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7वां संविधान संशोधन अधिनियम (1956)

7th Constitutional Amendment Act (1956)

राजव्यवस्था नोट्स

(Polity Notes in Hindi)

पृष्ठभूमि:

  • 1950 में भारत के संविधान को लागू करने के बाद, भारत सरकार को राज्य पुनर्गठन की मांगों का सामना करना पड़ा।
  • इन मांगों में से एक प्रमुख मांग भाषाई आधार पर राज्यों का गठन थी।
  • 1953 में, फ़जल अली आयोग ने भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की सिफारिशें कीं।
  • 1956 में, राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित किया गया, जिसने भारत के राजनीतिक मानचित्र को फिर से बनाया।

7वें संविधान संशोधन अधिनियम का उद्देश्य:

  • राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के कार्यान्वयन के बाद, भारत के संविधान में कुछ बदलाव करने की आवश्यकता हुई।
  • इन बदलावों को लागू करने के लिए, 1956 में 7वां संविधान संशोधन अधिनियम पारित किया गया।
  • इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य राज्य पुनर्गठन अधिनियम के प्रावधानों को संविधान में शामिल करना था।

7वें संविधान संशोधन अधिनियम के मुख्य प्रावधान:

  • राज्यों की संख्या: इस अधिनियम ने भारत में राज्यों की संख्या को 14 से बढ़ाकर 16 कर दिया।
  • राज्यों के नाम: इस अधिनियम ने कुछ राज्यों के नाम बदल दिए। उदाहरण के लिए, मद्रास राज्य का नाम बदलकर तमिलनाडु कर दिया गया।
  • राज्यों की सीमाएं: इस अधिनियम ने कुछ राज्यों की सीमाओं को फिर से परिभाषित किया।
  • अनुसूची 1 में परिवर्तन: इस अधिनियम ने संविधान की अनुसूची 1 में परिवर्तन किए, जिसमें राज्यों की सूची शामिल है।
  • अनुसूची 6 में परिवर्तन: इस अधिनियम ने संविधान की अनुसूची 6 में परिवर्तन किए, जिसमें अनुसूचित क्षेत्रों की सूची शामिल है।

उदाहरण:

  • राज्यों की संख्या में वृद्धि: 7वें संविधान संशोधन अधिनियम से पहले, भारत में 14 राज्य थे: आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, बॉम्बे, जम्मू और कश्मीर, केरल, मध्य प्रदेश, मद्रास, मैसूर, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल।
  • राज्यों के नाम में परिवर्तन: 7वें संविधान संशोधन अधिनियम ने कुछ राज्यों के नाम बदल दिए। उदाहरण के लिए:
    • मद्रास राज्य का नाम बदलकर तमिलनाडु कर दिया गया।
    • संयुक्त प्रांत का नाम बदलकर उत्तर प्रदेश कर दिया गया।
    • पूर्वी पंजाब और पश्चिमी पंजाब को क्रमशः पंजाब और हरियाणा के रूप में अलग किया गया।
  • राज्यों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण: 7वें संविधान संशोधन अधिनियम ने कुछ राज्यों की सीमाओं को फिर से परिभाषित किया। उदाहरण के लिए:
    • हैदराबाद राज्य को आंध्र प्रदेश और मैसूर राज्यों में विभाजित किया गया था।
    • भाषाई आधार पर कई क्षेत्रों को एक राज्य से दूसरे राज्य में स्थानांतरित किया गया था।

7वें संविधान संशोधन अधिनियम का महत्व:

  • 7वें संविधान संशोधन अधिनियम ने भारत के राजनीतिक मानचित्र को फिर से बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • इस अधिनियम ने भाषाई आधार पर राज्यों के गठन की मांगों को काफी हद तक पूरा किया।
  • इस अधिनियम ने भारत के संघीय ढांचे को मजबूत करने में मदद की।

आलोचनाएं:

  • 7वें संविधान संशोधन अधिनियम की कुछ आलोचनाएँ भी हुईं। कुछ लोगों का तर्क है कि इस अधिनियम ने क्षेत्रीय और सांस्कृतिक विविधता को नजरअंदाज किया और केवल भाषा को प्राथमिकता दी।
  • कुछ का मानना है कि कुछ राज्यों का विभाजन प्रशासनिक जटिलताएं पैदा कर सकता है।

7वें संशोधन के बाद संविधान संशोधन:

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि 7वें संशोधन अधिनियम के बाद भी भारत के राज्यों के पुनर्गठन की प्रक्रिया जारी रही। कुछ उदाहरण हैं:

  • नागालैंड राज्य (1963): नागालैंड को 1963 में एक अलग राज्य के रूप में बनाया गया था।
  • हरियाणा राज्य (1966): 1966 में हरियाणा को पंजाब से अलग कर एक अलग राज्य बनाया गया।
  • हिमाचल प्रदेश (1971): हिमाचल प्रदेश को 1971 में एक पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया।
  • छत्तीसगढ़ राज्य (2000): 2000 में मध्य प्रदेश से अलग करके छत्तीसगढ़ राज्य का गठन किया गया।
  • उत्तराखंड राज्य (2000): 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग करके उत्तराखंड राज्य का गठन किया गया।
  • झारखंड राज्य (2000): 2000 में बिहार से अलग करके झारखंड राज्य का गठन किया गया।

निष्कर्ष:

7वां संविधान संशोधन अधिनियम (1956) भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इस अधिनियम ने भारत के राज्यों के मानचित्र को फिर से बनाया और भाषाई आधार पर राज्यों के गठन की मांगों को पूरा किया। हालाँकि इस अधिनियम की कुछ आलोचनाएँ हुईं, लेकिन इसने भारत के संघीय ढांचे को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि भारत के राज्यों का पुनर्गठन एक सतत प्रक्रिया है और 7वें संशोधन के बाद भी कई नए राज्य बने हैं।

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