आज़ाद हिन्द फ़ौज का इतिहास (Azad hind fauj- Indian National Army History in Hindi)

देश को स्वतंत्र करवाने के लिए जहां देश के भीतर विभिन्न स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना योगदान दिया था,वही देश के बाहर भी कुछ ऐसी गतिविधियाँ हुयी थी, जिनका ब्रिटिश सरकार और भारतीयों पर काफी प्रभाव पड़ा. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा बनाई गयी आज़ाद हिन्द फ़ौज का उद्देश्य भारत को आज़ाद करवाने के लिए ब्रिटिश सरकार से सम्मुख युद्ध करना था.  

 

फ़ौज का नाम आज़ाद हिन्द फ़ौज
कब बनी?? 1942
फ़ौज की गतिविधि अगस्त 1942-सितम्बर1945
जगह साउथ ईस्ट एशिया
किसने बनाई मोहन सिंह
किसने पुनर्गठन किया सुभाष चन्द्र बोस
  • द्वितीय विश्व युद्ध के समय 70,000 भारतीय फ़ौज जिनमें ज्यादतर सिख थे वो ब्रिटिश सरकार द्वारा सुदूर पूर्व में भेजे गये थे. 1941 में मोहन सिंह भी ब्रिटिश इंडियन आर्मी के कैप्टेन के तौर अपनी यूनिट के साथ मलेशिया गये थे. जब जापानियों ने मलया और साउथ ईस्ट एशिया पर कब्जा कर लिया तो भारतीय सैनिक को बंदी बनाया गया, हालांकि जापानी भारतीय अधिकारीयों के साथ अच्छे रिश्ते बनाये रखने की कोशिश कर रहे थे.
  • जापानी अधिकारी मेजर फ्यूजीहरा, मलया में भारतीय राष्ट्रभक्त नेता प्रीतम सिंह ने मोहन सिंह को इन युद्ध बंदियों की मदद से भारतीय सेना बनाने को कहा, अप्रैल 1942 में मोहन सिंह ने अपने अधिकारीयों को एकत्र किया और बिदादरी रिजोल्यूशन (Bidadary resolution) लिया जिसके अनुसार भारत की स्वतंत्रता के लिए एक आर्मी बनाने का वादा किया गया, इस तरह प्रथमतया इंडियन नेशनल आर्मी का गठन मोहन सिंह द्वारा किया गया था.
  • भारतीय मूल के लोगो ने साउथ ईस्ट एशिया में भारत के प्रवासी राष्ट्रवादियों ने सेंट्रल इन्डियन एसोशियेशन, दी सिंगापुर इंडियन इंडीपेंडेस लीग जैसे कई लोकल लीग बना रखे थे. जापान ने जब भारत की स्वतंत्रता में रूचि दिखाई तो रास बिहारी बोस नाम के भारतीय क्रांतिकारी के नेतृत्व में ये सभी लोकल लीग एक साथ हो गये और एक राजनीतिक संगठन इंडियन इंडीपेंडेंस लीग (आईआईएल) बनाया, जो कि साउथ ईस्ट में बसे भारतीयों की आवाज़ था. रास बिहारी के दिशा निर्देशों में ही आईआईएल और आईएनए एक साथ आये थे.  रास बिहारी बोस की अध्यक्षता में 1942 में भारत और जापान के बुद्धिजीवियों की एक कांफ्रेंस हुयी थी जिसमे मोहन सिंह आईएनए के प्रतिनिधि के तौर पर शामिल हुए थे. इस तरह आधिकारिक तौर पर आईआईएल का गठन हुआ.
  • इस कांफ्रेस में जापान सरकार से 4 महत्वपूर्ण मांगे रखी गयी थी, जिसमें आईआईएल और आईएनए को बनाये रखना पहली और प्रमुख मांग थी. जापान की सरकार से भारत को स्वतंत्र राष्ट्र मानने के लिए कहा गया. आईएनए को इस आर्मी की जिम्मेदारी जाए एवं युद्ध बंदियों को मुक्त किया जाये. जापान इस आर्मी को आर्थिक सहायता दे और भारत की स्वतंत्रता के अतिरिक्त इस पर और कोई जिम्मेदारी नहीं डाली जाये,
  • बिदादरी रिजोल्यूशन में ये भी कहा गया था कि आर्मी युद्ध में केवल तब ही जायेगी जब भारत और इंडियन नेशनल कांग्रेस द्वारा ऐसा करने को कहा जाएगा. इस बात से जापानियों को गुस्सा आ गया और मोहन सिंह को भी जब ये समझ आने लगा कि जापान आर्मी को स्वतंत्र पहचान देने में समय ले रही हैं तो उन्होंने आपति की इसके अतिरिक्त भी कई तरह के मतभेद होने पर जापान ने मोहन सिंह को हटा दिया गया और हिरासत में ले लिया, और मोहन सिंह द्वारा गठित आईएनए समाप्त हो गयी.  इस तरह  पहली बार गठित हुयी आईएनए का कार्यकाल 1942 में फरवरी से दिसम्बर तक था.

आर्मी का पुनर्गठन (Revival of the army)

  • मोहन सिंह ने जापानियों को बताया था कि सुभाष चन्द्र बोस ही वो योग्य व्यक्ति हैं जो इस सेना को सम्भाल सकते हैं. इसके अतिरिक्त फ़ौज में से भी कई लोगों ने बोस के नाम का प्रस्ताव रखा था, इसलिए बोस को आईएनए और आईआईएल का नेतृत्व सम्भालने के लिए आमंत्रित किया गया और 1943 में बोस जर्मनी से जापान पहुंचे.
  • 1943 में जापानियों और इंडियन नेशनल आर्मी के मध्य बहुत बार मीटिंगस हुयी, जिसके बाद ही ये तय हुआ कि सुभाष चन्द्र बोस आईआईएल और आईएनए दोनों का नेतृत्व करेंगे. बोस 11 मई 1943 को टोक्यो पहुंचे और इम्पीरियल जापानी आर्मी, हिडेकी तोजो (Hideki Tojo) के जनरल से मिले.
  • जुलाई 1943 में बोस ने सिंगापुर की यात्रा की जहां उन्होंने रेडियो पर साउथ ईस्ट एशिया में रह रहे भारतीयों से ब्रिटिश राज के खिलाफ युद्ध में शामिल होने की आपील की, यहाँ उन्होंने ये नारा दिया था “तुम मुझे खून दो,मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा” और सिंगापुर में ही सुभाष चन्द्र बोस ने आधिकारिक तौर पर आईएनए का नेतृत्व रास बिहारी बोस से लिया था. आईएनए की कमान सम्भालने के बाद बोस ने हजारों सैनिकों को सम्बोधित करते हुए अपना सुप्रसिद्ध नारा “दिल्ली चलो” दिया था.
  • अक्टूबर 1943 को नेताजी ने सभी आईएनए के सदस्यों का आह्वान किया और प्रोविजनल गवर्नमेंट ऑफ़ फ्री इण्डिया (आज़ाद हिन्द) बनाया और आईएनए को आधिकारिक तौर पर आज़ाद हिन्द फ़ौज बनाने की घोषणा की और इसे अपनी अस्थायी सरकार “अर्जी हुकूमत-ए-आजाद हिन्द” में आर्मी के तौर पर शामिल कर लिया.
  • सुभाष चन्द्र बोस की आर्मी का उद्देश्य देश की स्वतंत्रता के लिए युद्ध करना था इसलिए उनकी आर्मी में स्वयंसेवियों की संख्या भी बहुत ज्यादा थी. वैसे तो फ़ौज की वास्तविक संख्या पता नहीं हैं क्योंकि बाद में इससे जुड़े सभी रिकॉर्ड समाप्त कर दिए गये थे, लेकिन ऑस्ट्रेलियन लेखक कार्ल वादीवेला बेले ने ये अनुमान लगाया था कि इंडियन इंडीपेंडेंस लीग में बोस के नेतृत्व में 350,000 तक सदस्यता ली गयी थी, जिसमें आम जनता जैसे कृषक, दूकानदार और वकील और अनुभवी फौजी भी शामिल थे. लक्ष्मी सहगल के नेतृत्व में समस्त महिलाओं का गठित किया गया था और उस आर्मी का नाम “रानी ऑफ़ झांसी रेजिमेंट” रखा गया. इस तरह एक अनुमान के अनुसार फ़ौज में कुल 85000 तक की संख्या थी जिनमें 45,000 केवल भारतीय थे. बहुत से स्वयंसेवी और सैनिक जो कि आईएनए का हिस्सा थे, वो इंडियन नेशनल आर्मी में इसीलिए शामिल हुए थे क्योंकि वो सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में ही आर्मी में शामिल होना चाहते थे.

आईएनए द्वारा संचालित किये गये ओपरेशन (Operations of the INA)

  • सुभाष चन्द्र बोस ने स्वतंत्र भारत के लिए प्रोविजिनल सरकार की घोषणा की थी. आईएनए द्वारा ब्रिटिश पर पहले आक्रमण के बाद जापानियों ने अंडमान और निकोबार द्वीप आज़ाद हिन्द फौज को सौंप दिया जहां पहली बार नेताजी ने स्वतंत्र भारत के प्रतिनिधि के रूप में देश का झंडा फहराया, और उन्होंने इन द्वीपों का नाम शहीद और स्वराज रखा.
  • बोस ने जापानियों को इस बात के लिए मना लिया था कि वो आईएनए को जापानियों के ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध मणिपुर में होने वाले युद्ध में शामिल हो सकते हैंयु-जीओ ओफेंसिव (U-Go Offensive) के अंतर्गत मिलिट्री ओपरेशन का उद्देश्य ब्रिटिश सरकार से मणिपुर और नागा हिल्स को लेकर अपने अधीन करना था, आईएनए ने इसमें मुख्य भूमिका निभायी थी. हालांकि  इसमें आईएनए ने अपने बहुत से सैनिक खो दिए जिससे आर्मी कमजोर हो गयी.
  • 1945 में आईएनए जापानियों के बर्मा कैंपेन का हिस्सा बनी थी, जिसमें जापान का ब्रिटिश उपनिवेश बर्मा से युद्ध हुआ था, लेकिन दुर्भाग्यवश जापानी वो युद्ध हार गये,जिसमें आत्म-समर्पण के साथ बहुत सी सन्धियाँ हुयी थी. ऐसे में आईएनए के पास संधि के अतिरिक्त कोई आप्शन नही बचा था.  
  • अगस्त 1945 को सुभाष चन्द्र बोस डालियान (Dalian) के लिए निकल गये जिससे कि वो सोवियत की सेना से सम्पर्क कर सके, लेकिन बाद में ये खबर आई कि सुभाष चन्द्र बोस जिस एयरक्राफ्ट से यात्रा कर रहे थे, वो एक्सीडेंट में क्रेश हो गयी और सुभाष चन्द्र का उसमे देहांत हो गया.

आईएनए का अंत और ट्रायल्स (End of the INA and Trials)

  • 1945 में जापान की हार के बाद आज़ाद हिन्द फ़ौज अपने उद्देश्य में कामयाब नहीं हो पायी, और बोस की मृत्यु की सूचना के साथ ही आईएनए का अंत हो गया. आईएनए के लगभग 16000 सैनिक ब्रिटिश सरकार द्वारा विभिन्न जगहों पर पकड़े गये, जुलाई 1945 में एक जहाज में भरकर उन्हें भारत लाया गया जबकि वो स्वयंसेवी जो मलया और बर्मा से आये थे उन्हे सामान्य जीवन में लौटने दिया गया.
  • नवंबर 1945 को लगभग 12000 आईएनए सैनिक को चिट्टागोंग और कलकता में ट्रांजिट कैंप में रखा गया. दिसम्बर में ट्रायल्स में भेजे गये लोगों को चुनना चुरू किया गया, ब्रिटिश-इंडियन आर्मी आईएनए जॉइन करने वाले सैनिकों के लिए इंटरनल डिसिप्लेनरी एक्शन लेने की बात की गयी. ब्रिटिश सरकार ने कुछ ऐसी सैनिक भी चुने जिन्हें ट्रायल में भेजा गया या फिर उनके कृत्यों के लिए उन्हें दंडित किया गया. नवम्बर 1945 को ये रिपोर्ट आई कि ब्रिटिश ने आईएनए सैनिकों को मार डाला जो पुलिस और विद्रोहियों के बीच में हिंसा का हिस्सा थे.
  • पंडित जवाहरलाल नेहरुपहले आज़ाद हिन्द फ़ौज के विरुद्ध थे लेकिन बाद में जब आईएनए के अधिकारीयों को ट्रायल पर लिया गया तो उन्होंने इसमें यू-टर्न ले लिया और वो उनके डिफेन्स लॉयर बन गये. इंडियन नेशनल कांग्रेस ने आईएनए डिफेन्स कमिटी भी बनाई जिससे कि पूर्व-आईएनए के सदस्य को बचाया जा सके. कमिटी में देश के प्रबुद्ध व्यक्तित्व कैलाशनाथ काटजू,भूलाभाई देसाई और जवाहर लाल नेहरु शामिल थे. डिफेन्स कमिटी ने बहुत से विरोध किये,और ये सुनिश्चित किया कि पहले ट्रायल के बाद किसी पर भी चार्ज ना लगे.
  • आईएनए के अधिकारीयों को जबरदस्ती आत्म-समपर्ण करवाया गया और उन्हें वाइट, ग्रे और ब्लैक 3 केटेगरी में बांटा गया इनमे व्हाईट वो थे जिनके बारे में ब्रिटश सरकार को लगता था कि वो राज रोयेलिस्ट बन जायेंगे जबकि ग्रे पर नजर रखी जा रखी जा रही थी और ब्लैक सच्चे राष्ट्रभक्त थे.
  • लाल किले में आईएनए के सैनिको के विरुद्ध लगभग 10 ट्रायल्स किये गये और इस कारण इन्हें रेड फॉर ट्रायल्स भी कहा जाता हैं. इन सबमे पहला ट्रायल कर्नल प्रेम सहगल,मेजर जनरल शह नवाज़ खान और कर्नल गुर्बख्स सिंह ढिल्लो पर हुआ था जिन्होंने पहले ब्रिटिश इन्डियन आर्मी के लिए काम किया था, उन पर कई तरह के चार्ज लगाये गये थे, जिसमें उन पर देशद्रोह का मुकदमा लगाया गया था. हालाँकि जनता ने शुरू में इन्हें सपोर्ट नही किया लेकिन ब्रिटिश सरकार के ट्रायल्स को पब्लिक में करने के निर्णय से इन्हें जनता से सहानुभूति मिलने लगी और जिसके कारण दंगे और विरोध होने लगे.मुस्लिम लीग और इंडियन नेशनल कांग्रेस ने ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाया कि वो आईएनए के सैनिकों को छोड़ दे. इसलिए ब्रिटिश राज में सशस्त्र फ़ौज में उथल-पुथल के कारण कमांडर-इन-चीफ मार्शल क्लौड औचिनलेक ने 3 आरोपियों को फांसी की सजा दे दी.
  • जनता के भारी दबाव के कारण औचिनलेक ने प्रेम सहगल,शाह नवाज़ खान और गुरबख्श सिंह ढिल्लो को आज़ाद कर दिया. तीन महीने के भीतर ही आईएनए के 11000 सदस्य को छोड़ दिया गया. हालांकि उन्हें स्वतंत्रता के पूर्वलार्ड माउंटबेटनकी शर्तों के आधार पर भारत की नई सेना में भर्ती होने का अधिकार नहीं दिया गया

विवाद (Controversies)

  • लगभग 40,000 भारतीय ने उस शपथ के आधार पर आईएनए जॉइन नही किया जो उन्होंने राजा की उपस्थिति में लिया था जिसके अनुसार वो किसी भी जापानी सहयोगी संस्था को सपोर्ट नही कर सकते थे. जिन लोगों ने आर्मी जॉइन की वो लोग देशद्रोही कहलाये. ये भी कहा गया कि उनमे से ज्यादा सैनिक बर्मा रेलवे में कम करने के लिए बाध्य थे. देश की स्वतंत्रता के बाद आईएनए के सैनिको के साथ हुए व्यवहार की कड़ी निंदा की गयी, उन्हें ना केवल स्वतंत्रता संग्रामी ना माना गया बल्कि उनके प्रयासों को भी भारत सरकार ने नजर अंदाज किया.
  • बहुत सारे संघर्ष और विवादों के बाद भी आज़ाद हिन्द फ़ौज ने भारत की स्वतंत्रता में दिए योगदान के कारण न केवल सम्मान हासिल किया था बल्कि भारतीयों के मन पर एक अमिट छाप भी छोड़ी थी. कदम कदम बढ़ाये जा आज़ाद हिन्द फ़ौज का 1942 से 1945 के मध्य रेजिमेंटल क्विक मार्च (Regimental Quick March ) था. इस गाने को राम सिंह ठाकुर ने कम्पोज किया था और बोस ने इसे सैनिकों को प्रेरित करने के लिए सेना में शामिल लिया था,अब भी भारतीय आर्मी का क्विक मार्च हैं.

आज़ाद हिन्द फ़ौज भारत की पहली सेना थी और ब्रिटिश सरकार को इससे इस हद तक डर था कि युद्ध खत्म होने के बाद सरकार ने बीबीसी को इसकी डोक्युमेंट्री जारी करने से रोक दिया था.

 

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