किया गया।
  • कन्नड़ भाषी क्षेत्रों को मैसूर राज्य (आज कर्नाटक) में मिला दिया गया।
  • पंजाब राज्य को पंजाबी और हिंदी भाषी क्षेत्रों में विभाजित किया गया।

फ़जल अली आयोग और धर आयोग व जेवीपी समिति के बीच संबंध:

  • फ़जल अली आयोग का गठन धर आयोग (1946) और जेवीपी समिति (1948) के बाद हुआ था।
  • जेवीपी समिति ने भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का विरोध किया था।
  • फ़जल अली आयोग ने इन दोनों समितियों के कार्यों को ध्यान में रखते हुए सिफारिशें कीं। उन्होंने राष्ट्रीय एकता और प्रशासनिक सुविधा के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास किया।

आलोचनाएं:

फ़जल अली आयोग की सिफारिशों की कुछ आलोचनाएँ भी हुईं:

  • भाषाई राज्यों के गठन का विरोध: भाषाई आधार पर राज्यों के गठन के समर्थकों का मानना था कि आयोग ने उनकी मांगों को पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया।
  • राष्ट्रीय एकता पर जोर: कुछ लोगों का तर्क है कि आयोग ने राष्ट्रीय एकता पर अत्यधिक जोर दिया और भाषाई पहचान के महत्व को कम आंका।

निष्कर्ष:

फ़जल अली आयोग (1953) ने स्वतंत्र भारत के राजनीतिक ढांचे के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यद्यपि आयोग ने भाषाई आधार पर राज्यों के पूर्ण पुनर्गठन की सिफारिश नहीं की, उनकी रिपोर्ट ने राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के लिए आधार तैयार किया। इस अधिनियम ने भारत के राज्यों का पुनर्गठन किया और भाषाई आधार पर राज्यों के गठन की आकांक्षाओं को काफी हद तक पूरा किया।

 

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