जलियांवाला बाग हत्याकांड- अमृतसर का इतिहास  (Jallianwala bagh Hatyakand Itihas )

1919 का वर्ष सोने की चिड़िया कहे जाने वाले देश के इतिहास में कभी ना भुलाया जाने वाला वर्ष है क्योंकि उस साल में ही अमृतसर के जलिया बाग में अंग्रेजों ने जो नर-संहार किया था उसे सदियों तक कोई चाहकर भी नही भुला सकता. जनरल आर.ए.एच डायर ने ये आदेश दिया था कि वहाँ पर एकत्र जन-समूह पर गोलियां चला दी जाए,

कब हुआ था जलिया वाला बाग़ हत्याकांड (When Jallianwala bagh Hatyakand Happened)

13 अप्रैल 1919 को जब पंजाब का सबसे बड़े उत्सव वैशाखी मनाया जा रहा था तब  50 ब्रिटिश जवानों ने इस काम को अंजाम दिया था,इन जवानों का नेतृत्व जनरल डायर कर रहा था, डायर ने बिना किसी पूर्व चेतावनी के इन राइफल मैन को ये आदेश दिया कि वो गोलियां चला दे.  

जलियावाला बाग़ हत्याकांड के कारण (Reason behind Jallianwala bagh Hatyakand )

जलियावाला बाग़ हत्याकांड के दिन उस जगह एकत्र भीड़ आम भीड़ नहीं थी,वो सब वहाँ आम-सभा के लिए आये थे,सभा में रोलेट एक्ट का विरोध किया जा रहा था. वास्तव में फरवरी 1919 में इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल द्वारा एक लेजिसलेशन पास किया गया, जिसके अनुसार क्रांतिकारियों पर चलने वाले मुकदमों पर बिना किसी सुनवाई के निर्णय किया जा सकता था, इसके अलावा और भी ऐसे कई नियम थे जो तर्क-संगत नहीं थे. अंग्रेजों का उद्देश्य डिफेन्स ऑफ़ इंडिया एक्ट के रेप्रेसिव प्रोविजन को रिप्लेस करना था,ये सब कुछ जस्टिस एस.ए.टी. रोलेट कमिटी द्वारा 1918 में पेश की गयी रिपोर्ट पर आधारित था. इस एक्ट का पूरे देश में विरोध हुआ, महात्मा गांधी ने देश-वासियों से इसका विरोध करने की अपील की,जिसके परिणामस्वरूप ही जलियावाला बाग में सभा हो रही थी, ऐसी तनावपूर्ण परिस्थितियों में ही 2 क्रांतिकारियों सत्यपाल और सैफुद्दीन किटचले को गिरफ्तार भी किया गया था,जिस कारण अमृतसर शहर में तनावपूर्ण स्थिति थी.

क्या हैं जलियावाला बाग़ की कहानी (Complete Story of Jallianwala bagh Hatyakand )

13 अप्रैल को बैशाखी के पवन अवसर पर हिन्दू, सिख, और मुस्लिम लोग अमृतसर में हरमंदिर साहिब के पास जलियावाला बाग़ में एकत्र हुए थे. वास्तव में बैशाखी सिखों का त्यौहार हैं,इस दिन गुरु गोबिंद साहिब ने 1699 को खालस पंथ की स्थापना की थी,इसे खालसा का जन्म भी कहा जाता हैं. इस दौरान लोग एक दूसरे को शुभकामना देते हैं, और एक जगह इकट्ठे होते हैं. उस दिन भी कुछ इसी कारणों से वहाँ लोगों का समूह ज्यादा था,जो की वास्तव में वहाँ पर होने वाले राजनीतिक कार्यक्रम से अनभिज्ञ थे.

मीटिंग शुरू होने के एक घंटे बाद 4.30 बजे ब्रिगेडियर जनरल डायर ने 65 गुरखा और 25 बलूची सैनिको के साथ बाग़ में आये,जिनमे से 50 के पास तो राइफल थी. इसके अलावा डायर अपने साथ 2 हथियारबंद कार भी लाये थे,हालांकि गाड़ियों को बाहर ही खड़ा किया गया क्योंकि पार्क का दरवाजा बहुत छोटा था,जहाँ से बाहर-आने-जाने का एक ही रास्ता था, बाकी सारे दरवाजे भी छोटे ही थे लेकिन वो ज्यादातर समय बंद ही रहते थे.जबकि मुख्य द्वार थोडा चौड़ा था. इस तरह उन्होंने जलियावाला बाग़ को चारों तरफ से घेर लिया और मुख्य दरवाजे पर हथियार बंद गाड़ियों कोलगा दिया गया. जनरल डायर ने बिना किसी चेतावनी के शूट करने का आदेश दे दिया, और भीड़ की तरफ फायर करवा दिया.

वहाँ स्थिति कुछ ऐसी हो गयी थी कि लोग ना केवल गोलियों से मारे जा रहे थे बल्कि बाहर जाने का रास्ता ना मिलने के कारण भी परेशान होकर इधर-उधर दौड़ रहे थे.ऐसे में मची भगदड़ और मुख्यतया दरवाजे से निकलने की कोशिश में भी कई सारी जाने चली गयी. अंधाधुंध फायरिंग से बचने के लिए वहाँ पर कुएं में गिरकर लोग अपनी जान बचने की सोचने लगे, लेकिन वो भी कुआं इंसानों की संख्या के आगे छोटा पड गया,और अकारण ही उनके काल का कारण भी बन गया. बाद में वहाँ पर से 120 लाशें निकाली गयी. इसके बाद जख्मी पड़े लोग वहाँ से निकल भी नहीं सके थे,क्योंकि शहर में कर्फ्यू की घोषणा कर दी गयी थी,ऐसे में जो घायल और जख्मी थे वो भी उस रात के बाद जीवित बचकर अगली सुबह नहीं देख सके.

 मृतकों की संख्या का आंकलन (How Many People died)

शूटिंग (Shooting)के कारण मारे लोगों की संख्या पर विविध आंकड़े हैं. ब्रिटिश अधिकारियों का जहां कहना हैं कि गोली लगने से 379 लोग मारे गये,हालांकि अंग्रेजों ने इसके लिए जो तरीका अपनाया था उसे भी शक की दृष्टि से देखा जाता हैं, उन्होंने काण्ड के 3 महीने बाद जुलाई में शहर भर से उन लोगों को बुलवाया जिनके पास मृत व्यक्तियों और परिवारों की जानकारी थी. ये जानकारी इस कारण भी अधूरी रही थी क्योंकि बहुत से लोगों को अपनी पहचान पता चल जाने का भय था. पंजाब के सीनियर सिविल सर्वेंट जो की इस कमिटी का सदस्य था उसने भी माना कि ऐसी (मृतकों) जानकारी देने वालों की  संख्या ज्यादा नहीं हो सकी थी. हालांकि ब्रिटिश के आधिकारीक आकंड़ों के अनुसार वहाँ पर 15000-20000 की संख्या में लोग इक्कठे हो रखे थे, इंडियन नेशनल कांग्रेस ने इसके लिए एक इन्क्वायरी (enquiry)की भी की थी,जो की एक अलग ही नतीजे पर पहुंची. कांग्रेस के अनुसार 1500 लोग इसका शिकार हुए गए थे जिनमे से 1000 लोग मारे गए थे.

 

कितने लोग मारे गये थे इस हत्याकांड में(How many People died in Jallianwala bagh Hatyakand)

अंग्रेजों ने आधिकारिक स्त्रोत के अनुसार लगभ 379 लोग मारे गए और 11,00 लोगों को चोट लगी. सर्जन डॉक्टर विलियम डीमेड्डी ने ये संकेत दिया था कि लगभग 1526 जानें इस  हादसे में गयी हैं.इंडियन नेशनल कोंग्रेस ने 1500 से भी ज्यादा लोगों के चोटिल का दावा किया था जिसमे 1000 लोग मारे गये थे,लेकिन कहा जाता हैं कि सच में अंग्रेजों की बर्बरता का शिकार वहाँ पर इतने लोग हुए थे कि बाग़ का एक कुआं उन लाशों से भर गया,जिसे शहीदों का कुआं भी कहा जाता हैं.

जलियावाला बाग़ हत्याकांड का प्रतिशोध (Revenge of Jallianwala bagh Hatyakand )

जनरल डायर पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल.ओ.डायर का साथ मिला था. इसलिए भारतीयों में माइकल के लिए भी उतना रोष था जितना जनरल डायर के लिए था,ऐसे ही एक भारतीय उधम सिंह भी थे. माइकल ओ डायर को मारने की इच्छा उधम सिंह में कई वर्षों से थी. क्योंकि जलियावाला बाग़ हत्याकांड वाले दिन वो उस जगह पर मौजूद थे और लोगों को पानी पीला रहे थे लेकिन वो वहाँ से बचकर भागने में सफल रहे.

13 मार्च 1940 का दिन माइकल.ओ.डायर के लिए अंतिम दिन था,जब वो केक्स्टन ईस्ट इंडिया एसोसिएशन एंड सेंट्रल एशियन सोसाइटी (East India Association and Central Asian Society) में भाषण देने पहुंचा. 40 वर्षीय अंग्रेजी वेशभूषा से सुसज्जित व्यक्ति ने 0.45 स्मिथ एंड वेस्सन रिवाल्वर अपनी किताब में छुपाकर लन्दन के एक मीटिंग हॉल में लेकर गया, वहाँ पर उसने 6 बार भीड़ में गोलिया चला दी. इनमे से 2 गोली 75 वर्षीय माकल.ओ.डायर को भी लगी जिनमें से 1 बुलेट उसके फेफड़ों और हृदय को चीरते हुए सीधे निकल गयी तो एक एक गोली ने किडनी  को छेद दिया, और फायर करने वाले व्यक्ति का नाम उधम सिंह था. उधम सिंह को तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया, वो भी वहाँ से भागने की बजाय मुस्कुराते हुए आत्म-समपर्ण कर दिया,उन्हें फांसी की सजा सुना दी गयी

जनरल डायर की मृत्यु (General Dyer Death)

जलियावाला बाग़ हत्याकांड के बाद जनरल डायर को 26000 पाउंड्स देकर विदेश भेज दिया गया, जनरल डायर की मृत्यु हृदय की गति रुकने से हुयी थी, उसने मरने से पहले अपनी डायरी में लिखा था “बहुत से लोग जो अमृतसर की परिस्थितियों को जानते थे वो कहते हैं कि मैंने सही किया जबकि बहुत से लोगों को लगता हैं कि मैं गलत किया,अब मैं मरकर अपने भगवान से जानना चाहता हूँ कि मैंने सही किया या गलत किया.

 

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