भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम (1947) द्वारा संविधान सभा में परिवर्तन:  विश्लेषण

परिचय:

9 दिसंबर 1946 को गठित, भारत की संविधान सभा का उद्देश्य स्वतंत्र भारत के लिए एक संविधान का निर्माण करना था। 2 वर्ष, 11 महीने और 18 दिनों में 2,000 से अधिक बैठकों का आयोजन करते हुए, सभा ने 26 नवंबर 1949 को भारत का संविधान अपनाया।

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम (1947) ने भारत को दो स्वतंत्र डोमिनियन, भारत और पाकिस्तान में विभाजित किया। इस अधिनियम ने संविधान सभा में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए, जिनका विश्लेषण इस प्रकार है:

1. सदस्यता में बदलाव:

  • पाकिस्तानी प्रतिनिधियों का बहिष्कार: अधिनियम के पारित होने के बाद, मुस्लिम लीग के प्रतिनिधियों ने पाकिस्तान के निर्माण के लिए अपना समर्थन व्यक्त करते हुए संविधान सभा का बहिष्कार किया।
  • नए सदस्यों का समावेश: रियासतों के प्रतिनिधियों को शामिल करने के लिए, जिन्होंने भारत में शामिल होने का फैसला किया था, सभा में नए सदस्यों को शामिल किया गया।

2. कार्यप्रणाली में बदलाव:

  • अधिनियम द्वारा निर्धारित समय सीमा: अधिनियम ने संविधान सभा को 26 जनवरी 1950 तक अपना काम पूरा करने का निर्देश दिया।
  • कार्य समूहों का पुनर्गठन: पाकिस्तानी प्रतिनिधियों के बहिष्कार के बाद, सभा ने कार्य समूहों का पुनर्गठन किया और उनके सदस्यों को नियुक्त किया।

3. संविधान के प्रावधानों में बदलाव:

  • राज्य प्रणाली: अधिनियम ने भारत को एक संघीय प्रणाली के रूप में स्थापित किया, जिसमें केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन था।
  • राष्ट्रपति शासन: अधिनियम ने भारत में संसदीय प्रणाली के साथ राष्ट्रपति शासन की स्थापना की।
  • अल्पसंख्यकों के अधिकार: अधिनियम ने अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रावधान किए।

इन परिवर्तनों का प्रभाव:

  • संविधान का त्वरित निर्माण: अधिनियम द्वारा निर्धारित समय सीमा ने सभा को जल्दी से काम करने और 26 जनवरी 1950 तक संविधान को अपनाने के लिए प्रेरित किया।
  • संघीय प्रणाली का निर्माण: अधिनियम ने भारत को एक विविधतापूर्ण देश के लिए उपयुक्त संघीय प्रणाली की स्थापना की।
  • अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा: अधिनियम ने अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण प्रावधान किए।

आलोचनाएं:

  • समय की कमी: कुछ लोगों का मानना ​​है कि सभा के पास संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए पर्याप्त समय नहीं था, जिसके परिणामस्वरूप कुछ खामियां हो सकती हैं।
  • प्रतिनिधित्व का मुद्दा: पाकिस्तानी प्रतिनिधियों के बहिष्कार ने सभा की प्रतिनिधित्व क्षमता पर सवाल उठाया।
  • विवादित मुद्दे: कुछ विवादित मुद्दों, जैसे कि धर्मनिरपेक्षता और अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर, पर्याप्त चर्चा नहीं हो सकी।

निष्कर्ष:

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम (1947) ने भारत की संविधान सभा में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए। इन परिवर्तनों ने भारत को एक संघीय गणराज्य के रूप में स्थापित करने और उसके नागरिकों के लिए मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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