भारत में संविधान सभा की मांग: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान, संविधान सभा की स्थापना की मांग 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में उभरी थी। यह मांग विभिन्न विचारधाराओं और राजनीतिक संगठनों द्वारा उठाई गई थी, जो सभी एक स्वतंत्र भारत के लिए एक लिखित संविधान की आवश्यकता को मानते थे।

संविधान सभा की मांग के मुख्य कारण:

  • ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता: भारतीय राष्ट्रवादी नेताओं का मानना ​​था कि स्वतंत्र भारत को शासन करने के लिए एक लिखित संविधान की आवश्यकता होगी जो ब्रिटिश शासन के अधीन कानूनों से अलग हो।
  • अधिकारों की सुरक्षा: वे यह भी चाहते थे कि संविधान भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा करे।
  • एकजुट राष्ट्र का निर्माण: विभिन्न समुदायों और क्षेत्रों के बीच एकता और समानता को बढ़ावा देने के लिए एक संविधान आवश्यक था।
  • लोकतांत्रिक शासन: भारत को एक लोकतांत्रिक राष्ट्र बनाने के लिए, एक संविधान आवश्यक था जो शक्तियों के पृथक्करण और कानून के शासन को स्थापित करे।

संविधान सभा की मांग को उठाने वाले प्रमुख व्यक्ति:

  • बाल गंगाधर तिलक: 1895 में, तिलक ने “स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है” का नारा दिया, जिसमें उन्होंने एक स्वतंत्र भारत के लिए संविधान सभा की स्थापना की मांग की।
  • महात्मा गांधी: गांधी जी ने स्वराज (आत्म-शासन) की अवधारणा का समर्थन किया, जिसमें एक संविधान सभा द्वारा निर्मित संविधान शामिल था।
  • जवाहरलाल नेहरू: नेहरू ने एक लोकतांत्रिक और संघीय प्रणाली के साथ एक स्वतंत्र भारत के लिए अपनी दृष्टि का समर्थन करते हुए, संविधान सभा की स्थापना का आह्वान किया।

संविधान सभा की स्थापना:

1946 में, ब्रिटिश सरकार ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम पारित किया, जिसने भारत को दो स्वतंत्र डोमिनियन, भारत और पाकिस्तान में विभाजित किया। इस अधिनियम ने प्रत्येक डोमिनियन के लिए अपनी संविधान सभा का गठन करने का भी प्रावधान किया।

9 दिसंबर 1946 को, भारत की संविधान सभा की पहली बैठक दिल्ली में संसद भवन में आयोजित हुई। डॉ. राजेंद्र प्रसाद को सभा का अध्यक्ष चुना गया। सभा में 300 से अधिक सदस्य थे, जिनमें विभिन्न राजनीतिक दल, समुदाय और क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व शामिल था।

संविधान सभा ने 2 वर्ष, 11 महीने और 18 दिनों तक 2,000 से अधिक बैठकों में काम किया। 26 नवंबर 1949 को, सभा ने भारत के संविधान को अपनाया, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।

निष्कर्ष:

भारत में संविधान सभा की मांग स्वतंत्रता आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी। इस मांग ने भारतीयों को एकजुट किया और उन्हें एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक राष्ट्र के निर्माण के लिए प्रेरित किया। संविधान सभा द्वारा निर्मित संविधान भारत का सर्वोच्च कानून है और यह देश के नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा करता है।

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