डोक्ट्राइन ऑफ़ लेप्स (अंग्रेजो की हड़प नीति ) (Doctrine of lapse in Hindi)

भारत में सदियों से हिन्दू धर्म के राजाओं और प्रजा के लिए पुत्र होना महत्वपूर्ण रहा हैं,क्युकी पुत्र ही अपने माता-पिता का दाह-संस्कार करता हैं. राजा बनाने के लिए प्रजा के हितों का भी विशेष ध्यान रखा जाता था,और जो सबसे योग्य शासक होता था,उसे ही सत्ता का उतराधिकारी घोषित किया जाता था. इसके लिए कई बार राजा को पुत्र गोद भी लेना पड़ता था. 1818 से पहले ईस्ट इंडिया कम्पनी का भारत में इतना प्रभाव नहीं था, ना वो राज्यों के उत्तराधिकारी सम्बन्धित मामलों में हस्तक्षेप करती थी, लेकिन कम्पनी ने 1818 से लेकर 1834 तक  गोद लिए बच्चे को मान्यता देने या ना देने सम्बन्धित मामले में अपनी  राय देना शुरू किया. और 1841 तक कम्पनी ने इस मामले से अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए एक आधिकारिक नीति बनाली,जिसे उन्होंने डोक्ट्राइन ऑफ़ लेप्स (Doctrine of lapse)की नीति का नाम दिया.

किसने इस कानून को लागू किया? (Who has implemented it)

डोक्ट्राइन ऑफ़ लेप्स (Doctrine of lapse) वास्तव में अंग्रेजों के साम्राज्यवादी नीति का एक भाग था,जिसके अनुसार अंग्रेज देश में अधिक से अधिक राज्यों पर अपना शासन लागू करना चाहते थे. लार्ड डलहौजी ने इस नीति को शुरू किया था, जो कि भारत का गवर्नर जनरल था. उनका कार्यकाल 1848 से 1856 था. हालांकि ईस्ट इंडिया कम्पनी के कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर ने इस नीति की नीव  डलहौजी के कार्यकाल से बहुत  पहले 1834 में ही डाल दी थी,लेकिन डलहौजी की सक्रिय क्रियाशीलता ने इसे अधिक प्रभावी बनाया. 

कानून की विशेषताएं ( Key points of this law)

  • वैसे तो अंग्रेज भारत में व्यापार करने आए थे लेकिन बाद में उन्होंने कुटिलता से हमारे देश पर शासन करने के लिए विभिन्न नीतिया अपनाई और अंग्रेजों की साम्राज्यवादी सोच ही “डोक्ट्राइन ऑफ़ लेप्स” नीति का मूल आधार थी. अंग्रेज देश के अधिक से अधिक राज्यों में अपना शासन फैलाना चाहते थे.
  • हर उस राज्य को जिसमे राजा का कोई पुत्र ना हो,तो उसे सत्ता अंग्रेजों को सौपनी होती थी. गोद लेना या किसी को गोद लेकर अपना उतराधिकारी घोषित करना अंग्रेजों के लिए मान्य था,फिर चाहे राजा ने अपने वंश के ही बालक को गोद क्यों ना लिया हो.
  • इस नीति के अनुसार अंग्रेज शासक के दतक पुत्र को पेंशन या कोई और आर्थिक सहायता नहीं देते थे. दतक पुत्र को अपने पिता की निजी सम्पति में ही अधिकार मिलता था. बाकि राज्य के राजनैतिक,सामजिक और आर्थिक  अधिकार अंग्रेजों के पास चले जाते थे.

कानून का प्रभाव कौन से वर्ग पर हुआ?  (Which class was most affected by this law)

वास्तव में अंग्रेज भारत में कुछ शासकों के शासन करने के तरीके से नाराज थे,कुछ राजा अपनी प्रजा पर ध्यान ना देकर विलासी जीवन व्यतीत करते हैं,इसलिए लार्ड-डलहौजी ने उन पर लगाम लगाने के लिए उन राज्यों में ये नीति शुरू करने की सोची. ऐसे में उन विलासी राजाओं से आम प्रजा को मुक्ति मिली और अंग्रेजों के प्रगति कारक सोच के कारण ऐसे राज्यों का विकास  होना शुरू हुआ. इस नीति का सबसे ज्यादा प्रभाव उन राज्यों पर पडा जहाँ पर शासक ने उतराधिकारी को गोद लिया था,इसी कारण उस राज्य के राजा,राजकुमार के अलावा जागीरदार, ब्राह्मिण और पूरे सम्पन्न वर्ग पर भी पड़ा.

कानून से प्रभावित हुए राज्य (States affected by this law)

लार्ड डलहौजी से पहले कम्पनी ने इस नीति को अपनाकर ही 1839 में मांडवी,1840 में कोल्बा और जालौन जबकि 1842 में सुरत को अपने अधीन कर लिया था. हालांकि क़ानूनी तौर पर डोक्ट्राइन ऑफ़ लेप्स की नीति से अंग्रेजों के अधीन गए राज्य लार्ड डलहौजी के आने बाद सामने आये,लेकिन कम्पनी ने इस दिशा में काम करना बहुत पहले ही शुरू कर दिया था

लार्ड डलहौजी से पूर्व हड़पे गए राज्य

1813 गुलेर
1835 जैंटीया (jaintia)
1840 जालौन
1830 कचारी
1819 कन्नानुर
1824 किट्टूर
1834 कोडागु
1834 कोलाबा
1806 कोजिक्कोड़े
1839 कुरनूल
1825 कूटलहर
1842 सुरत
1846 कुल्लू

लार्ड डलहौजी के कार्यकाल (और उसके आस-पास) में अंग्रेजों के अधीन आये राज्य

1848 अंगुल
1855 अर्काट
1849 जसवान
1854 झांसी (महाराजा गंगाधर राव)
1858     नागपुर
1854 अवध
1849 पंजाब
1858 रामगढ़
1849 संबलपुर
1848 सतारा
1849 सिबा
1855 तंजौर
1854 तुलसीपुर
1854 उदयपुर,चित्तोड़गढ़
1858 बाँदा

 कानून का परिणाम (Results of applying this law)

राजनीतिक तौर पर इस नीति के क्रियान्वयन का बहुत प्रभाव पड़ा लेकिन साथ ही इसका गलत असर सामजिक और धार्मिक परिस्थितियों पर भी हुआ. विभिन्न राज्यों में अचानक से अपने राज्य में होने वाले सत्ता-परिवर्तन सैनिको आम भारतीयों में भी अंग्रेजों के प्रति रोष उत्पन्न हुआ.

1857 की क्रांति और डोक्ट्राइन ऑफ़ लेप्स (1857 revolt and doctrine of lapse)

1857 की क्रान्ति के कई कारणों में से एक डोक्ट्राइन ऑफ़ लेप्स की नीति भी शामिल थी,जिसके कारण अवध, नागपुर, कानपूर, झांसी जैसे कई राज्यों के शासकों ने अंग्रेजो से विद्रोह कर दिया था. वास्तव में 1848 में जब सतारा को अंग्रेजो ने इस नीति को हथियार बनाकर हडपा था,तब ही अंग्रेजों के खिलाफ रोष पनपा चूका था इसके बाद जैतपुर,संबलपुर,बाघट (Baghat),उदयपुर,झाँसी,नागपुर,करौली जैसे कई राज्यों पर हुए इसके प्रभाव के कारण 1857 की क्रांति का जन्म हुआ. नाना साहिब की पेंशन बंद हो जाना, रानी लक्ष्मी बाई की झांसी पर आक्रमण करना जैसे कई बड़े मुद्दे थे जिनके कारण उत्तर भारत के विभिन्न प्रान्तों में अलग-अलग समय पर 1857 की क्रान्ति ने जन्म लिया था.

 

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