संविधान सभा की समितियाँ: विश्लेषण
परिचय:
भारतीय संविधान सभा ने 2 वर्ष, 11 महीने और 18 दिनों में 2,000 से अधिक बैठकों का आयोजन किया। 325 सदस्यों के साथ, सभा ने संविधान के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा और विचार-विमर्श करने के लिए 20 से अधिक समितियों का गठन किया।
समितियों का गठन:
- विषय-आधारित: समितियों का गठन संविधान के विभिन्न विषयों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए किया गया था, जैसे कि मौलिक अधिकार, न्यायपालिका, निर्वाचन, और राष्ट्रपति पद।
- विशेषज्ञता: प्रत्येक समिति में विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ सदस्य शामिल थे, जैसे कि कानून, राजनीति, इतिहास, और समाज विज्ञान।
- कार्यभार का वितरण: समितियों ने सभा के कार्यभार को वितरित करने और संविधान के मसौदे को तैयार करने में तेजी लाने में मदद की।
प्रमुख समितियाँ:
- मौलिक अधिकार समिति: इस समिति ने संविधान में शामिल किए जाने वाले मौलिक अधिकारों की पहचान और परिभाषा का काम किया।
- संघीय संबंध समिति: इस समिति ने केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों के वितरण पर विचार किया।
- न्यायपालिका समिति: इस समिति ने भारत की न्यायिक प्रणाली की संरचना और कार्यों पर विचार किया।
- निर्वाचन समिति: इस समिति ने भारत में चुनाव प्रणाली पर विचार किया।
- अल्पसंख्यक समिति: इस समिति ने अल्पसंख्यकों के अधिकारों और उनकी सुरक्षा के लिए प्रावधानों पर विचार किया।
समितियों का कार्य:
- मसौदे तैयार करना: प्रत्येक समिति ने अपने संबंधित विषय पर एक मसौदा तैयार किया।
- सभा में चर्चा: मसौदों पर सभा में विस्तृत चर्चा की गई और उनमें संशोधन किए गए।
- सर्वसम्मति बनाने का प्रयास: समितियों ने सदस्यों के बीच सर्वसम्मति बनाने का प्रयास किया।
- विशेषज्ञों से परामर्श: समितियों ने आवश्यकतानुसार विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों से परामर्श लिया।
प्रमुख समितियाँ (8):
- संघीय शक्तियाँ समिति (अध्यक्ष: जवाहरलाल नेहरू): केंद्र और प्रांतों के बीच शक्ति के विभाजन को परिभाषित किया।
- संघ संविधान समिति (अध्यक्ष: जवाहरलाल नेहरू): केंद्र सरकार के ढांचे का मसौदा तैयार किया।
- प्रांतीय संविधान समिति (अध्यक्ष: सरदार वल्लभ भाई पटेल): प्रांतीय सरकारों की संरचना और शक्तियों को परिभाषित किया।
- मसौदा समिति (अध्यक्ष: डॉ. बी.आर. अंबेडकर): संविधान का अंतिम मसौदा तैयार किया (सबसे महत्वपूर्ण समिति)।
- मौलिक अधिकारों पर सलाहकार समिति (अध्यक्ष: सरदार वल्लभ भाई पटेल): भारतीय नागरिकों के लिए मौलिक अधिकारों का प्रस्ताव रखा।
- अल्पसंख्यकों और आदिवासी क्षेत्रों जैसे विशिष्ट क्षेत्रों के लिए उप-समितियाँ थीं।
- कार्य प्रणाली समिति (अध्यक्ष: डॉ. राजेंद्र प्रसाद): सभा की बैठकें आयोजित करने के लिए प्रक्रियाओं की स्थापना की।
- राज्य समिति (अध्यक्ष: जवाहरलाल नेहरू): रियासतों के भारत में विलय के संबंध में उनसे बातचीत की।
- संचालन समिति (अध्यक्ष: डॉ. राजेंद्र प्रसाद): सभा समग्र कामकाज का निरीक्षण किया।
गौण समितियाँ
- वित्त और कर्मचारी समिति – डॉ. राजेंद्र प्रसाद
- प्रमाण पत्र समिति – अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर
- सदन समिति – बी. पट्टाभि सीतारामय्या
- कार्यसूची समिति – डॉ. के.एम. मुंशी
- राष्ट्रीय ध्वज पर तदर्थ समिति – डॉ. राजेंद्र प्रसाद
- संविधान सभा के कार्यों पर समिति – जी.वी. मवलंकर
- सर्वोच्च न्यायालय पर तदर्थ समिति – एस. वरदचारी (सभा सदस्य नहीं)
- मुख्य आयुक्तों के प्रांतों पर समिति – बी. पट्टाभि सीतारामय्या
- संघ संविधान के वित्तीय प्रावधानों पर विशेषज्ञ समिति – नलिनी रंजन सरकार (सभा सदस्य नहीं)
- भाषाई प्रांत आयोग – एस.के. दार (सभा सदस्य नहीं)
- मसौदा संविधान की जांच के लिए विशेष समिति – जवाहरलाल नेहरू
- प्रेस गैलरी समिति – उषा नाथ सेन
- नागरिकता पर तदर्थ समिति – एस. वरदाचारी
समितियों का महत्व:
- संविधान का मसौदा तैयार करना: समितियों ने संविधान के मसौदे को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- विभिन्न दृष्टिकोणों का समावेश: समितियों ने विभिन्न राजनीतिक दल, समुदाय और क्षेत्रों के विचारों को शामिल करने में मदद की।
- विशेषज्ञता का उपयोग: समितियों ने विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों की विशेषज्ञता का उपयोग किया।
- कार्यप्रणाली में सुधार: समितियों ने सभा की कार्यप्रणाली को अधिक कुशल और प्रभावी बनाने में मदद की।
आलोचनाएं:
- समय की कमी: कुछ लोगों का मानना है कि समितियों के पास अपने कार्यों को पूरा करने के लिए पर्याप्त समय नहीं था।
- प्रतिनिधित्व का मुद्दा: कुछ समितियों में सभी समुदायों का उचित प्रतिनिधित्व नहीं था।
- विवादित मुद्दे: कुछ विवादित मुद्दों, जैसे कि धर्मनिरपेक्षता और अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर, समितियों में पर्याप्त चर्चा नहीं हो सकी।
निष्कर्ष:
संविधान सभा की समितियों ने भारत के संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने विभिन्न विषयों पर गहन विचार-विमर्श और चर्चा की और संविधान के मसौदे को तैयार करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।