आधुनिक भारत का इतिहास : सविनय अवज्ञा आंदोलन 1930 (Civil Disobedience Movement in Hindi)

भारत को देश को अंग्रेजों से आजादी वैसे तो 1947 को मिली थी, लेकिन ये आजादी एक पल में नहीं मिली थी, हजारों लाखों लोगों की सालों की मेहनत और क़ुरबानी के बाद लोगों ने आजादी का स्वाद चखा था. कई आंदोलन, धरना-प्रदर्शन आदि का नतीजा 1947 में मिला। स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए हुए आंदोलन में से एक था सविनय अवज्ञा आंदोलन । महात्मा गाँधी जी द्वारा शुरू हुआ सविनय अवज्ञा आंदोलन ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ, उनकी नींव को कमजोर बनाने के लिए था.

नाम सविनय अवज्ञा आंदोलन
सविनय अवज्ञा आंदोलन कब शुरू हुआ था 6 अप्रैल 1930
सविनय अवज्ञा आंदोलन किसके नेतृत्व में हुआ था महात्मा गाँधी
सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारण आमजन में अंग्रेजों के प्रति रोष

सविनय अवज्ञा आंदोलन का आरंभ (Start of Civil Disobedience Movement)

  • सविनय अवज्ञा आंदोलन की औपचारिक घोषणा 6 अप्रैल 1930 को गाँधी जी के नेतृत्व में हुई थी. आंदोलन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाये गए कानून को तोड़ना और उनकी बात की अवहेलना करना था.
  • इस आंदोलन की शुरुवात गाँधी जी की दांडी यात्रा के साथ शुरू हुई थी, जहाँ गाँधी जी नेसाबरमती आश्रम से दांडी की पैदल यात्रा 12 मार्च से 6 अप्रैल के बीच 24 दिन में की. अंग्रेजों ने नमक कानून बना दिया था, जहाँ किसी भी भारतीय के पास समुद्र के तट पर नमक बनाने का हक़ नहीं था. यह नमक कानून उतना ही बेनियाद था, जितना अंग्रेज सरकार के बाकि कानून थे.
  • अंग्रेज सरकार विदेश से आयात नमक को ही भारत में बेचना चाहती थी, ताकि उनकी आर्थिक व्यवस्था और मजबूत हो. लेकिन गाँधी जी समुद्र किनारे किसी भी भारतीय का नमक बनाना मौलिक अधिकार मानते थे, जिसके चलते गाँधी जी खुद गए और समुद्र किनारे जाकर नमक बनाया।
  • इसके साथ ही उन्होंने समूह में जाकर यह गैर क़ानूनी काम किया जहाँ से सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुवात हो गई.

सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारण (Reasons of Civil Disobedience Movement)

  • दिसंबर 1929 कोभारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन लाहौर में हुआ था. जहाँ उस समय देश के सभी बड़े नेता शामिल हुए थे, यहाँ पहली बार पूर्ण स्वराज की बात हुई थी, जहाँ कांग्रेस की तरफ से प्रस्ताव भी पारित किया गया. जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि भारत देश को पूर्ण स्वराज चाहिए और अंग्रेजों से पूर्ण स्वराज की मांग की थी. इसी के बाद से पूर्ण स्वराज का नारा जन-जन तक पहुँच गया था. इस नारे को चरितार्थ करने इस आंदोलन को और हवा मिल गई.
  • चौरा चौरी कांड के चलते असहयोग आंदोलन को अचानक बंद कर दिया गया था. असहयोग आंदोलन तब तक का सबसे सफल आंदोलन माना जा रहा था . बंद होने के बाद कई लोगों के अंदर गाँधी जी के प्रति आक्रोश था, जिसे दूर करने यह आंदोलन लाया गया.
  • साइमन कमीशन के खिलाफ चले आंदोलन में लोगों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था, लोगों में क्रांति की लहर फ़ैल गई थी, इसी को देखते हुए राष्ट्रीय कांग्रेस कमिटी को लगा कि जनता को इस आंदोलन से जोड़ा जाये।
  • 1929 में भारत देश की आर्थिक व्यवस्था भी ख़राब होती जा रही थी, मंदी को ध्यान में रखते हुए इस आंदोलन को लाने की योजना बनाई गई.
  • असहयोग आंदोलन बंद करने के बाद देश दो समूह में बंट गया था, जहाँ एक ओर गाँधी जी और उनके अनुयायी थे, जिसे नरम दल कहा गया, दूसरी ओर भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल और उनके साथी, जिसे गरम दल कहा गया. ये क्रांतिकारी दल तेजी से भारत देश में फ़ैल रहे थे, जिस से गाँधी जी को चिंता थी कि कहीं सारा देश हिंसा का साथ देकर आंदोलन में न उतर आये, इसलिए उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन लागु करने के लिए यह सही समय समझा।
  • देश को अंग्रेजों से आजाद कराने के लिए उनको परेशान करना जरुरी थी, अंग्रेजों के कानून को तोड़ सामूहिक रूप से शांति पूर्ण ढंग से गैर क़ानूनी काम करना, इससे अंग्रेज सरकार पूरी तरह हिल गई.

सविनय अवज्ञा आंदोलन के तहत होने वाले कार्यक्रम (Programme of Civil Disobedience Movement)

  • सविनय अवज्ञा आंदोलन सबसे पहले गाँधी जी द्वारा चलाया गया, जिसमें उन्होंने अंग्रेज सरकार के नमक कानून को तोड़ दिया। साबरमती से दांडी यात्रा करके गाँधी जी ने 50 हजार से ज्यादा के समूह में इक्कठे होकर इस कानून को तोड़, नमक सत्यागृह बनाया था. दांडी के अलावा देश के और भी बहुत से हिस्सों में भारतियों ने जनसमूह में जाकर नमक कानून को न मानते हुए, उसे तोड़ा.
  • भारतियों ने सभी सरकारी सेवाओं को मानने से इंकार कर दिया, खुले तौर पर इसका बहिष्कार होने लगा. यहाँ नौकरी करने वाले भारतियों ने कार्यालय में जाना बंद कर दिया था ।
  • भारतीय लोगों ने अपने बच्चों को सरकारी स्कूल भेजना बंद कर दिया, ताकि अंग्रेज़ सरकार समझ सके कि सभी भारतीय एकजुट होकर उनके खिलाफ खड़े हुए है.
  • विदेशी कपड़ो का बहिष्कार किया गया, इसकी जितनी भी दुकानें हुआ करती थी, वहां महिलाएं समूह में जाकर धरना प्रदर्शन करती और अपना रोष जाहिर करती। इसके साथ ही सभी लोग विदेशी कपड़ों को त्याग कर उसे जलाने लगे.
  • विदेशी शराब और अन्य नशीले तत्व का विरोध हुआ, यहाँ भी महिलाएं जाकर प्रदर्शन करती थी.
  • भारतियों ने अंग्रेज सरकार को टैक्स देने से भी मना कर दिया, जबरजस्ती के टैक्स को देने से सभी ने मना कर दिया।

सविनय आंदोलन का प्रभाव (Effects of Civil Disobedience Movement)

  • आंदोलन का प्रभाव अंग्रेज सरकार पर गहरा पड़ा. अंग्रेज सरकार ने भारतियों से बातचीत कर समाधान निकालने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कुछ प्रमुख नेता जिसमें गाँधी जी भी शामिल थे, उनको लंदन में गोलमेज सम्मलेन में आने का न्योता दिया। ब्रिटिश सरकार की तरफ से भारतियों  को किसी सम्मलेन के लिए इस तरह आमंत्रित करना एक बड़ी बात थी, क्यूंकि ब्रिटिश भारतियों  को हमेंशा छोटा समझते थे, उन्हें बातचीत के लायक भी नहीं समझते थे.
  • इसके अलावा भारत देश में स्वतंत्रता की लड़ाई में पहली बार किसी आंदोलन में महिलाएं भी शामिल हुई थी. एक बड़ी संख्या में महिलाएं अपने घर से निकलकर आंदोलन का हिस्सा बन रहीं थी, वे अपना क्रोध खुलकर प्रकट कर रही थी. हजारों की संख्या में इन महिलाओं को जेल में भी डाला गया.
  • जन सैलाब में स्वतंत्रता के प्रति जागरूकता थी, सभी निडर होकर अंग्रेजों के विरोध में खड़े हो रहे थे. छोटे-छोटे गाँव में भी इस आंदोलन का प्रभाव देखा जा रहा था. देश का गरीब हो चाहे अमीर सभी इस से जुड़ रहे थे.
  • छोटे से छोटा वर्ग, किसान, मजदूर सभी अपने हक़ और अधिकार के लिए खड़े हो रहे थे, इस आंदोलन ने सभी भारतियों को एक उम्मीद की किरण दी थी.जनता में निडरता, देश के प्रति अपने कर्तव्य, बलिदान की भावना जागरूक हो रही थी, जो उस समय स्वाधीनता के लिए बहुत जरुरी था.
  • आम जनता समझ रही थी कि उसे अंग्रेजों की चिकनी बातों में न आकर, उसकी राज करने की नीति को समझना होगा और अपने हक़ के लिए खुद लड़ना होगा, किसी और पर इसके लिए निर्भय होना सही नहीं है.
  • प्रदर्शन के दौरान पुरे देश में लाखों की संख्या में लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया और उन्हें जेल में डाल दिया.

सविनय अवज्ञा आंदोलन की  कमियां (Shortcomings of Civil Disobedience Movement)

  • कहते है उस समय सविनय आंदोलन से श्रमिक मजदूर वर्ग को जोड़ कर एक बड़ा आंदोलन शुरू किया जा सकता था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया.
  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने आंदोलन की शुरुवात तो कर दी थी, लेकिन उसके पास आगे लोगों को सही दिशा देने और सामाजिक कामों के लिए कोई योजना नहीं थी. कांग्रेस ने जागरूक जनसमूह को सही ढंग से इस्तेमाल नहीं किया, और आंदोलन का असर धीरे-धीरे ठंडा होता गया.
  • सविनय अवज्ञा आंदोलन से बहुत कम मात्रा में मुस्लिम समुदाय जुड़ा था, भारत देश के कुछ प्रान्त से ही मुस्लिम लोग जुड़े थे, बाकि जगह से सभी मुस्लिम समुदाय इस आंदोलन से जुड़ने से पीछे हट रहे थे.
  • शरुवात में तो हर सरकारी काम और स्कूल जाने से लोग मना कर रहे थे, लेकिन धीरे-धीरे इसमें कमी आती गई.
  • द्वितीय चरण में व्यापारी वर्ग इस आंदोलन से पीछे हटने लगा था, क्यूंकि आंदोलन को लेकर वे इतने निश्चिन्त नहीं थे.

सविनय अवज्ञा आंदोलन का अंत (End of Civil Disobedience Movement)

  • सविनय अवज्ञा आंदोलन दो चरणों में चला था. 10 महीनों तक चला यह आंदोलन जनसमूह के आक्रोश के लिए जाना जाता है. 1930 में वाइसराय लार्ड इरविन ने गाँधी जी और उनके साथियों को गोलमेज सम्मलेन के लिए बुलाया लेकिन वे लोग उसमें शामिल नहीं हुए.
  • इसके बाद फरवरी 1931 में वायसराय लार्ड इरविन ने गाँधी जी से मिलने के लिए एक मीटिंग फिक्स की. इसी दौरान भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारी जेल में थे, और उनको फांसी होने वाली थी. गाँधी जी और लार्ड इरविन के बीच 5 मार्च 1931 को एक बैठक हुई जिसे गाँधी-इरविन समझौता कहा गया, इसमें दोनों के बीच कुछ बातों को लेकर समझौता हुआ. समझौते में सविनय अवज्ञा आंदोलन को ख़त्म करना भी एक महत्वपूर्ण पॉइंट था. इस तरह  सविनय अवज्ञा आंदोलन का अंत औपचारिक रूप से 5 मार्च 1931 माना जाता है. गाँधी-इरविन पैक्ट  के बाद लोगों में गाँधी जी के प्रति आक्रोश था, सभी का कहना था गाँधी जी ने भगत सिंह की फांसी क्यों नहीं रोकी

सविनय अवज्ञा आंदोलन तो ख़त्म हो गया लेकिन इस आंदोलन से देश में क्रांति की लहर और तेज हो गई थी, जिसका असर है कि आगे होने वाले सभी आंदोलन में पुरुषों के साथ महिलाएं भी कदम से कदम मिलाकर खड़ी हुई थी. जिसके चलते 1947 में सम्पूर्ण स्वराज के साथ अंग्रेजों से आजादी मिली।

 

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