भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
1857 की क्रान्ति का अंग्रेजों ने सफलतापुर्वक दमन जरुर कर दिया था,लेकिन तब तक देश में अंग्रेजों के खिलाफ माहौल बन चुका था, क्योकि इस क्रान्ति में देश ने रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे जैसे वीरों का बलिदान देखा था. वैसे इस क्रान्ति का एक परिणाम ये भी रहा कि 2 अगस्त 1858 को गवर्मेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट पास हुआ जिसके अनुसार भारत की सत्ता ईस्ट इंडिया कम्पनी के हाथों से ब्रिटिश सरकार के पास चली गयी और 1 जनवरी 1877 को क्वीन विक्टोरिया (Queen Victoria) को भारत की साम्राज्ञी घोषित कर दिया गया. इसके बाद ही भारतीयों के लिए राजनैतिक मामलों में मंच बनाने की भूमिका लिखी गयी, और इंडियन नेशनल कोंग्रेस जैसी पार्टी अस्तित्व में आई.
1857 की क्रांति के बाद अंग्रजों ने अपने आप को सुरक्षित रखने के लिए कुछ पढ़े लिखे भारतीयों की एक समिति गठन करने की कोशिश की जो अंग्रेजो और आज़ादी की लड़ाई के लिए संघर्ष कर रहे लोगो के बीच मध्यस्तथा का काम करें। । इस समिति को वो देश में आज़ादी के लिए उठ रहे धुएं से, अपने सुरक्षा कवच की तरह इस्तेमाल करना चाहते थे।
भारतीय नेशनल कांग्रेस को देश की सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी माना जाता हैं. जिसका गठन 28 दिसम्बर 1885 में थियोसोफिकल सोसायटी के कुछ सदस्यों ने किया था. और कालान्तर में इसी इंडियन नेशनल कांग्रेस के कारण 1947 में भारत को आज़ादी मिली.
1885 में इंडियन नेशनल कोंग्रेस का गठन इतिहास (History behind Establishment of Indian National Congress in 1885)
वास्तव में इसकी नींव 1857 की क्रान्ति से भी पहले रखी जा चुकी थी,क्योकि देश के विभिन्न हिस्सों में कुछ-छोटी-छोटी ओर्गनाइजेशन ने इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया था,लेकिन नेशनल लेवल पर कांग्रेस का गठन बहुत वर्षों बाद 1885 में ही हो सका था.1843 में सबसे पहले ब्रिटिश इंडियन सोसायटी ऑफ़ बंगाल बनाई गयी. 1851 में ब्रिटिश इंडियन एसोशियेशन बनाई गई और ब्रिटिश इंडियन सोसायटी का इसमें विलय हुआ.
इसी समय 1852 में वेस्टर्न प्रेजिडेंसी में बोम्बे एसोसिएशन भी बनी,हालांकि ये एक दशक से ज्यादा नहीं चल सकी. मद्रास में भी एक नेटिव एसोसीएशन बनाया गया,लेकिन इसे कुछ अधिकारीयों द्वरा ही सम्भाला जाता था इस कारण इसकी उपयोगिता भी कम ही रही.1870 में पूना में एक अन्य ऑर्गनाइजेशन बनी जिसका नाम सार्वनिक सभा रखा गया. इस तरह अखिल भारतीय स्तर पर सुरेन्द्र नाथ बनर्जी के प्रयासों से पहली ऑर्गनाइजेशन 1876 में बनी. 1883 में इंडियन एसोसीएशन ने कलकता में आल इंडिया कांफेरेंस करवाई. 1885 में दूसरी कांफ्रेंस हुयी,इसी दौरान कुछ और ओर्गनाइजेशन जैसे बंगाल नेशनल लीग, मदरा महाजन सभा और बोम्बे प्रेजिड़ेंसी एसोशियेशन भी अस्तित्व में आये. लेकिन ये सभी संस्थाएं राष्ट्रीय स्तर पर अंग्रेजों के समकक्ष अपनी कोई ऑर्गनाइजेशन नहीं बना सकी. इसके बारे में 1913 में गोपाल कृष्ण गोखले ने इस सवाल का जवाब दिया कि आखिर क्यों 1880 में कोई भी भारतीय कोंग्रेस के केम्पेन में शामिल होने के लिए तैयार नहीं था? “कोई भी भारतीय इंडियन नेशनल कांग्रेस नहीं बना सकता था,यदि कोई भारतीय इसके लिए आगे आता तो भारत में नियुक्त अंग्रेज अधिकारी इस तरह की गतिविधि को होने ही नहीं देते.यदि कांग्रेस का संथापक कोई अंग्रेज उच्च अधिकारी नहीं होता तो अंग्रेज इसे भी कोई विद्रोही गतिविधि समझते और इस दबा देते.
वास्तव में इंडियन नेशनल कांग्रेस के गठन के लिए एक अंग्रेज एलन ओक्टावियन ह्युम (Allan Octavian Hume) को जिम्मेदार माना जाता है. 1885 में अल्लन ऑक्टेवियन ह्युम (Allan Octavian Hume) जो बॉम्बे में एक एंटरटेनमेंट क्लब चलते थे , जिसमे पढ़े लिखे भारतीय आते थे , कांग्रेस सेशन का आयोजन किया था. ए.ओ.ह्युम ने भारतीय नेताओं को भारत के लिए इंडियन नेशनल यूनियन बनाने के लिए आमंत्रित किया,जिसका नाम दादा भाई नैरोजी के सुझाव पर इंडियन नेशनल कांग्रेस रखा गया. ये कांग्रेस शब्द अमेरिकन सम्विधान से लिया गया था.
इंडियन नेशनल कांग्रेस बनने के कारण (Reason of formation of INC)
बहुत दशकों तक ये माना जाता था कि ह्युम और अन्य लिब्रल ब्रिटिश अधिकारियों ने ही कांग्रेस की स्थापना की हैं जिससे कि राजनैतिक पार्टी के गठन से भारतीयों में अंग्रेजों के पार्टी द्वेष भावना कम होगी. हालांकि बाद में बहुत से इतिहासविदों ने इस पर प्रश्न लगाया क्युकी वास्तव में 1857 की क्रान्ति के बाद सामाजिक,सांस्कृतिक,राजनैतिक और आर्थिक परिवर्तनों ने इस पार्टी के जन्म की भूमिका तय हो चुकी थी. इसलिए आईएनसी बनने के पीछे 2 थ्योरी दी जाती है
काल्पनिक थ्योरी– इसके अनुसार यह ए-ओ ह्युम की मानवीय एप्रोच(Nice Approach) थी,जिसके कारण आईएनसी (INC)की स्थापना हुयी. हालांकि ये भी कहा जाता हैं ह्युम भारतियों की राजनैतिक दुर्दशा देखकर बुरी तरह हिल गया था, इसलिए उसे इनके लिए एक राजनैतिक प्लेटफोर्म बनाने की आवश्यकता महसूस हुयी.जिससे ब्रिटिश सरकार तक उनकी शिकायते पहुच सके एवं अंग्रेजो और भारतीयों के बीच बढती दूरी कम हो सके. ए.ओ ह्युम की जीवनी लिखने वाले विलियम वेडरबर्न (जो बाद में आईएनसी के प्रेसिडेंट भी बने)ने भी इस बात की पुष्टि की.
वास्तविक थ्योरी Realistic Theory:– भारत में गर्म दल के नेता लाला लाजपत राय,बालगंगाधर तिलक,बिपिन चन्द्र पाल इत्यादि ने सेफ्टी-वाल्व थ्योरी दी थी. लाला लाजपत राय ने इसके लिए 2 किताबें लिखी थी जिनके नाम क्रमश: अनहैप्पी इंडिया और “पंजाबी” थे, इन दोनों किताबों में उन्होंने आईएनसी (INC) की स्थापना सम्बन्धित ब्रिटिश की नीतियों को समझाया था. उनके अनुसार लार्ड डफिन और ए ओ ह्युम की मिलीभगत के कारण आईएनसी की स्थापना हुयी. 19 वी सदी की शुरुआत से ही राष्ट्रवाद और अंग्रेजों के खिलाफ भारतीयों में गुस्सा बढ़ने लगा था, इस कारण अंग्रेजों के थिंक टैंक के सदस्यों ने एक ऐसी संस्था बनाने की सोची जो अंग्रेजों और भारतीयों के बीच की बर्फ को पिघला सके.इस तरह ये एक बफर ऑर्गनाइजेशन (Buffer organisation)बनी और अन्य शब्दों में कहे तो इसने सेफ्टी वाल्व (सुरक्षा कवच) की तरह काम किया. कालान्तर में इसी सेफ्टी वाल्व थ्योरी ने भारत की राजनीति में महत्वपूर्ण काम किया.
एक तीसरी अवधारणा भी हैं जिसे आधुनिक मत भी कहा जा सकता हैं, इसके अनुसार आईएनसी धार्मिक जागरूकता लाने और समस्त भारतीयों के समान हितों को ध्यान में रखते हुए बनी थी. वास्तव में उस समय बहुत सी सांस्कृतिक संस्थाए थी जिनकी स्थापना समाजिक सुधार के लिए हुयी थी, और सांस्कृतिक संस्थाए हमेशा राजनैतिक और समाजिक जागरूकता लाने का काम करती हैं,ऐसे में एक राजनैतिक मंच को भी मुख्य धारा में लाना जरुरी हो गया था.
इंडियन नेशनल कांग्रेस के संस्थापक(Founder of Indian National Congress)
ह्युम ने नेशनल कोंग्रेस की स्थापना की पूरी जिम्मेदरी ली थी और इसी कारण वो 1885 की शुरुआत में शिमला में गवर्नर जनरल लार्ड डफर से मिला, गवर्नर जनरल को ह्युम का विचार पसंद आया और मार्च 1885 में ये तय किया गया कि क्रिसमिस की छुट्टियों में देश के सभी हिस्सों से एक प्रतिनिधि को बुलाकर कांफ्रेंस का आयोजन किया जाएगा.
वैसे तो ए.ओ ह्युम 1882 में अपने पद रिटायर हो चुके थे लेकिन इससे पहले और इसके बाद के समय में उन्होंने शिमला के सेक्रीट्रेट में इंडियन नेशनल कांग्रेस की योजना को तैयार किया था, जिसके फोर्म्युलेशन में लार्ड डफर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. कुछ वर्षों बाद यूनाइटेड प्रोविंसेज के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर ऑकलैंड कोल्विन ने इसका उद्देशय समझाया था. वास्तव में उस समय ह्युम के पास देश के विभिन्न हिस्सों से आई हुयी पुलिसकी गुप्त रिपोर्ट के 7 वोल्यूम थे. जिससे उसे समझ आ गया था कि देश में जल्द ही कुछ हिंसक गतिविधि होने की सम्भावना हैं,वैसे भी 1857 की क्रान्ति के बाद से ही देश की बहुत बड़ी जनसंख्या में अंग्रेजों के खिलाफ रोष था. और उन रिपोर्टस के अनुसार कुछ संस्थाएं हिंसा फैलाने वाली थी जिसमें लिखा था कि अंग्रेज अधिकारियों की हत्या,बाज़ार को लूटना जैसे अपराध की प्लानिंग की जा रही हैं. शिक्षित वर्ग के भी सरकार के खिलाफ इन हिंसक गतिविधियों में भाग लेने की सम्भावना थी,इस तरह उस समय एक नयी क्रान्ति होने की प्रबल सम्भावना थी. ऐसी परिस्थितयों ने ह्युम और उसके दोस्तों ने भारतीयों के इस दिशाहीन संघर्ष को सम्वैधानिक करने के लिए इंडियन नेशनल कोंग्रेस बनाने का प्रस्ताव रखा.
इंडियन नेशनल कांग्रेस अधिवेशन (Indian National Congress Conference)
पहली इंडियन नेशनल कोंग्रेस के लिए आयोजित की जाने वाली कांफ्रेसं रखने के पीछे ह्युम का उद्देश्य था कि देश के विभिन्न प्रान्तों के सभी ईमानदार और सशक्त प्रतिनिधियों को राष्ट्र के विकास के लिए आपस में मिलना चाहिए,और आने वाले वर्ष के लिये आवश्यक राजनैतिक गतिविधियों को निर्धारित करना चाहिए. कोलेरा के फैलने के कारण ये मीटिंग पूर्व निर्धारित स्थान पूना में नहीं हो सकी लेकिन गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज बोम्बे में 1885 के 28 दिसम्बर से 31 दिसम्बर तक ये अधिवेशन चला जिसमें देश के विभिन्न क्षेत्रों से आये 72 प्रतिनिधयों का समागम कलकता के बेरिस्टर डब्ल्यूसी बेनर्जी के अध्यक्षता में हुआ
इंडियन नेशनल कांग्रेस के प्रथम प्रेजिडेंट (First President of Indian National Conference)
आईएनसी के प्रथम प्रेसिडेंट व्योमेश चन्द्र बनर्जी (Womesh Chandra Bonnerjee) बने,जो की बाद में 1892 में इलाहबाद में आयोजित सेशन में भी इंडियन नेशनल कांग्रेस के प्रेजिडेंट बने.
अब तक के सभी प्रेजिडेंट की लिस्ट (List of all predinet year )
वर्ष | अधक्ष का नाम |
1885 | व्य्मोएश चन्द्र बनर्जी |
1886 | दादाभाई नेरोजी |
1887 | बदरुद्दीन तय्यब्जी |
1888 | जॉर्ज युले |
1889 | सर विलियम वेडेरबर्न |
1890 | सर फिरोजशाह मेहता |
1891 | पे.आनंद चार्लू |
1892 | व्योमेश चन्द्र बनर्जी |
1893 | दादाभाई नेरोजी |
1894 | अल्फ्रेड वेब |
1895 | एस.एन. बनर्जी |
1896 | रहीमतुल्ला एमसयानी |
1897 | सर सी. संकरण नायर |
1898 | ए.एम.बोस |
1899 | आर.सी.दत्त |
1900 | एन’जि.चंद्वारकर |
1901 | डी.ई.वाचा |
1902 | एस.एन.बनर्जी |
1903 | एल.एम घोष |
1904 | सर हेनरी कॉटन |
1905 | गोपाल कृष्ण गोखले |
1906 | दादाभाई नैरोजी |
1907 | डॉक्टर रास बिहारी घोष |
1908 | डॉक्टर रास बिहारी घोष |
1909 | मदन मोहन मालवीय |
1910 | सर विलियम वेडरबर्न |
1911 | बिशन नारायण धर |
1912 | राव बहादुर रघुनाथ नरसिंहा मुधोलकर |
1913 | नवाब सयेद मोहम्मद बहादुर |
1914 | भूपेंद्र नाथ बोस |
1915 | लार्ड सत्येन्द्र प्रसन्ना सिन्हा |
1916 | अम्बिका चरण मजुमदार |
1917 | एनी बीसेंट |
1918 | सयेद हस्सन इमाम (स्पेशल सेशन)
|
1918 | मदन मोहन मालवीय (वार्षिक सेशन) |
१९१९ | पंडित मोतीलाल नेहरु |
1920 | लाला लाजपत राय (सस्पेंडेड) |
1920 | सी. विजयरघवाचरिअर (वार्षिक सेशन)
|
1921 | देशबन्धु चितरंजन दास ( (जेल में) हाकिम अजमल खान(कार्यरत) |
1922 | देशबंधु चितरंजन दास |
1923 | मौलाना अबुल कलम आजाद(सस्पेंडेड)
|
1924 | मोहनदास करमचन्द गांधी |
1925 | सरोजिनी नायडू |
1926 | श्री श्रीनिवास इयेंगर |
1927 | मोहम्मद अली अंसारी |
1928 | मोतीलाल नेहरु |
1929 | जवाहरलाल नेहरु |
1930 | सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कारण कोई सेशन नहीं हुआ
|
1931 | सरदार वल्लभ भाई पटेल |
1932
|
नीली सेन गुप्ता |
1934-35 | राजेंद्र प्रसाद |
1936 | जवाहर लाल नेहरु |
1937 | जवाहर लाल नेहरु |
1938 | सुभाष चन्द्र बोस |
1939
|
सुभाष चन्द्र बोस |
1940-1945 | अबुल कलाम आज़ाद |
1946 |
आचार्य जे पी कृपलानी |
1948-49 | डॉक्टर पट्टाभि सीता रमैय्या
|
1950 | पुरुषोत्तम दास टंडन |
1951-52 | पंडित जवाहर लाला नेहरू |
1953 | जवाहर लाल नेहरु |
1955-59 | यू एन धेबर |
1960-63 | नीलम संजीव |
1964-67 | के कामराज |
1968-69 | एस. निजलिंगप्पा |
1969 (अप्रैल) | एस. निजलिंगप्पा |
1969 (दिसम्बर | जगजीवन राम |
1972-74 | डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा |
1975-1984 | इंदिरा गाँधी |
1985-1991 |
राजीव गांधी |
1992-1996 | पी.वी. नरसिंहा राव |
1997-98 | सीताराम केसरी |
1998-2017 | सोनिया गांधी |
2017 से वर्तमान | राहुल गांधी |
और इसी इंडियन नेशनल कांग्रेस के कारण 1947 में भारत को आज़ादी मिली.