चन्द्रशेखर आजाद का जीवन परिचय | Chandrashekhar Azad Biography in Hindi

“आज़ाद जिया हूँ और आज़ाद ही मरुंगा” का प्रण करने वाले चन्द्रशेखर आजाद का नाम हमारे देश में हर बच्चे की प्राथमिक शिक्षा में शामिल हैं. उनका जीवन देशभक्तों के लिए प्रेरणादायी हैं साथ ही उनके जैसा सशक्त और संघर्ष मयी औरअपनी शर्तों पर ही जीना-मरना भी  कोई आदर्श से कम नहीं हैं. भारत की स्वतंत्रता में योगदान देने वाले महत्वपूर्ण क्रांतिकारियों की सूची में चंद्रशेखर आजाद सबसे ऊपर हैं, इसलिए देश उनको कभी नहीं भूला सकता.  अंग्रेज उनके  जीवन काल में उन्हें सिर्फ एक बार गिरफ्तार कर सके थे,इसलिए उनकी सुप्रसिद्ध घोषणा “दुश्मनों की गोलियों का सामना हम करेंगे,आज़ाद थे हम आज़ाद ही रहेंगे, ही उनकी पहचान बन गयी.

 क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत  

1919 में हुए जलियांवाला बाग़ हत्याकांड में अंग्रेजों ने हजारो निर्दोष लोगों को मार गिराया जिससे उस समय जाने कितने ही क्रांतिकारियों का जन्म हुआ था,उन्ही में से एक चन्द्र शेखर आज़ाद भी थे. हालांकि चन्द्रशेखर आजाद और उनके सहयोगी पहले से क्रान्ति के क्षेत्र में संघर्षरत थे लेकिन इस हत्याकांड ने हर किसी को भीतर तक झकझोर कर रख दिया था और तब चन्द्रशेखर आज़ाद और कई क्रांतिकारियों ने भारत को अंग्रेजों से मुक्त करवाने की प्रतिज्ञा की.

चन्द्रशेखर तिवारी से चन्द्रशेखर आज़ाद तक का सफर (Chandrashekhar Tiwari to Chandra Shekhar Azad)

1920-21 में जब गांधीजी ने असहयोग आंदोलन की घोषणा की तब पहली बार देश में क्रांति की लहर दौड़ पडी थी,हर कोई गांधीजी के दिखाए मार्ग के अनुसार विदेशी वस्तुओं,किताबों इत्यादि का बहिष्कार कर रहा था लेकिन जब गांधीजी ने ये आन्दोलन वापिस ले लिया तब 16 वर्षीय चन्द्रशेखर आज़ाद इन सबसे काफी प्रभावित हुए. उस समय ही चन्द्रशेखर को गिरफ्तार भी किया गया और पेशी के दौरान कोर्ट में उनसे कुछ सवाल पूछे गये. वास्तव में उन सवालों ने और उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण उस बालक के जवाबों ने युवावस्था में प्रवेश करते चन्द्रशेखर तिवारी को चन्द्रशेखर आज़ाद बना दिया. ये सवाल-जवाब भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षर के रूप में अंकित हुए,क्योंकि अधिकारी और चन्द्रशेखर के मध्य होने वाला संवाद कोई आम संवाद नहीं था जो अपराधी और अधिकारी के बीच होता हो,बल्कि ये वो घटनाक्रम था जिसने आने वाली कई पीढ़ियों के रोंगटे खड़े कर देने वाले और प्रेरणा देने का का काम किया था. हालांकि अधिकारी द्वारा पूछे जाने वाले सभी सवाल औपचारिक थे लेकिन 16 वर्षीय मासूम आज़ाद ने उस दिन जो तेवर दिखाए थे उससे ये सुनिश्चित हो गया था कि ये बालक ना केवल क्रांति की ज्वाला प्रस्फुटित करेगा बल्कि एक बड़े परिवर्तन का कारण भी बनगे,और कालान्तर में ये बात बिलकुल सही सिद्ध हुई.  उस समय अधिकारियों ने उनसे पूछा कि उनका नाम क्या है?? उनका जवाब था-आज़ाद. पिता का नाम-स्वतंत्रता और निवास स्थान-जेल. उन्हें सजा स्वरूप 15 कोड़े मारने का आदेश दिया गया लेकिन उन कोड़ो के साथ भी उनके मुंह पर एक शिकन तक नहीं आई.

चन्द्रशेखर आज़ाद और हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन (Hindustan Republican Association  & Azad)

गांधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन को निरस्त करने के बाद सभी राष्ट्रवादी क्रान्तिकारियो में निराशा का माहौल बन गया,और आगे कुछ करने को मार्ग नजर नहीं आ रहा था. लेकिन आज़ाद ने ये निर्णय लिया कि अंग्रेजों को पूरी आक्रमकता के साथ इस देश से निकाला जाएगा,इसके लिए उन्होंने हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोशिएशन को जॉइन किया और इस दौरान ही वो इस एसोसिएशनके संस्थापक प्रणवेश चटर्जी से भी मिले इसमें राम प्रसाद बिस्मिल ने उनका सहयोग किया था. अब उनका ध्यान एसोसिएशनके लिए फंड एकत्र करने और इसकी विभिन्न गतिविधियों पर केन्द्रित हो गया,इसके लिए उन्होंने अंग्रेजों के काले धन को लूटने और उस धन-राशि से पार्टी के कार्यक्रम आगे बढ़ाने की योजना बनाई,इसी क्रम में काकोरी काण्ड वाली लूट की गई. 

काकोरी काण्ड (Kakori Conspiracy)

राम प्रसाद बिस्मिल ने क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए हथियारों की व्यवस्था के लिए, फंड जुटाने के लिए ट्रेन लूटने की योजना बनाई,बिस्मिल ने ये नोटिस किया कि बहुत सी सुरक्षा व्यवस्था के साथ एक ट्रेन में खजाना जा रहा हैं. इसलिए उन्होंने शाहजहांपुर से लखनऊ जाने वाली ट्रेन को लूटने की योजना बनाई. उन्होंने चैन खीचकर ट्रेन रोकी और गार्ड के  केबिन से 8000 रूपये लिए,इस दौरान हथियार बंद गार्ड्स के साथ उनकी गोलीबारी हुयी जिसमें एक यात्री की मौत हो गयी. सरकार ने इसे मर्डर डिक्लेयर कर दिया और इसमें शामिल क्रांतिकारियों को खोजने के लिए अभियान शुरू कर दिया. आज़ाद अंग्रेजों से बचते रहे और झाँसी से अपनी गतिविधियां संचालित करते रहे.  

लाहौर षड्यंत्र (Lahore Conspiracy)

आजाद अंग्रेजो से भागते हुए कई शहरो से होते हुए अंततः कानपुर पहुंचे जहां एचआरए का मुख्यालय स्थित था, वहां उनकी मुलाकात भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव जैसे अन्य क्रांतिकारियों से हुई. और यहाँ उन्होंने अपने जैसे कई देशभक्तों के साथ मिलकर एचआरए का पुनर्गठन किया. उन्होंने और भगत सिंह ने इसका नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन या एचएसआरए कर दिया. लालाजी की अंग्रेजों के लाठीचार्ज द्वारा शहादत के बाद आजाद और उनके साथियों ने पुलिस अधीक्षक को लाला की मौत के लिए ज़िम्मेदार ठहराया और उन्होंने बदला लेने का निश्चय किया. फिर इन्होने अपने साथियों के साथ स्काट की हत्या की साजिश की और 17 दिसंबर, 1928 को, योजना को अंजाम तक पहुचाने की कोशिश की गयी.  लेकिन सही पहचान ना होने  के कारण स्कॉट  की जगह पुलिस सहायक पुलिस जॉन पी सौंडर्स की हत्या हो गयी. एचएसआरए ने अगले दिन इस कार्यक्रम की जिम्मेदारी ली और इसमें शामिल लोगों ने ब्रिटिश की सबसे वांछित सूची में स्थान हासिल कर लिया. इसके बाद भी वो सब लाहौर से भाग निकलने में कामयाब हुए लेकिन कुछ समय बाद अपनी आवाज़ आम-जन तक ना पहुचने के कारण अंग्रेजों द्वारा लगातार देश विरोधी बिल पास करवाने से परेशान होकर संगठन ने  असेम्बली में बम फैकने की योजना बनाई . इसकी मुख्य जिम्मेदारी  भगत सिंह ने ली  और उन्होंने 8 अप्रैल, 1929 को काम को अंजाम दिया जिसके लिए उन्हें तुरंत अरेस्ट कर लिया गया. इसके बाद हुयी गिरफ्तारी में 21 सदस्यों कोराजगुरु और सुखदेव समेत गिरफ्तार किया गया. आजाद के साथ 29 अन्य लोगों पर लाहौर साजिश के मामले में मुकदमा चलाया गया था, लेकिन आज़ाद इतनी आसानी से अंगेजों के हाथ नही आने वाले थे. 

शहादत (Martyrdom)

अंग्रेजों ने आज़ाद को पकड़ने में बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ा था, इसका ज्ञान इस बात से होता हैं कि उन्होंने आजाद को पकड़ने के लिए 30,000 रूपये के इनाम की घोषणा की. आज़ाद का पता लगाने के लिए अंग्रेजों ने बहुत सी धन-राशि खर्च की और अंतत: अंग्रेज अपने मंसूबों में कामयाब हुए जब उन्हें इस महान क्रांतिकारी के अल्फ्रेड पार्क पहुचने की सूचना मिली. वास्तव में चन्द्रशेखर आजाद अल्फ्रेड पार्क इलाहाबाद में अपने दोस्त से मिलने आये,और पुलिस ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया. आज़ाद ने फिर भी अपने पास मौजूद एक पिस्तौल से ये सुनिश्चित किया कि उनका दोस्त वहाँ से सुरक्षित निकल जाए और इस क्रम में उन्होंने 3 पुलिस वालों को मार गिराया,एक ही पिस्तौल औए 6 ही गोली होने के कारण आज़ाद के पास अंग्रेजों का सामना करने के लिए कुछ बचा नहीं था ,और आखिर में भागने को कोई रास्ता ना देखते हुए उन्होंने अंतिम गोली अपने सर पर मार ली. लेकिन जीते जी अंग्रेजों की पकड़ में नहीं आ सके. कहा जाता हैं कि अंग्रेजों को आज़ाद का इतना खौंफ था कि उनकी मृत्यु के बाद भी उनके पार्थिव शव पर अंग्रेजों ने कई गोलिया चलाई ये सुनिश्चित करने के लिए कि वो मर गए हैं,उसके बाद ही वो उनके पास गए.

चन्द्र शेखर आज़ाद से जुड़े कुछ रोचक तथ्य (Some interesting facts about chandrshekhar azad)

  • इनकी माँ चाहती थी कि वो संस्कृत में विद्वान बने इसलिए उनके पिताजी ने चन्द्रशेखर को वारणसी के काशी विद्यापीठ में पढने को भेजा था.
  • आज़ाद पार्टी फंड के लिए हमेशा प्रयासरत रहते थे, और पार्टी के लिए एकत्र की जाने वाली राशि पार्टी हित में ही कम आए,इस बात का वो विशेष ध्यान रखते थे. एक बार आजाद के सहयोगियों को पता चला कि उनके माता-पिता की आर्थिक स्थिति खराब हैं तो उन्होंने सुझाव दिया कि पार्टी फंड के पैसो से उनकी सहायता की जाए लेकिन आज़ाद ने ऐसा करने से साफ़ मना कर दिया. आज़ाद ने कहा कि जैसे मेरे माता-पिता हैं वैसे ही सबके माता-पिता हैं,यदि उनकी सच में सहायता करना चाहते हो तो एक-एक गोली मार दो,उनकी सेवा हो जायेगी,लेकिन मातृभूमि की सेवा में ये दबाव कभी बीच में नहीं आएगा.
  • इन्होने ने अंग्रेजों को कई बार चकमा दिया था,ऐसे ही एक बार झांसी में स्त्री का वेश बनाकर भागे थे.
  • चन्द्रशेखर आज़ाद नहीं चाहते थे कि उनकी फोटो अंग्रेजों के हाथ लगे या उनकी मृत्यु के बाद कोई फोटो बची रहे इसके लिए उन्होंने अपने मित्र को झांसी भी भेजा था ताकि वो उनकी फोटो की आखरी प्लेट को नष्ट कर सके,लेकिन ऐसा हो नहीं सका.
  • चन्द्रशेखर आज़ाद के दोस्त रुद्रनारायण उनके छिपने में सबसे बड़े सहयोगी थे,रुद्रनारायण एक पेंटर भी थे,आज़ाद की एक हाथ में पिस्तौल और दुसरे हाथ मूंछों पर वाली फोटो भी उन्होंने ही बनाई थी,उनके घर में आज भी वो पलंग और जगह सुरक्षित हैं जहां आज़ाद बैठा करते थे. एक बार अपने दोस्त रुद्रनारायण की आर्थिक स्थिति को देखकर उन्होंने अंग्रेजों के सामने आत्म-समपर्ण करने तक का सोच लिया था जिससे उनके दोस्त को ईनामी राशि से आर्थिक सहायता मिल सके.

चन्द्रशेखर आज़ाद के नाम पर धरोहर (Legacy)

इलाहाबाद में जिस पार्क में उनकी शहादत हुयी,उस स्थान का नाम अल्फ्रेड पार्क से बदलकर चन्द्रशेखर आज़ाद पार्क कर दिया गया हैं. कुछ स्कूल,कॉलेज,सडकें और भारत में कई अन्य पब्लिक संस्थाओं के नाम भी उनके नाम पर हैं.

चन्द्रशेखर आज़ाद के प्रेरक वाक्य (Quotes)

  • यदि अब भी तुम्हारा खून नहीं खुल रहा,तो तुम्हारी शिराओं में रक्त नहीं पानी बह रहा हैं,वह जवानी किस काम की,जो मातृभूमि के काम ना आ सके.
  • दूसरों को अपने से बेहतर करते हुए ना देखकर तुलना ना करे,अपने ही रिकार्ड्स तोड़ने की कोशिश करें,क्योंकि सिर्फ आपके और आपके मध्य ही सफलता का संघर्ष हैं.
  • आज़ाद का समाजवाद पर गहन विशवास था,वो इसे भविष्य के भारत की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता मानते थे.

वास्तव में उनका जीवन ना केवल आज के परिप्रेक्ष्य में रोमांचित कर कर देने वाला और प्रेरणादायी हैं बल्कि उस समय भी उन्होंने अपने कई सहयोगी क्रांतिकारियों और आम लोगों को अपने जीवन अपने विचारों से प्रभावित किया था.

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