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1950 के संविधान में राज्य वर्गीकरण (State classification in the 1950 Constitution)
राजव्यवस्था नोट्स
(Polity Notes in Hindi)
- भारत के संविधान को 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया था और 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ था।
- संविधान में भारत को केंद्रीय गणराज्य घोषित किया गया था और राज्यों को संघीय इकाइयों के रूप में स्थापित किया गया था।
- 1950 के संविधान में राज्यों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया था:
1.भाग A राज्य:
- संविधान के लागू होने के समय मौजूद ब्रिटिश प्रांत और रियासतें भाग A राज्य बन गए।
- इन राज्यों में विधान सभा और विधान परिषद दोनों थीं।
- इन राज्यों में राज्यपाल के रूप में राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त व्यक्ति होता था।
उदाहरण:
- मद्रास (आज तमिलनाडु), बॉम्बे (आज महाराष्ट्र और गुजरात), पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बंगाल (आज पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश), पंजाब (आज पंजाब और हरियाणा), असम, बिहार, उड़ीसा (आज ओडिशा), राजस्थान, सौराष्ट्र, मैसूर (आज कर्नाटक), त्रावणकोर-कोच्चि (आज केरल), जम्मू और कश्मीर
2.भाग B राज्य:
- संविधान के लागू होने के समय मौजूद प्रमुख रियासतें भाग B राज्य बन गए।
- इन राज्यों में विधान सभा और राजप्रमुख होता था।
- राजप्रमुख रियासत के शासक या राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त व्यक्ति होता था।
उदाहरण:
- हैदराबाद, जोधपुर, जयपुर, ट्रावणकोर, भोपाल, ग्वालियर, इंदौर, कच्छ, मणिपुर, त्रिपुरा, मीठोखर, सिक्किम
3.भाग C राज्य:
- संविधान के लागू होने के बाद केंद्र शासित प्रदेशों को भाग C राज्य घोषित किया गया।
- इन राज्यों में विधान सभा या राज्यपाल या प्रशासक होता था।
- राज्यपाल या प्रशासक राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त व्यक्ति होता था।
उदाहरण:
- दिल्ली, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, मीठोखर, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, लद्दाख
1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम:
- 1 नवंबर 1956 को राज्य पुनर्गठन अधिनियम लागू हुआ।
- इस अधिनियम ने भारत के राज्यों का पुनर्गठन किया और भाषा और संस्कृति के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया गया।
- इस अधिनियम के तहत भाग A और भाग B राज्यों को 14 नए राज्यों में पुनर्गठित किया गया।
- भाग C राज्यों को केंद्र शासित प्रदेशों में परिवर्तित कर दिया गया।
राज्य वर्गीकरण के निहितार्थ:
1950 के संविधान में राज्य वर्गीकरण उस समय की परिस्थितियों का एक उत्पाद था। इसके कई निहितार्थ थे:
- प्रशासनिक सुविधा: विभिन्न प्रकार के राज्यों का वर्गीकरण प्रशासनिक कार्यों को सुव्यवस्थित करने में सहायक था।
- विभिन्नताओं का समायोजन: यह वर्गीकरण भारत की विविधता को स्वीकार करता था और विभिन्न क्षेत्रों को उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुसार शासन करने की अनुमति देता था।
- लोकतांत्रिक मूल्यों का क्रमिक कार्यान्वयन: भाग B राज्यों में राजप्रमुख प्रणाली धीरे-धीरे समाप्त हो गई और अंततः सभी राज्यों में लोकतांत्रिक ढांचा लागू कर दिया गया।
आलोचनाएं:
हालांकि, राज्य वर्गीकरण की कुछ आलोचनाएँ भी हुईं:
- असमानताएं: भाग A और B राज्यों के बीच असमानताएं थीं। भाग A राज्यों में अधिक शक्तियां थीं।
- लोकतांत्रिक असंतुलन: भाग B राज्यों में राजप्रमुख प्रणाली लोकतांत्रिक आदर्शों के अनुरूप नहीं थी।
- भाषाई राज्यों का गठन नहीं होना: प्रारंभिक वर्गीकरण में भाषाई आधार पर राज्यों का गठन नहीं किया गया था, जिससे बाद में असंतोष पैदा हुआ।
राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956:
1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम ने भारत के राज्यों के मानचित्र को फिर से बनाया। इसने कई तरह से राज्य वर्गीकरण प्रणाली को बदल दिया:
- भाषाई राज्यों का गठन: इस अधिनियम के तहत राज्यों का गठन मुख्य रूप से भाषा के आधार पर किया गया था।
- राज्यों का विलय और विभाजन: कई राज्यों का विलय या विभाजन किया गया। उदाहरण के लिए, बॉम्बे राज्य को गुजरात और महाराष्ट्र में विभाजित किया गया था।
- केंद्र शासित प्रदेशों का निर्माण: भाग C राज्यों को केंद्र शासित प्रदेशों में बदल दिया गया।
राज्य पुनर्गठन अधिनियम के बाद:
राज्य पुनर्गठन अधिनियम के बाद, भारत के राज्यों का वर्गीकरण अधिक तर्कसंगत और व्यवस्थित हो गया। इसने भाषाई और सांस्कृतिक समानताओं के आधार पर राज्यों के गठन को मान्यता दी।
हालांकि, कुछ क्षेत्रों में अभी भी भाषाई आधार पर राज्यों के विभाजन की मांग उठती रहती है।
निष्कर्ष:
1950 के संविधान में राज्य वर्गीकरण और बाद में 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम ने भारत के राजनीतिक ढांचे को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस प्रक्रिया ने भारत की विविधता को सम्मानित किया और एक एकीकृत राष्ट्र के रूप में इसके विकास को सक्षम बनाया।