विनियमन अधिनियम, 1773
विनियमन अधिनियम, 1773 ब्रिटिश संसद का एक अधिनियम था जिसका उद्देश्य भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन का प्रबंधन करना था। यह अधिनियम कंपनी के बंगाल में अधिग्रहीत राजनीतिक शक्ति को नियंत्रित करने और कंपनी के प्रशासन में सुधार लाने का एक प्रयास था।
यहाँ अधिनियम के कुछ मुख्य प्रावधान हैं:
- बंगाल का गवर्नर-जनरल अब समस्त भारत का गवर्नर-जनरल बना दिया गया।
- कंपनी के निदेशकों की एक परिषद की स्थापना की गई, जिसे कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स (Court of Directors) के नाम से जाना जाता है।
- एक नई परिषद, जिसे सुप्रीम कोर्ट ऑफ ज्यूडिकेटर (Supreme Court of Judicature) के नाम से जाना जाता है, की स्थापना की गई, जिसे बंगाल में न्याय प्रशासन का दायित्व सौंपा गया था।
- हालांकि, यह अधिनियम कंपनी के शासन में भ्रष्टाचार को रोकने में विफल रहा और बाद में इसे पिट्स इंडिया एक्ट 1784 द्वारा अधिगृहीत कर लिया गया।
विनियमन अधिनियम, 1773 की आलोचना
विनियमन अधिनियम, 1773 को कई कारणों से आलोचना का सामना करना पड़ा:
- भारतीय हितों की उपेक्षा:
- इस अधिनियम पर आरोप लगाया गया था कि यह भारतीय हितों की उपेक्षा करता है और ब्रिटिश हितों को प्राथमिकता देता है।
- अधिनियम ने कंपनी को बंगाल में राजस्व संग्रह का अधिकार दिया, जिससे बंगाल के लोगों पर भारी कर बोझ बढ़ गया।
- इसने कंपनी को न्यायिक शक्तियां भी प्रदान कीं, जिससे भारतीयों के लिए न्याय प्राप्त करना मुश्किल हो गया।
- अप्रभावी प्रशासन:
- अधिनियम को अप्रभावी प्रशासन के लिए भी आलोचना की गई थी।
- नवीनतम गवर्नर-जनरल, वॉरेन हेस्टिंग्स, को भ्रष्टाचार और अक्षमता का आरोपी ठहराया गया था।
- कंपनी के निदेशकों की अदालत का लंदन से भारत पर शासन करना मुश्किल था, जिसके परिणामस्वरूप नीति में देरी और अनिर्णय की स्थिति पैदा हुई।
- भारतीयों का प्रतिनिधित्व नहीं:
- अधिनियम में भारतीयों के प्रतिनिधित्व का कोई प्रावधान नहीं था, जिसके कारण भारतीयों को सरकार में कोई आवाज नहीं मिली।
- इसने भारतीयों को उच्च पदों पर नियुक्त होने से रोक दिया।
- अमेरिकी क्रांति का प्रभाव:
- अमेरिकी क्रांति (1775-1783) ने विनियमन अधिनियम की आलोचना को और बढ़ा दिया। कई ब्रिटिश लोगों ने तर्क दिया कि यदि कंपनी को अमेरिकी उपनिवेशों पर अपना नियंत्रण खोना पड़ा, तो उसे भारत में अपनी शक्तियों को भी सीमित करना चाहिए।
निष्कर्ष:
विनियमन अधिनियम, 1773 ब्रिटिश शासन में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, लेकिन यह कई कमियों से ग्रस्त था। इसने भारतीयों के बीच नाराजगी पैदा की और अंततः 1784 के पिट्स इंडिया एक्ट द्वारा इसे बदल दिया गया।